भच्च हो गया लोकतंत्र का मंदिर



(वैधानिक चेतवानी-ये एक व्यंग्य लेख है और इसमें इस्तीफा की मांग करने वाला किरदार भाजपा नेता सुषमा स्वराज का है, इस्तीफा नहीं देने की मांग पर अड़े शख्स का किरदार पीएम मनमोहन सिंह का है और देवीस्वरुपा मैडम का किरदार सोनिया गांधी का है)
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मुझे इस्तीफा चाहिए,नहीं मैं इस्तीफा नहीं दूंगा। देखो मुझे इस्तीफा से कम मंजूर नहीं है,तो तुम भी कान खोलकर सुन लो,इस्तीफा को कोई तुम्हारे खेत की मूली नहीं है,जो तुमने मांगा और मैंने उखाड़ कर दे दिया। देखो इस्तीफा भले ही जनता की खेत की मूली हो,पर मुझे चाहिए। आखिर मुझे भी जनता को जवाब देना है। इस्तीफा शब्द की दीवानी,तुम ये क्यों नहीं समझती कि,मुझे भी तो मैडम दस जनपथ का ख्याल रखना है। तुम ही बताओ क्या मैडम ने मुझे इस्तीफा देने के लिए चुना था, उन्हें मुझ पर भरोसा है और मैं उनके भरोसे को अपना दामन दागदार कर करके भी कामय रखने की कसम ले चुका हूं। मैं तुम्हें भी उस मातास्वरुपा मैडम का वास्ता देकर कहता हूं, ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो,पर मुझसे न मांगो ये वजीरेआजम की कुर्सी। अरे तुम कितने बेशर्म हो,कोई तुम्हें अंडर अचीवर कहता है,कोई तुम्हें तुम्हरी मैडम का कठपुतली और कोई तुम्हारी साख पर ही बट्टा लगा रहा है। फिर भी तुम खामोश हो। देखो तुम भी तो कम नहीं,मेरी खामोशी को मेरी कमजोरी समझ रही हो। तुम्हें मैं कैसे समझाऊ,अगर मेरी मेरी जुबान खुली तो मेरे कई साथियों के नकाब तो उतरेंगे ही तुम्हारे भी लगुआ-भगुवाओं की उतर जाएगी। अच्छा तो तुम इस्तीफा नहीं दोगे। कहा न नहीं दूंगा। तुम एक बात बताओ,तुम भी जानती हो की इस हमाम में सभी नंगे हैं तो तुम इस्तीफा मांगने पर क्यों टिकी हो,चलो इस्तीफा छोड़ो चर्चा कर लो। इससे तुम्हारे और मेरे भोले-भाले जनता को भी ये विश्वास हो जाएगा कि, चलो अब तो कुछ हल निकलेगा और इधर,इसी बहाने तुम्हारी भी जय-जय,हमारी भी जय-जय। अरे तेरी जय-जय की तो ऐसी-तैसी करू मैं। मैं समझ रही हूं कि,तुम्हारा इशारा हमारी पार्टी के कुछ राज्यों के मुखिया पर है। देखो मुझे 2014 में तुम्हारी गद्दी पर काबिज होना है और इसके लिए अगर एकाध राजनीतिक बलि भी देनी पड़ी तो मैं देने को तैयार हूं। छी छी कितनी बुरी नियत है तुम्हारी। देखो मैं तुमसे उम्र में बड़ा हूं और इस देश का वजीरेआजम होने के नाते नहीं बल्कि अनुभवों के आधार पर तुम्हें फ्री में एक सलाह दे रहा हूं। नहीं अगर देना है तो इस्तीफा दो। बड़ी नासमझ हो। तुम और तुम्हारी पार्टी इसी वजह से सत्ता में नहीं आ पा रही। बाबा अटल के बीमार होने के बाद तुम सब बेलगाम हो गए हो। देखो ध्यान भटकाने की कोशिश मत करो। कोयले की कालिख से बचने के लिए तुमने पहले ही प्रमोशन में आरक्षण बिल का सहारा ले लिया है। कितने गिर गए हो तुम। कोयले की कालिख से मैं तो पूरी तरह काला हो चुका हूं और रही बात गिरने की,तो मैं साल दो हजार चार के बाद खुद से खड़ा ही कहां हुआ हूं। वो तो अपनी देवीस्वरुपा मैडम हैं। जिनके सहारे मैं टिका हुआ हूं। खैर तुम इन बातों में मत उलझो,मैं तुम्हें मुफ्त में एक नसीहत दे रहा हूं। तुम प्रधान की कुर्सी पर बैठने का ख्वाब मत पालो और तुम भी इस बात को जानती हो कि,तुम्हारी पार्टी में इस कुर्सी पर बैठने के लिए कितने निजाम ललायित हैं। जानती हो इस कुर्सी की हालत कैसी है। हां चलो जल्दी बताओ कैसी? तुमने गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट वन की प्रोमो देखी थी। अगर नहीं तो मैं बताता हूं। फिल्म के प्रोमो में मनोज वाजपेयी यानी सरदार खान कहता है कि, वो रामाधीर सिंह यानी तिग्मांशु धुलिया की कह के लेंगे लेकिन फिल्म के अंदर सरदार खान का बेटा रामाधीर सिंह की कह के लेता है। यानी प्रोमो में जो दिखाई पड़ता है,वो फिल्म में नहीं है। एक लाइन में कहूं तो स्प्राइट का वो विज्ञापन तुम्हें याद है दिखावे पर मत जाओ अपनी अक्ल लगाओ। इसीलिए कुर्सी का ख्वाब छोड़ दो,बड़ी फजीहत है। मुझे उपदेश मत दो। जबतक इस्तीफा नहीं दोगे मैं लोकतंत्र के मंदिर में हंगामा करती रहूंगी। ठीक है तुम हंगामा अब सड़क पर जाकर करो क्योंकि तुम्हारे इस्तीफे और शोर-शराबे में सत्र की समय सीमा खत्म हो चुकी है। अगले आदेश तक। मिलते हैं एक ब्रेक के बाद...क्योंकि इस बार तो लोकतंत्र के इस मंदिर के सत्र को तुम्हारे इस्तीफे की मांग ने भच्च कर दिया।

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