समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
सवालों का लेखा जोखा
ब्लॉग आर्काइव
-
▼
2010
(82)
-
▼
मार्च
(16)
- कानून से इतर.......
- कानून को लगी गोली !
- क्या आपने देखा है ऐसा भारत ?
- 'हेडली' या 'हेडेक' ?
- आखिर क्यों ये अत्यचार ?
- देश के थ्री इडियट
- मायावती या 'माला' वती ?
- माया की माला
- आनंदी की मौत से पत्रकारिता आहत
- टीका भी लेता है जान!
- महिलाओं का फैसला करने वाले ये हैं कौन?
- राहुल की शादी
- वक्त हमारा है
- शक्ति का "बिल"
- नारी शक्ति
- भगदड़ः ज़िम्मेदार कौन?
-
▼
मार्च
(16)
हम भी हैं साथ
- ABP News
- Adhinath
- Gaurav
- Madhu chaurasia, journalist
- Mediapatia
- Narendra Jijhontiya
- Rajesh Raj
- Shireesh C Mishra
- Sitanshu
- Unknown
- ज्योति सिंह
- निलेश
- निशांत बिसेन
- पुनीत पाठक
- प्रज्ञा
- प्रवीन कुमार गुप्ता
- बोलती खामोशी
- मन की बातें
- महेश मेवाड़ा
- राज किशोर झा
- राजीव कुमार
- शरदिंदु शेखर
- सवाल आपका है...
- हितेश व्यास
- 'मैं'
- abhishek
- ahsaas
- avinash
- dharmendra
- fursat ke pal
- khandarbar
- manish
- monika
- naveen singh
- news zee
- praveen
- ruya
- shailendra
- sourabh jain
- star jain
- swetachetna
- vikrant
देश के थ्री इडियट
आज मैं जो लिखने जा रहा हूं शायद उससे आप सहमत न हो..क्यों कि इस लेख में कहीं न कहीं मुझ पर औऱ आप पर भी व्यंग कसा जाएगा....देश में बहुत कुछ चल रहा है...कही बिल पर बवाल ...तो कही मराठी मानुष पर महाभारत..कही नोटो के हार पर हाहाकार तो कही आतंकवाद और महंगाई से घिरा ये देश..इस सब के बीच मुझे तीन इडीयट नजर आते हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं......इडियडट नंबर वन-केंद्र सरकार.......उत्तरभारतियों को लेकर महाराष्ट्र में MNS और शिवसेना की गुंडागर्दी जारी है...पर केंद्र सरकार धृतराष्ट्र बनकर बैठी है...आंखे होते हुए भी उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा....महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है..अगर मुख्यमंत्री चाहे तो दो मिनट में इन गुंडों की अकल ठिकाने लगा दे ...पर नहीं क्यों कि अगर ऐसा किया तो वोटों की राजनीति का क्या होगा...मायावती करोड़ों का हार पहनती है और केंद्र सरकार चुपचाप बैठी रहती है.... सरकार के किसी मंत्री कि तरफ से कोई बयान नहीं आता न केंद्र सरकार कोई कार्रवाई करती है......भले करे भी कैसे वोट की चिंता जो है......पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं और जनता के सामने आता है सिर्फ ममता का ड्रामा......अच्छा आप लोग मुझे बताईएं......यूपीए की सहयोगी ममता ने बजट में तेल के दाम बढ़ने के बाद खूब ड्रामा किया....संसद के बाहर आ गई.....तुरंत कोलकाता चली गई और बंगाल में तृणमूल ने अगले ही दिन हिंसक प्रदर्शन भी किया.....आप मुझे एक बात बताइए यूपीए की एक मजबूत सहयोगी है तृणमूल कांग्रेस औऱ ममता के पास रेल मंत्रायल भी है तो क्या ये संभव है कि बजट के पहले उन्हे न बताया गया हो या उन्हे विश्वास ने न लिया गया हो कि पेट्रौल-डीजल के दाम बढ़ने वाले है......ये संभव ही नहीं है.....फिर ममता ने इतना ड्रामा क्यों किया......