समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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त्याग ही है दोस्ती
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on मंगलवार, 3 अगस्त 2010
लेबल:
सवाल संस्कृति का है
फ्रेंडशिप डे....इस बार भी अखबार में कुछ लेख छपे कव्हर स्टोरी के रूप में..कुछ लोगों से पूछा गया आप दोस्ती को लेकर क्या सोचते हैं.....लोगों ने भी बढ़-चढ़ कर दोस्ती को परिभाषित किया....सुदामा -कृष्ण, दुर्योधन और कर्ण जैसी दोस्ती का उदाहरण भी दिया ...अखबार में लोगों की फोटो भी जिसे देखकर लोग खुश भी हुए...औऱ कुछ लोगों ने रास्तों में फूल बांटकर लोगों को स्नेह से रहने की सलाह भी दी.....इस तरह दोस्ती का ये दिन मनाया गया...पर इससे हटकर कुछ ऐसा भी देखने को मिला जो वाकई सोचने पर मजबूर करता है कि दुनिया में अभी भी कुछ संवेदना ज़िंदा है...दोस्ती जैसे अहसास के रिश्ते में.....ZEE 24 घंटे छत्तीसगढ़ न्यूज चैनल में एक खबर देखकर ये अहसास हुआ...कि क्या ऐसा हो सकता है आज के इस जमाने में... जहां एक दोस्त दूसरे को अपने शरीर का एक हिस्सा दे दे... फिर ऐसा ही हुआ एक सहेली ने अपनी सहेली को एक किडनी दे दी...वो भी शादी-शुदा होकर जब एक महिला अपने लिए फैसले खुद नहीं ले सकती ऐसे में इतना बड़ा फैसला कई मायनों में हमें एक संदेश दे गया कि इस तरह के फैसले केवल किताबों में ही नहीं होते बल्कि ज़िंदगी की किताबों में भी दर्ज हैं.......पर इन सबसे दूर एक घटना और घटी जो हर किसी के लिए सोचने की बात है आप भी सोच सकें इसलिए इसे मै सवाल आपका है में लिख रही हूं......बच्चों में दोस्ती के जज्बे का उफान कुछ ज्यादा ही होता है...इसी के चलते फिर वो लड़के हो या लड़के-लड़की....इस दिन को मनाने की तैयारी बहुत पहले से करते हैं....मासूम संवेदना की तरह मासूम तोहफों के साथ जब वो पार्क में पहुंचे तो संस्कृति के तथाकथित रखवालों ने उन पर डंडों से तोहफा दिया....ये भी नई देखा कि इस उम्र के बच्चे और खास कर बच्चियों के साथ ये अमानवीय व्यवहार क्या भारतीय संस्कृति की रक्षा कर पायेगा ? ....लड़कियों के मुंह पर कालिख पोत कर वो कैसे कर पायेंगें हिंदू-धर्म का उद्धार......सोचिए जरा ...एक तरफ हम शांति और भाई-चारे से रहने की प्रेरणा देते हैं और दूसरी तरफ धर्म के तथाकथित पहरेदार पाश्चात्य संस्कृति से दूर रहने के लिए अपने ही लोगों के साथ ऐसा व्यवहार............कितना सही है ?..........सवाल संस्कृति का है ....सवाल सुरक्षा है.... सवाल आपका और हमारा है....ये सवाल हर उस इंसान का है जो प्रेम से रहना चाहता है.....
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