समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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शर्मसार हुई इंसानियत
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on सोमवार, 26 अप्रैल 2010
लेबल:
कैसे बचाएं लड़कियों को ?
/
Comments: (4)
आज सुबह टीवी पर एक खबर फ्लैश हुई .....जिसे देखने के बाद मुझे ऐसा लगा कि इस खबर ने रायपुर को शर्मसार कर दिया....लेकिन मेरा ऐसा मानना कहां तक सही है ये तो मुझे भी नहीं पता...लेकिन खबर ही ऐसी थी कि मैं सिहर उठी ......जब पता चला कि रायपुर के राजातालाब में 12 साल की बच्ची से बलात्कार कर उसे लहुलूहान कर दिया गया..और हर बार की तरह आरोपी फरार हो गया ...बच्ची अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है ... माता-पिता अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहे हैं औऱ पुलिस हरबार की तरह घटना की तफ्तीश में जुट गई है....यहां पर ये केवल एक घटना थी लोंगो के लिए जो थोड़ी आह के साथ पुरानी हो जायेगी...फिर कोई ये भी जानने की कोशिश नहीं करेगा कि उस बच्ची को इंसाफ मिला भी या नहीं...पर उसकी जिंदगी तो तबाह हो चुकी ..तन के घाव तो एक नएक दिन भर ही जायेंगे पर पुऱूष के प्रति मन की दहशत क्या कभी जायेगी या फिर उसे समाज से दूर करके एक औऱ निराशा में ढ़केल दिया जायेगा पता नहीं....चलिए थोड़ा कानून के झरोखे में भी झांक ले वहां क्या चल रहा है...वहां चलेगी थोड़ी छानबीन और फिर फाइल बंद यही तो होता है तब... जब प्रार्थी गरीब हो.....कानून को तो हर बात का सुबूत चाहिए आपको क्या लगता है इस मामले में भी सुबूत मिल जाने के बाद क्या इंसाफ होता है ....या इस जुर्म की कोई सजा सही वक्त पर किसी को मिली है.....फिर अपराधी भला क्यों डरेगा जुर्म से.....ये सवाल सोचने का है...किसके लिए लड़की के मां-बाप के लिए,कानून के लिए या फिर हम और आप जैसे के लिए जो इस खबर से कांप जाते हैं....शायद इसी डर से माता-पिता लड़की के जन्म पर खुश नही होते....या फिर लड़की को घर की चार दीवारी में कैद रखते हैं ...या फिर जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं....आप ही बताएं इस हैवानियत से कैसे बचाएं अपनी बच्चियों को ........
आख़िर कब तक...?
6 अप्रैल 2010... वो तारीख़ जो शायद कुछ लोग भूल जाएंगे... क्योंकि उन्होनें अपनों को सिर्फ नाम के लिए खोया है... उन्हें गिनती आती है... वो फिर से गिनती करेंगे... और कहेंगे 76 जवान शहीद हो गए... हमें दुख है, अफसोस है... और कुछ कभी नहीं भूल पाएंगे... इसलिए... क्योंकि एक बार फिर किसी का भाई... किसी का बेटा... किसी का सुहाग... और किसी के सर से साया छिन गया है... ‘छत्तीसगढ़’ में अब तक का सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ है... जिसमें इतने जवान शहीद हुए हैं... कुछ ने हमले की निंदा कि... नक्सलियों की कायरता करार दिया... तो किसी ने इस मामले में राजनीति कि... कहा कि राज्य सरकार नैतिक ज़िम्मेदारी ले और कुर्सी छोड़ दे... सवाल ये है कि क्या कोई इस हमले कि नैतिक ज़िम्मेदारी लेगा...? जिनकी ज़िम्मेदारी है... वो सिर्फ बयान देंगे... आपात बैठक लेंगे... रणनीति पर चर्चा करेंगे... अफसोस ज़ाहिर करेंगे... बड़ी चूक हुई है... ये भी मानेंगे... कहां चूक हुई है... इस पर समीक्षा करेंगे... और फिर से ये सारी बैठक... महज़ चिंतन पर ख़त्म हो जाएगी... कब तक...? आख़िर कब तक...? आर-पार की लड़ाई की बात कही जाएगी... क्या सिर्फ बैठकें ही होती रहेंगी या फिर कभी वो भी होगा... जिसकी कि अक्सर बात कही जाती है... क्या बातें कभी अमल में लाई जाएंगी...? क्यों बार-बार हमारी ही रणनीति नाकाम होती है...? क्यों बार-बार नक्सली कामयाब होते हैं... क्यों नक्सलियों के जाल में हमारे ही जवान उलझते हैं...? एक ही रणनीति नक्सली बार-बार अपनाते हैं... और उसी राह पर जवान भेज दिए जाते हैं... सिर्फ शहीद होने के लिए... इससे पहले भी इसी तरह के हमले हो चुके हैं... जिसमें