सीधा सा उत्तर है वोट की खातिर.....पश्चिम बंगाल में चुनाव करीब है और ममता ये ड्रामा करके लोगों के बताना चाहती थी कि उन्होने तो दाम बढ़ने का विरोध किया था......अगर सही में इतना गुस्सा थी ममता दीदी तो 24 घंटे के अंदर की दोबारा प्रणब का गुनगाण क्यों करने लगी......खैर सब राजनीति है....अब बात देश के दूसरे इडियट की....देश का दूसरा इडियट है -विपक्ष में बैठी भाजपा....सही बताऊ मजबूत लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना बहूत जरूरी है पर अपने देश का विपक्ष (भाजपा/एनडीए) तो इतना कमजोर है कि वो अपनी पार्टी की उलझनों से ही नहीं निकल पा रहा देश के मुद्दों को क्या उठाएगा....मुझे समझ में नहीं आता महिला बिल हो या बजट हो हर मुद्दे में संसद में हंगामा होता है पर जब कोई बात सांसदों के हित की होती है जैसे सांसदों का वेतन बढ़ना.... तो ध्वनि मंत से इसे पारित कर दिया जाता है...तब क्यों विरोध का कोई भी स्वर संसद में सुनाई नहीं देता?....तो इडियट नंबर दो है देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जो अपनी भूमिका निभाने में विफल रही...अब बात सबसे ताकतवर इडियट कि यानी इडियट नंबर थ्री की......अगर ये इडियट ठीक हो जाए तो सत्ता हो या विपक्ष ये सबको ठीक कर देगा....और ये इडियट नंबर तीन है इस देश की जनता... यानि आप और हम.....देश में इतना कुछ हो रहा है.... करोड़ों की माला पहनाई जा रही है....संसद में हंगामे से देश के करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है......देश के अंदर कि महाराष्ट्र,बिहार ,उत्तरभारतियों के बीच जंग छिड़ी है.......आतंकी हमले हो रहे है.....नक्सलवाद पर लगाम कसना मुश्किल हो गया है.......चाय से महंगी शक्कर गायब है........थाली में रोटी तो है पर दाल नहीं है......आज भी देश में कई लोग हैं जो एक वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं और हम बेफ्रिक है.....मैंने जो भी मुद्दे उपर लिखे वो देश की जनता के लिए समाचार है...बस....और मेरे जैसे पत्रकार के लिए एक मुद्दा जिसपर ब्लांग लिखा जा सके....कोई नहीं चाहता वो आगे आए ....हर व्यक्ति चाहता है कि देश में एक और भगत सिंह /सुभाष चंद बोस पैदा हो.... जो इस देश में क्रांति ला सके... पर वो अपने घर में नही बल्की बगल वाले परिवार के घऱ में पैदा हो......क्यों की अपने बेटे की कर्बानी कौन देना चाहता है......तो भैइया ये तीन इडियट इस देश के जिन्होने देश का बंटाढार कर रखा है......और जब तक ये नहीं सुधरेंगे तब तक करोड़ों की माला रोज पहनी जाएगी.....रोज मुंबई में उत्तरभारतियों की पिटाई होगी.....संसद में हंगामें से देश का पैसा बर्बाद होता रहेगा.....न जाने कितने आतंकी हमले होंगे और हम दो बयान सुनेंगे हर घटना के बाद ..
.पहला सरकार है- हम घटना की निंदा करते हैं औऱ मामले की जांच की जा रही ..रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई होगी....
दूसरा विपक्ष का- केंद्र सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है..हम इस भ्रष्ट्र सरकार के खिलाफ देश भर आंदोलन चलाएंगे.....और इसे उखाड़ फेकेंगे..
सत्ता-विपक्ष कोई भी रहे मैं बचपन से यहीं बयान सुनता आ रहा हूं...
