तिरंगा पर तनातनी

इस साल का गणतंत्र कहीं से भी दिल को सुकून देने वाला नहीं रहा है। यूं कहें, कि सवालों का सैलाब स्वाभिमान और देशप्रेम के साथ राष्ट्र के सम्मान को विनाशकारी बाढ़ सरीखा अपनी चपेट में ले चुका है। अनेकता में एकता की दुहाई पर सवाल, संस्कृतियों के मेल पर सवाल, अमन-चैन पर सवाल, सामने मौजूद हैं बस सवाल ही सवाल , अनगिनत सवाल। जरा सोचिए देश के हर हिस्से में झंडा फहराने की छूट है, तो घाटी में क्यों नहीं? लाल आतंक ने देश के कई हिस्सों में उथल-पुथल मचा रखा है। अब तो लाल चौक भी आतंक का पर्याय माना जा रहा है, और वो भी आधिकारिक तौर पर। केंद्र और जम्मू-कश्मीर की सरकार ने इस पर मुहर भी लगा दी है। भगवा ब्रिगेड की तिरंगा यात्रा का मकसद भले ही सियासी हो, लेकिन उसका जुड़ाव तिरंगे की अस्मिता से भी था । देश का हर नागरिक हर हिस्से में तिरंगा फहराने का संवैधानिक अधिकार रखता है, तो आखिर लाल चौक पर अलगाववादियों का सियासी फतवा असरदार क्यों रहा ?  प्रधानमंत्री और उमर अब्दुल्ला के मुताबिक लाल चौक पर झंडा फहराना कोरी राजनीति थी। उनको इससे घाटी में विधि व्यवस्था पर संकट मंडराता नजर आया। अलगाववादियों का दमखम उनको सुरक्षा इंतजामों पर भारी दिखता है। तो क्या कल ये अलगाववादी लाल किले की प्राचीर पर झंडात्तोलन को नाजायज करार देंगे, तो भी केंद्र सरकार का रुख ऐसा ही  होगा। अलगाववादी नेताओं के तार सीधे तौर पर पाकिस्तान से जुड़े हैं, ऐसे में साफ है, कि अमन-चैन को लेकर खास तौर पर फिक्रमंद केंद्र की सरकार आने वाले कल में कश्मीर मसले पर पाक के सामने नतमस्तक हो सकती है। रही बात भाजपा की एकता यात्रा, यानि तिरंगा अभियान की, तो निसंदेह इसके पीछे देशप्रेम की झलक कम और सियासी फायदा लेने की ख्वाहिश ज्यादा दिख रही है। लेकिन मुद्दा ये नहीं, कि उनकी मंशा क्या रही है?, मुद्दा ये है, कि राष्ट्र का सम्मान हर हाल में सर्वोपरि है। इस सम्मान को बचाने का विकल्प  भी सामने था, कि उस जगह झंडा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला या केंद्र का कोई दूसरा सिपहसालार फहरा देता। इससे अलगाववादियों को भी एक संदेश मिल जाता, कि देश के सम्मान की कीमत पर उनके साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। सरकार का फर्ज है, कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों के दिल में संविधान के प्रति आस्था का भाव भरे। तिरंगा यात्रा को लेकर जिस तरह की नीति सरकार ने अपनाई है। उससे तो लगता है, कि जयहिंद कहने से पहले इसका ख्याल रखना होगा, कि कहीं इससे विधि व्यवस्था के लिए संकट तो पैदा नहीं हो रहा। भगवा ब्रिगेड की सियासत को दरकिनार कर इस मसले पर हर भारतीय को सोचना होगा। क्यों कि सवाल देश से जुड़ा है, सवाल राष्ट्र के सम्मान का है, सवाल आपका है ।


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