अब देर नहीं लगती...

अब देर नहीं लगती, इंसान को परखते
हर मील पे देखा है, पत्थर को बदलते
अपने सफ़र पे हमको, जमकर रहा ग़ुमान
सहमे हुए सुनते हैं, औरों के तजुर्बे
लो देख ली दुनिया, लो कुछ नहीं हासिल
रक़ाब पर लिहाज़ा, हम पांव नहीं रखते
मुमक़िन है तुमको ना हो, इस हश्र पर यकीं
होता तुम्हें भी पास, इस राह ग़र गुज़रते

- निशांत बिसेन

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