कहां जायेगी परंपरा

बहुत दिनों बाद आखिर लिव-इन-रिलेशन को सही ठहराया गया है...और साथ ही भारतीय संस्कृति को एक चुनौती दे दी गयी है..... कि अब अगर लोग इस तरह के संबंधो में रहेंगे तो फिर भारतीय समाज की परिवार परंपरा का क्या रूप होगा ..... रिश्तों का स्वरूप क्या होगा...सारी परंपरा,रीति-रिवाज,भारतीयों के सोलह संस्कार का हश्र क्या होगा...रिश्तों की वो मीठी नोक-झोंक,सुख-दुख का वो अहसास,संघर्ष की कसक सब कुछ एक फैसले पर निर्भर करेगा ....कि अगर आपको ये सब अच्छा नई लग रहा है तो आप स्वतंत्र है आप इस रिलेशन को खत्म करके एक नये रिश्ते की शुरूआत कर सकते हैं .....कितना अजीब होगा ये फैसला जो हर रिश्ते को सामयिक तौर पर जियेगा....स्थायित्व की गंभीरता जिसे छू भी नई सकेगी....तमाम विसंगतियो के बीच भी आज हर औरत यही चाहती है कि उसका अपना संसार हो,परवाह करने वाला समझदार जीवन साथी हो पर इसका ये परिणाम कि केवल उनमुक्तता ही जीवन हो शायद कोई महिला ये कभी नही चाहेगी....फिर इस तरह का फैसला क्या साबित करेगा समाज में.....क्या इससे औरत की समाज में स्थिति सुधरेगी...क्या उस पर हो रहे अत्याचार कम होंगे...क्या वो अपने अस्तित्व को तलाश पायेगी...क्या अपनी सहमती से किसी पुरूष के साथ संबंध बना लेना ही किसी महिला के जीवन का उत्थान कर पायेगा...क्या वो अपने मन की शांति तलाश पायेगी....इन सबका जवाब किसी एक महिला की टिप्पणी पर करना कितना उचित होगा....ये तो हम सब महिला ही बता सकती हैं कि ये हमारी समाज में हालत सुधारेगा या बिगाड़ेगा....ऐसा नही लगता कि ये फैसला पुरूषों के हाथ में दो धार हथियार सौंप देगा....या फिर वेश्यावृत्ति की ही परंपरा का बड़ा रूप होगा....कई मुद्दें हैं सोचने के लिए सोचिये जरूर और सोच कर मेरी सोच को आकार दें ताकि मैंने जो सोचा उसे एक ठहराव दे सकूं......आखिर सवाल महिला का है सवाल हमारे अस्तित्व का है...........

1 टिप्पणियाँ:

विजयप्रकाश ने कहा…

प्राचीन काल से ही किसी न किसी बहाने जैसे रीत-रिवाज, व्यवस्था या धर्म आदि आदि से स्त्रियों का शोषण या उपयोग पुरुष प्रधान समाज में किया जाता रहा है और हो रहा है.इस विषय में स्त्रियों को जागरूक करने की आवश्यकता है जो आप कर रही हैं...साधुवाद

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