पहचान छीन लेता है...


कोई हमसे हमारी पहचान छीन लेता है
कोई पल भर में सारे एहसान छीन लेता है
हंसते हैं कम कुछ पल के लिए अगर
तो कोई पल भर में सारी मुस्तान छीन लेता है




रेत पर हम बड़े अरमानों से बनाते हैं घरौंदा
लेकिन एक तूफान हमारे सारे अरमान छीन लेता है
हमारी सदियों की मेहनत को कोई...
बस यूं ही... हंस कर कोई सरेआम छीन लेता है

1 टिप्पणियाँ:

कौशल तिवारी 'मयूख' ने कहा…

अब भी रोते रहोगे सर पिटकर तो ,
यंहा कोई इंसानियत छीन लेता है

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