टीका भी लेता है जान!

मध्यप्रदेश के दमोह में एक ऐसा वाकया सामने आया है जो सरकारी तंत्र की पोल तो खोलता ही है साथ ही इसे सोचकर दिल भी दहल जाता है... आंगनबाड़ी केंद्र में 2 साल तक के बच्चों को यहां खसरे के टीके लगाए गए... जिसकी वजह से अबतक 4 बच्चों की मौत हो चुकी है और 17 बच्चे बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हैं... वैसे तो मामले में कार्रवाई की गई है, मुआवज़े का ऐलान भी किया गया है... लेकिन ये सब कर लेने से उन मां-बाप को क्या मिलेगा जिन्होंने अपने आंखों के तारे खोए हैं... वे वापस तो नहीं आ जाएंगे... और मुआवज़े का ऐलान करके सरकार क्या सोचती है कि परिजन पैसों के भूखे होते हैं.. जिसका बच्चा ही चला गया... जिसे लेकर इतने सपने बुने गए थे, फिर पैसे किस काम के... पैसा बेटे या बेटी की जगह तो नहीं ले सकता... मरने के बाद जब कोई मुआवज़े का ऐलान करता है... तो पर्सनली मुझे ऐसा लगता है कि जले पर नमक छिड़का जा रहा हो... या श्राद्ध करने के लिए पैसे दिए जा रहे हों...
वैसे इस घटना ने सभी मां-बाप खासकर उन गरीब मां-बाप के दिलों को दहला दिया है, जिनके पास सरकारी अस्पताल के भरोसे रहने के अलावा या सरकारी योजनाओं के भरोसे रहने के अलावा कोई चारा नहीं होता... सचमुच अब तो जिस भी चीज़ के आगे सरकारी शब्द लगता है उससे डर लगने लगता है... आखिर गरीब जाएं तो जाएं कहां इलाज ना कराएं तो भी बेमौत मरना है और करवाएं तो भी....
एक न्यूज़ चैनल काफ़ी समझाइश दे रहा था कि दवाओं की एक्सपायरी देखें, उनसे दवाओं की जानकारी लें वगैरह-वगैरह... लेकिन जहां 100 लोग अपने-अपने बच्चों को लाइन में लेकर खड़े हैं प्रैक्टिकली ये संभव नहीं कि हर गार्जियन को एक्सपायरी डेट दिखाई जा सके... और गरीब और अशिक्षित लोगों को देखकर तो वैसे ही लोग इन्हें दबा देते हैं... इसलिए न्यूज़ चैनल को सच की धरातल पर रहकर खबर दिखानी चाहिए हवा-हवाई बातें नहीं करनी चाहिए...

खैर जो भी इन बच्चों की मौत के ज़िम्मेदार हैं उन्हें फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए ताकि ऐसी लापरवाही करने की जुर्रत भविष्य में कोई न कर सके....... क्योंकि जीवन देना बहुत मुश्किल है और लेना बहुत आसान.......

1 टिप्पणियाँ:

राजीव कुमार ने कहा…

सरकारी अस्पताल में तो बस खानापूर्ति ही होती है, कई बार इस तरह की लापरवाही हुई है। रही बात निजी अस्पतालों की तो वहां जेब पर अत्याचार होता है और वहां का इलाज पाना भी सबके बूते की बात नही है। ऐसे में सरकार और जिम्मेदार चिकित्सकों पर ही सारा दारोमदार है और यदि वे इस जिम्मेवारी को नहीं निभा रहे, तो बेहिजक उन्हें सजा मिलनी चाहिए... सजा भी ऐसी की आगे से कभी ऐसी लापरवाही न हो।

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