कदमों के निशां बाकी हैं...


रूह टटोली तो तेरी याद के खंज़र निकले
मय मैं डूबे तो तेरे इश्क के अंदर निकले
हम तो समझे थे होगी तेरी याद की चिंगारी
दिल टटोला तो आतिश के समंदर निकले

दफ्तर के अटेंडेंस रजिस्टर में मेरे नाम से पहले निशांत बिसेन का नाम आता था, और शायद बाकी मामलों में भी वो मुझसे आगे ही थे। वो अब हमारे सहकर्मी नहीं रहे लेकिन रिश्तों की मिठास आज भी बनी हुई है। दफ्तर की सीढ़ियां उतरते हुए अटेंडेंस रजिस्टर में अचानक मेरे जस्ट पहले वाले नाम पर नजर गई तो आज भी उनका नाम मुझसे आगे था और बाकी मामलों में आज वास्तव में वो मुझसे बहुत आगे हैं। हां अब अटेंडेंस रजिस्टर में उनके दस्तखत नहीं हैं, लेकिन एक दोस्त के तौर पर हमने जिंदगी भर के करार पर दस्तखत कर लिया है, ये अलग बात है कि अटेंडेंस रजिस्टर की तरह दिल की दस्तखत को नहीं दिखा सकता। उनके साथ काम करने वाले सभी लोगों के साथ कमोबेश ऐसा ही करार है। पहले तो कुछ दिनों तक उनकी गैर मौजदूगी नहीं खली, लेकिन अब उनकी कमी का एहसास होता है।
कहा तरक्की हो गई है, तो हमने भी कहा सही है। फिर वो कहां रुकने वाले थे यहां। बस यादों को छोड़ गए हैं। उनके साथ ज्यादा वक्त बिताने वाले दोस्त आज भी 'दर्शन' और जाने कहां कहां उनके कदमों के निशां को टटोलते हैं। न्यूज रूम और स्टूडियों में आज भी उनकी आवाज गूंजती है। वो तो शुक्र है मोबाइल का जिसमें उनके एसएमएस आज भी उनकी मौजूदगी का एहसास करता है। यादों के झरोखे में तो कई कहानियां है, लेकिन ये पोस्ट कहीं लेख की तरह न हो जाए इसलिए बस इतना ही। कहते हैं दुनिया गोल है... तो चलो कहीं न कहीं मुलाकात तो होगी।

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…
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