अंतर्मन


चीखूं, चिल्लाऊं या ख़ामोश रहूं

सब एक सा है,

निर्दोष न रह पाऊंगा...

इस रणभूमि में ।

हार और जीत स्वरूप बदल सकते हैं,

दामन भी.

परन्तु आदि, अन्त और कारक न बदलेगा

वही

अहम, क्रोध, पश्चाताप मिश्रित ।

धर्म अधर्म कौन तौले

सारथी कहां ?

फिर दुर्योधन की सेना भी नहीं

सभी हैं, मध्यम वर्ग से

निर्दोष भी

पापी भी ।

2 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

नि:शब्द रहें, तटस्थ रहें... हम आप भी निर्दोष हैं और गुनहगार भी।

निलेश ने कहा…

बहुत बढ़िया...

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