वक्त हमारा है


चमक उठी सन सत्तावन में, वो तलवार पुरानी थी,
बुंदेलों हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।
डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के तहत उस वक्त झांसी को ब्रिटीश राज्य में मिलाने की साजिस रची जा रही थी। अंग्रेजों ने राज्य का खजाना जब्त कर  लक्ष्मी बाई को किले से निकाल दिया था। रानी ने भी हार नहीं मानी और स्वयंसेवक सेना का गठन किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। इस सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुडा़ दिए थे।
त्रेता युग में भी महिलाओं की युद्ध में अहम भुमिका थी। रामायण में वर्णन है कि एक बार देवासुर संग्राम में इन्द्र की सहायता के लिए दशरथ और कैकेयी गये। वैजयंत नगर में संबर नाम से विख्यात, अनेक मायाओं का ज्ञाता तिमिध्वज रहता था, उसने इन्द्र को युद्ध के लिए चुनौती दी थी। भयंकर युद्ध करते हुए दशरथ भी घायल होकर अचेत हो गये। राजा के अचेत होने पर कैकेयी उन्हें रणक्षेत्र से बाहर ले आयी थी।
अब एक बार फिर महिलाओं की शक्ति को पहचाना जाने लगा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि महिला अधिकारियों को भारतीय सेना और वायु सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए। इस फैसले के बाद सेना में महिलाओं के लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल बनने का सपना पूरा हो सकेगा। इससे पहले महिलाओं को 5 से 14 साल के लिए अस्थाई कमीशन दिया जाता था और वे लेफ्टिनेंट कर्नल बन कर रिटार्यड हो जाती थी। बहरहाल तीनों सेनाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 11 फीसदी है। कोर्ट के इस फैसले के बाद इस क्षेत्र में महिलाओं का रुझान और बढ़ेगा और सेना में सम्मान भी।

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