मां होती है एक सी......


परिंदों की अठखेलियां
बंदनवार बनाता उनका कलरव
सिंदूरी शाम में लौटता झुंड
दिवसावसान में घर की तड़प
और घरौंदे में इंतजार करता कोई
जो मुझे ज़िंदगी से भर जाता है
एक मूक पंछी
जो मौन में रिश्तों को जीता है
मैने देखा है वो रिश्ता है 'मां'
दर्द की सिहरन में मरहम है मां,
जेठ की दुपहरी में घनी छांव है मां,
अस्तित्व की तलाश में पहचान है मां,
मुझसे अलग पर मेरी सांसे हैं मां,
बच्चों को नहीं उम्मीदों को जन्म देती हैंमां,
हर मज़हब हर धर्म में एक सी होती मां,
मां बन के मैनें जाना तुम क्या हो 'मां'
मैं खुशनसीब हूं बहुत अच्छी है मेरी 'मां'

7 टिप्पणियाँ:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Amitraghat ने कहा…

वाह ! बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता ।

दिलीप ने कहा…

sansaar ki sabhi maaon ki umr hazaar saal badh jaaye...bahut sundar...aankhein nam kar di...

M VERMA ने कहा…

दर्द की सिहरन में मरहम है मां,
जेठ की दुपहरी में घनी छांव है मां,
और फिर
माँ और कुछ नहीं सिर्फ माँ है
माँ को नमन

vandana gupta ने कहा…

bahut sundar abhivyakti.

Raj ने कहा…

Ap bhi hongi us Ma jaisi hi Ma!

Jab tak duniya me rahegi ek bhi aisi Ma, jivan ki sukhad sambhaavnayen jeevit rahengi .

बेनामी ने कहा…

मां तुझे सलाम

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