नक्सली घात लगाकर बैठे थे... और 06 अप्रैल को भी यही हुआ... अगर ये केंद्र और राज्य का ज्वाइंट ऑपरेशन है... तब सीआरपीएफ के जवानों के साथ क्यों स्थानीय पुलिस फोर्स के जवान नहीं थे... अगर बाहर से आने वाले जवान जो कि चिंतलनार के भौगोलिक हालात से वाकिफ नहीं थे... क्यों उनके साथ किसी स्थानीय को नहीं भेजा गया...? हमेशा तालमेल बैठाने को लेकर ही बैठकें होती हैं... लेकिन तालमेल कहीं दिखाई नहीं देता... नक्सलवाद हमेशा से एक मुद्दा रहा है... जो देश के लिए इस वक्त सबसे बड़ा ख़तरा है... लेकिन राज्य और केंद्र की सरकारें हमेशा ही इससे बचती रही हैं... या भागती रही हैं... गृहमंत्री पी चिंदबरम की तारीफ करनी होगी... जिन्होने इसे ना सिर्फ गंभीर माना है बल्कि एक साहसिक क़दम उठाया है... लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता... और शायद हमें भी इंतज़ार करना होगा... इंतज़ार... की इस बार सुबह गोलियों की आवाज़ों से ना हो... बल्कि चिड़िया की चहचहाहट से हो मुर्गे की बांग से हो... सूरज सुबह लालिमा लेकर ही आए... लेकिन वो रंग लालगढ़ के आतंक का ना हो... बल्कि एक ख़ुशनुमा सुबह हो...
लहूलुहान छत्तीसगढ़
प्रस्तुतकर्ता
राजीव कुमार
लेबल:
छत्तीसगढ़,
नक्सली,
राजीव कुमार,
सीधी बात
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एक हजार नक्सली... पुरानी रणनीति... और 76 जवान बने शिकार। हमले की निंदा हुई... बैठक हुई... बयानबाजी हुई.. बयान आया चूक हो गई। इन सबके बीच सबने कुछ न कुछ जरूर कहा... लेकिन बयानों से क्या हमारे वीर वापस लौट आएंगे। केंद्र और राज्य सरकार क्या जबाव देगी उन मांओं को जिनके घर का चिराग बुझ गया... क्या जवाब देगी उन बहनों को जिनकी राखियां कलाइयों को तरसेगी... विधवाओं की सूनी मांग चीख-चीख कर सवाल करेगी... बच्चों की मायूस निगाहें कई खामोश सवालात करेगी? सवाल सिर्फ सरकार से नहीं उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से भी किया जाएगा जो नक्सलियों के पैरवीकार हैं। महज एक दिन पहले ही देश के गृहमंत्री ने दावा किया था कि 2-3 साल में नक्सलियों का नामोंनिशां तक मिटा देंगे... और बस एक दिन बाद ही ये बयान देना पड़ा कि “सॉरी, कहीं न कहीं चूक हुई है।” चूक किसी की भी हो लेकिन कब तक चलेगा ये सब ? सरकार बैठक, समीक्षा और महज बयानबाजी कर अपनी जिम्मेवारियों से नहीं बच सकती। आखिर क्या वजह है कि नक्सली इतनी बड़ी संख्या में योजनाबद्ध तरिके से चक्रव्यूह रचते हैं और जवान उसमें आसानी से फंस जाते हैं। सरकार की खूफियां एंजेसियों और सुरक्षा व्यवस्था में जुटे लोगों को आईपीएल और सानिया-शोएब की शादी से शायद फुर्सत न मिल रही हो, तभी तो एक हजार नक्सली नाक के नीचे देश की सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देकर बच जाते हैं और नेताओं को शहीदों के शव पर सियासत का एक और सुनहरा मौका मिल जाता है। कई दशक बीत गए, नक्सली लगातार वारदात करते रहे और संसद के गलियारों तक पहुंचने वाले लोग अपनी-अपनी रोटियां सेकते रहे। चीन और पाकिस्तान से लोहा लेने का दावा करने वाली सरकार मुट्ठी भर नक्सलियों के आगे घुटने टेक देती है... ऐसे में हम अपनी सुरक्षा को लेकर कितनी उम्मीद रख सकते हैं। तमाम संसाधनों के होते हुए भी नक्सलियों के फन को नहीं कुचलना सरकार की लाचारी को बता रही है... या तो सरकार इस मुद्दे पर संजीदा नहीं है या फिर वो इस मुद्दे को खत्म नहीं होने देना चाहती ताकि इसी बहाने वो सियासत करते रहें। लेकिन सवाल उन जिंदगियों का है जो ‘लाल जंग’ की भेंट चढ़ गए... सवाल उन परिवारों का है जो शहीदों के भरोसे थे और सवाल आपकी-हमारी हिफाजत का है... कई सुलगते सवाल मन को सुलगा रहे हैं... लेकिन जवाब कुछ नहीं मिल रहा? दिल अब भी ये मानने को तैयार नहीं है कि हमने 76 जवानों को खो दिया है... छत्तीसगढ़ लहूलुहान हो गया है और हमारा मन भी।
कहां जायेगी परंपरा
प्रस्तुतकर्ता
ज्योति सिंह
on सोमवार, 5 अप्रैल 2010
लेबल:
ये कैसा रिश्ता ?
