समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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आखिर क्यों ये अत्यचार ?
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on गुरुवार, 18 मार्च 2010
लेबल:
अबला या सबला?
आज सुबह अचानक टीवी पर मेरी नज़र पड़ी...और मैं ठिठक सी गई....क्योंकि कुछ ऐसा दिखाया जा रहा था कि चाह कर भी मेरी निगाहें न्यूज़ चैनल पर ठहर गई....खबर थी झारखंड से जहां कुछ जगहों पर महिलाओं को डायन बताकर मौत के घाट उतार दिया जाता है.....मेरे ये लिखते और ये प्रोग्राम देखते तक शायद और कोई महिलाएं इस घटना की शिकार हुई हों.....घर में किसी के बीमार पड़ने किसी को लकवा मारने या किसी की अचानक मौत हो जानें पर उस घर की महिला को डायन करार देकर उसकी सरेआम हत्या कर दी जाती हैं....इस खबर ने मुझे अपनी ओर खींचा.....क्योंकि मामला महिलाओं पर अत्याचार का जो था.....आखिर मैं भी एक महिला हूं.....तो मेरी दिलचस्पी इस खबर पर होना लाज़मी था...मेरे सारे काम रूक गए और मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही थी....और मुझे अपना काम भी पूरा करना था तो मैंने टीवी का वाल्यूम तेज कर दिया और अपने दूसरे काम निपटाने लगी तभी एक दर्द भरी चीख सुनाई दी और मैं वापस टीवी के सामने आ गई....एक महिला चीखती रही चिल्लाती रही लेकिन उस बेबस को बचाने किसी के हाथ नहीं उठे....हाथ उठे भी तो सिर्फ़ उसे प्रताड़ित करने वालों के....कोई आता भी कैसे शायद लोगों को उस डायन से अपनी मौत का डर हो...ये तो एक घटना है महिला पर होने वाले अत्याचार की..जिसे उस गांव का पुरूष अंजाम दे रहा है और महिला सह रही है........पर ये सवाल मैं उन पुरूषों से करना चाहूंगी जो समाज में महिला को अबला का दर्जा देता है ..और फिर वही उसे डायन बना कर इतनी सबल बताता है कि वो अपनी ताकत से किसी को मौत देती है....और फिर अपनी ताकत दिखा कर उसे मौत के घाट उतार देता है.... पुऱूष है क्या? पहले वो खुद तय कर ले ताकतवर या कमजोर...भीरू या कायर.....क्योंकि ये घटना मेरे गले नहीं उतर रही...कि अगर महिला डायन हैं तो वो खुद को मारने वालों को कैसे छोड़ सकती है ..और अगर पुरूष ताकतवर है तो वो एक महिला से डर कर उसे मार कर क्या दिखा रहा है.....और समाज जिसके हर घर की धुरी महिला है वो कैसे ये अत्याचार सहन कर रहा है....या उसे भी ये घटना संतुष्टि दे रही है....पुरूष जो औरत के बिना एक कदम नहीं चल सकता.... हर सही-गलत तरीके से उसका दामन चाहता है....वो अगर महिला से इस तरह का व्यवहार करता है तो सोचना होगा कि हमारे समाज में अबला महिला है या पुरूष...........?
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6 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
bahut khoob
वैसे गम्भीरता से विचार किया जाए तो पुरुष बहुत ही कमजोर मानसिकता वाले होते हैं। उनका काम-भाव उन पर हावी रहता है। इसी कारण वे महिला को अपनी मुठ्ठी में कैद रखना चाहता है। ऐसे सारे अपराधों के पीछे महिला का सस्ते में उपलब्ध न होना ही बहुत बड़ा कारण है।
निसंदेह दुर्भाग्यपूर्ण है . यह सब अंधविश्वास का परिणाम है ...
BAHUT DURBHAGYAPOORN ....
हमारे समाज में अबला महिला है या पुरूष...........?
विचारणीय आलेख.
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