सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवाहपूर्व सेक्स या लिव इन रिलेशनशिप अपराध नहीं और दो वयस्कों के बीच संबंध को रोकने के लिए किसी कानून की व्यवस्था नहीं... मैं भी ये मानती हूं कि सेक्सुअल रिलेशन कंपलीटली किसी का निजी मामला होता है.. लेकिन इसके व्यावहारिक पक्ष से मैं सहमत नहीं हूं... और आगाह करना चाहूंगी ऐसे जोड़ों को जो विवाह पूर्व ऐसे संबंधों में हैं या संबंधों में जाना चाहते हैं...
इसकी कई वजहें हैं... अगर दोनों लोग प्रैक्टिकल हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर साथ रहने के दौरान कोई भी एक पार्टनर संबंधों को लेकर सीरियस हो गया और किन्हीं वजहों से ये संबंध टूट गया तो जो व्यक्ति सीरियस है उसकी ज़िंदगी तो बर्बाद हुई समझो... चूंकि इस तरह के रिलेशन में उत्तरदायित्वों का बंटवारा भी नहीं हुआ रहता है तो अगर बाय चांस हर प्रिकॉशन यूज़ करने के बावजूद कभी बच्चे की नौबत आती है... तो बेवजह उस गर्भ को नष्ट करना पड़ता है... और कभी-कभी ऐसी समस्या बार-बार आने पर स्त्री के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है या लड़कियों द्वारा बार-बार कॉन्ट्रिसेप्टिव पिल्स के इस्तेमाल से भी इसका बुरा असर पड़ता है... दूसरा अगर इस रिश्ते से निकलकर माता-पिता द्वारा दूसरा रिश्ता बसाया जाता है तो दूसरे रिश्ते को अपनाने में काफ़ी वक्त लगता है... अगर नया पार्टनर पहले से बेहतर है तो इंसान पुराने रिश्ते को 2 मिनट में भूल जाता है लेकिन अगर उससे कमतर कोई मिल जाए... तो तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाते-अपनाते लोग वर्तमान ज़िंदगी से असंतुष्ट रहते हैं... और वर्तमान पार्टनर से न्याय नहीं कर पाते...सामाजिक ढांचे के लिए भी ये सही नहीं है... मान लिया जाए कि अगर आज कुछ वक्त किसी के साथ फिर कल कुछ वक्त किसी के साथ बिताने से एक वक्त के बाद इंसान खुद को स्वयं ही माफ़ नहीं कर पाता... और लगता है कि कहीं न कहीं वो छला गया है... हर इंसान को एक समय के बाद स्थायित्व की तलाश होती है और ऐसे रिश्ते स्थायी नहीं होते... कई बार ऐसा भी देखा गया है कि प्यार होने के बावजूद रिश्ते केवल विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों की वजह से टूट गए हैं... क्योंकि लिव इन में रहने से हम सामने वाले की हर अच्छाई और बुराई से वाकिफ हो जाते हैं... और हम ये भी जानते हैं कि अब भी हमारे पास ये ऑप्शन है कि हम दूसरे को छोड़कर एक नया पार्टनर बना लें... इससे रिश्ते जल्दी टूट जाते हैं... जबकि अच्छाई के साथ-साथ बुराई तो सब में होती है... एक और बात ये है कि जब तक कोई चीज़ नहीं मिलती तब तक उस चीज़ के प्रति आकर्षण बना रहता है लेकिन कभी-कभी सबकुछ पा लेना भी रिश्ते के लिए खतरनाक होता है... क्योंकि सबकुछ पा लेने के बाद एक तो आकर्षण कम हो जाता है... और दूसरा फिर वही ऑप्शन की बात... आपको पता है कि आपको एक से तो सबकुछ मिल ही गया अब दूसरे से भी वही चीज़ें आप पा सकते हैं... क्योंकि ऐसे रिश्तों में रेस्पॉन्सिबिलिटी उठाने को कोई तैयार नहीं होता... और जहां केवल अधिकार हो कर्तव्य निभाने की बाध्यता नहीं... ऐसा रिलेशन एक दिन खुद को ही गंदा लगने लगता है... अगर पार्टनर्स रिश्तों को लेकर सीरियस हो जाते हैं तो अंततः उनके मन में शादी का ही ख्याल आता है... क्योंकि शादी को हर तरह के समाज में मान्यता प्राप्त है... क्योंकि कोई भी व्यक्ति जीवनभर लिव इन में रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते... अगर भगवान उन्हें आकर ऑप्शन भी दें तो ऐसी व्यवस्था को वे इसे जीवनपर्यंत के लिए नहीं स्वीकारेंगे... एक बात आपने ध्यान दी होगी कि अगर विवाह पूर्व कोई मां बनने वाली होती है तो वो इस बात को खुलकर खुशी से नहीं बता सकती... चाहे कितनी भी आधुनिक सोसायटी क्यूं न हो... वो ऐसा जानकर इसे अच्छे मन से या खुशी से स्वीकार नहीं करते... मां-बाप बेटी या बेटे को इसके लिए बधाई नहीं देते... जबकि शादी के बाद ऐसी खुशी मिलने पर पूरा घर खुशी से झूम उठता है... क्योंकि सोशल एक्सेपटेंस बहुत बड़ी चीज़ होती है... और समाज से कटकर कोई ज्यादा दिन सरवाइव नहीं कर सकता...
