क्या होगा चौथा स्तंभ न हो तो?

जरा सोचिए किसी दिन आप नींद से जागे और सामने अखबार न हो...
टीवी पर मनोरंजक कार्यक्रम तो दिखाए जा रहे हों... लेकिन उनमें न्यूज चैनल नदारद हो...
एक दिन तो चलो जैसे-तैसे गुजर जाएगा..लेकिन अगर ये सिलसिला लगातार जारी रहे तो...!
क्या कभी सोचा है...मीडिया की भूमिका खत्म हो जाए तो क्या होगा?
क्या आप बिना अखबार पढ़े या समाचार सुने अपनी जिंदगी ठीक वैसे ही गुजार सकते हैं जैसे अब तक गुजारते आए हैं....?
क्या आप मानते हैं आपकी जिंदगी में मीडिया की कोई भूमिका नहीं है?



लोगों का मानना है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ दूषित हो गया है...
मीडियावाले उल्टी-सीधी खबरें छापते हैं...या गॉसिप्स औऱ ह्यूमर ज्यादा फैलाते हैं...
उनका कहना है कि ''आज पत्रकार रात की पार्टियों में विश्‍वास करता है। उसे जब तक टुकड़े डालो तब तक ही चुप रहता है। नहीं तो वो आपकी ऐसी की तेसी करने पर तुल जाता है।  आज का मीडिया दुम हिलऊ बनता जा रहा है''
लेकिन जनाब क्या सचमुच ऐसा है...क्या मीडियाकर्मी इतने होशियार है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए अरबों की जनता को एक पल में बेवकूफ बना जाते हैं....और क्या अरबों जनता इतनी ज्यादा बेवकूफ है कि हर रोज छले जाने के बाद भी इसे देखना और पढ़ना पसंद करती है...क्योंकि अगर जनता इसे नहीं देखती है तो चैनलों की TRP कहां से आती है...या न्यूजपेपरों का सर्कूलेशन कैसे हो जाता है..लाखों पेपर छपते हैं और हाथों हाथ बिक जाते हैं....
जरा गौर से सोचिए  देश का चौथा स्तंभ यानी मीडिया न हो तो क्या होगा...
कल्पना कीजिए  एक कुर्सी के चार खंभों  में से एक खंभा निकाल दिए  जाए तो...
उसी तरह देश  के चार स्तंभों में से यदि एक को भी निकाल दिया गया तो देश की स्थिति लड़खड़ा  सकती है...है ना....अब आप मीडिया की अहमियत का अंदाजा तो ब-खूबी लगा ही सकते हैं... देश की स्थिति मजबूत बनाने के लिए हर क्षेत्र में कार्य  करनेवालों का अलग अलग  योगदान है...और मीडिया अपना काम  बखूबी निभा रही है
क्या मीडिया के बिना आप अपने जीवन की कल्पना कर सकते हैं...क्या आपको देश  दुनिया की सारी जानकारी हू-ब-हू वैसे ही मिल पाएगी...जैसा मीडिया के माध्यम से आसानी से आपको मिल जाती है...क्या आप उन सारी बातों पर आंखें मूद कर भरोसा  कर पाएंगे....औऱ क्या सबको एक जैसी जानकारी मिल जाएगी....ये शायद संभव नहीं है...
आज आप रिमोट  का एक बटन दबाते हैं और पल भर में देश दुनिया की सारी बातें विस्तार से आपको मिल जाती है...अखबार  के पन्ने पलट लेते हैं  तो आपको आपके पसंद की सारी खबरें  उस कोरे कागज पर नजर आती  है...चाहे वो राजनीतिक हों, सामाजिक  हों, आर्थिक हों, बिजनस की बातें हों या फिर खेल  से जुड़ी कोई खबर....क्या आपने सोचा है इन सारी जानकारियों को इकट्ठा करने में हर-रोज  और दिन-रात सैंकड़ों लोग  किस कदर लगे रहते हैं....कैसे आपके सामने ये सारे मसाले  परोसे जाते हैं...
कई बार जब मैं  कहीं बाहर होती हूं और लोगों  को पता चलता है कि मैं मीडिया में हूं तो उनकी शिकायत होती है कि हर चैनल पर दिनभर  एक ही खबर दिखाई जाती हैं...एक ही खबर दिनभर खिंचती चली  जाती है...सच कहूं तो ऐसा अमूमन  होता नहीं है...हमारी कोशिश  रहती है कि किसी खबर को हम ज्यादा देर तक ना खींचे...अक्सर  जिस खबर को हम ज्यादा देर  तक खींचते हैं उसके पीछे कहीं न कहीं हमारी मंशा होती है खबर को अंजाम तक पहुंचाना...खबर  पर लगातार हम अपडेट देते हैं...मान  लीजिए हम सुबह से एक खबर  दिखा रहे हैं कि कोई बच्चा  बोरबेल में गिर गया...अब...जब तक वो बच्चा उससे निकल नहीं जाता तब तक तो उसे दिखाना हमारी मजबूरी है...ताकि प्रशासन  जल्द से जल्द हरकत में आए और बच्चा सुरक्षित बाहर निकल सके...मैं मानती हूं कि इस खबर को लगातार हम दिखाते हैं... लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इनके साथ हम अन्य खबरें  नहीं दिखाते...या उस खबर में  कोई अपडेट नहीं होता...सभी  चैनल इस खबर पर इसलिए बने  रहते हैं ताकि वो उस समय  अपने अन्य प्रतिद्वंद्वी  चैनल से आगे निकलने की होड़ में शामिल होते हैं...

