अरी ओ मुन्नी की
मां, कहां हो ? और अपनी लाडली बिटिया कहां है ? क्या हुआ ? मुन्नी पढ़ाई कर
रही है । अगले महीने सरकारी नौकरी का जो एग्जाम है उसी की तैयारी कर रही है अपनी
लाडो और हां, एक बात और सुन लो तुम वक्त बेवक्त मेरी बिटिया को पढ़ाई के समय डिस्टर्ब
न किया करो। लो जी कर लो बात, भलाई का तो जमाना रहा ही नहीं । मैं कहां मुन्नी की
बेहतरी के लिए बेचैन हो रहा हूं, और मुन्नी की मां मुझ पर ही खा-म-खा गुस्सा हो
रही है। अच्छा अब जलेबी की तरह घुमावदार बातें न करो । क्यों हाय तौबा मचाए हो
बताओ ? पहले मुन्नी को बुलाओ ? जो मुझे कहना है वो लाडो ही समझ सकती है, लाडो
की अम्मा नहीं । क्या हुआ मां, क्या हुआ पापा ? अरे बिटिया एक बार
फिर से मनमोहन के मुकुट के कुछ मोती बदल गए हैं । पापा...मनमोहन तक तो समझ
में आ गया पर ये मुकुट और उसके कुछ मोती
से आपका क्या मतलब है ? अरे मेरी भोली भाली लाडो। अगर सरकारी नौकरी कर ई
युग में तू तरक्की की ख्वाहिश रखती हो तो जरा मेरी जलेबीदार बातों को समझा करो, आगे
काम आवेगा । मुकुट और मोती का अर्थ है ‘मंत्रिमंडल और
मंत्री’। एक और रट्टा मार लो कि, मंत्रिमंडल में कुछ
मोती को प्रमोशन मिला है और कुछ का डिमोशन हुआ है, और जिन मोतियों की चमक फिकी पड़
गई थी , उसे आंगन की रखवाली के लिए बुला लिया गया है। यानी पापा...अब फिर से मुझे
मुकुट के कुछ नए मोतियों के नाम और पोर्टफोलियों को याद करने होंगे । पर पापा...एक
बात बताओ कि, जब पिछली बार मनमोहन सिंह ने कैबिनेट का विस्तार किया था तो वो बोले
थे कि, आखिरी बदलाव है । तो फिर ऐसा क्या हो गया, जो उन्हें अपनी बातों से पलटना
पड़ा । प्रश्न तो तुम्हारा बहुत ही जायज है बिटिया, पर तुम अपनी जेहन में एक बात
अच्छी तरह बिठा लो कि, गाड़ी का पहिया (चक्का) और सफेदपोशों की जुबान जितनी बार
पलटे, अच्छा माना जाता है। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि, इस बार भी पिछली
बार की तरह अपने प्रधानमंत्री महोदय ने इसे 2014 तक के लिए आखिरी बदलाव बताया है।
मुन्नी के पापा...वो अपने राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी मनमोहनी मुकुट के मोती
बने की ना ही ? मेरी भाग्यवती राहुल में बड़ी दिलचस्पी है
तुम्हारी ? बात दिलचस्पी की नहीं है जी। वो पिछले दफे मैंने
कैबिनेट विस्तार के बाद टीवी पर मनमोहन सिंह को ये कहते सुना था कि, राहुल के
मंत्रिमंडल में नहीं शामिल होने के फैसले से वो बहुत आहत हैं और आप भी तो कहते थे,
लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी मंत्री बनेंगे । भाग्यवान तुम्हारी बातें सौ
फीसदी सही हैं पर त्रासदी देखो, इस बार भी मनमोहन सिंह ने मुकुट में नए नवेले
मोतियों को जड़ने के बाद यही कहा है कि, आम चुनाव से पहले का ये आखिरी बदलाव है ।
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, राहुल के उनके मुकुट के मोती नहीं बनने का उन्हें
बेहद मलाल है । अच्छा पापा...तो कैबिनेट में इस बार राहुल की छाप दिखी की नहीं ? बिटिया ये सब सियासी बातें हैं । इक्का दुक्का