/
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बहुत दिनों बाद आखिर लिव-इन-रिलेशन को सही ठहराया गया है...और साथ ही भारतीय संस्कृति को एक चुनौती दे दी गयी है..... कि अब अगर लोग इस तरह के संबंधो में रहेंगे तो फिर भारतीय समाज की परिवार परंपरा का क्या रूप होगा ..... रिश्तों का स्वरूप क्या होगा...सारी परंपरा,रीति-रिवाज,भारतीयों के सोलह संस्कार का हश्र क्या होगा...रिश्तों की वो मीठी नोक-झोंक,सुख-दुख का वो अहसास,संघर्ष की कसक सब कुछ एक फैसले पर निर्भर करेगा ....कि अगर आपको ये सब अच्छा नई लग रहा है तो आप स्वतंत्र है आप इस रिलेशन को खत्म करके एक नये रिश्ते की शुरूआत कर सकते हैं .....कितना अजीब होगा ये फैसला जो हर रिश्ते को सामयिक तौर पर जियेगा....स्थायित्व की गंभीरता जिसे छू भी नई सकेगी....तमाम विसंगतियो के बीच भी आज हर औरत यही चाहती है कि उसका अपना संसार हो,परवाह करने वाला समझदार जीवन साथी हो पर इसका ये परिणाम कि केवल उनमुक्तता ही जीवन हो शायद कोई महिला ये कभी नही चाहेगी....फिर इस तरह का फैसला क्या साबित करेगा समाज में.....क्या इससे औरत की समाज में स्थिति सुधरेगी...क्या उस पर हो रहे अत्याचार कम होंगे...क्या वो अपने अस्तित्व को तलाश पायेगी...क्या अपनी सहमती से किसी पुरूष के साथ संबंध बना लेना ही किसी महिला के जीवन का उत्थान कर पायेगा...क्या वो अपने मन की शांति तलाश पायेगी....इन सबका जवाब किसी एक महिला की टिप्पणी पर करना कितना उचित होगा....ये तो हम सब महिला ही बता सकती हैं कि ये हमारी समाज में हालत सुधारेगा या बिगाड़ेगा....ऐसा नही लगता कि ये फैसला पुरूषों के हाथ में दो धार हथियार सौंप देगा....या फिर वेश्यावृत्ति की ही परंपरा का बड़ा रूप होगा....कई मुद्दें हैं सोचने के लिए सोचिये जरूर और सोच कर मेरी सोच को आकार दें ताकि मैंने जो सोचा उसे एक ठहराव दे सकूं......आखिर सवाल महिला का है सवाल हमारे अस्तित्व का है...........
कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
प्रस्तुतकर्ता
बेनामी
on शनिवार, 3 अप्रैल 2010
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Comments: (1)
बचपन में मैं फिल्म देखा करता था...कई फिल्मों की कहानी लगभग एक सी हुआ करती थी..एक हीरो होता था..एक हिरोइन होती थी और आधी फिल्म के बाद एक तीसरे किरदार की फिल्म में एंट्री होती थी...ये तीसरा किरदार या तो विलन होता था या कोई ऐसी लड़की जो हिरो हिरोइन के बीच में आकर कहानी में ट्विस्ट लाती थी..आजकल खूब जोर शोर से सानिया-शोएब की कहानी चल रही है...और जनाब माने या न माने मुझे तो कहानी पूरी फिल्मी लग रही है पर एक दुविधा में फसा हूं शायद आप मेरी इस दुविधा को मिटा सके....इस फिल्मी कहानी में ट्विस्ट तो आया है पर ये समझ में नहीं आ रहा कि आखिर किस ने किस के बीच एंट्री मारी है...क्या शोएब मलिक ने सनिया के पूर्व मंगेतर शोहराब के बीच में एंट्री मारी है या फिर सानिया-शोएब के बीच में अचानक आ गई आयशा..या जनाब इससे उलटा ये तो नहीं कि पिछले सात साल से चल रही आयशा-शोएब की लव स्टोरी में अचानक सानिया आ गई हो..या इस सबसे अलग सानिया..शोएब और आयशा के बीच शोएब की एक और ग्रर्ल फ्रेड दुबई में रहने वाली अंबर ने जोरदार एंट्री की हो..खैर इस फिल्मी कहानी में शोएब भी बिलकुल फिल्मी अंदाज में एक सच्चे हीरो की तरह दुबई से हैदराबाद पहुंच गए तो आय़शा ने भी शोएब को नोटिस पहुंचा कर बता दिया कि वो हार मानने वाली नहीं..खैर फिल्म चल रही है और हिट भी हो रही है पर अब बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि क्या ये शादी होगी अगर हां तो कितने दिन चलेगा ये रिश्ता...क्यों कि शोएब का चेहरा अब बेनकाब हो चुका है....खैर हमे क्या..मैं एक पत्रकार हूं आज तक मैने शादी नहीं की पर सही बताऊ मुझे इस शादी में बहुंत मजा आ रहा शायद इतना मजा मुझे अपनी शादी में न आए...आप लोग चाहें तो कह सकते हैं
बेगानी शादी में रोमल दिवाना...औऱ हम सब मिलकर इंतजार करते हैं कि अब इस कहानी में कौन एंट्री मारता है
रोमल भावसार
सब महंगा है बस जिंदगी सस्ती है ?
प्रस्तुतकर्ता
बेनामी
on शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010
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पिछले कुछ दिनों से बार बार कुछ ऐसा होता रहा कि मुझे एक बार ये सोचना पड़ा कि क्या मैं पत्रकार हूं ? औऱ अगर हां तो इंसान नहीं..मेरे लिए आज सब महंगा है बस जिंदगी सस्ती..न्यूज चैनल के न्यूज रूम में बैठकर हम तरह वक्त लाशों से खेलते हैं... इस पर कई दिनों से मैं सोच रहा था...जैसे मान लो कहीं कोई दुर्घटना हो गई और मेरे पास खबर आई कि बस और कार में टक्कर हो गई है हादसे में 1 की मौत गई औऱ कई घायल है.... तो मेरे लिए ये कोई खबर नहीं होती.....पर अगर मान लो हादसे में 5 मर गए तो ये खबर है.....,लेकिन अगर मरने वालों की संख्या 20 हो गई तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खबर बन जाती और अगर 50 ने जान गवांई है तो फिर मेरे लिए ये ब्रेकिंग न्यूज है.......ऐसा लगभग हर हफ्ते होता है मैं लाशों पर बैठकर पत्रकारिता करता हूं...इसी तरह मान लिजिए किसी ने किसी की हत्या कर दी तो आम बात है..... पर अगर दोस्त ने दोस्त की हत्या कर दी तो ये खबर बन जाती है..... इससे एक कदम आगे अगर भाई ने बहन की हत्या की हो तो ये बड़ी खबर होती है.... औऱ अगर किसी पिता ने बीबी समेते पूरे परिवार की हत्या कर दी हो तो ये ब्रेकिंग न्यूज होती है.......पत्रकारिता के हर कदम पर मेरा सामना लाशों से होता है.....