रोमल भावसार
तारीख़
Share it
हम साथ साथ हैं
हमराही
Labels
- 2 जनवरी 2011 (1)
- 23 दिसंबर 2011 (1)
- 25 अप्रैल 2011 (1)
- अन्ना (1)
- अपनी खुशी पर भी दें ध्यान (1)
- अबला या सबला? (1)
- अभिषेक मनु सिंघवी (1)
- अर्थ (1)
- आंदोलन (1)
- आखिर कब तक ? (1)
- इडियट (1)
- इस्तीफा (1)
- उदासीनता (1)
- एक पल अनोखा सा (1)
- औरत (1)
- कविता (1)
- कांग्रेस (2)
- कैसे बचाएं लड़कियों को ? (1)
- खसरा (1)
- गरीबी (1)
- गांव (1)
- गीतिका (1)
- गोपाल कांडा (1)
- चिराग पासवान (1)
- छत्तीसगढ़ (1)
- जिंदगीं खतरे में (1)
- जी न्यूज (1)
- जीत (1)
- जीत अस्तित्व की (1)
- ज्योति सिंह (1)
- टीका (1)
- ट्रेन (1)
- डिंपल यादव (1)
- तीर (1)
- दीपावली की शुभकामनाएं (1)
- देश (1)
- नक्शा (1)
- नक्सली (2)
- नरेंद्र जिझौंतिया (3)
- नरेंद्र तोमर का स्वागत गोलियों से (1)
- नारी शक्ति (1)
- निशांत (3)
- नीतीश कुमार (1)
- पंडा (1)
- प्यार या सौदेबाजी (1)
- प्रज्ञा प्रसाद (8)
- फना (1)
- फिल्म (2)
- फेरबदल (1)
- बंगला (1)
- बच्चे (1)
- बसपा (1)
- बापू (1)
- बाल नक्सली (1)
- बिहार (2)
- बॉलीवुड (1)
- भंवरी (1)
- भगदड़ (1)
- भाजपा (3)
- भारत (1)
- भूख (1)
- मंत्रिमंडल (1)
- मक़सूद (4)
- मजबूरी (1)
- मदेरणा (1)
- मधु (1)
- मधु चौरसिया (3)
- मनमोहन सिंह (2)
- ममता बनर्जी (1)
- महंगाई (1)
- महिला (1)
- मां तुमसा कोई नहीं (1)
- मायावती (2)
- मुन्नी (1)
- मूर्ति (1)
- मेरे दिल से (2)
- मॉडल (1)
- मोहन दास करमचंद गांधी (1)
- मोहब्बत (1)
- यश चोपड़ा (1)
- यादें (2)
- युवा पीढ़ी (1)
- ये कैसा रिश्ता ? (1)
- ये कैसी प्यास? (1)
- रंजीत कुमार (1)
- राज किशोर झा (1)
- राजनीति (11)
- राजीव (1)
- राजीव कुमार (7)
- राजेश खन्ना (1)
- राहुल (1)
- राहुल महाजन की शादी (1)
- रेल बजट (2)
- रेलवे (1)
- रॉ वन (1)
- रोमल (6)
- रोमल भावसार (1)
- लब (1)
- लाशों (1)
- लिव इन रिलेशनशिप (1)
- विचार (1)
- विजय दिवस (1)
- विदाई (1)
- विधायक (1)
- वैक्युम (1)
- व्यंग्य (1)
- शर्म (1)
- शहीद (1)
- श्रद्धांजलि (2)
- संसद हमला (1)
- सच (1)
- समाज (2)
- सवाल संस्कृति का है (1)
- साज़िश (1)
- सानिया (1)
- सियासत (1)
- सीडी (1)
- सीधी बात (6)
- सुषमा स्वराज (1)
- सुसाइड (1)
- सेक्स (1)
- सेना (1)
- सेना और खत (1)
- सोनिया (1)
- स्ट्रॉस (1)
- हेडली (1)
- chirag (1)
- cycle (1)
- father (1)
- hitesh (1)
- ICC Worldcup (1)
- manish (1)
- nitish (1)
- Ponting (1)
- Sachin (1)
- www.fifthangle.com (1)
2 टिप्पणियाँ:
काफी बढ़िया लिखा है लेकिन आपने बाला साहेब ठाकरे के बारे मे कुछ ज्यादा ही गंभीरता दिखाई है. मै कुछ दिन पहले ही इस ब्लाग से जुड़ा हूं इसिलए आज पहली बार लिख रहा हूं. देश के थ्री इडियट-आइपीएल -3 की टीम के लिए जो बोली लगायी जा रही थी उसमें पाकिस्तान के खिलाड़ियों को नही खरीदा गया और शाहरूख खान ने इस संदर्भ मे बयान दिया कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को मौका दिया जाना चाहिए था क्यों.