अभी कुछ दिनों  पहले मैं एक ब्लॉग देख  रही थी...मुझे एक महाशय के ब्लॉग पर मीडिया की आलोचना से भरा एक पोस्ट मिला...उन्होंने अपनी भड़ास मीडिया पर जमकर निकाली थी....मीडियाकर्मियों की भी उन्होंने जमकर खिंचाई की थी....और उनके पोस्ट पर टिप्पणी  करनेवालों की भी कमी नहीं थी....हालांकि मैं मीडिया में 4 साल से हूं...और चार  साल का अनुभव हमारी फील्ड  में काफी मायने रखता है....मैंने  मीडिया को गहराई से देखा है ...सच कहूं....तो मीडिया के प्रति  लोगों की धारणाओं को देखकर  बुरा लगता है....बिना जाने समझे किसी एक धारणा पर चलना उचित नहीं है...लोगों ने मीडिया के लिए ये धारणा बना ली है...कि मीडिया में गलत-सही कुछ भी दिखाया जाता है या प्रचारित किया जाता है....जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता....लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है...हम वही दिखाते हैं जो सचमुच घटित होता है...हमारे पास उसके साक्षात प्रमाण होते हैं...हम हवा में बातें नहीं करते....हम उसे visual के जरिए दर्शकों के सामने डंके की चौट पर रखते हैं...ताकि लोगों को यकीन हो....सब कहते हैं...जो दिखता है वो बिकता है...लेकिन मैं कहती हूं.....जो बिकता है वहीं यहां दिखता है....बिकने का मतलब है जो लोग देखना पसंद करते हैं...हम उसी को रोचक तरीके से आपके सामने पेश करते हैं....खबरें जो हम दिखाते है क्या आप खुले तौर पर उन्हें चुनौती दे सकते हैं...खबरों को प्रसारित होने से पहले उसे कई दौर से गुजरना पड़ता है...इसे पहले SCRIPT के रूप में लिखा जाता है...उससे संबंधित सारी जानकारी इकट्टा की जाती है...उसकी शुद्धता को परखा जाता है...न्यूज डेस्क पर बैठे कई वरिष्ठ पत्रकारों की नजर से गुजरने के बाद उसे आपके समक्ष पेश किया जाता हैं...ऐसे में गलतियों की संभावना बेहद कम होती है...
हमरी कोशिश  रहती हैं कि हम उस खबर से संबिधित सारी जानकारी जल्दी  से जल्दी आपके सामने रखें....अब गलतियां मानवीय प्रवृत्ति  का हिस्सा है...छोटी-मोटी गलती किसी से भी हो सकती है...इसका ये मतलब नहीं कि हमेशा हम गलतियों  को ही वरीयता देते हैं...हां  मैं मानती हूं कि कुछ  चैनलों ने ये फंडा अपना लिया है कि वो अजीबो-गरीब खबरों  को ज्यादा तबज्जों देते हैं...खैर  मैं किसी एक खास चैनल का नाम उजागर किए बिना कहती हूं कि सारे चैनल एक ही फंडे पर नहीं चलता...सभी मीडिया हाउसों का अलग-अलग फंडा होता है...इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें TRP से कोई लेना-देना नहीं होता... लोग कहते हैं मीडिया में खबरें बनती नहीं है बल्कि बनाई जाती हैं...ऐसा सोचना सरासर गलत है....हम वहीं दिखाते हैं जिन्हें सचमुच उस वक्त दिखाया जाना जरूरी होता है...खबरों की महत्ता के हिसाब से हम उसे प्रसारित करते हैं...लेकिन अब मार्केट में बने रहना है तो हम उन चीजों को नजर अंदाज कर नहीं चल सकते...दूसरे मीडिया हाउस से आगे बढ़ने की होड़ में हमें कई बार ऐसा करना पड़ता है...