अगर मेरे घर में एक मौत हो जाती तो मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं होती कि उस खबर पर यकीन करू... पर पत्रकारिता की आड़ में मेरे लिए जितनी लाशे होती हैं उतना ही ज्यादा वो खबर बिकाउ होती है... तो अब आप बताएं मैं या तो पत्रकार हो सकता हूं या इंसान....संभव ही नहीं कि दोनों रहूं.....इसी तरह किसी की शादी हो तो खबर नहीं बनती पर... अगर शादी राखी सांवत की हो तो ये खबर होती है... इससे आगे अगर शादी राहुल महाजन की हो तो बड़ी खबर है...पर इससे ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि अगर शादी न हो पाए और सानिया की सगाई टूट जाए तो ये होती है ब्रेकिंग न्यूज...और अगर टूटने के बाद दोबारा सानिया की शादी पाकिस्तानी खिलाड़ी से तय हो जाए तो बिग ब्रेकिंग न्यूज....कुल मिलाकर बनते बिगड़ते रिश्तों पर खबरे बनती हैं और बिगड़ती हैं.....पर बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि क्या इन सब के बीच हम अपनी मुख्य समस्याएं भूल रहे हैं क्या..आज चीनी महंगी है...सब्जी महंगी है पर खबरों के लिए जिंदगी सस्ती है....आज चौतरफा सानिया की बात हो रही है....मोदी की बात हो रही है....अमर-अमिताभ की भी बात हो रही है पर महंगाई का मुद्दा कहीं दब सा गया है..सानिया-शोएब की शादी हो या न हो....मोदी दोषी करार दिए जाए या नहीं..अमर-अमिताभ और कांग्रेस में दोस्ती हो या दुश्मनी आप मुझे ये बताईए इससे देश को क्या फायदा होगा..महंगाई वही है..वेरोजगारी कम नहीं हो रहीं..आज भी कई मां वाप इस उम्मीद में रात को सोते हैं कि सुबह उनका बेटा कुछ पैसा पुहंचाएंगा तो घर का राशन लाएंगे..पर बेटा मुंबई में पिट रहा है क्यों कि वो उत्तरभारतीय है उसे न नौकरी मिल रही और कोई उसे परीक्षा दे रहा...कुपोषण से बच्चे मर रहे हैं और मैं एक पत्रकार के नाते सानिया...मोदी..अमिताभ....अमर जैसी चीजों के एहमियत देता हूं.....तो सवाल यही पैदा होता है क्या मैं पत्रकार हूं अगर हां तो इंसान नहीं...
'बेगाने' की शादी में अबदुल्ला दीवाना
प्रस्तुतकर्ता
राजीव कुमार
लेबल:
राजीव कुमार,
सानिया,
सीधी बात
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सानिया मिर्जा और पाकिस्तान के क्रिकेटर शोएब मलिक के निकाह बात तो आप जानते ही होंगे। जानेंग कैसे नहीं... आखिर अखबारों के पन्ने और न्यूज चैनल्स सानिया को सनसनी जो बनाए हुए हैं। देशभर में कई अहम ख़बरें हैं मसलन जनगणना-2011 की शुरुआत और पढ़ाई का हक कानून का लागू होना... लेकिन इसमें मसाला नहीं है... और टीआरपी के लिए मसाला तो जरूरी है... लिहाजा वो सबकुछ दिखाइए जिसे देखकर लोगों को चटपटा लगे। न्यूज चैनलों में तो सानिया की शादी... दावत.. यहां तक की हनीमून तक की सरगर्मी चल रही है। इस बात को भी चटखारे लगाकर परोसा जा रहा है कि लाहौर में निकाह के बाद वो वापस हैदराबाद लौटेंगी या हनीमून के लिए मॉरीशस या सेशेल्स रवाना होंगी? इधर हिंदी फिल्मों की तरह 'वो' फैक्ट की भी एंट्री हो चुकी है। भावी मियां-बीवी के बीच एक और आ गई है और अपना दावा जता रही है... तो चैनलों पर इस बात की बहस भी है कि तथाकथित निकाह वैध है भी या नहीं। आयशा और शोएब की मुलाकात 2001 में दुबई में एक रेस्तरां में हुई थी और बाद में चैटिंग के जरिए प्यार परवान चढ़ा... और फोन पर ही निकाह हो गया। लेकिन गड़बड़ी तब हो गई जब शोएब को ये पता चला कि जिसे समझकर ये सबकुछ हुआ... वास्तव में वो लड़की कोई और थी। इधर, भविष्य में सानिया के भारत या पाकिस्तान से खेलने पर भी खूब हो हल्ला हो रहा है। तो बहू की छोटी स्कर्ट पर होनेवाली सास की नाराजगी भी मसाला साबित हो रही है। यानि चैनलों को मसाले की दरकार थी तो हो लिए 'बेगाने' की शादी में अबदुल्ला दीवाना.. क्यों आप क्या कहते हैं?
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