हमारे सवाल
1 आपने स्वयं लिखा है कि पिछले 10 साल मे भारत मे 100 से ज्यादा हमले हुए और साफ है कि इसमे पाकिस्तान का ही हाथ रहा है लेकिन क्या कभी भी पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने पाक सरकार से ये कहा है वो भारत मे होने वाले आतंकवादी हमलो को रूकवाये कभी नही जब ताज होटल, होटल ट्राइडेंट पर हमला हुआ तो क्या किसी भी पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने पाक सरकार पर दवाब नही बनाया ..
2 जितनी आजादी भारत मे पाक के कलाकारों को दी गयी है क्या इतनी जरा सी भी आजादी पाकिस्तान मे भारतीय फनकारों को मिली है आज सैकड़ों की संख्या मे पाकिस्तान के कलाकार भारती य फिल्म इंडस्ट्री मे काम करते है लेकिन खुद इन्ही फनकारों ने भारत पर पाकिस्तान प्रायोजित हमले की निंदा की है
3 स्वयं पाकिस्तान टीम के खिलाड़ियों को शाहरूख खान ने अपनी टीम में शामिल क्यो नही किया ..
4 अफरीदी जैसे खिलाड़ी जब बाल टैंपरिगं करते हुए टीवी स्क्रीन पर गेखे जाते है तो क्या इनको सभ्य जनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट मे शामिल किया जाना उचित है..
शाहरूख को यह समझना होगा कि देश सबसे पहले है और फिर उसके बाद क्रिकेट और फिर पाकिस्तान ..क्रमश.
पर
शाहरूख खान बेहतरीन फिल्मे बनाते है इसे सभी स्वीकार करते है लेकिन लोकप्रियता की इस आड़ मे किसी को भी पाकिस्तान परस्ती को मौका नही दिया जाना चाहिए .
दूसरी बात
माइ नेम इज खान जिस पृष्ठभूमि पर बनी है इस पृष्टभूमि पर हाल मे जो भी फिल्मे रही या तो वो फ्लाप रही या फिर बेहद ही औसत,न्यूयार्क और कुर्बान का उदाहरण .इसलिए शाहरूख खान ने ऐसे विवाद पैदा किया ताकि फिल्म को शिवसेना इस ढंग से विरोध करे जिससे बेवजह इसे लोकप्रियता हासिल हो सके...
जिस महाराष्ट्र मे 16 घंटे की बिजली कटौती, हजारो हजार किसानों की आत्महत्या, बंद होते उधोग धंधे, बढ़ती बेरोजगारी जैसे सरकार बदल डालने वाला मुद्धा हो उस पर शिवसेना ने कभी भी उस ढंग से विरोध किया जिस तरह से उसने माइ नेम इज खान का विरोध किया.अगर इन सब विषयों पर शिवसेना सरकार का विरोध करे तो अशोक चौहान को बिल मे छिपे रहने के लिए विवश होने मे ज्यादा दिन नही लगेंगे.
मै आप लोगो से यह कहूंगा कि मुद्धे के प्रत्येक पहलू को देखना एक पत्रकार के लिए आवश्यक है . अभी कुछ दिन पहले ही सलमान खान के गार्ड ने महिला पत्रकार को बुरी तरह धकेल दिया और इस पर सलमान ने यह कहते हुए महिला कि खिल्ली उड़ाई कि ये बाइट रिकार्ड किया ना ये बाइट रिकार्ड किया ना ..इसी चापलूसी की हद ने सलमान खान को पत्रकारों को अपने अंदर देखने पर मजबूर कर दिया है . समय है कि सलमान या शाहरूख खान की चमचागिरी से ज्यादा देशहित के मुद्धे पर ध्यान दे ताकि रण फिल्म मे जो दिखाया गया है दोबारा कोई निर्देशक रण या पेज थ्री जैसी फिल्मे ना बनाये
आखिर रण मे जो भी दिखाया गया है वो गलत भी तो नही
एक टिप्पणी भेजें