शिक्षक दिवस से टीचर्स डे तक...डे ने किया डंडा !




शिक्षक दिवस... यानी दिनों में पिरोया हुआ गुरू को सम्मान देने का दिन......दुनिया बदल गई है....लोग बदल गए हैं.....परम्पराएं भी नई हो गई हैं..... तो शिक्षक दिवस कैसे बच सकता था....अब गुरू टीचर बन गया है........पैर छुने कि बजाए लोग हाथ मिलाते हैं.......माथे पर टीके की जगह red rose  और dairy milk  दी जाती है........ शिक्षक को लेकर भी कई सवाल होते रहे हैं......शिक्षक कौन है ?.....हर गली में हिन्दी में एक बड़ा बोर्ड लगा होता है और लिखा होता कि 200 रुपए में अंग्रेजी सीखिए’.. क्या ये शिक्षक हैं ? जो झूठ बोलने का कोरबार कर रहे हैं..... या दो महीने में पूरा कंप्यूटर सिखाने का दावा करने वाले शिक्षक हैं.........हम गुरू किसे माने ? नई नई चीजों को सिखाने वाला बॉस क्या शिक्षक है ?...या चलना और संस्कार सिखाने वाले मां-बाप शिक्षक हैं... या धर्म का पालन करने वालों के लिए भगवान गुरू है जो धर्म का रास्ता दिखाते हैं......सबके अपने अपने गुरू होते है मानने वाले तो राखी सांवत और राहुल महाजन  को भी गुरू मानते हैं..अरे ये तो कुछ भी नहीं ठग नटरवलाल और लव गुरू मटुकनाथ को भी गुरू मानने वालों की कमी नहीं है...खैर समय के साथ शिक्षक दिवस टीजर्स डे में बदल गया है....वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है कि जिस रिश्ते के आगे डे लग जाता है उसमें डंडा हो जाता है.....शायद आप मेरे मतलब को समझ रहे होंगे....जैसे दोस्ती के आगे फ्रेंडशिप डे लग गया.....पापा के आगे फादर डे लग गया......मां के लिए मदर्स डे हो गया......प्यार के लिए वेलेंटाइन डे.....और पता नहीं कौन कौन से डे हो गए हैं....और रिश्तों को डे में बदलने के कारण ही इनमे डंडा होता जा रहा है...वैसे शिक्षक दिवस इस सब डे से बहुत अलग है ये हमारा दिन है हमारे देश का दिन है और गुरू को सम्मान देने का दिन पर और ये अलग भी है बाकी दिन से....पर बाकी डे की जो एक साया इस  दिन पर पड़ गया है उसने सम्मान को मजाक में बदल दिया है...आज ही मेरे जूनियर ने मुझे चॉकलेट और फूल देकर कहा हैप्पी टीचर्स डे...मुझे कहीं भी इस जूनियर की आंखों में सम्मान नहीं दिखा...ये कारण है बाकी डे का टीचर्स डे पर पड़े साए का....खैर सीखा तो एक भिखारी से भी जा सकता है और जरूरी नहीं हम जिनका सम्मान करते हो वो हमेशा हमे कुछ सिखाते हैं...कई बार हमें पता होता है कि हम जिसे इज्जत दे रहे हैं वो मजबूरी  है.....पर क्या करें
 समय समय की बात...
कल दिन भी होगा अगर आज अंधेरी रात है....

गुरू का सम्मान हमेशा किया जाता है....गुरू ही वो कड़ी होती है जो हमे भगवान तक पहुंचे का रास्ता दिखाती है...गुरू का स्थान हमेशा सबसे बड़ा होता है....और गुरू का जो कर्ज हमारे ऊपर है उसे एक दिन क्या पूरी एक जिंदगी में भी नहीं उतारा जा सकता..
पर सम्मान को दिनों और शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता...सम्मान आंखों में झलकता है...जब गुरू समाने होता है तो आंखों खुद ब खुद सम्मान में झुक जाती है...मेरे लिए शिक्षक का मतलब वो व्यक्ति जिसकी झलक मेरे कामों में दिखे..मेरे व्यव्हार और मुझमे में दिखे...और जिसके सम्मान में मैं एक दिन नहीं हमेशा तैयार रहूं

गुरू गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताय.

रोमल भावसार

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