आदरणीय
बापू,
बापू तुम कहां हो ? हम तुम्हें अक्सर चौक चौराहों पर मूर्तियों के रूप में खड़े देखते हैं,लेकिन तुम से बात नहीं कर पाते। बापू तुम लौट क्यों नहीं आते ? एक बार लौट आओ न बापू। सच कहता हूं बापू। अब सहन नहीं होता। दिल कचोट कर रह जाता है। बहुत बात करनी है बापू तुमसे। एक दो नहीं हजारों ऐसी बातें हैं। जो सिर्फ और सिर्फ तुम ही समझ सकते हो। देखो न बापू तुम्हारे हिंदुस्तान की क्या हालत हो गई है ? तुमने हमें कुटीर उद्योग का मंत्र दिया था। बापू हम नहीं मानें। आज पूरे देश में हाहाकार मचा है। बापू किससे कहूं कि आज इंसान...इंसान पर विश्वास नहीं कर पा रहा। तुमने पंचायती राज का सपना दिखाया था, लेकिन पंचायती राज के नाम पर आज जो लोग कुर्सी पर बैठे हैं। उनका नाम शर्म के मारे लिया नहीं जाता। बापू हम जानते हैं। तुम्हें दुख होता होगा। बताओ न बापू हम क्या करे? हम वोट देने ज़रूर जाते हैं, लेकिन चेहरों के अलावा कभी कुछ बदलते आजतक नहीं देखा बापू। दरिया, समंदर, धरती, आकाश। सभी तुम्हारा फिर से इंतजार कर रहे हैं। बापू तुम ये मत सोचना कि हम तुम्हें सिर्फ दो अक्टूबर और तीस जनवरी को ही याद करते हैं। यकीन मानो बापू। जब कभी राम का नाम लेकर हमारे पास कोई वोट मांगने आता है। तुम हमें याद आने लगते हो। जब कभी राम का नाम लेकर कोई सिरफिरा किसी लड़की , किसी मासूम पर जुल्म ढाहता है। तुम हमें याद आने लगते हो। क्या -क्या कहूं बापू। तुमने हमें जीने का मंत्र सिखाया था, लेकिन हमारे गुरू अब पश्चिम वाले हो गए हैं। उनकी बातों को ज्यादा वजन दी जाने लगी है बापू। हम जानते हैं बापू तुम लौटकर नहीं आ सकते। फिर भी सोचता हूं बापू तुम जहां हो वहीं ठीक हो। आज का हिंदुस्तान अब तुम्हारे रहने लायक नहीं रह गया है। किस-किस को समझाओगे तुम। कौन तुम्हारी सुनेगा। अब बस बापू। इतना ही कहना चाहता हूं कि, काश तुम लौट पाते ?
बापू तुम कहां हो ? हम तुम्हें अक्सर चौक चौराहों पर मूर्तियों के रूप में खड़े देखते हैं,लेकिन तुम से बात नहीं कर पाते। बापू तुम लौट क्यों नहीं आते ? एक बार लौट आओ न बापू। सच कहता हूं बापू। अब सहन नहीं होता। दिल कचोट कर रह जाता है। बहुत बात करनी है बापू तुमसे। एक दो नहीं हजारों ऐसी बातें हैं। जो सिर्फ और सिर्फ तुम ही समझ सकते हो। देखो न बापू तुम्हारे हिंदुस्तान की क्या हालत हो गई है ? तुमने हमें कुटीर उद्योग का मंत्र दिया था। बापू हम नहीं मानें। आज पूरे देश में हाहाकार मचा है। बापू किससे कहूं कि आज इंसान...इंसान पर विश्वास नहीं कर पा रहा। तुमने पंचायती राज का सपना दिखाया था, लेकिन पंचायती राज के नाम पर आज जो लोग कुर्सी पर बैठे हैं। उनका नाम शर्म के मारे लिया नहीं जाता। बापू हम जानते हैं। तुम्हें दुख होता होगा। बताओ न बापू हम क्या करे? हम वोट देने ज़रूर जाते हैं, लेकिन चेहरों के अलावा कभी कुछ बदलते आजतक नहीं देखा बापू। दरिया, समंदर, धरती, आकाश। सभी तुम्हारा फिर से इंतजार कर रहे हैं। बापू तुम ये मत सोचना कि हम तुम्हें सिर्फ दो अक्टूबर और तीस जनवरी को ही याद करते हैं। यकीन मानो बापू। जब कभी राम का नाम लेकर हमारे पास कोई वोट मांगने आता है। तुम हमें याद आने लगते हो। जब कभी राम का नाम लेकर कोई सिरफिरा किसी लड़की , किसी मासूम पर जुल्म ढाहता है। तुम हमें याद आने लगते हो। क्या -क्या कहूं बापू। तुमने हमें जीने का मंत्र सिखाया था, लेकिन हमारे गुरू अब पश्चिम वाले हो गए हैं। उनकी बातों को ज्यादा वजन दी जाने लगी है बापू। हम जानते हैं बापू तुम लौटकर नहीं आ सकते। फिर भी सोचता हूं बापू तुम जहां हो वहीं ठीक हो। आज का हिंदुस्तान अब तुम्हारे रहने लायक नहीं रह गया है। किस-किस को समझाओगे तुम। कौन तुम्हारी सुनेगा। अब बस बापू। इतना ही कहना चाहता हूं कि, काश तुम लौट पाते ?
1 टिप्पणियाँ:
बापू तो आ नहीं सकते ...पर बापू जैसा बनाने का प्रयास करना होगा ।
एक टिप्पणी भेजें