चेहरों को छोड़, मुझे तो कोई नहीं राहुल की टीम का नजर आता है। हां एक बात जो मुझे
लग रही है, वो ये कि, सब के सब गांधी फैमिली के वफादार हैं। कुल मिलाकर ये समझ लो “ मनमोहन रूपी पुरानी बोटल में सोनिया और राहुल
रूपी मदिरा का कॉकटल भरा गया है ” और इसी की बदौलत
भारत को समझने वाले राहुल रूपी कांग्रेस के तथाकथित युवराज 2014 में सत्ता की
कुर्सी का लगाम अपनी हाथों में लेना चाहते हैं । खैर बिटिया फिलहाल तो तुम अपडेट
हो जाओ, क्या पता अगले एग्जाम में मुकुट के मोती से जुड़े कुछ प्रश्न आ जाए ? और लाडो की मां तुम भी इस फेरबदल के फेर में न
ही उलझो तो अच्छा होगा, क्योंकि सियासत में लकीर सीधी नहीं ढेढ़ी-मेढ़ी होती है ।
चलो चाय बनाओ। अदरक डाल के।
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
सवालों का लेखा जोखा
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'फना' हो गया 'मोहब्बत का महताब'
प्रस्तुतकर्ता
राज किशोर झा
on सोमवार, 22 अक्टूबर 2012
" तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं, वफा कर रहा हूं वफा चाहता हूं " "वो मेरे पति हैं और वो
मेरा प्यार है" "मैं उससे बेपनाह मोहब्बत
करती हूं और उसके लिए मैं करोड़ों की दौलत को लात मार सकती हूं" "तुम उससे
प्यार करते हो, तो फिर तुमने बिना इजहार किए ही ये कैसे सोच लिया
कि, वो तुम्हें नहीं चाहती" "पापा मैं आपसे झूठ नहीं बोल
सकती और उसके प्यार के बगैर मैं जिंदा नहीं रह सकती" "नयनों के काजल से बादल में रंग भरने वाले" ये सोच या फिर ये कहें कि,ये
अल्फाज उस शख्स के हैं, जिसने दुनिया को मोहब्बत के हर उस पहलू
से रु-ब-रु कराया । जिसे हर आम और खास अपना महसूस करता रहा और आगे भी करता रहेगा ।
आप समझ ही गए होंगे कि, मैं रोमांस के राजा, किंग्स और रोमांस, मोहब्बत के महताब और न जाने कितने
उपाधियों से पुकारे जाने वाले मशहूर निर्माता-निर्देशक यश राज चोपड़ा की बात कर रहा
हूं। कहते हैं वक्त अमूमन किसी का साथ नहीं देता और दाग अच्छे नहीं होते । मगर यश जी
बॉलीवुड में शायद पहले ऐसे शख्स हुए जिनका वक्त ने पहले कदम पर साथ भी दिया और लोगों
को दाग भी अच्छे लगने लगे । कल्पना की माया को वास्तविकता में परिणत करना हो,
या फिर दो नायिकाओं के बीच में नायक को सामंजस बिठाने की बात । नायक
को निगेटिव किरदार देकर मोहब्बत का मसीहा बना देना और एक अदने से इंसान को एंग्री यंग
मैन की छवि में ढाल देना । कुछ ऐसी ही प्रतिभा के धनी थे भारतीय सिनेमा के यश । मोहब्बत
है क्या चीज ? ये एक ऐसा सवाल है, जिसका
जवाब बॉलीवुड में हर किसी ने अपने तरीके से दिया है लेकिन जितने अंदाज मोहब्बत को रुपहले
पर्दे पर निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा ने परिभाषित किया अभी तक कोई और नहीं कर पाया
है । फिल्म दाग से प्यार की कहानी को पर्दे पर उकेरने का सिलसिला जिस जोशीले अंदाज
में यश साहब ने शुरू किया और जिस बखूबी से उन्होंने मोहब्बत से जुड़ी हर सवाल का दिया
