झीलों के शहर भोपाल का एक बेहद ख़ुशनुमा दिन, अमूमन इतनी भीड़ से वास्ता न रखने वाली सड़कों पर ज़बरदस्त चहलक़दमी, झंडों-बैनरों-पोस्टरों-कटआउट से अटे रास्ते, राज्य के दूरदराज से पहुंच रहे कार्यकर्ता और अपने नेता के सम्मान को लेकर उनका उत्साह। ये नज़ारा रहा, सोमवार का। मध्य प्रदेश में ग़ैर कांग्रेसी के तौर पर पांच साल पूरे करने वाले पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अभिषेक का दिन। कहने को तो ये कार्यकर्ता गौरव दिवस रहा, जहां कैडर पर पुष्प वर्षा भी हुई, लेकिन असल हीरो तो शिवराज ही रहे।
मध्य प्रदेश में भाजपा की सत्ता के सात बरस हो गए हैं। शुरुआती दो सालों तक चली उथल पुथल के बाद शिवराज सिंह के हाथों में नेतृत्व की बागडोर सौंपते वक़्त पार्टी के आला नेताओं को भी शायद ही यक़ीन रहा हो कि वे इतने खरे साबित होंगे। राजधानी के जंबूरी मैंदान पर दो लाख से ज़्यादा कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में पार्टी ने जमकर जश्न मनाया। शिवराज का गुणगान किया, कार्यकर्ताओं का सम्मान किया। हाल ही में बिहार चुनाव में मिली जीत, कर्नाटक का संकट टलने और तमाम आरोपों के चलते यूपीए सरकार की हो रही किरकिरी के बाद यक़ीनन भाजपा के दिग्गजों को भोपाल का ये जश्न बहुत रास आया होगा। इधर, राजधानी में ही कांग्रेस के विधायकों ने भी जमकर ड्रामा किया। मौन जुलूस, शर्म दिवस, पैदल मार्च और जाने क्या क्या? ख़ैर, सियासी ड्रामेबाज़ी का दौर है, कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता।
2003 के आख़िर में राज्य के मतदाताओं ने दिग्विजय सिंह के नेतृत्व को किस तरह नकारा था, आपको याद होगा। बिजली का भारी संकट, बेहद ख़राब सड़कें, बिगड़ता लॉ एंड ऑर्डर, बढ़ता भ्रष्टाचार। ये वजहें थीं दिग्विजय सिंह की काग्रेस से जनता के मोहभंग की। इसके बाद भारी बहुमत से उमा जी आईं, फिर बाबूलाल गौर, फिर शिवराज सिंह... फिर आज का ये जश्न वाला दिन। यक़ीनन सीएम के तौर पर शिवराज सिंह के पांच साल पूरे करना स्थाईत्व की निशानी है, लेकिन ये बात भला मुझे क्यों ख़ुश करने लगी? सत्ता में दस साल रहकर ये स्थाईत्व तो दिग्विजय सिंह ने भी दिया था। वो तो उनका मैनेजमेंट गड़बड़ा गया, वरना स्थाईत्व तो चल ही रहा होता।
दरअसल, ये तमाम बातें मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मध्य प्रदेश के नागरिक के तौर पर मेरा भी जश्न मनाने को दिल करता है। मैं भी चाहता हूं कि यहां की तरक्की और तरक्की के लिए उठे सरकार के क़दम मेरे दिल को भी सुकून दें। अब सिर्फ़ इस बात के लिए कि शिवराज सिंह सत्ता के पांच बरस पूरे कर रहे हैं, मैं क्यों ख़ुश हो जाऊं? ना मैं किसी पार्टी का कार्यकर्ता हूं, ना ही मेरे गांव में चौबीस घंटे बिजली रहती है, ना ही सड़कों का ऐसा कायाकल्प हो गया कि तबीयत बाग-बाग हो उठे। कहीं ये मिशन 2013 की तैयारी तो नहीं? सौ फ़ीसदी ये वही है। विकास, हिंदुस्तान की राजनीति का नया मुद्दा है, जिसकी धार देखी भी जा रही है। मोदी, नीतीश, शीला दीक्षित, नवीन पटनायक अपने-अपने राज्यों में कुछ ऐसी ही ख़ुशनुमा तस्वीर पेश कर रहे हैं। बेहद लोकलुभावन चेहरे के साथ पार्टी यहां जनता के बीच जा रही है। शिवराज सिंह को अगले चुनाव में ऐसे ही पेश किया जाएगा, ये बात तय है।
शिवराज सिंह के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए इस पारी में तीन साल का लंबा वक़्त बाक़ी है। पिछड़े और बीमारू मध्य प्रदेश को स्वर्णिम मध्य प्रदेश में तब्दील करने के लिए उनके पास अच्छा नज़रिया है। देखते हैं, क्या होता है। जिस रोज़ कामों में और तेज़ी आएगी, सरकार और संजीदगी से तरक्की की दिशा में सोचेगी, काम करेगी... उस दिन ना केवल कार्यकर्ताओं का बल्कि मतदाताओं का भी सम्मान होगा।
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