इसलिए ऐसे संबंध बनाएं लेकिन सोच समझकर... क्योंकि शरीर और मन एक दूसरे से जुड़े होते हैं और इमोशनलेस होकर आप संबंधों में नहीं रह सकते...................................................
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
सवालों का लेखा जोखा
ब्लॉग आर्काइव
-
▼
2010
(82)
-
▼
मार्च
(16)
- कानून से इतर.......
- कानून को लगी गोली !
- क्या आपने देखा है ऐसा भारत ?
- 'हेडली' या 'हेडेक' ?
- आखिर क्यों ये अत्यचार ?
- देश के थ्री इडियट
- मायावती या 'माला' वती ?
- माया की माला
- आनंदी की मौत से पत्रकारिता आहत
- टीका भी लेता है जान!
- महिलाओं का फैसला करने वाले ये हैं कौन?
- राहुल की शादी
- वक्त हमारा है
- शक्ति का "बिल"
- नारी शक्ति
- भगदड़ः ज़िम्मेदार कौन?
-
▼
मार्च
(16)
हम भी हैं साथ
- ABP News
- Adhinath
- Gaurav
- Madhu chaurasia, journalist
- Mediapatia
- Narendra Jijhontiya
- Rajesh Raj
- Shireesh C Mishra
- Sitanshu
- Unknown
- ज्योति सिंह
- निलेश
- निशांत बिसेन
- पुनीत पाठक
- प्रज्ञा
- प्रवीन कुमार गुप्ता
- बोलती खामोशी
- मन की बातें
- महेश मेवाड़ा
- राज किशोर झा
- राजीव कुमार
- शरदिंदु शेखर
- सवाल आपका है...
- हितेश व्यास
- 'मैं'
- abhishek
- ahsaas
- avinash
- dharmendra
- fursat ke pal
- khandarbar
- manish
- monika
- naveen singh
- news zee
- praveen
- ruya
- shailendra
- sourabh jain
- star jain
- swetachetna
- vikrant
कानून से इतर.......
