हिन्दी हुई बेगानी

विदेशो में जानी पहचानी, और अपने ही देश में बेगानी, अंजानी,... बाहर लोग मेरे बारे में जानना चाहते हैं...लेकिन अपने ही देश में मुझे जानने वाले, सबके सामने मुझे पहचानने से हिचकते हैं...शर्माते हैं.....आप समझ ही गए होंगे की मेरा नाम हिंदी है....मैं एक बहुत ही समृद्व भाषा हूं.....किसी ज़माने में मेरा बहुत नाम था...लोग मुझे हाथो हाथ लेते थे....और मैं लोगों के जुबान पर चढ़ी इठलाती रहती थी.....वैसे तो मैं भारत वर्ष में सालों साल से हूं...लेकिन आज़ादी के बाद 14 सितंबर 1949 में मुझे राजभाषा का दर्जा दिया गया....और 14 सितंबर 1953 को औपचारिक रुप से हिंदी दिवस मनाने का भी फैसला लिया गया...हर साल मुझे आज ही के दिन आमजन तो नही हां सरकारी दफ्तरों में ज़रुर याद कर लिया जाता है... लेकिन उसके बाद फिर से मेरी दुर्दशा शुरु हो जाती है....मेरे नाम पर लाखो करोड़ो खर्च भी होते हैं...लेकिन भी मैं दिनों दिन ग़रीब होती जारही हूं....मेरी जगह मैडम इंग्लिश लोगों की जुबान पर चढ़ती जा रही है...मेरा देश अंग्रेजों से तो आज़ाद हो गया...लेकिन अंग्रेजी का गुलाम बन कर रह गया....मैं अपने देश वासियों से पूछना चाहती हूं कि क्या आपको लगता है कि आप हम वाकई आज़ाद हो गए हैं....

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