समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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ये कैसे डॉक्टर?
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on बुधवार, 15 सितंबर 2010
लेबल:
जिंदगीं खतरे में
टीवी पर इस वक्त खबर चल रही है कि अंबिकापुर में एक महिला के पेट में ऑपरेशन के समय एक फीट लंबा कपड़ा छूट गया और तीन महीने के बाद उसे निकाला गया....खबर देख कर अचानक उस अंजान महिला के प्रति मन संवेदना से भर गया कितनी तकलीफ सही होगी उसने इन महीनों में...प्रसव के बाद मां बनकर मातृत्व का सुख उठाने की जगह इतने महीने उसने केवल दर्द में काट दिए...इन सब बातों से भला उस डॉक्टर को क्या लेना देना जिसने ऑपरेशन के वक्त लापरवाही की...उसे तो केवल अपने पारिश्रमिक से मतलब यानि ऑपरेशन का पूरा पैसा मिल गया...उसे तकलीफ तब होती जब उसे उसकी फीस पूरी या फिर नहीं मिलती....फिर तो उसकी पांचों इंद्रियां जागृत हो जाती...और इसके लिए वो शायद नवजात बच्चे को बंधक बना कर पैसे लाने को मरीज को मजबूर कर देता...पर यहां बात उसकी लापरवाही की है तो क्या लगता है इसके लिए उसे कैसे बंधक बनाया जाय ताकि उसकी इस लापरवाही के लिए उसे दंडित किया जा सके....यही तो मुश्किल है कि डॉक्टरों को लापरवाही की सजा नहीं मिल पाती और वो एक के बाद एक इस तरह की लापरवाही को अंजाम देते रहतें हैं....लगातार इस तरह की घटनाएं हम पढ़ते या देखते रहते हैं पर इन डॉक्टरों पर कार्यवाई की खबर एक बार भी हमें सुनने,पढ़ने को नहीं मिलती...क्या समझें इसे हम कि आम आदमी की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि कोई भी उसके साथ खिलवाड़ कर सकता है....उनकी परवाह करने के लिए ना शासन है,ना कानून,ना भगवान.....डॉक्टर को भगवान का ओहदा देने वाले लोग अब सोचने पर मजबूर हैं कि अब उन्हें क्या कहा जाए.....सोचिये यही घटना अगर किसी ऊंचे ओहदे वालों के साथ होती तो भी क्या कार्यवाई का स्वरूप यही होता...ये घटनाएं एक साथ कई बातों पर सवालिया निशान लगाती हैं...डॉक्टरी के पेशे पर...शासन के रवैये पर और कानून की कार्यवाई पर....पर ये सवाल हल कौन करेगा ये अपने आप में एक सवाल है...?
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