प्रस्तुतकर्ता
प्रज्ञा
on मंगलवार, 23 मार्च 2010
लेबल:
प्रज्ञा प्रसाद,
लिव इन रिलेशनशिप
तारीख़
Share it
हम साथ साथ हैं
हमराही
Labels
- 2 जनवरी 2011 (1)
- 23 दिसंबर 2011 (1)
- 25 अप्रैल 2011 (1)
- अन्ना (1)
- अपनी खुशी पर भी दें ध्यान (1)
- अबला या सबला? (1)
- अभिषेक मनु सिंघवी (1)
- अर्थ (1)
- आंदोलन (1)
- आखिर कब तक ? (1)
- इडियट (1)
- इस्तीफा (1)
- उदासीनता (1)
- एक पल अनोखा सा (1)
- औरत (1)
- कविता (1)
- कांग्रेस (2)
- कैसे बचाएं लड़कियों को ? (1)
- खसरा (1)
- गरीबी (1)
- गांव (1)
- गीतिका (1)
- गोपाल कांडा (1)
- चिराग पासवान (1)
- छत्तीसगढ़ (1)
- जिंदगीं खतरे में (1)
- जी न्यूज (1)
- जीत (1)
- जीत अस्तित्व की (1)
- ज्योति सिंह (1)
- टीका (1)
- ट्रेन (1)
- डिंपल यादव (1)
- तीर (1)
- दीपावली की शुभकामनाएं (1)
- देश (1)
- नक्शा (1)
- नक्सली (2)
- नरेंद्र जिझौंतिया (3)
- नरेंद्र तोमर का स्वागत गोलियों से (1)
- नारी शक्ति (1)
- निशांत (3)
- नीतीश कुमार (1)
- पंडा (1)
- प्यार या सौदेबाजी (1)
- प्रज्ञा प्रसाद (8)
- फना (1)
- फिल्म (2)
- फेरबदल (1)
- बंगला (1)
- बच्चे (1)
- बसपा (1)
- बापू (1)
- बाल नक्सली (1)
- बिहार (2)
- बॉलीवुड (1)
- भंवरी (1)
- भगदड़ (1)
- भाजपा (3)
- भारत (1)
- भूख (1)
- मंत्रिमंडल (1)
- मक़सूद (4)
- मजबूरी (1)
- मदेरणा (1)
- मधु (1)
- मधु चौरसिया (3)
- मनमोहन सिंह (2)
- ममता बनर्जी (1)
- महंगाई (1)
- महिला (1)
- मां तुमसा कोई नहीं (1)
- मायावती (2)
- मुन्नी (1)
- मूर्ति (1)
- मेरे दिल से (2)
- मॉडल (1)
- मोहन दास करमचंद गांधी (1)
- मोहब्बत (1)
- यश चोपड़ा (1)
- यादें (2)
- युवा पीढ़ी (1)
- ये कैसा रिश्ता ? (1)
- ये कैसी प्यास? (1)
- रंजीत कुमार (1)
- राज किशोर झा (1)
- राजनीति (11)
- राजीव (1)
- राजीव कुमार (7)
- राजेश खन्ना (1)
- राहुल (1)
- राहुल महाजन की शादी (1)
- रेल बजट (2)
- रेलवे (1)
- रॉ वन (1)
- रोमल (6)
- रोमल भावसार (1)
- लब (1)
- लाशों (1)
- लिव इन रिलेशनशिप (1)
- विचार (1)
- विजय दिवस (1)
- विदाई (1)
- विधायक (1)
- वैक्युम (1)
- व्यंग्य (1)
- शर्म (1)
- शहीद (1)
- श्रद्धांजलि (2)
- संसद हमला (1)
- सच (1)
- समाज (2)
- सवाल संस्कृति का है (1)
- साज़िश (1)
- सानिया (1)
- सियासत (1)
- सीडी (1)
- सीधी बात (6)
- सुषमा स्वराज (1)
- सुसाइड (1)
- सेक्स (1)
- सेना (1)
- सेना और खत (1)
- सोनिया (1)
- स्ट्रॉस (1)
- हेडली (1)
- chirag (1)
- cycle (1)
- father (1)
- hitesh (1)
- ICC Worldcup (1)
- manish (1)
- nitish (1)
- Ponting (1)
- Sachin (1)
- www.fifthangle.com (1)
1 टिप्पणियाँ:
बेशक कानून की किताबों में इस पर प्रतिबंध नही हो... लेकिन हमारा सामाजिक ढ़ांचा इस रिश्ते को मंजूरी नहीं देता। इस रिश्ते में सबकुछ होता है... सिवाए एक दूसरे के प्रति समपर्ण और एक-दूसरे एवं घर-समाज के प्रति जिम्मेवारी के। हां, भावना के बगैर सिर्फ देहसुख चाहिए तो 'वेश्यावृति' के इस आधुनिक रूप का खूब चलन है बड़े शहरों में!!! बस एक दूसरे से अपना मतलब निकालिए और चलते बनिए अपने-अपने रास्ते पर। यूं लोग पैसे देकर पल दो पल के लिए साथ होते हैं और एक इस तरह के रिश्ते में चंद महीने या चंद साल... बस!
एक टिप्पणी भेजें