। उसे जब तक है जान भूला पाना नामुमकिन है । यश चोपड़ा ने बॉलीवुड में रोमांस का ऐसा
ताना बाना बुना कि, भारतीय सिनेमा में यश चोपड़ा लब्ज का इजाद
हो गया । यश जी ने न सिर्फ मानवीय प्रेम को ही पर्दे पर उतारा बल्कि,प्रकृति की सौंदर्य के प्रति भी लोगों का फिल्मों के जरिए लगाव बढ़ाया । सिनेमाई
जगत में जब भी पीली सरसों की खेत और स्विट्जरलैंड की हसीन वादियां का जिक्र होगा ।
यकीन मनिए तब तब यश की चर्चा होगी । वक्त के
साथ मोहब्बत के इस महताब ने जो सिलसिला शुरू किया वो थम जरूर गया है, पर जब तक है जान उन्हें भुलाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । क्योंकि मोहब्बत
के महताब मरा नहीं करते फना होते हैं । हमेशा अपनी विचारों से लेखन का अंत किया जाता
है, मगर इस लेखन का अंत मैं यश साहब के उस अल्फाज और संवाद से
करना चाहता हूं जो उनके हैं सिर्फ उनके ।
" तेरी आंखों की नमकीन मस्तियां
तेरी हंसी की बेपरवाह गुस्ताखियां
तेरी जुल्फों की लहराती अंगराइयां
नहीं भूलूंगां मैं
जब तक है जान,जब तक है जान"
"तेरा हाथ से हाथ छोड़ना
तेरा साथों का रूख मोड़ना
तेरा पलट के फिर न देखना
नहीं माफ करूंगा मैं
जब तक है जान,जब तक है जान"
"बारिशों में तेर बेधड़क नाचने से
बात बात पर बेवजह तेरे रुठने से
छोटी छोटी तेरी बचकानी बदमाशियों से
मोहब्बत करूंगा मैं
जब तक है जान,जब तक है जान"
"तेरे झूठे कसमें वादों से
तेरे जलते सुलगते ख्वाबों से
तेरी बेरहम दुआओं से
नफरत करूंगा मैं
जब तक है जान,जब तक है जान"
"मेरी ढेढ़ी मेढ़ी कहानियां
मेरी ढेढ़ी मेढ़ी कहानियां
मेरे हंसते रोते ख्वाब
कुछ सुरीले बेसुरे गीत मेरे
कुछ अच्छे बुरे किरदार
वो सब मेरे हैं,वो सब मेरे हैं
तुम सब में मैं हूं
बस भूल मत जाना
याद रखना मुझे सब
जब तक है जान,जब तक है जान
संकट में लाड़ली
प्रस्तुतकर्ता
महेश मेवाड़ा
on मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012
/
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ये तो महज वो मामले हैं जो ताजा है और लोगों के जेहन में जिंदा भी है। अगर आंकड़ों की बात करें तो मध्य प्रदेश में एक जनवरी 2012 से 20 जून 2012 तक यानी 170 दिनों में कुल 1,687 महिलाओं की आबरू तार-तार हुई। जिनमें 858 नाबालिग हैं, यानी हर दिन 5 लाडलियों को प्रदेश में कहीं-न-कहीं ज्यादती का शिकार होना पड़ रहा है।प्रदेश के गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में जो जानकारी दी, ये आंकडे उन्हीं की बानगी है। इतना ही नहीं NCRB यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देश में साल 2011 में बलात्कार के कुल 24,206 मामले सामने आए। और यहां भी बलात्कार के मामलों में मध्य प्रदेश सबसे आगे रहा। जहां 1,262 मामले दर्ज हुए। बहरहाल इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में लाड़लियां कितनी सुरक्षित हैं। ये आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंता की बात भी हैं और गुस्से की वजह भी। महेश मेवाड़ा पत्रकार
ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना ?
