सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवाहपूर्व सेक्स या लिव इन रिलेशनशिप अपराध नहीं और दो वयस्कों के बीच संबंध को रोकने के लिए किसी कानून की व्यवस्था नहीं... मैं भी ये मानती हूं कि सेक्सुअल रिलेशन कंपलीटली किसी का निजी मामला होता है.. लेकिन इसके व्यावहारिक पक्ष से मैं सहमत नहीं हूं... और आगाह करना चाहूंगी ऐसे जोड़ों को जो विवाह पूर्व ऐसे संबंधों में हैं या संबंधों में जाना चाहते हैं...
इसकी कई वजहें हैं... अगर दोनों लोग प्रैक्टिकल हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर साथ रहने के दौरान कोई भी एक पार्टनर संबंधों को लेकर सीरियस हो गया और किन्हीं वजहों से ये संबंध टूट गया तो जो व्यक्ति सीरियस है उसकी ज़िंदगी तो बर्बाद हुई समझो... चूंकि इस तरह के रिलेशन में उत्तरदायित्वों का बंटवारा भी नहीं हुआ रहता है तो अगर बाय चांस हर प्रिकॉशन यूज़ करने के बावजूद कभी बच्चे की नौबत आती है... तो बेवजह उस गर्भ को नष्ट करना पड़ता है... और कभी-कभी ऐसी समस्या बार-बार आने पर स्त्री के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है या लड़कियों द्वारा बार-बार कॉन्ट्रिसेप्टिव पिल्स के इस्तेमाल से भी इसका बुरा असर पड़ता है... दूसरा अगर इस रिश्ते से निकलकर माता-पिता द्वारा दूसरा रिश्ता बसाया जाता है तो दूसरे रिश्ते को अपनाने में काफ़ी वक्त लगता है... अगर नया पार्टनर पहले से बेहतर है तो इंसान पुराने रिश्ते को 2 मिनट में भूल जाता है लेकिन अगर उससे कमतर कोई मिल जाए... तो तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाते-अपनाते लोग वर्तमान ज़िंदगी से असंतुष्ट रहते हैं... और वर्तमान पार्टनर से न्याय नहीं कर पाते...सामाजिक ढांचे के लिए भी ये सही नहीं है... मान लिया जाए कि अगर आज कुछ वक्त किसी के साथ फिर कल कुछ वक्त किसी के साथ बिताने से एक वक्त के बाद इंसान खुद को स्वयं ही माफ़ नहीं कर पाता... और लगता है कि कहीं न कहीं वो छला गया है... हर इंसान को एक समय के बाद स्थायित्व की तलाश होती है और ऐसे रिश्ते स्थायी नहीं होते... कई बार ऐसा भी देखा गया है कि प्यार होने के बावजूद रिश्ते केवल विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों की वजह से टूट गए हैं... क्योंकि लिव इन में रहने से हम सामने वाले की हर अच्छाई और बुराई से वाकिफ हो जाते हैं... और हम ये भी जानते हैं कि अब भी हमारे पास ये ऑप्शन है कि हम दूसरे को छोड़कर एक नया पार्टनर बना लें... इससे रिश्ते जल्दी टूट जाते हैं... जबकि अच्छाई के साथ-साथ बुराई तो सब में होती है... एक और बात ये है कि जब तक कोई चीज़ नहीं मिलती तब तक उस चीज़ के प्रति आकर्षण बना रहता है लेकिन कभी-कभी सबकुछ पा लेना भी रिश्ते के लिए खतरनाक होता है... क्योंकि सबकुछ पा लेने के बाद एक तो आकर्षण कम हो जाता है... और दूसरा फिर वही ऑप्शन की बात... आपको पता है कि आपको एक से तो सबकुछ मिल ही गया अब दूसरे से भी वही चीज़ें आप पा सकते हैं... क्योंकि ऐसे रिश्तों में रेस्पॉन्सिबिलिटी उठाने को कोई तैयार नहीं होता... और जहां केवल अधिकार हो कर्तव्य निभाने की बाध्यता नहीं... ऐसा रिलेशन एक दिन खुद को ही गंदा लगने लगता है... अगर पार्टनर्स रिश्तों को लेकर सीरियस हो जाते हैं तो अंततः उनके मन में शादी का ही ख्याल आता है... क्योंकि शादी को हर तरह के समाज में मान्यता प्राप्त है... क्योंकि कोई भी व्यक्ति जीवनभर लिव इन में रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते... अगर भगवान उन्हें आकर ऑप्शन भी दें तो ऐसी व्यवस्था को वे इसे जीवनपर्यंत के लिए नहीं स्वीकारेंगे... एक बात आपने ध्यान दी होगी कि अगर विवाह पूर्व कोई मां बनने वाली होती है तो वो इस बात को खुलकर खुशी से नहीं बता सकती... चाहे कितनी भी आधुनिक सोसायटी क्यूं न हो... वो ऐसा जानकर इसे अच्छे मन से या खुशी से स्वीकार नहीं करते... मां-बाप बेटी या बेटे को इसके लिए बधाई नहीं देते... जबकि शादी के बाद ऐसी खुशी मिलने पर पूरा घर खुशी से झूम उठता है... क्योंकि सोशल एक्सेपटेंस बहुत बड़ी चीज़ होती है... और समाज से कटकर कोई ज्यादा दिन सरवाइव नहीं कर सकता...
इसलिए ऐसे संबंध बनाएं लेकिन सोच समझकर... क्योंकि शरीर और मन एक दूसरे से जुड़े होते हैं और इमोशनलेस होकर आप संबंधों में नहीं रह सकते...................................................
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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कानून से इतर.......
प्रस्तुतकर्ता
प्रज्ञा
on मंगलवार, 23 मार्च 2010
लेबल:
प्रज्ञा प्रसाद,
लिव इन रिलेशनशिप
/
Comments: (1)
कानून को लगी गोली !
प्रस्तुतकर्ता
बेनामी
on रविवार, 21 मार्च 2010
लेबल:
नरेंद्र तोमर का स्वागत गोलियों से,
भाजपा,
रोमल भावसार
/
Comments: (1)
मध्यप्रदेश के शिवपुरी और मुरैना में जो कुछ हुआ उसमे गोली भले ही किसी ने चलाई हो पर लगी इस देश के कानून को ही है.....मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और गडकरी की टीम में महासचिव बनाए गए नरेंद्र तोमर जब यहां पहुंचे तो इनका बंदूक की गोलियों से स्वागत किया है....औऱ गोलियां भी एक..दो..दस..बीस नहीं बल्कि पूरी 101 बंदूकों से चली....औऱ वाक्या एक बार नहीं दो बार हुआ वो भी दो अलग अलग जगह..पहले शिवपूरी में और फिर मुरैना में..इस तरह का स्वागत करके इस देश के नेता क्या साबित करना चाहते है और सबसे बड़ी बात कुछ दिनों से एक अजीब सी आदत हो गई है इन नेताओं कि..और आदत ये कि अगर इन्हे बताया जाए कि आप ये गलत कर रहे हैं तो ये उसी गलती को दोबारा करके चुनौती देते हैं समाज को कि जिसको जो करना हो कर ले..पहले मायावती ने दोबारा रुपयों की माला पहनकर अपनी जिद बता दी अब नरेंद्र तोमर ने दोबारा बंदूकों से स्वागत कराकर..कल जब तोमर शिवपूरी पहुंचे थे और 101 बंदूके चली थी तो मीडिया ने इसकी बहूत आलोचना की थी पर आज जब वो मुरैना पहुंचे तो फिर कार्यकर्ताओं से बंदूक चलावाई गई..क्या साबित करना चाहते हैं ये नेता.....इस फायरिंग में एक युवक बुरी तरह घायल भी हो गया पर नेताओं को इस बात की कोई चिंता नहीं ये तो बस अपना रुतबा दिखाना चाहते हैं....गडकरी ने नई टीम बनाते समय कहा था कि वो भाजपा को बदलना चाहते है...तो क्या ये वो बदलाव है जो वो करना चाहते थे..चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली भाजपा का क्या यही असली चहरे है ? और सबसे बड़ा सवाल शिवराज सिंह के राज में काम करने वाले पुलिस वालों से ..आखिर कानून का मजाक उड़ता देख क्यों चुप रही पुलिस.....क्यों नहीं रोका गया इन लोगों को..दूसरी बार फिर बंदूके चली मुरैना में तब भी नहीं रोका गया...क्या शिवराज के राज में पुलिस भीगी बिल्ली बनकर रह गई है...ये सिर्फ सत्ता मैं बैठे लोग तलबे चाटती है..ये भारतीय जनता पार्टी है या भारतीय बंदूक पार्टी.....पुलिस की हरकत से मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि गोली किसी ने भी चलाई हो पर लगी इस देश के कानून को है..मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष होना बहुत जरूरी है...ये हाल है इस देश की विपक्षी पार्टी का अब जनता किससे उम्मीद करे कि वो सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोलेगे..
रोमल भावसार
रोमल भावसार
क्या आपने देखा है ऐसा भारत ?
आपने भारत के बहुत से नक्शे देखे होंगे पर आज मैं आपको जो दिखाने जा रहा हूं वो कभी नहीं देखा होगा....भारतीय रेल की माने तो दिल्ली पाकिस्तान में चला गया है...इतना ही नहीं ग्वालियर गुजरात का हिस्सा है..ये तो कुछ भी नहीं अब वाराणसी उड़ीसा का हिस्सा होगा..औऱ कोलकाता बंगाल की खाड़ी में होगा...आप चौक गए होंगे कि मैं ये क्या कह रहा हूं पर ये कारनामा किया है रेलवे के एक विज्ञान ने..इस विज्ञापन में दिल्ली को भारत की राजधानी न बताकर पाकिस्तान का हिस्सा बताया गया है...देश में छोटा से बच्चा भी बता सकता है कि दिल्ली कहा हैं पर वो लोग जिन पर देश चलाने कि जिम्मेदारी है वो अंधे हो गए और इतनी बड़ी लापरवाही के साथ इस मैप को रेलवे के विज्ञापन में छाप दिया....आज कोलकाता में ममता बनर्जी महाराजा एक्स को हरी झंडी दिखाने वाली थी औऱ उनके स्वागत में ये विज्ञापन रेलवे में छपा था मतलब ममता ने भी देखा होगा इस मैप को पर उनके दिमाग में भी नहीं आया कि दिल्ली भारत में है या पाकिस्तान में...इससे पहले भी महिला औऱ बाल विकास मंत्रालय के विज्ञापन में पाक सेना अधिकारियों की फोटो छप चुकी है....बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि इतने लापरवाह हो गए हैं हमारे देश के अधिकारी कि उन्हे ये भी पता न हो कि देश में कौन सा हिस्सा कहां पर है...अगर ऐसा है तो शर्मनाक है..ममला बड़ा तो सियासत भी होने लगी भाजपा पीएम से बोली मांफी मांगो..सीपीआई ने केंद्र सरकार की गलती बताई ये नेता तो लगता है उधार बैठे रहते है कि कही कुछ हो औऱ ये बयान दे..खैर इतनी बड़ी लापरवाही विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क के विज्ञापन में हुई है और मंत्रालय चुप है,,,,कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है..जनता को जवाब चाहिए पर शायद ऐसा कोई भी जिम्मेदार अधिकारी बोलने के तैयार नहीं है कि ऐसी लापरवाही बार बार क्यों होती है...
रोमल भावसार
रोमल भावसार
'हेडली' या 'हेडेक' ?
भारत के गुनहगार हेडली ने अमेरिका में आखिरकार सारे गुनाह कबूल कर ही लिए.....12 आरोपों में से 6 भारत में हत्या की कोशिश..धमाके करने की साजिश समेत संगीन आरोप थे...सही मायने में हेडली का कबूलनामा अमेरिका की एक सोची समझी साजिश नजर आती है...इस कबूलनामे के बाद न तो हेडली को फांसी होगी और न उसे भारत,पाकिस्तान या डेनमार्क के हवाले किया जाएगा....हेडली को फांसी की सजा न मिलते देख भारत में जैसे राजनीतिक भूकंप सा आ गया और नेताओं में बयान देने की होड़ सी लग गई..सबसे पहले बोले देश की गृह सचिव पिल्लई... जिन्होने कहा कि भारत उम्र कैद से भी कठोर सजा की मांग करेगा......फिर बारी आई चिदंबरम की जो कहते हैं हेडली फांसी न देना अफसोस जनक है.......अब जब सरकार के लोग बोल रहे हैं तो विपक्ष कैसे चुप बैठ सकता है..भाजपा ने कहा कि लश्कर आतंकी को भारत लाया जाए तो कम्यूनिस्ट नेता सीताराम येचुरी बोले की भारत ने अमेरिका के सामने घुटने टेक दिए हैं....आपको मैंने सबके बयान बता दिए..अब मैं इन सबसे पूछना चाहता हूं कि अब तक इस देश में इतने आतंकी हमले हुए..सरकार ने किस को फांसी दे दी..खुद के घर में ये नेता झांकना ही नहीं चाहते...जब-जब अफसल गुरू जो संसद पर हमले का आरोपी है को फांसी देने की बात आती है तो कांग्रेस के ही कुछ नेता इसका विरोध करने लगते हैं..आज तक किसी सरकार ने बुलंद आवाज में ये क्यों नहीं कहा कि अफजल को फांसी देनी चाहिएं.....इतना ही नहीं फांसी की बात आते ही नेता मानव अधिकार का झंडा लिए इसका विरोध करने लगते हैं भले ही अपराध कितना भी संगीन क्यों न हो.....आज फालतू के बयान देने वाले सीता राम येचुरी खुद जरा याद करें कि फांसी के मुद्दे पर उनकी ही पार्टी किस तरह लाल झंडा लेकर अपनी आंखे लाल कर लेती है.. इस देश के नेता मुझे ये बताएं दो साल में कई बार हेडली इस देश में आया है पर खुफिया एजेंसी को भनक तक नहीं लगती...क्या ये इनकी नाकामी नहीं है....हेडली-राणा के पकड़ने में हमारे देश की एजेंसियों का योगदान ही क्या है..शायद कुछ नहीं..हेडली को अमेरिका में गिरफ्तार किया गया और वो अपने हिसाब से काम कर रहे तो अपनी फजीहत करवा चुके इस देश के नेताओं के तकलीफ क्यों हो रही है..पिछले 10 साल में इस देश में 100 से ज्यादा आतंकी हमले हुए हैं...आज तक हमले में किसी को कठोर सजा नहीं सुनाई गई.....इतनी ही कठोर सजा चाहते हैं ये नेता तो कसाब मामले में चुप क्यों हो जाते हैं..सीधी बात हैं जब बात अपने देश की हो तो कुछ और बयान देना है और जब बात अमेरिका की हो तो कुछ और बयान देना है..इस देश के नेता वोट के लिए कुछ भी कर सकते हैं...आतंकवाद पर जब शिकंजा कसने और देश के गद्दारों को ढ़ढने के लिए मदरसों की तलाशी की बात आती है तो यही कांग्रेस इसे मुस्लिम विरोधी बताती है...जब-जब खुद को धर्म का ठेकेदार समझने वाले हिंदु संगठनों पर शिकंजा कसता है तो भाजपा गुस्सा हो जाती है..अब बताएं मजबूरियों में काम कर रही इस देश की सुरक्षा एजेंसियां क्या करें.....हां लेकिन अगर किसी और देश को कामयाबी मिल गई मुंबई हमले के आरोपी को गिरफ्तार करने में तो अपनी नाकामी को छुपाने के लिए इन नेताओं को बयान देना अच्छे से आता है....पहले सरकार देश की खुफिया एजेंसी को इतना मजबूत करें कि कोई हेडली एक बार देश में आए फिर वापस न जा पाए उसकी पूरी जिंदगी भारत कि ही किसी जेल में कटे... फिर ललचाई निगाहों से किसी दूसरे देश से कोई उम्मीद करे
रोमल भावसार
आखिर क्यों ये अत्यचार ?
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on गुरुवार, 18 मार्च 2010
लेबल:
अबला या सबला?
/
Comments: (6)
आज सुबह अचानक टीवी पर मेरी नज़र पड़ी...और मैं ठिठक सी गई....क्योंकि कुछ ऐसा दिखाया जा रहा था कि चाह कर भी मेरी निगाहें न्यूज़ चैनल पर ठहर गई....खबर थी झारखंड से जहां कुछ जगहों पर महिलाओं को डायन बताकर मौत के घाट उतार दिया जाता है.....मेरे ये लिखते और ये प्रोग्राम देखते तक शायद और कोई महिलाएं इस घटना की शिकार हुई हों.....घर में किसी के बीमार पड़ने किसी को लकवा मारने या किसी की अचानक मौत हो जानें पर उस घर की महिला को डायन करार देकर उसकी सरेआम हत्या कर दी जाती हैं....इस खबर ने मुझे अपनी ओर खींचा.....क्योंकि मामला महिलाओं पर अत्याचार का जो था.....आखिर मैं भी एक महिला हूं.....तो मेरी दिलचस्पी इस खबर पर होना लाज़मी था...मेरे सारे काम रूक गए और मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही थी....और मुझे अपना काम भी पूरा करना था तो मैंने टीवी का वाल्यूम तेज कर दिया और अपने दूसरे काम निपटाने लगी तभी एक दर्द भरी चीख सुनाई दी और मैं वापस टीवी के सामने आ गई....एक महिला चीखती रही चिल्लाती रही लेकिन उस बेबस को बचाने किसी के हाथ नहीं उठे....हाथ उठे भी तो सिर्फ़ उसे प्रताड़ित करने वालों के....कोई आता भी कैसे शायद लोगों को उस डायन से अपनी मौत का डर हो...ये तो एक घटना है महिला पर होने वाले अत्याचार की..जिसे उस गांव का पुरूष अंजाम दे रहा है और महिला सह रही है........पर ये सवाल मैं उन पुरूषों से करना चाहूंगी जो समाज में महिला को अबला का दर्जा देता है ..और फिर वही उसे डायन बना कर इतनी सबल बताता है कि वो अपनी ताकत से किसी को मौत देती है....और फिर अपनी ताकत दिखा कर उसे मौत के घाट उतार देता है.... पुऱूष है क्या? पहले वो खुद तय कर ले ताकतवर या कमजोर...भीरू या कायर.....क्योंकि ये घटना मेरे गले नहीं उतर रही...कि अगर महिला डायन हैं तो वो खुद को मारने वालों को कैसे छोड़ सकती है ..और अगर पुरूष ताकतवर है तो वो एक महिला से डर कर उसे मार कर क्या दिखा रहा है.....और समाज जिसके हर घर की धुरी महिला है वो कैसे ये अत्याचार सहन कर रहा है....या उसे भी ये घटना संतुष्टि दे रही है....पुरूष जो औरत के बिना एक कदम नहीं चल सकता.... हर सही-गलत तरीके से उसका दामन चाहता है....वो अगर महिला से इस तरह का व्यवहार करता है तो सोचना होगा कि हमारे समाज में अबला महिला है या पुरूष...........?
देश के थ्री इडियट
आज मैं जो लिखने जा रहा हूं शायद उससे आप सहमत न हो..क्यों कि इस लेख में कहीं न कहीं मुझ पर औऱ आप पर भी व्यंग कसा जाएगा....देश में बहुत कुछ चल रहा है...कही बिल पर बवाल ...तो कही मराठी मानुष पर महाभारत..कही नोटो के हार पर हाहाकार तो कही आतंकवाद और महंगाई से घिरा ये देश..इस सब के बीच मुझे तीन इडीयट नजर आते हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं......इडियडट नंबर वन-केंद्र सरकार.......उत्तरभारतियों को लेकर महाराष्ट्र में MNS और शिवसेना की गुंडागर्दी जारी है...पर केंद्र सरकार धृतराष्ट्र बनकर बैठी है...आंखे होते हुए भी उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा....महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है..अगर मुख्यमंत्री चाहे तो दो मिनट में इन गुंडों की अकल ठिकाने लगा दे ...पर नहीं क्यों कि अगर ऐसा किया तो वोटों की राजनीति का क्या होगा...मायावती करोड़ों का हार पहनती है और केंद्र सरकार चुपचाप बैठी रहती है.... सरकार के किसी मंत्री कि तरफ से कोई बयान नहीं आता न केंद्र सरकार कोई कार्रवाई करती है......भले करे भी कैसे वोट की चिंता जो है......पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं और जनता के सामने आता है सिर्फ ममता का ड्रामा......अच्छा आप लोग मुझे बताईएं......यूपीए की सहयोगी ममता ने बजट में तेल के दाम बढ़ने के बाद खूब ड्रामा किया....संसद के बाहर आ गई.....तुरंत कोलकाता चली गई और बंगाल में तृणमूल ने अगले ही दिन हिंसक प्रदर्शन भी किया.....आप मुझे एक बात बताइए यूपीए की एक मजबूत सहयोगी है तृणमूल कांग्रेस औऱ ममता के पास रेल मंत्रायल भी है तो क्या ये संभव है कि बजट के पहले उन्हे न बताया गया हो या उन्हे विश्वास ने न लिया गया हो कि पेट्रौल-डीजल के दाम बढ़ने वाले है......ये संभव ही नहीं है.....फिर ममता ने इतना ड्रामा क्यों किया......सीधा सा उत्तर है वोट की खातिर.....पश्चिम बंगाल में चुनाव करीब है और ममता ये ड्रामा करके लोगों के बताना चाहती थी कि उन्होने तो दाम बढ़ने का विरोध किया था......अगर सही में इतना गुस्सा थी ममता दीदी तो 24 घंटे के अंदर की दोबारा प्रणब का गुनगाण क्यों करने लगी......खैर सब राजनीति है....अब बात देश के दूसरे इडियट की....देश का दूसरा इडियट है -विपक्ष में बैठी भाजपा....सही बताऊ मजबूत लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना बहूत जरूरी है पर अपने देश का विपक्ष (भाजपा/एनडीए) तो इतना कमजोर है कि वो अपनी पार्टी की उलझनों से ही नहीं निकल पा रहा देश के मुद्दों को क्या उठाएगा....मुझे समझ में नहीं आता महिला बिल हो या बजट हो हर मुद्दे में संसद में हंगामा होता है पर जब कोई बात सांसदों के हित की होती है जैसे सांसदों का वेतन बढ़ना.... तो ध्वनि मंत से इसे पारित कर दिया जाता है...तब क्यों विरोध का कोई भी स्वर संसद में सुनाई नहीं देता?....तो इडियट नंबर दो है देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जो अपनी भूमिका निभाने में विफल रही...अब बात सबसे ताकतवर इडियट कि यानी इडियट नंबर थ्री की......अगर ये इडियट ठीक हो जाए तो सत्ता हो या विपक्ष ये सबको ठीक कर देगा....और ये इडियट नंबर तीन है इस देश की जनता... यानि आप और हम.....देश में इतना कुछ हो रहा है.... करोड़ों की माला पहनाई जा रही है....संसद में हंगामे से देश के करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है......देश के अंदर कि महाराष्ट्र,बिहार ,उत्तरभारतियों के बीच जंग छिड़ी है.......आतंकी हमले हो रहे है.....नक्सलवाद पर लगाम कसना मुश्किल हो गया है.......चाय से महंगी शक्कर गायब है........थाली में रोटी तो है पर दाल नहीं है......आज भी देश में कई लोग हैं जो एक वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं और हम बेफ्रिक है.....मैंने जो भी मुद्दे उपर लिखे वो देश की जनता के लिए समाचार है...बस....और मेरे जैसे पत्रकार के लिए एक मुद्दा जिसपर ब्लांग लिखा जा सके....कोई नहीं चाहता वो आगे आए ....हर व्यक्ति चाहता है कि देश में एक और भगत सिंह /सुभाष चंद बोस पैदा हो.... जो इस देश में क्रांति ला सके... पर वो अपने घर में नही बल्की बगल वाले परिवार के घऱ में पैदा हो......क्यों की अपने बेटे की कर्बानी कौन देना चाहता है......तो भैइया ये तीन इडियट इस देश के जिन्होने देश का बंटाढार कर रखा है......और जब तक ये नहीं सुधरेंगे तब तक करोड़ों की माला रोज पहनी जाएगी.....रोज मुंबई में उत्तरभारतियों की पिटाई होगी.....संसद में हंगामें से देश का पैसा बर्बाद होता रहेगा.....न जाने कितने आतंकी हमले होंगे और हम दो बयान सुनेंगे हर घटना के बाद ..
.पहला सरकार है- हम घटना की निंदा करते हैं औऱ मामले की जांच की जा रही ..रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई होगी....
दूसरा विपक्ष का- केंद्र सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है..हम इस भ्रष्ट्र सरकार के खिलाफ देश भर आंदोलन चलाएंगे.....और इसे उखाड़ फेकेंगे..
सत्ता-विपक्ष कोई भी रहे मैं बचपन से यहीं बयान सुनता आ रहा हूं...
रोमल भावसार
मायावती या 'माला' वती ?
ऐसा लगा है कि राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में नोटों की मालाओं का चलन जैसा चल गया है....आज जिस तरह से विरोधियों को मुंह चिढ़ाकर मायावती नेएक बार फिर नोटों की माला पहनी... उसने कई मायनों में सोचने पर मजबूर कर दिया..आज सुबह जब खबरें आना चालू हुई कि मायावती ने यूपी के मंत्रियों और विधायकों की बैठक बुलाई है तो माना जा रहा था कि करोड़ों की माला मामले में मायावती किसी पर कार्रवाई कर सकती है.. यानी किसी पर भी गाज गिर सकती है... पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि माया ने न केवल दोबारा नोटों की माला पहनी साथ ही बहुजन समाज पार्टी ने ऐलान भी किया कि आगे से भी बहन जी फूलों की नहीं नोटों की ही माला पहनेंगी....नोटों की माला का खेल यही खत्म नहीं हुआ...लोकसभा से निलंबित सासंद एजाज आज जब पटना पहुंचे तो उन्हे भी नोटों की माला पहनाई गई हालांकी यहां दांव थोड़ा उलटा पड़ गया....एक तरफ जेडीयू कार्यकर्ताओं ने एजाज को नोटों की माला पहनाई तो दूसरी तरफ कुछ नेता नोट लूटते रहे....यहां तो आलम ये है कि सांसद महोदय चिलाते रहे औऱ कार्यकर्ता नोट लूटते रहे....जितना ड्रामा नोटों की माला को लेकर है उससे ज्यादा इसकी कीमत को लेकर है...बीएसपी ने कहा पिछली माला 21 लाख की थी..सपा ने कहा दो करोड़ कि इधर कांग्रेस दो कदम आगे बढ़कर इसकी कीमत 22 करोड़ आंकी है...आज तक ये सुना था कि चुनाव में नोटों का इस्तेमाल किया जाता है...पर अब तो नेता खुलकर स्टेज पर नोटों को लेने लगे हैं..क्या नेता लोकतंत्र को बदलकर नोटतंत्र करना चाहते हैं..एक बात औऱ बसपा कि तरफ से एक बयान आया था.. कि ये नोट कार्यकर्ताओं ने भेजे थे जो मायावती को भेट किए गए हैं...एक बड़ा सवाल ये पैदा होता कि पिछली माला में सारे नोट हजार हजार के हैं..साथ ही सभी नोट बिल्कुल नए और सीरिज भी मिलती हैं..तो क्या कार्यकर्तओं ने सिर्फ हज़ार हज़ार के नोट भेट किए थे...दूसरा बड़ा सवाल मायावती जब एक माला पहनकर विवादों में घिर गई थी फिर दोबारा क्यों उन्होने माला पहनकर आग में तेल डालने का काम किया....एक प्रदेश की मुख्यमंत्री विरोधियों को जवाब देने अगर इस तरह का रास्त अपनाए तो क्या संदेश जाएगा जनता में.....माया के दूसरी माला पहनने के कुछ दी देर बाद पटना से खबर आ गई कि एजाज अहमद ने नोटों की माला पहन ली....क्या आपको नहीं लगता इस तरह तो नेताओं में होड़ सी लग जाएगी नोटों की माला पहनने की..खैर जब बात निकली है दूर तलक जाएगी...माया के बाद एजाज ने भी नोटों की माला पहन ली अब अगला नंबर किसका आता...चलिए फिर किसी को नोटों की माला पहनने दिजिए फिर दोबारा मिलूगा आपसे...तब तक मुझे दीजिए इजाजत....नमस्कार
आप से विदा लेने से पहले एक फिल्म का गाना याद आ रहा ...आज की स्थिति पर कितना सही बैठता है आज तय कर लेना पैसा पैसा करती है तू पैसे पर क्यों मरती है...एक बात बता दें तू रब से क्यों नहीं डरती है
रोमल भावसार
आप से विदा लेने से पहले एक फिल्म का गाना याद आ रहा ...आज की स्थिति पर कितना सही बैठता है आज तय कर लेना पैसा पैसा करती है तू पैसे पर क्यों मरती है...एक बात बता दें तू रब से क्यों नहीं डरती है
रोमल भावसार
माया की माला
मायावती की लखनऊ में रैली और रैली में करोड़ों की माला....बीएसपी के हिसाब से इसकी कीमत 11 लाख है...न्यूज चैनल इसे 2 से 3 करोड़ का बता रहे हैं तो मुलायम ने इसकी कीमत 51 करोड़ लगाई है....खैर जो भी हो..पिछले दिनों कई शहरों के IAS अधिकारियों के घर छापे...हैदराबाद के एक इंजीनियर के घर करोड़ों मिलना...कई और भी ऐसे मामले है जिसने कुछ बीती बाते याद करने पर मजबूर कर दिया....अगर आप के पास थोड़ा समय हो तो मैं आपको अपने बच्चपन में ले जाना चाहता हूं....जब मैं छोटा था तो मेरे दादाजी हमेशा मुझसे कहा करते थे 'बेटा हमारा देश सोने की चिड़िया था..अग्रेजों ने इसे लूट लिया' मुझे 'था' बहुत बुरा लगा था और सोचता था कि हमारा देश अब सोने कि चिड़िया क्यों नहीं है..इसी तरह हर बात पर 'था' का इस्तेमाल हम सब आज तक करते आ रहे हैं और जो है उसके बारे में सोचते नहीं हैं...जैसे हमारे देश की अच्छी संस्कृति थी, हमने अंग्रेजों को भागने पर मजबूर कर दिया था,भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, भगत सिंह ने हसते हसते फांसी के फंदे को गला लगा लिया था..आप सोच रहे हैं कि आज मैं ये बाते क्यों कर रहा हूं..तो सुनिए जनाब आज भी हम सोने की चिड़िया से कम नहीं है पर पैसा गलत हाथों पर जाकर फस चुका है और जो जितना गरीब है वो गरीब होता जा रहा है और जो अमीर है उसकी तिजोरी भरती जा रही है..आप खुद ही सोचिए मध्यप्रदेश के IAS अधिकारी के घर जब आयकर विभाग ने छापा मारा तो नोटों से भरे बिस्तर मिले,कुल संपत्ति तीस करोड़ से भी ज्यादा,छत्तीसगढ़ छापे भी अधिकारियों के घर छापे में करोड़ों मिले..अब जब एक IAS अधिकारी के घर इतना मिल सकता है तो माया मैडम और उनके चम्मों के पास कितना हो सकता है क्या मालूम...हम अकेले मायावती की बात क्यों करे...किसी भी प्रदेश की सत्ता में बैठी सरकार के एक छोटे से विधायक के पास भी आज करोड़ों की संपत्ति है..और इसका जिम्मेदार कौन है..हम....हमने इनको वहां पहुंचाया है जहां जाकर ये अपने आप को सबकुछ समझने लगे....दरअसल मुझे तो अब ये लगने लगा है कि इस देश के लोगों को गुलामी की आदत पड़ चुकी है पहले मुगलों की गुलामी की फिर अंग्रेजों की गुलामी की औऱ अब इन भ्रष्ट नेताओं कि कर रहे हैं..औऱ ये बताईएं मै कौन होता हूं किसी के खिलाफ कुछ कहने वाला जिस प्रदेश की सीएम है मायावती उस प्रदेश के लाखों लोग रैली में पहुंचे थी..उस प्रदेश के हज़ारों लोग आज भी माया को देवी मानते हैं...और लगभग यही हाल हर प्रदेश का है तो जनाब हम बोलेगे तो बोलोगे कि बोलता है इस लिए जय हो इस देश के नेताओं कि और जय हो हम जैसी प्रजा की जो आंखे खोलकर इस देश का ये हाल होते देख रहे हैं...
आनंदी की मौत से पत्रकारिता आहत
प्रस्तुतकर्ता
हितेश व्यास
on रविवार, 14 मार्च 2010
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आनंदी..छोटे पर्दे का बड़ा नाम...पिछले दिनों उसकी मौत हो गई...देश के कई घरों की चहेती बहु की मौत से खासकर महिलाओं को सदमा लगा...लेकिन यह सब ड्रामे का हिस्सा था..जो टीआरपी बढ़ाने के स्टंट से बढ़कर कुछ नही था...लेकिन इस खेल में कहीं पत्रकारिता का गला घोंटा जा रहा था...देश का एक न्यूज़ चैनल इस ड्रामेबाज़ी को दिनभर कैश करने में लगा था...क्या आनंदी मर जाएगी? जैसे सवाल उठाकर पत्रकारिता को आहत किया जा रहा था...उस दिन 'देश का सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल' खबरों के नाम पर कंगाल हो गया था शायद...इस बीच एक हेडर फ्लैश हुआ 'कहीं आनंदी की मौत ड्रामा तो नहीं'?...एक मनोरंजन चैनल ड्रामा नही दिखाएगा तो क्या दिखाएगा, वो चैनल पूरी इमानदारी से लोगों का मनोरंजन करने में लगा है और न्यूज़ चैनल के नाम पर न्यूज़ के अलावा सबकुछ दिखा रहे इन चैनल्स की मानसिकता को क्या हो गया है...उनके दिवालिएपन पर हंसी भी आती है और रोना भी...और यह हाल सिर्फ एक दिन का नही है...टीआरपी के पीछे भागने वाले यह चैनल महिला आरक्षण बिल की बजाए राहुल महाजन की दुल्हनियां पर ज्यादा फोकस करते हैं.... खैर यह इंडिया का न्यूज़ चैनल है भैया..यह तो यही सब दिखाएगा..और हर साल सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल का अवॉर्ड पाएगा...
उपरोक्त विचार पूर्णतया मेरे निजी है और किसी की भावनाओं को आहत करना मेरा मकसद नहीं...लेकिन
ज़रा सोचिए....सवाल आपके मनोरंजन का है....सवाल आपका है...?
उपरोक्त विचार पूर्णतया मेरे निजी है और किसी की भावनाओं को आहत करना मेरा मकसद नहीं...लेकिन
ज़रा सोचिए....सवाल आपके मनोरंजन का है....सवाल आपका है...?
टीका भी लेता है जान!
प्रस्तुतकर्ता
प्रज्ञा
लेबल:
खसरा,
टीका,
प्रज्ञा प्रसाद,
बच्चे
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मध्यप्रदेश के दमोह में एक ऐसा वाकया सामने आया है जो सरकारी तंत्र की पोल तो खोलता ही है साथ ही इसे सोचकर दिल भी दहल जाता है... आंगनबाड़ी केंद्र में 2 साल तक के बच्चों को यहां खसरे के टीके लगाए गए... जिसकी वजह से अबतक 4 बच्चों की मौत हो चुकी है और 17 बच्चे बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हैं... वैसे तो मामले में कार्रवाई की गई है, मुआवज़े का ऐलान भी किया गया है... लेकिन ये सब कर लेने से उन मां-बाप को क्या मिलेगा जिन्होंने अपने आंखों के तारे खोए हैं... वे वापस तो नहीं आ जाएंगे... और मुआवज़े का ऐलान करके सरकार क्या सोचती है कि परिजन पैसों के भूखे होते हैं.. जिसका बच्चा ही चला गया... जिसे लेकर इतने सपने बुने गए थे, फिर पैसे किस काम के... पैसा बेटे या बेटी की जगह तो नहीं ले सकता... मरने के बाद जब कोई मुआवज़े का ऐलान करता है... तो पर्सनली मुझे ऐसा लगता है कि जले पर नमक छिड़का जा रहा हो... या श्राद्ध करने के लिए पैसे दिए जा रहे हों...
वैसे इस घटना ने सभी मां-बाप खासकर उन गरीब मां-बाप के दिलों को दहला दिया है, जिनके पास सरकारी अस्पताल के भरोसे रहने के अलावा या सरकारी योजनाओं के भरोसे रहने के अलावा कोई चारा नहीं होता... सचमुच अब तो जिस भी चीज़ के आगे सरकारी शब्द लगता है उससे डर लगने लगता है... आखिर गरीब जाएं तो जाएं कहां इलाज ना कराएं तो भी बेमौत मरना है और करवाएं तो भी....
एक न्यूज़ चैनल काफ़ी समझाइश दे रहा था कि दवाओं की एक्सपायरी देखें, उनसे दवाओं की जानकारी लें वगैरह-वगैरह... लेकिन जहां 100 लोग अपने-अपने बच्चों को लाइन में लेकर खड़े हैं प्रैक्टिकली ये संभव नहीं कि हर गार्जियन को एक्सपायरी डेट दिखाई जा सके... और गरीब और अशिक्षित लोगों को देखकर तो वैसे ही लोग इन्हें दबा देते हैं... इसलिए न्यूज़ चैनल को सच की धरातल पर रहकर खबर दिखानी चाहिए हवा-हवाई बातें नहीं करनी चाहिए...
खैर जो भी इन बच्चों की मौत के ज़िम्मेदार हैं उन्हें फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए ताकि ऐसी लापरवाही करने की जुर्रत भविष्य में कोई न कर सके....... क्योंकि जीवन देना बहुत मुश्किल है और लेना बहुत आसान.......
वैसे इस घटना ने सभी मां-बाप खासकर उन गरीब मां-बाप के दिलों को दहला दिया है, जिनके पास सरकारी अस्पताल के भरोसे रहने के अलावा या सरकारी योजनाओं के भरोसे रहने के अलावा कोई चारा नहीं होता... सचमुच अब तो जिस भी चीज़ के आगे सरकारी शब्द लगता है उससे डर लगने लगता है... आखिर गरीब जाएं तो जाएं कहां इलाज ना कराएं तो भी बेमौत मरना है और करवाएं तो भी....
एक न्यूज़ चैनल काफ़ी समझाइश दे रहा था कि दवाओं की एक्सपायरी देखें, उनसे दवाओं की जानकारी लें वगैरह-वगैरह... लेकिन जहां 100 लोग अपने-अपने बच्चों को लाइन में लेकर खड़े हैं प्रैक्टिकली ये संभव नहीं कि हर गार्जियन को एक्सपायरी डेट दिखाई जा सके... और गरीब और अशिक्षित लोगों को देखकर तो वैसे ही लोग इन्हें दबा देते हैं... इसलिए न्यूज़ चैनल को सच की धरातल पर रहकर खबर दिखानी चाहिए हवा-हवाई बातें नहीं करनी चाहिए...
खैर जो भी इन बच्चों की मौत के ज़िम्मेदार हैं उन्हें फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए ताकि ऐसी लापरवाही करने की जुर्रत भविष्य में कोई न कर सके....... क्योंकि जीवन देना बहुत मुश्किल है और लेना बहुत आसान.......
महिलाओं का फैसला करने वाले ये हैं कौन?
प्रस्तुतकर्ता
प्रज्ञा
on शनिवार, 13 मार्च 2010
लेबल:
औरत,
प्रज्ञा प्रसाद
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महिला आरक्षण बिल के लाइमलाइट में आने के बाद से ही इसपर सियासत गर्म है, साथ ही तरह-तरह के लोगों, संगठनों द्वारा बयानबाज़ी की बयार बह रही है... नया बयान है...शिया धर्म गुरू कल्बे जव्वाद का... जिन्होंने महिलाओं को अच्छे नस्ल के बच्चे पैदा करने की मशीन बताया है, औरत को उसका फर्ज याद दिलाया है, वो भी खुदा का हवाला देकर... जबकि कोई भी धर्म, धर्मग्रंथ औरत और मर्द के बीच कोई भेदभाव नहीं करता बल्कि हर धर्म के प्रोफेट अपने-अपने सुविधानुसार धर्म की बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं...
औरत में सृष्टि के सृजन की क्षमता है, और सृजन की क्षमता का दायित्व उसे ही सौंपा जाता है जो ज्यादा सामर्थ्यवान हो, तो भगवान ने तो पहले ही तय कर दिया कि औरत और मर्द में कौन ज्यादा सामर्थ्यवान है...
जहां तक है बच्चा पैदा करने की बात तो जिस तरह से वाक्य का प्रयोग किया गया है...''औरतें राजनीति नहीं बच्चा पैदा करें'' इसपर किसी भी महिला को घोर आपत्ति होगी, क्योंकि हमारा जन्म मनुष्य योनि में हुआ है, जो विवेकशील है... कुत्ते-बिल्ली में नहीं या कीड़े-मकोड़ों में नहीं जो एक ही बार में 8-8 बच्चे पैदा करते हैं और करते ही रहते हैं... और जहां तक बात है अच्छी नस्ल की, तो जहां ऐसे-ऐसे विचारों वाले लोग हैं वहां बच्चों की मानसिकता क्या होगी, वो अपनी मां-बहन और स्त्री जाति को कितना सम्मान देंगे, कितने संवेदनशील होंगे, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है... जहां तक बात है पर्दे की... तो वैसे तो शर्म नजर और व्यवहार में होनी चाहिए लेकिन अगर इसे मान भी लें तो बेनज़ीर भुट्टो, खालिदा जिया और शेख हसीना जैसे उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं...जहां तक बात है बच्चों की देखभाल और परवरिश का तो बच्चे के लिए औरत-मर्द दोनों जिम्मेदार हैं इसलिए उनकी देखभाल और बच्चों से जुड़ी सारी जिम्मेदारियां दोनों को मिलकर उठानी चाहिए... या पुरुष को मान लेना चाहिए कि उसका कोई वास्ता बच्चे से नहीं है और वो कभी उसपर अपना अधिकार नहीं जताएगा...
और इधर बाबाओं की करतूत पर अयोध्या के संत-महंतों का कहना है कि महिलाएं मंदिरों में अकेली न जाएं... बाबाओं को कंट्रोल करने के बजाए वे महिलाओं को सलाह दे रहे हैं... अफसोस होता है मुझे संत-महंत और सभी धर्म के धर्म गुरुओं पर...
वैसे निष्कर्ष यही है कि औरतें अपने अधिकारों को पहचानें और एकजुट हों क्योंकि एकता में बहुत ताकत है और इसे कोई नहीं दबा सकता...
औरत में सृष्टि के सृजन की क्षमता है, और सृजन की क्षमता का दायित्व उसे ही सौंपा जाता है जो ज्यादा सामर्थ्यवान हो, तो भगवान ने तो पहले ही तय कर दिया कि औरत और मर्द में कौन ज्यादा सामर्थ्यवान है...
जहां तक है बच्चा पैदा करने की बात तो जिस तरह से वाक्य का प्रयोग किया गया है...''औरतें राजनीति नहीं बच्चा पैदा करें'' इसपर किसी भी महिला को घोर आपत्ति होगी, क्योंकि हमारा जन्म मनुष्य योनि में हुआ है, जो विवेकशील है... कुत्ते-बिल्ली में नहीं या कीड़े-मकोड़ों में नहीं जो एक ही बार में 8-8 बच्चे पैदा करते हैं और करते ही रहते हैं... और जहां तक बात है अच्छी नस्ल की, तो जहां ऐसे-ऐसे विचारों वाले लोग हैं वहां बच्चों की मानसिकता क्या होगी, वो अपनी मां-बहन और स्त्री जाति को कितना सम्मान देंगे, कितने संवेदनशील होंगे, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है... जहां तक बात है पर्दे की... तो वैसे तो शर्म नजर और व्यवहार में होनी चाहिए लेकिन अगर इसे मान भी लें तो बेनज़ीर भुट्टो, खालिदा जिया और शेख हसीना जैसे उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं...जहां तक बात है बच्चों की देखभाल और परवरिश का तो बच्चे के लिए औरत-मर्द दोनों जिम्मेदार हैं इसलिए उनकी देखभाल और बच्चों से जुड़ी सारी जिम्मेदारियां दोनों को मिलकर उठानी चाहिए... या पुरुष को मान लेना चाहिए कि उसका कोई वास्ता बच्चे से नहीं है और वो कभी उसपर अपना अधिकार नहीं जताएगा...
और इधर बाबाओं की करतूत पर अयोध्या के संत-महंतों का कहना है कि महिलाएं मंदिरों में अकेली न जाएं... बाबाओं को कंट्रोल करने के बजाए वे महिलाओं को सलाह दे रहे हैं... अफसोस होता है मुझे संत-महंत और सभी धर्म के धर्म गुरुओं पर...
वैसे निष्कर्ष यही है कि औरतें अपने अधिकारों को पहचानें और एकजुट हों क्योंकि एकता में बहुत ताकत है और इसे कोई नहीं दबा सकता...
राहुल की शादी
प्रस्तुतकर्ता
बेनामी
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राहुल महाजन की शादी,
रोमल
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राहुल महाजन की शादी........कितना सच कितना दिखावा पता नहीं.....या फिर किसी बहुत बेकार सी सब्जी को तड़का लगाकर स्वादिष्ट करने की एक कोशिश क्या मालूम...एक दिन अचानक फुर्सत के पलों में मैं ये सीरियल देखने बैठ गया... कुछ देर तो समझ में नहीं आया कि ये क्या चल रहा है...ड्रामा है इमोशन है.... पर सच्चाई कही नहीं दिखती.....प्रमोद महाजन की मौत के बाद एक चीजों को अगर याद करे तो शर्म आती है आज कि इस मीडिया पर जो राहुल को हीरो बनाकर बैठाए हुए है.....राहुल की स्वेता से शादी फिर श्वेता से मारपीट की तस्वीरे और फिर तलाक इतना सब होने के बाद भी अगर आज के टीवी चैनल राहुल की शादी लाइव करा सकते हैं तो मान लीजिए इस देश में कुछ भी हो सकता है....क्या मामलू कल को अबू सलीम की शादी करा दी जाए..या क्या मालूम टीवी चैनल का बस चले तो अमेरिका से हेडली और राणा के ले आएं और शादी करा दें.....ये तो छोड़िए कोई भरोसा नहीं आज के टीवी चैनल किसी बड़े नक्सली नेता या डकैत की शादी करा दें..इनका बस एक नियम है..जो जितना ज्यादा विवादों में रहता है उससे उतनी TRP मिलती है........आज कल बाबाओं के दिन बुरे चल रहे हैं पर यकीन मानिए अगर किसी टीवी चैनल कि इन पर नजर पड़ गई तो हो सकता है कल आप सुने कि यही टीवी चैनल इच्छाधारी भीमानंद की शादी करा रहा है......हां एक बात औऱ खास तौर से मुझे इन शादियों से बहुत फ्यादा हुआ है....मैं एक पत्रकार हूं उम्र का आधा पड़ाव पार कर चुका हूं....ज्यादातर जिंदगी व्यस्त निकली और आगे भी FREE होने की उम्मीद कम है.. ऐसे शादी लेट पर लेट होती चली गई...राहुल औऱ राखी सावंत की शादी के पहले जब मुझसे मेरे मां और पिता जी कहते थे जल्दी शादी कर ले नहीं तो लड़की नहीं मिलेगी...मैं चुप हो जाता था..पर आज मेरे पास जबाव है और यकीन माने मैं जब ये जबाव अपने पापा को देता हूं तो वो प्यारी सी हंसी हंसकर मेरी इस राय पर मुहर लगा देते हैं..अब कल की ही बात सुनिए..पापा का फोन आया..बोले बेटा शादी करनी है या नहीं....नहीं तो लड़की नहीं मिलेगी...मैंने तुरंत जबाव दिया....अरे पापा जब राहुल से शादी करने दर्जनों बेबकूफ लड़कियों कि लाइन लग सकती है तो क्या मुझसे शादी करने कोई तैयार नहीं होगी..पापा मुस्कुराएं और बोले चलो जैसा तुम ठीक समझो.....आप भी मेरी बात का यकीन मानिए अगर आप की शादी नहीं हूई है तो बस कोई एक बुरा काम करके विवादों में फस जाइए फिर कोई न कोई टीवी चैनल आपकी भी शादी करा देगा....और हां मुझे इंतजार रहेगा उस दिन का जब कोई टीवी चैनल..अबू सलीम..इच्छाधारी भीमानंद....बाबा नित्यानंद...मोनिका बेदी.....हेडली....राणा...या फिर दाउद या फिर नक्सली नेता किशनजी की शादी कराएगा......भई मैं तो जरूर देखूगा..क्या आप देखेंगे......भई एक बात और कहूं बुरा मत मानना....अगर ये टीवी चैनल 20-30 साल पहले आ गए होते तो क्या पता शायद नरेंद्र मोदी....अटल बिहारी वाजपेयी या फिर अब्दुल कलाम की भी शादी करा देते...
खैर अब अगला स्यंववर किसका है देखते हैं
रोमल भावसार
खैर अब अगला स्यंववर किसका है देखते हैं
रोमल भावसार
वक्त हमारा है
प्रस्तुतकर्ता
राजीव कुमार
लेबल:
महिला,
राजीव कुमार,
सेना
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चमक उठी सन सत्तावन में, वो तलवार पुरानी थी,
बुंदेलों हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।
डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के तहत उस वक्त झांसी को ब्रिटीश राज्य में मिलाने की साजिस रची जा रही थी। अंग्रेजों ने राज्य का खजाना जब्त कर लक्ष्मी बाई को किले से निकाल दिया था। रानी ने भी हार नहीं मानी और स्वयंसेवक सेना का गठन किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। इस सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुडा़ दिए थे।
त्रेता युग में भी महिलाओं की युद्ध में अहम भुमिका थी। रामायण में वर्णन है कि एक बार देवासुर संग्राम में इन्द्र की सहायता के लिए दशरथ और कैकेयी गये। वैजयंत नगर में संबर नाम से विख्यात, अनेक मायाओं का ज्ञाता तिमिध्वज रहता था, उसने इन्द्र को युद्ध के लिए चुनौती दी थी। भयंकर युद्ध करते हुए दशरथ भी घायल होकर अचेत हो गये। राजा के अचेत होने पर कैकेयी उन्हें रणक्षेत्र से बाहर ले आयी थी।
अब एक बार फिर महिलाओं की शक्ति को पहचाना जाने लगा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि महिला अधिकारियों को भारतीय सेना और वायु सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए। इस फैसले के बाद सेना में महिलाओं के लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल बनने का सपना पूरा हो सकेगा। इससे पहले महिलाओं को 5 से 14 साल के लिए अस्थाई कमीशन दिया जाता था और वे लेफ्टिनेंट कर्नल बन कर रिटार्यड हो जाती थी। बहरहाल तीनों सेनाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 11 फीसदी है। कोर्ट के इस फैसले के बाद इस क्षेत्र में महिलाओं का रुझान और बढ़ेगा और सेना में सम्मान भी।
शक्ति का "बिल"
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on गुरुवार, 11 मार्च 2010
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जीत अस्तित्व की
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आपने भी देखा होगा महिला बिल के पारित करने का बवाल...जरूर रोमाचंक ही लगा होगा सबको..लोगों का आक्रोश,चीखना चिल्लाना,गुस्सें में सभापति के सामने इस तरह का आचरण की पढ़े लिखे लोगों को काबू करने के लिए बुलाए गये मार्शल...सब कुछ कितना रोमांचकारी की जिसे देख कर कुछ तो हंस रहे थे कुछ शर्मिंदा थे...अरे भई आप जानना नहीं चाहेंगे बिल पर ये बवाल क्युं हो रहा था....
बस इतनी सी बात थी कि महिला को 33 फीसदी आरक्षण ..... पुऱूष की साफगोई का अंदाज ही था ये....जिसकी ये बानगी थी,कोई पुरूष भला कैसे हंस के स्वीकार कर ले कि अब महिला को समानांतर लाने की कोशिश की जा रही है...
बड़ा अजीब लगता है कि आज तक संपूर्ण रूप से महिला पर निर्भर रहने वाला पुऱूष स्वीकार नहीं कर पाता कि वो जिस पर निर्भर है वो भी आत्मनिर्भर बन सके.. जिस पुरूष के अस्तित्व की शुरूवात ही महिला करती है वो इस बात से इत्तेफाक रखने में झिझक महसूस करता है...वरना जहां दुनियां में 1000पुरूष के पीछे 900 से ज्यादा महिला हैं वहां भला ये 33 फीसदी आरक्षण का मुद्दा '" मुद्दा"क्यों बनता....और भी न जाने कितने पहलू हैं इस विषय पर चर्चा करने के लिए पर यहां सिर्फ एक ही उठा लें तो काफी होगा की..इस बिल के पीछे इतना बवाल मचानें की क्या जरूरत है..जो शक्ति का स्त्रोत है उसे बिल के रूप में शक्ति देने पर इतना हाहाकार क्यों मचा....ये सवाल सोचने का है पुरूष से ज्यादा महिला के लिए...
बस इतनी सी बात थी कि महिला को 33 फीसदी आरक्षण ..... पुऱूष की साफगोई का अंदाज ही था ये....जिसकी ये बानगी थी,कोई पुरूष भला कैसे हंस के स्वीकार कर ले कि अब महिला को समानांतर लाने की कोशिश की जा रही है...
बड़ा अजीब लगता है कि आज तक संपूर्ण रूप से महिला पर निर्भर रहने वाला पुऱूष स्वीकार नहीं कर पाता कि वो जिस पर निर्भर है वो भी आत्मनिर्भर बन सके.. जिस पुरूष के अस्तित्व की शुरूवात ही महिला करती है वो इस बात से इत्तेफाक रखने में झिझक महसूस करता है...वरना जहां दुनियां में 1000पुरूष के पीछे 900 से ज्यादा महिला हैं वहां भला ये 33 फीसदी आरक्षण का मुद्दा '" मुद्दा"क्यों बनता....और भी न जाने कितने पहलू हैं इस विषय पर चर्चा करने के लिए पर यहां सिर्फ एक ही उठा लें तो काफी होगा की..इस बिल के पीछे इतना बवाल मचानें की क्या जरूरत है..जो शक्ति का स्त्रोत है उसे बिल के रूप में शक्ति देने पर इतना हाहाकार क्यों मचा....ये सवाल सोचने का है पुरूष से ज्यादा महिला के लिए...
नारी शक्ति
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on सोमवार, 8 मार्च 2010
लेबल:
ज्योति सिंह,
नारी शक्ति
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आग पर चल कर दूसरों को ठंडक देती है,
असीम दर्द सहकर जीवन को जन्म देती है,
पुरूष को हर रूप में प्यार का संबल देती है,
जीवन संध्या में हर पल उम्मीद की रौशनी देती है....
देना जिसका स्वभाव है उसे दुनिया क्या देती है...
ले ले के थक जाती है दुनिया पर वो दे कर नही थकती...
आओ उसे दें सम्मान की ,खुशी की जिंदगी
वो भी जी सके जीवन को शान सें.....
आप सब को महिला दिवस की शुभकामना....
भगदड़ः ज़िम्मेदार कौन?
प्रस्तुतकर्ता
प्रज्ञा
on शुक्रवार, 5 मार्च 2010
लेबल:
प्रज्ञा प्रसाद,
भगदड़
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गुरुवार को यूपी प्रतापगढ़ के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में करीब 63 लोगों ने अपनी जानें गंवा दीं... मरने वालों में केवल महिलाएं और बच्चे थे... भगदड़ में करीब 200 लोग घायल हो गए... मंदिर में कृपालु महाराज का प्रवचन और इसके बाद भंडारे की व्यवस्था थी... साथ ही भक्तों को थाली और लोटे भी बांटे जा रहे थे...
भगदड़ के बाद से ही मामले का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है और सभी अपने-अपने विचारों से इसकी वजह बता रहे हैं...
मंदिर के किसी आयोजन में भगदड़ मच जाना कोई नई बात नहीं है... चाहे वो नैना देवी का मामला हो या कोई और... घटना के बाद सभी प्रशासन और सरकार को कोसने लगते हैं... लेकिन कभी कोई खुद के ऊपर ऊंगली नहीं उठाता... मरने वालों की भी लापरवाही पर गौर नहीं की जाती... क्योंकि शायद मरने वालों पर ऊंगली उठाना अच्छा नहीं लगता होगा, शायद मृतक के परिजनों के जले पर नमक छिड़कना लगता होगा... लेकिन ये भी सौ फीसदी सच है कि प्रशासन की गलती तो जो होती है वो तो होती ही है... लेकिन मरने वाले भी इसमें कम ज़िम्मेदार नहीं होते...
