मैं पंछी... गगन की

मैं पंछी उन्मुक्त गगन की
मत बांधो मुझे डोर में
सारे पंख टूट जाएंगे
पिंजड़े की उस छोड़ में...
      
          दो मुझको रिश्तों का बंधन
          पर उसको यूं मत कसना
          हंसकर उसे निभाना होगा
          कसकर उसे पिरो देना...
          गांठ छुड़ाना मुश्किल होगा...
          अरमान हमारी मत खोना

मैं पंछी उन्मुक्त गगन की
बांधो मुझको डोर में
रिश्तों की डोर मुलायम होगी
जी लूंगी उस कोर में

2 टिप्पणियाँ:

मेरा भारत कहाँ....... ने कहा…

शादी का बात तो नहीं चल रही मैडम....रिश्ता, बंधन, मत बांधो आख़िर क्या है ये सब........

Unknown ने कहा…

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