चलो सब ठीक हो गया.......हां भाई गलत क्या है सब ठीक हो गया.......खूब हल्ला हुआ.......... खूब शोरशराबा हुआ......... पर शुक्र है कि सब कुछ निपट गया........जी हां यही कुछ शब्द हर उस मुद्दे पर हैं जो पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में थे.......... हम तो दिल में संतोष करके बैठे थे कि भगवान की दया से सब कुछ ठीक हो गया..... पर हमे क्या पता था कि 'फिल्म अभी बाकी है'... पिछले दिनों अयोध्या और कॉमनवेल्थ खूब सूर्खियों में थे...अयोध्या पर फैसला आने के पहले तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे........देश की शांति की चिंता भी नेताओं को होने लगी थी.......ये बात अलग है कि पहली बार नेताओं को देश में शांति बनाए रखने की चिंता हुई.... अगर यही सदबुद्धि भगवान ने इन्हे पहले दे दी होती तो 1984 में बेकसूर सिखों की हत्या नहीं होती.....1992 में पूरा देश दंगों की आग में नहीं जलता.....और न ही गुजरात में बहती खून की नदियां...... पर चलों देर आए दुरस्त आए.....खैर कोर्ट का फैसला भी आ गया और पूरे देश के लोगों में जिस तरह शांति थी उससे ये भी पता चल गया की आग कहीं भी लगे उसकी चिंगारी नेताओं के भाषण से ही निकलती हैं.....खैर बात दूसरे मुद्दे की........ कॉमनवेल्थ शुरू होने के पहले खूब हल्ला हुआ....जामा मस्जिद के पास बस में हुई फायरिंग के बाद तो हाय तौबा मच गई...मीडिया ने भी खूब हल्ला मचाया......तैयारियों को लेकर खूब सवाल खड़े किए गए....बात भ्रष्टाचार की भी आई पर आखिरकार सब कुछ सही तरीके से हो गया.....भारत भी 101 मेडल जीतकर दूसरे नंबर पर आ गया....पर मैं आज ये सब बाते क्यों लिख रहा हूं...दरअसल जब हम ये सोचते हैं कि सब सही हो गया असल में बात वहीं से चालू होती है....अयोध्या पर एक बार फिर बयानबाजी चालू हो गई मुस्लिम पर्सनल लॉ और इमाम बुखारी जो कल तक कोर्ट के फैसले को मानने की बात कर रहे थे अब एक बार फिर फालतू की बयानबाजी पर उतर आए हैं.. कुछ यहीं हाल खुद को हिंदुओं का ठेकेदार समझने वाले भगवा संगठनों का है......इधर कॉमनवेल्थ भी निपट गया पर अब उन लोगों पर शिकंजा कसना चालू हो गया जिन्होने खेल के आड़ में खूब पैसा खाया...आज इस सब बातों को लिखने का क्या मतलब है...दरअसल नवरात्रि खत्म हो गई और दशहरा आ गया....फिर रावण का पुतला जलेगा....फिर बात होगी कि बुराई पर अच्छाई के प्रतीक की...पर देश के अंदर बैठे इन रावणों का हम क्या करें ?... हिंदू और मुस्लिम के नाम पर बार बार देश को जलाने बारे एक बार फिर भौकने लगे हैं.... फिर कोशिश हो रही है चिंगारी लगाने की....फिर ये लोग देश से बढ़कर मंदिर और मस्जिद को समझने लगे हैं...फिर 1992 जैसे शब्द सुनाई देने लेगें...कोई मेरी मस्जिद बोल रहा तो कोई मेरा मंदिर... कहीं ऐसा न हो कि हम रावण को जलाने में व्यस्त रहे और ये लोग देश को जला दें....कॉमनवेल्थ में देश का पैसा खाने वाले रावण अभी जिंदा हैं.......देश को खोखला करने वाले कट्टरपंथी लोग भी अभी जिंदा है......नक्सलियों का आतंक सातवें आसमान पर है.....और हम बुराई का अंत करने फिर जलाने जा रहे हैं एक रावण के पुतले को.....आज इस दौर में लोगों को समझना चाहिए कि अगर किसी ने सबसे ज्यादा इस देश को बर्बाद किया है तो वो नेता है ....'नेता' जो सिर्फ अपना हित देखता है.....जरुरत ये भी कि आज सबसे पहले अपने अंदर के रावण को जलाएं और उसके बाद हमारे परिवार में बैठे रावण को मारे....फिर मोहल्ले में...ऑफिस में.....कॉलेज में जो राणव है उनको मारे और देश में राम राज्य तब ही आ सकता है जब रावण हर दिल में मर जाए...नवरात्रि खत्म हो गई..माता की मूर्तियों की विदाई का समय आ गया पर लोगों के दिल में जो मेल भरा होता है...जो स्वार्थ भरा होता हो वो न तो गणेश जी साथ विदा होता है न दुर्गा जी के साथ....दिल में जो पाप है जिस दिन उसका विर्सजन हो जाए उस दिन सब सुधर जाएगा....नहीं तो दिल को बहलाने के लिए हमेशा की तरह यही कहेंगे 'चलो शुक्र है सब ठीक से निपट गया'
रोमल भावसार
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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3 टिप्पणियाँ:
rang layegi ye pahal... suru to karo romal bhawsar jee
सही कहा आपने पर कलयुग आ गया है कौन मानता है इन बातों को
नेहा
romel, mahaz netao ko ravan mankar sara dosh unke sar marh dena jaldbaazi bhari soch nazar aati hai. ravan har jagah hai, har star par hai. issey har quadam par marna hoga, baar-baar marna hoga...
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