भगदड़ः ज़िम्मेदार कौन?

गुरुवार को यूपी प्रतापगढ़ के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में करीब 63 लोगों ने अपनी जानें गंवा दीं... मरने वालों में केवल महिलाएं और बच्चे थे... भगदड़ में करीब 200 लोग घायल हो गए... मंदिर में कृपालु महाराज का प्रवचन और इसके बाद भंडारे की व्यवस्था थी... साथ ही भक्तों को थाली और लोटे भी बांटे जा रहे थे...
भगदड़ के बाद से ही मामले का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है और सभी अपने-अपने विचारों से इसकी वजह बता रहे हैं...
मंदिर के किसी आयोजन में भगदड़ मच जाना कोई नई बात नहीं है... चाहे वो नैना देवी का मामला हो या कोई और... घटना के बाद सभी प्रशासन और सरकार को कोसने लगते हैं... लेकिन कभी कोई खुद के ऊपर ऊंगली नहीं उठाता... मरने वालों की भी लापरवाही पर गौर नहीं की जाती... क्योंकि शायद मरने वालों पर ऊंगली उठाना अच्छा नहीं लगता होगा, शायद मृतक के परिजनों के जले पर नमक छिड़कना लगता होगा... लेकिन ये भी सौ फीसदी सच है कि प्रशासन की गलती तो जो होती है वो तो होती ही है... लेकिन मरने वाले भी इसमें कम ज़िम्मेदार नहीं होते...
अगर कल की ही घटना लें तो थाली-लोटा लेने के लिए कोई लाइन नहीं थी... सब एक के ऊपर एक चढ़े जा रहे थे... उनके मन में भगवान वगैरह के ऊपर कोई श्रद्धा नहीं थी, क्योंकि श्रद्धा तो किसी भी दिन और कहीं से भी दर्शाई जा सकती है, केवल लालच में लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थे... अब उनकी उम्र इतनी कम तो नहीं थी कि उन्हें लाइन में लगने को भी कहा जाए, लेकिन यहां अक्सर देखती हूं कि जबतक लाठी-डंडों से बात नहीं की जाए, डांटा न जाए, तबतक लोग रूल्स फॉलो ही नहीं करते... मान लिया जाए कि कोई देखने वाला नहीं था, लेकिन सेल्फ़ डिसिप्लिन (स्वनुशासन) भी तो कोई चीज़ होती है न, वो तो यहां के लोगों में है नहीं, और चलेंगे दूसरों को दोष देने.. तो लोगों ने इतनी धक्का-मुक्की की, कि मंदिर का गेट ही टूट गया और उसके बाद मची भगदड़ में इतनी जानें गईं... जिनमें निर्दोष बच्चे भी शामिल थे... साथ ही कुछ और निर्दोष लोग भी जिनकी सचमुच कोई गलती नहीं रही होगी... और जो दूसरों की धक्कामुक्की का शिकार हो गए...

दूसरा कि आजकल टीवी पर बाबाओं के स्कैंडल की भरमार है... उसके बाद भी लोगों को ये समझ में नहीं आता क्या कि इंसान और भगवान के बीच किसी थर्ड पार्टी की ज़रूरत नहीं है... तो इतने स्कैंडल्स लगातार उजागर होने के बावजूद अगर लोग वहां गए तो इसका मकसद क्या था... वो भी इतनी बड़ी संख्या में... क्योंकि भगवान से जुड़ा आयोजन तो वहां था नहीं... वहां तो बाबा से जुड़ा आयोजन था... ऊपर से इस आयोजन को प्रशासन से अनुमति भी नहीं थी...
कल की ही बात है, जब मेरे मुहल्ले में रहने वाली महिलाएं केवल इसलिए मंदिर गईं कि किसी 4 हाथ-पांव वाले बच्चे ने उड़ीसा में कहीं जन्म लिया है, अब सोचिए कि ये बात उस बच्चे के माता-पिता और उस बच्चे के लिए कितनी दुःखद है कि वो नॉर्मल बच्चा नहीं है, किसी जेनेटिक गड़बड़ी के कारण उसका ये हश्र हुआ है, और ऐसे बच्चे सर्वाइव भी नहीं कर पाते, और न ऐसे मां-बाप के पास करोड़ों रुपए होते हैं... कि वे ऑपरेशन से उसे एक नॉर्मल ज़िंदगी दे सकें... लेकिन यहां तो अंधविश्वास का ये आलम है कि बस पूछिए मत... मैं तो हतप्रभ ही रह गई, और आप शिक्षित करने की बात करते हैं... हो सकता है कि आप वजह समझाने की कोशिश करें और आप ही को पिटाई लग जाए...
इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को तो चुस्त रहना ही पड़ेगा, लेकिन साथ ही श्रद्धालुओं को भी सेल्फ़ डिसिप्लिन्ड होने की आवश्यकता है, क्योंकि जाते तो हैं भगवान के दर्शन करने लेकिन मैंने अपने कानों और आंखों से मन में दुर्भावना पाले हुए देखा है उन्हें, जो मंदिर जाकर भी अपने परिवार की बुराई करते हैं... या गंगा स्नान कर पाप धोने के बाद भी लोगों को सताते हैं...

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें