सोचेंगे अरे ये कैसा शीर्षक और शायद आप इसीलिए इसे पढ़े क्योंकि ज़िंदगी में हम उन्हीं चीजों की तरफ बढ़ते है जो कहीं न कहीं हमें तृप्त करती है.....पर ये तृप्ति की परिभाषा बड़ी कठिन है ....क्योंकि कोई भी कभी तृप्त नहीं होता ...हर बार रह जाती है बाकी " एक घूंट प्यास"......और यही अधूरी प्यास भटकाती रहती है ज़िंदगी भर औऱ हम उस तृप्ति को तलाशते रहते हैं.....हर किसी की ख्वाहिश अलग ,पसंद अलग ,चाहत अलग फिर तृप्ति की परिभाषा भी तो अलग होगी ....अब चातक को देखिये पियेगा तो स्वाति नक्षत्र का पानी अरे भई प्यास लगी तो पी लो ना पानी दुनिया में पानी की कमी थोड़ी है.....पर यही तो बात है जिस जो चाहिए बस अपने लिए वो उसे ही तलाशेगा...वरना चांद को टकटकी लगाए चकोर यूं ही नहीं ताकता ...पानी गिरने की खुशी में मोर यूं ही नहीं नाचता .....इतनी सुंदर दुनिया में फिर इतने अपराध न होते सब सुकून से अपनी जीवन यात्रा पूरी कर चले जाते वापस उस दुनिया में जहां से आए थे पर नहीं...ये अतृप्ति कितने औऱ कैसे -कैसे काम करवाती हैं......जो कभी हमारे सोच के दायरे में नहीं था....प्रथा की प्यास अपने बच्चों की जिंदगी से बढ़ जाती है और जन्म देने वालों को तृप्ति मिलती हैं उन्हें मार कर ....जमीन की प्यास के लिए अपनें खुद बन जाते है बेइमान औऱ अपने ही भाई का हक मार लेते हैं....और उन्हें मिलती है तृप्ति....औरतों को नीचा दिखाने की प्यास में उन्हें सरे आम नंगा कर घुमाया जाता है...जिसे देखकर मिलती है हैवानियत करने वालों को तृप्ति.....झूठे दिखावे की प्यास में इंसान चाहे औरत हो या अदमी पार कर देता है सारी सीमाएं सही गलत की....औऱ आखिर जब भटकाव की आग में जलजाती है सारी शांति तो कुछ तो लौट जाते हैं ...मन की शांति के लिए सच की दुनियां में और ज्यादातर लोगों में फिर रह जाती एक घूंट प्यास.....
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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3 टिप्पणियाँ:
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
इन्टरेट को खंगालते हुए अभी मन की तृप्ति की ही बात सोच रही थी कि आखिर मन को कैसा लेखन पढ़ने को चाहिए, तभी आपकी पोस्ट पर निगाह पड़ी। अच्छी लगी बात, बस ऐसे ही लिखते रहे और हम जैसों को तृप्त करते रहें। आभार।
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