समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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मां होती है एक सी......
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on शनिवार, 8 मई 2010
लेबल:
मां तुमसा कोई नहीं
परिंदों की अठखेलियां
बंदनवार बनाता उनका कलरव
सिंदूरी शाम में लौटता झुंड
दिवसावसान में घर की तड़प
और घरौंदे में इंतजार करता कोई
जो मुझे ज़िंदगी से भर जाता है
एक मूक पंछी
जो मौन में रिश्तों को जीता है
मैने देखा है वो रिश्ता है 'मां'
दर्द की सिहरन में मरहम है मां,
जेठ की दुपहरी में घनी छांव है मां,
अस्तित्व की तलाश में पहचान है मां,
मुझसे अलग पर मेरी सांसे हैं मां,
बच्चों को नहीं उम्मीदों को जन्म देती हैंमां,
हर मज़हब हर धर्म में एक सी होती मां,
मां बन के मैनें जाना तुम क्या हो 'मां'
मैं खुशनसीब हूं बहुत अच्छी है मेरी 'मां'
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7 टिप्पणियाँ:
nice
वाह ! बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता ।
sansaar ki sabhi maaon ki umr hazaar saal badh jaaye...bahut sundar...aankhein nam kar di...
दर्द की सिहरन में मरहम है मां,
जेठ की दुपहरी में घनी छांव है मां,
और फिर
माँ और कुछ नहीं सिर्फ माँ है
माँ को नमन
bahut sundar abhivyakti.
Ap bhi hongi us Ma jaisi hi Ma!
Jab tak duniya me rahegi ek bhi aisi Ma, jivan ki sukhad sambhaavnayen jeevit rahengi .
मां तुझे सलाम
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