अगर कल की ही घटना लें तो थाली-लोटा लेने के लिए कोई लाइन नहीं थी... सब एक के ऊपर एक चढ़े जा रहे थे... उनके मन में भगवान वगैरह के ऊपर कोई श्रद्धा नहीं थी, क्योंकि श्रद्धा तो किसी भी दिन और कहीं से भी दर्शाई जा सकती है, केवल लालच में लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थे... अब उनकी उम्र इतनी कम तो नहीं थी कि उन्हें लाइन में लगने को भी कहा जाए, लेकिन यहां अक्सर देखती हूं कि जबतक लाठी-डंडों से बात नहीं की जाए, डांटा न जाए, तबतक लोग रूल्स फॉलो ही नहीं करते... मान लिया जाए कि कोई देखने वाला नहीं था, लेकिन सेल्फ़ डिसिप्लिन (स्वनुशासन) भी तो कोई चीज़ होती है न, वो तो यहां के लोगों में है नहीं, और चलेंगे दूसरों को दोष देने.. तो लोगों ने इतनी धक्का-मुक्की की, कि मंदिर का गेट ही टूट गया और उसके बाद मची भगदड़ में इतनी जानें गईं... जिनमें निर्दोष बच्चे भी शामिल थे... साथ ही कुछ और निर्दोष लोग भी जिनकी सचमुच कोई गलती नहीं रही होगी... और जो दूसरों की धक्कामुक्की का शिकार हो गए...
दूसरा कि आजकल टीवी पर बाबाओं के स्कैंडल की भरमार है... उसके बाद भी लोगों को ये समझ में नहीं आता क्या कि इंसान और भगवान के बीच किसी थर्ड पार्टी की ज़रूरत नहीं है... तो इतने स्कैंडल्स लगातार उजागर होने के बावजूद अगर लोग वहां गए तो इसका मकसद क्या था... वो भी इतनी बड़ी संख्या में... क्योंकि भगवान से जुड़ा आयोजन तो वहां था नहीं... वहां तो बाबा से जुड़ा आयोजन था... ऊपर से इस आयोजन को प्रशासन से अनुमति भी नहीं थी...
कल की ही बात है, जब मेरे मुहल्ले में रहने वाली महिलाएं केवल इसलिए मंदिर गईं कि किसी 4 हाथ-पांव वाले बच्चे ने उड़ीसा में कहीं जन्म लिया है, अब सोचिए कि ये बात उस बच्चे के माता-पिता और उस बच्चे के लिए कितनी दुःखद है कि वो नॉर्मल बच्चा नहीं है, किसी जेनेटिक गड़बड़ी के कारण उसका ये हश्र हुआ है, और ऐसे बच्चे सर्वाइव भी नहीं कर पाते, और न ऐसे मां-बाप के पास करोड़ों रुपए होते हैं... कि वे ऑपरेशन से उसे एक नॉर्मल ज़िंदगी दे सकें... लेकिन यहां तो अंधविश्वास का ये आलम है कि बस पूछिए मत... मैं तो हतप्रभ ही रह गई, और आप शिक्षित करने की बात करते हैं... हो सकता है कि आप वजह समझाने की कोशिश करें और आप ही को पिटाई लग जाए...
इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को तो चुस्त रहना ही पड़ेगा, लेकिन साथ ही श्रद्धालुओं को भी सेल्फ़ डिसिप्लिन्ड होने की आवश्यकता है, क्योंकि जाते तो हैं भगवान के दर्शन करने लेकिन मैंने अपने कानों और आंखों से मन में दुर्भावना पाले हुए देखा है उन्हें, जो मंदिर जाकर भी अपने परिवार की बुराई करते हैं... या गंगा स्नान कर पाप धोने के बाद भी लोगों को सताते हैं...
भगदड़ के बाद से ही मामले का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है और सभी अपने-अपने विचारों से इसकी वजह बता रहे हैं...
मंदिर के किसी आयोजन में भगदड़ मच जाना कोई नई बात नहीं है... चाहे वो नैना देवी का मामला हो या कोई और... घटना के बाद सभी प्रशासन और सरकार को कोसने लगते हैं... लेकिन कभी कोई खुद के ऊपर ऊंगली नहीं उठाता... मरने वालों की भी लापरवाही पर गौर नहीं की जाती... क्योंकि शायद मरने वालों पर ऊंगली उठाना अच्छा नहीं लगता होगा, शायद मृतक के परिजनों के जले पर नमक छिड़कना लगता होगा... लेकिन ये भी सौ फीसदी सच है कि प्रशासन की गलती तो जो होती है वो तो होती ही है... लेकिन मरने वाले भी इसमें कम ज़िम्मेदार नहीं होते...
अगर कल की ही घटना लें तो थाली-लोटा लेने के लिए कोई लाइन नहीं थी... सब एक के ऊपर एक चढ़े जा रहे थे... उनके मन में भगवान वगैरह के ऊपर कोई श्रद्धा नहीं थी, क्योंकि श्रद्धा तो किसी भी दिन और कहीं से भी दर्शाई जा सकती है, केवल लालच में लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थे... अब उनकी उम्र इतनी कम तो नहीं थी कि उन्हें लाइन में लगने को भी कहा जाए, लेकिन यहां अक्सर देखती हूं कि जबतक लाठी-डंडों से बात नहीं की जाए, डांटा न जाए, तबतक लोग रूल्स फॉलो ही नहीं करते... मान लिया जाए कि कोई देखने वाला नहीं था, लेकिन सेल्फ़ डिसिप्लिन (स्वनुशासन) भी तो कोई चीज़ होती है न, वो तो यहां के लोगों में है नहीं, और चलेंगे दूसरों को दोष देने.. तो लोगों ने इतनी धक्का-मुक्की की, कि मंदिर का गेट ही टूट गया और उसके बाद मची भगदड़ में इतनी जानें गईं... जिनमें निर्दोष बच्चे भी शामिल थे... साथ ही कुछ और निर्दोष लोग भी जिनकी सचमुच कोई गलती नहीं रही होगी... और जो दूसरों की धक्कामुक्की का शिकार हो गए...
दूसरा कि आजकल टीवी पर बाबाओं के स्कैंडल की भरमार है... उसके बाद भी लोगों को ये समझ में नहीं आता क्या कि इंसान और भगवान के बीच किसी थर्ड पार्टी की ज़रूरत नहीं है... तो इतने स्कैंडल्स लगातार उजागर होने के बावजूद अगर लोग वहां गए तो इसका मकसद क्या था... वो भी इतनी बड़ी संख्या में... क्योंकि भगवान से जुड़ा आयोजन तो वहां था नहीं... वहां तो बाबा से जुड़ा आयोजन था... ऊपर से इस आयोजन को प्रशासन से अनुमति भी नहीं थी...
कल की ही बात है, जब मेरे मुहल्ले में रहने वाली महिलाएं केवल इसलिए मंदिर गईं कि किसी 4 हाथ-पांव वाले बच्चे ने उड़ीसा में कहीं जन्म लिया है, अब सोचिए कि ये बात उस बच्चे के माता-पिता और उस बच्चे के लिए कितनी दुःखद है कि वो नॉर्मल बच्चा नहीं है, किसी जेनेटिक गड़बड़ी के कारण उसका ये हश्र हुआ है, और ऐसे बच्चे सर्वाइव भी नहीं कर पाते, और न ऐसे मां-बाप के पास करोड़ों रुपए होते हैं... कि वे ऑपरेशन से उसे एक नॉर्मल ज़िंदगी दे सकें... लेकिन यहां तो अंधविश्वास का ये आलम है कि बस पूछिए मत... मैं तो हतप्रभ ही रह गई, और आप शिक्षित करने की बात करते हैं... हो सकता है कि आप वजह समझाने की कोशिश करें और आप ही को पिटाई लग जाए...
इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को तो चुस्त रहना ही पड़ेगा, लेकिन साथ ही श्रद्धालुओं को भी सेल्फ़ डिसिप्लिन्ड होने की आवश्यकता है, क्योंकि जाते तो हैं भगवान के दर्शन करने लेकिन मैंने अपने कानों और आंखों से मन में दुर्भावना पाले हुए देखा है उन्हें, जो मंदिर जाकर भी अपने परिवार की बुराई करते हैं... या गंगा स्नान कर पाप धोने के बाद भी लोगों को सताते हैं...
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