ममता की ममता

 बजट चाहे आम बजट हो या रेल बजट जनता की बड़ी आस लगी रहती है कि बजट के पिटारे से क्या निकलेगा। इस साल भी 24 तारिख को ममता बनर्जी ने संसद में रेल बजट पेश किया। आम से खास लोग टीवी स्क्रीन पर टकटकी लगाए बैठे थे कि ममता अपने पिटारे से क्या खुछ खास निकालने वाली है।यकिन मानिए एक पत्रकार के नजरिए से ममता के रेल बजट का विश्लेषण करें,तो मुझे तो ये लगता है कि ममता ने पिछले साल के रेल बजट के कुछ अंश को संपादित करके हु-बहु पढ़ दिया। हालांकि फिर भी बजट में कुछ खास था,जिसे लोकलुभावन कहा जा सकता है। लोकलुभावन इस लिहाज से पिछले सात साल से रेल किराए में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। खास कर यात्री किराए में। कुछ अर्थशास्त्री इस बात की चर्चा कर रहे थे,कि आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार और वैश्विक मंदी की आड़ में ममता रेल बजट में कुछ किराए बढ़ा सकती है। लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की वोट की ताक और जनता की वाहवाही की आस में ममता ने किराए नहीं बढ़ाए। मनमोहन सिंह की टीम में रहते हुए ममता ने  भी अर्थशास्त्र की कुछ पाठ पढ़ ली है। और एक अर्थशास्त्री की तरह वर्तमान समय के नब्ज को टटोलते हुए PPP यानि की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के अंतर्गत रेलवे को बिजनेस मॉडल पर जोर दिया। सीधे शब्दों में कहें, तो रेलवे में निजी निवेश बढ़ाने को तरजीह दी गई। हालांकि रेलवे में निजीकरण की बात को उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया। रेलवे  के संसाधनों को कैसे अधिक से अधिक उपयोग किया जाए...इसके लिए भी रेल बजट में उन्होंने प्लानिंग रखीं। खासकर के रेलवे के जमीन को मानव संसाधन विकास मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ समझौते करके रेलवे के जमीन पर स्कूल और अस्पताल खोलने  की बात कहीं। सबसे जो इस बजट में मुझे अच्छा लगा वो ये कि भूतपूर्व सैनिकों को रेलवे सुरक्षा बलों में नौकरियां दी जाएगी। इसके साथ ही इस बजट में नए ट्रेन चलाने और कुछ ट्रेनों के फेरा बढ़ाने की बात भी  की गई। यूं ये तो हर बजट में ही होता है। मगर जो सबसे बड़ा सवाल है सुरक्षा का ममता  के इस बजट भाषण से गायब ही रहा । ये ठीक है कि उन्होंने रेलवे में महिला बटालियन तैनात करने की बात कही। लेकिन आज  भी पश्चिमी देशों में न के बराबर रेल दुर्घटनाएं होती  है। लेकिन भारत में दुर्घटना दर दुर्घटना....कहीं न कहीं सालों से एंटी कोलीजन डिवाइस की जो बातें चल रही है। इस साल भी रेल बजट में इसे अमली जामा पहनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। कब तक हम अपने को दुर्घटना में खोते रहेंगे......कब तक मानवीय भूल कहकर रेल मंत्रालय अपना पल्ला झाड़ता रहेगा। कब तक हम स्टेशन मास्टर और रेलले कर्मचारी को सस्पेंड कर अपना पल्ला झाड़ते रहेंगे। जरूरत है कि सबसे पहले सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता बनाया जाएं...ताकि हम रेलवे में सफर करें,तो सुरक्षा के लिहाज से अपने आप को निश्चिंत पाएं....'.ऐसा नहीं कि सब कुछ भगवान भरोसे'

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