कल रात 2 बजे अचानक मेरी नींद खुल गई..काफी कोशिश करने के बाद भी नींद नहीं आई..पत्रकार हूं चैन तो मिलता नहीं है तो बस टीवी चालू की और रात के ढ़ाई बजे न्यूज चैनल देखने लगे...एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल को देख ही रहा था कि अचानक एक बहुत बड़ी गलती उस चैनल ने कर दी... फिर क्या था मैं भी लगा उस चैनल को गाली देने.....मन ही मन रात को बोले लगा......ये क्या तरीका है पत्रकारिता का ....लोगों ने पत्रकारिता को मजाक बना दिया... कुछ भी करते हैं..बस मन ही मन मैं गाली बक ही रहा था कि अचानक सपनों की दुनिया में खो गया....सोचने लगा काश मेरा न्यूज चैनल होता तो मैं सबको ठिकाने लगा देता....एक एक कामचोर को खड़ा करके काम करना सिखा देता.....
सोचे सोचते ही नींद लग गई और मैं खोता चला गया सपनों की दुनिया में.....गहरी नींद में मैंने देखा मैं बड़ी गाड़ी में आ रहा हूं....गाड़ी से उतरते ही 20 लोग मुझे सलाम कर रहे हैं और में पहुंच जाता हूं अपने न्यूज चैनल में.....जी हां मेरा न्यूज चैनल.. जहां सब कुछ मेरे हिसाब से चल रहा था....इस चैनल में कोई चम्मागिरी कोई पक्षपात और कोई चापलूसी नहीं हो रही थी....यहां लोग सिर्फ काम कर रहे थे....मैं ये सपना देख ही रहा था कि अचानक नींद खुल गई और मैं सोचने लगा कि हर पहली चाहत जब तक पूरी न हो कितनी अच्छी होती है....बच्चपन के उन दिनों को मैंने याद किया जब में रिक्शे से स्कूल जाता था और मेरे कुछ दोस्त साइकिल से आते थे.....मेरी बस यही चाहत थी कि पापा एक साइकिल दिला दें और मैं रोज सपने देखता था कि मुझे साइकिल मिल गई......एक दिन ये सपना सच हो गया... दादाजी ने मुझे साइकिल दिला दी...जनाब आप यकीन मानिएगा कि जब मैं उस साइकिल पर निकलता था तो ऐसे सीना तान लेता था कि मानो मैं पहला और आखिरी लड़का हूं जिसने साइकिल खरीदी हो
...मेरी साइकिल के आगे में हवाई जाहज को भी कुछ नहीं समझता था.....हकीकत में पहली चाहत पहली ही होती है....कुछ दिनों में साइकिल से मोह भंग हो गया और अब मेरे सपनों में आने लगी बाइक......रोज रात को सपना आता था कि मुझे बाइक मिल गई है और मैं शान से उसे पूरे शहर में घुमा रहा हूं.....काफी जिद के बाद दादाजी ने मुझे उस समय सबसे सस्ती आने वाली सनी मोपेड गाड़ी दिला दी.....मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था..चाहत जो पूरी हुई थी..देखते देखते ही मैंने स्कूल पूरा कर लिया और कदम कॉलेज की तरफ बढ़ गए..इस बार चाहत थी बाइक की सो वो भी पूरी हो गई....पापा ने राजदूत गाड़ी दिला दी मुझे....
मैं राजदूत को कॉलेज लेकर जाता था और शाम को उसे पापा खेत में ले जाते थे....चाहतों का दौर अब जारी था....चूकी मैं कॉलेज मैं था तो एक औऱ चाहत जाग उठी और ये चाहत थोड़ी अलग थी....इस बार मन हुआ कि काश मेरी भी कोई गर्लफ्रेंड होती....मैं भी फिल्मों की तरह पार्क में किसी लड़की के साथ पेड़ के गोल गोल घूमकर गाना गाता...मेरा मन डोलने लगा..हर लड़की में मुझे मेरी ड्रीम गर्ल दिखाई देने लगी...कॉलेज की एक लड़की से मेरे नैन भी लड़ गए.....मैं भी उसे दिल दे बैठा...फिर क्या था बस आगे देखा न पीछे और बोल दिया आई लव यू...उस लड़की ने भी कुछ आनाकानी की और 10 दिन के बाद एक कागज पर लिखकर जवाब दिया आई लव यू टू...दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़नी लगी...हम लोग एक दूसरे के प्रेम पत्र देने लगे....
छुप छुप कर कॉलेज के पार्क में मिलते भी थे...एक दिन मेरी पेट की जेब से घर वालों एक लव लेटर पकड़ लिया....फिर क्या था घर में खूब पिटाई लगी और सारा इश्क का भूत उतर गया....चाहते यही खत्म नहीं हुई..रोज मैं हमारे शहर के उपर से गुजरने वाले हवाई जाहज को देखकर कहता था कि मेरी भी एक चाहत है कि मैं हवाई जाहज में बैठू...ये मौका भी जल्दी आ गया....यकीक करिए पहली बार जब मैने हवाई यात्रा की थी तो पूरे शहर के साथ पूरे रिश्तेदारों को फोन करके बताया था कि
मैं हवाई जाहज मैं बैठा...चाहत हुई कि एक पत्रकार बन जाऊ तो बन गया..फिर चाहत हुई कि एक बार टीवी पर दिख जाऊ तो सैकड़ों बार टीवी पर आया....चाहत हुई की उच्छे बैनर में चला जाऊ सो आ गया...और चाहत होने का सिलसिला जारी है...आज भी कई चीजों की चाहत होती है आज भी सपने आते हैं अब साइकिल और बाइक की जगह अपना न्यूज चैनल दिखाई देता है.....चाहत अब भी होती है गर्लफ्रेड़ की जगह बीबी चाहता हू....कुल मिलाकर इस पूरे लेख को लिखने का मेरा एक ही मकसद था की आप माने या न माने आप की चाहत जरूर पूरी होती है अगर आप दिल से उसे चाहते हो...और हर छोटी चाहत पूरी होने पर भी बहुत बड़ी खुशी मिलती है चाहे वो साइकिल के रुप में हो या हवाई यात्रा के रुप में
रोमल भावसार
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