शक्ति का "बिल"

आपने भी देखा होगा महिला बिल के पारित करने का बवाल...जरूर रोमाचंक ही लगा होगा सबको..लोगों का आक्रोश,चीखना चिल्लाना,गुस्सें में सभापति के सामने इस तरह का आचरण की पढ़े लिखे लोगों को काबू करने के लिए बुलाए गये मार्शल...सब कुछ कितना रोमांचकारी की जिसे देख कर कुछ तो हंस रहे थे कुछ शर्मिंदा थे...अरे भई आप जानना नहीं चाहेंगे बिल पर ये बवाल क्युं हो रहा था....
बस इतनी सी बात थी कि महिला को 33 फीसदी आरक्षण ..... पुऱूष की साफगोई का अंदाज ही था ये....जिसकी ये बानगी थी,कोई पुरूष भला कैसे हंस के स्वीकार कर ले कि अब महिला को समानांतर लाने की कोशिश की जा रही है...
बड़ा अजीब लगता है कि आज तक संपूर्ण रूप से महिला पर निर्भर रहने वाला पुऱूष स्वीकार नहीं कर पाता कि वो जिस पर निर्भर है वो भी आत्मनिर्भर बन सके.. जिस पुरूष के अस्तित्व की शुरूवात ही महिला करती है वो इस बात से इत्तेफाक रखने में झिझक महसूस करता है...वरना जहां दुनियां में 1000पुरूष के पीछे 900 से ज्यादा महिला हैं वहां भला ये 33 फीसदी आरक्षण का मुद्दा '" मुद्दा"क्यों बनता....और भी न जाने कितने पहलू हैं इस विषय पर चर्चा करने के लिए पर यहां सिर्फ एक ही उठा लें तो काफी होगा की..इस बिल के पीछे इतना बवाल मचानें की क्या जरूरत है..जो शक्ति का स्त्रोत है उसे बिल के रूप में शक्ति देने पर इतना हाहाकार क्यों मचा....ये सवाल सोचने का है पुरूष से ज्यादा महिला के लिए...

3 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने । अपने हाथ से सत्ता जाते देख कर तिलमिलाना स्वाभाविक ही था। अभी भी पता नही आगे क्या होगा।ाभी तो बिल एक कदम ही चला है। धन्यवाद

अजय कुमार ने कहा…

मठधीशों को अपने सत्ता हिलते दिख रही है ।

बोलती खामोशी ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है

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