मध्यप्रदेश के शिवपुरी और मुरैना में जो कुछ हुआ उसमे गोली भले ही किसी ने चलाई हो पर लगी इस देश के कानून को ही है.....मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और गडकरी की टीम में महासचिव बनाए गए नरेंद्र तोमर जब यहां पहुंचे तो इनका बंदूक की गोलियों से स्वागत किया है....औऱ गोलियां भी एक..दो..दस..बीस नहीं बल्कि पूरी 101 बंदूकों से चली....औऱ वाक्या एक बार नहीं दो बार हुआ वो भी दो अलग अलग जगह..पहले शिवपूरी में और फिर मुरैना में..इस तरह का स्वागत करके इस देश के नेता क्या साबित करना चाहते है और सबसे बड़ी बात कुछ दिनों से एक अजीब सी आदत हो गई है इन नेताओं कि..और आदत ये कि अगर इन्हे बताया जाए कि आप ये गलत कर रहे हैं तो ये उसी गलती को दोबारा करके चुनौती देते हैं समाज को कि जिसको जो करना हो कर ले..पहले मायावती ने दोबारा रुपयों की माला पहनकर अपनी जिद बता दी अब नरेंद्र तोमर ने दोबारा बंदूकों से स्वागत कराकर..कल जब तोमर शिवपूरी पहुंचे थे और 101 बंदूके चली थी तो मीडिया ने इसकी बहूत आलोचना की थी पर आज जब वो मुरैना पहुंचे तो फिर कार्यकर्ताओं से बंदूक चलावाई गई..क्या साबित करना चाहते हैं ये नेता.....इस फायरिंग में एक युवक बुरी तरह घायल भी हो गया पर नेताओं को इस बात की कोई चिंता नहीं ये तो बस अपना रुतबा दिखाना चाहते हैं....गडकरी ने नई टीम बनाते समय कहा था कि वो भाजपा को बदलना चाहते है...तो क्या ये वो बदलाव है जो वो करना चाहते थे..चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली भाजपा का क्या यही असली चहरे है ? और सबसे बड़ा सवाल शिवराज सिंह के राज में काम करने वाले पुलिस वालों से ..आखिर कानून का मजाक उड़ता देख क्यों चुप रही पुलिस.....क्यों नहीं रोका गया इन लोगों को..दूसरी बार फिर बंदूके चली मुरैना में तब भी नहीं रोका गया...क्या शिवराज के राज में पुलिस भीगी बिल्ली बनकर रह गई है...ये सिर्फ सत्ता मैं बैठे लोग तलबे चाटती है..ये भारतीय जनता पार्टी है या भारतीय बंदूक पार्टी.....पुलिस की हरकत से मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि गोली किसी ने भी चलाई हो पर लगी इस देश के कानून को है..मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष होना बहुत जरूरी है...ये हाल है इस देश की विपक्षी पार्टी का अब जनता किससे उम्मीद करे कि वो सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोलेगे..
रोमल भावसार
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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1 टिप्पणियाँ:
क्या आप दिनभर टीवी और कंप्यूटर के सामने बैठे रहते हैं....कोई खबर होनी है औऱ तुरंत आपका ब्लाग आ जाता है
नेहा सेठ
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