मीडिया को आपकी निजी जिंदगी से कोई सरोकार नहीं है लेकिन आपकी जिन्दगी  में कुछ अलग हो रहा है तो उसे जनता के सामने सच उजागर करने का पूरा अधिकार है....इस प्रक्रिया  में भले ही आपके लिए उसकी भूमिका गलत हो सकती है... लेकिन  दुनिया की नजर में वो गलत  नहीं है...उस स्थिति में उसे  पूरा हक है जिंदगी के हर पहलू पर ताकझांक करने का.... क्योंकि  वो किसी एक व्यक्ति विशेष  के लिए काम नहीं करता...ऐसे  में मीडिया आपके लिए मददगार भी साबित हो सकती है और खतरनाक भी...हमारा काम है दबे कुचलों की आवाज बुलंद करना... उसे  उसका हक दिलाना....और देश दुनिया में घटित सभी तथ्यों को हू-ब-हू  उजागर  करना...


मैं ये बिल्कुल  नहीं कहती कि मीडिया पाक-साफ  है...मीडिया में भी गंदगी  भरी है...जब कोई फिल्म बनती है तो उसमें सारे मसाले  भरे जाते हैं...उसी तरह  मीडिया में भी वो सारी चीजें  मौजूद हैं...यहां भी वो सारे स्केन्डल्स मौजूद हैं....लेकिन  हर जगह एक जैसी बात नहीं होती...शरीर पर धूल लग जाए  तो उसे फिर से साफ कर आप खड़े हो जाते हैं...इसका मतलब ये कदापि नहीं कि आप हमेशा  धूल-धु-सरित ही रहते हैं...मीडिया में काम करनेवालों के लिए ये जरूरी है कि आप किस  हद तक खुद को सुरक्षित रख पाते हैं...आपको उसूलों की यहां भी कद्र की जाती है...आपकी क्षमता को यहां भी परखा जाता है...और उसको तबज्जो दी जाती है


सबसे पहले तो मैं ये बता दूं कि....मैं ये ब्लॉग  इसलिए नहीं लिख रही कि मुझे मीडिया को पाक-साफ बताने  के लिए कोई सफाई देनी है...ना ही मेरा मक्सद मीडिया का बखान करना है...या इसका बीच बचाव करना है...देश का ये चौथा स्तंभ आज भी हिला नहीं हैं...अब भी वो बेहद मजबूत है...उसे किसी की सहानुभूति की जरूर नहीं है...वो अपना काम बखूबी करना जानता है... 
हां...जो जैसा सोचते हैं..वो बिल्कुल अपने तरीके से सोचने के लिए स्वतंत्र हैं...मैं अपने ब्लॉग के जरिए सिर्फ इतना बताना चाहती हूं कि किसी एक मान्यता को आंखें मूद कर भरोसा करने से पहले उसे अपने तरीके से जांच परख लें...फिर उसपर यकीन की मुहर लगाए...कभी मौका मिले तो किसी मीडिया हाउस में जाकर देखें कि वहां काम कैसे होता है....उन्हें आप तक किसी खबर को पहुंचाने से पहले कितनी मेहनत करनी पड़ती हैं...और मीडियाकर्मी अपनी मेहनत के लिए आपसे प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं लेता... उन्हें उनकी मेहनत के लिए कंपनी भरपूर पैसे देती है...अगर कोई मीडियाकर्मी आपके साथ ऐसा कुछ करता है तो आप उसके खिलाफ जरूर आवाज उठाए...ऐसी हरकत निचले ओहदे पर काम करनेवाले लोग ही कर सकते हैं
लेकिन किसी एक की गलती के लिए आप सबको ना कोसें...मेरे ख़्याल से सबके लिए एक जैसी धारणा बनाना  गलत है..क्या आपकी धारणा  दीपक चौरसिया, पुण्य प्रसून वाजपेई, प्रभू चावला, रजत  शर्मा, मृणाल पांडे, बरखा दत्त, अल्का सक्सेना, नीलम शर्मा जैसे दिग्गजों के लिए  भी ऐसी ही है...शायद नहीं....उन्होंने भी ये बुलंदी काफी घर्षण के बाद पाई है...तो इस क्षेत्र  में आनेवाले नए चेहरों को थेड़ा वक्त तो चाहिए  खुद को स्थापित करने के लिए...कोई भी एक बार में  इन दिग्गजों की सूची में शामिल  नहीं हो सकता ना..

http://madhuchaurasiajournalist.blogspot.com/

2 टिप्पणियाँ:

Madhu chaurasia, journalist ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

मीडिया ने काफी तरक्की कर ली है...लेकिन लोगों की धारना आज भी नहीं बदली है...मीडियाकर्मियों को न जाने वो क्या समझते हैं...हालांकि समाज में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता

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