प्रस्तुतकर्ता
राज किशोर झा
on सोमवार, 1 अक्टूबर 2012
लेबल:
देश,
बापू,
मोहन दास करमचंद गांधी,
समाज
/
Comments: (1)
आदरणीय
बापू,
बापू तुम कहां हो ? हम तुम्हें अक्सर चौक चौराहों पर मूर्तियों के रूप में खड़े देखते हैं,लेकिन तुम से बात नहीं कर पाते। बापू तुम लौट क्यों नहीं आते ? एक बार लौट आओ न बापू। सच कहता हूं बापू। अब सहन नहीं होता। दिल कचोट कर रह जाता है। बहुत बात करनी है बापू तुमसे। एक दो नहीं हजारों ऐसी बातें हैं। जो सिर्फ और सिर्फ तुम ही समझ सकते हो। देखो न बापू तुम्हारे हिंदुस्तान की क्या हालत हो गई है ? तुमने हमें कुटीर उद्योग का मंत्र दिया था। बापू हम नहीं मानें। आज पूरे देश में हाहाकार मचा है। बापू किससे कहूं कि आज इंसान...इंसान पर विश्वास नहीं कर पा रहा। तुमने पंचायती राज का सपना दिखाया था, लेकिन पंचायती राज के नाम पर आज जो लोग कुर्सी पर बैठे हैं। उनका नाम शर्म के मारे लिया नहीं जाता। बापू हम जानते हैं। तुम्हें दुख होता होगा। बताओ न बापू हम क्या करे? हम वोट देने ज़रूर जाते हैं, लेकिन चेहरों के अलावा कभी कुछ बदलते आजतक नहीं देखा बापू। दरिया, समंदर, धरती, आकाश। सभी तुम्हारा फिर से इंतजार कर रहे हैं। बापू तुम ये मत सोचना कि हम तुम्हें सिर्फ दो अक्टूबर और तीस जनवरी को ही याद करते हैं। यकीन मानो बापू। जब कभी राम का नाम लेकर हमारे पास कोई वोट मांगने आता है। तुम हमें याद आने लगते हो। जब कभी राम का नाम लेकर कोई सिरफिरा किसी लड़की , किसी मासूम पर जुल्म ढाहता है। तुम हमें याद आने लगते हो। क्या -क्या कहूं बापू। तुमने हमें जीने का मंत्र सिखाया था, लेकिन हमारे गुरू अब पश्चिम वाले हो गए हैं। उनकी बातों को ज्यादा वजन दी जाने लगी है बापू। हम जानते हैं बापू तुम लौटकर नहीं आ सकते। फिर भी सोचता हूं बापू तुम जहां हो वहीं ठीक हो। आज का हिंदुस्तान अब तुम्हारे रहने लायक नहीं रह गया है। किस-किस को समझाओगे तुम। कौन तुम्हारी सुनेगा। अब बस बापू। इतना ही कहना चाहता हूं कि, काश तुम लौट पाते ?
बापू तुम कहां हो ? हम तुम्हें अक्सर चौक चौराहों पर मूर्तियों के रूप में खड़े देखते हैं,लेकिन तुम से बात नहीं कर पाते। बापू तुम लौट क्यों नहीं आते ? एक बार लौट आओ न बापू। सच कहता हूं बापू। अब सहन नहीं होता। दिल कचोट कर रह जाता है। बहुत बात करनी है बापू तुमसे। एक दो नहीं हजारों ऐसी बातें हैं। जो सिर्फ और सिर्फ तुम ही समझ सकते हो। देखो न बापू तुम्हारे हिंदुस्तान की क्या हालत हो गई है ? तुमने हमें कुटीर उद्योग का मंत्र दिया था। बापू हम नहीं मानें। आज पूरे देश में हाहाकार मचा है। बापू किससे कहूं कि आज इंसान...इंसान पर विश्वास नहीं कर पा रहा। तुमने पंचायती राज का सपना दिखाया था, लेकिन पंचायती राज के नाम पर आज जो लोग कुर्सी पर बैठे हैं। उनका नाम शर्म के मारे लिया नहीं जाता। बापू हम जानते हैं। तुम्हें दुख होता होगा। बताओ न बापू हम क्या करे? हम वोट देने ज़रूर जाते हैं, लेकिन चेहरों के अलावा कभी कुछ बदलते आजतक नहीं देखा बापू। दरिया, समंदर, धरती, आकाश। सभी तुम्हारा फिर से इंतजार कर रहे हैं। बापू तुम ये मत सोचना कि हम तुम्हें सिर्फ दो अक्टूबर और तीस जनवरी को ही याद करते हैं। यकीन मानो बापू। जब कभी राम का नाम लेकर हमारे पास कोई वोट मांगने आता है। तुम हमें याद आने लगते हो। जब कभी राम का नाम लेकर कोई सिरफिरा किसी लड़की , किसी मासूम पर जुल्म ढाहता है। तुम हमें याद आने लगते हो। क्या -क्या कहूं बापू। तुमने हमें जीने का मंत्र सिखाया था, लेकिन हमारे गुरू अब पश्चिम वाले हो गए हैं। उनकी बातों को ज्यादा वजन दी जाने लगी है बापू। हम जानते हैं बापू तुम लौटकर नहीं आ सकते। फिर भी सोचता हूं बापू तुम जहां हो वहीं ठीक हो। आज का हिंदुस्तान अब तुम्हारे रहने लायक नहीं रह गया है। किस-किस को समझाओगे तुम। कौन तुम्हारी सुनेगा। अब बस बापू। इतना ही कहना चाहता हूं कि, काश तुम लौट पाते ?
भच्च हो गया लोकतंत्र का मंदिर
प्रस्तुतकर्ता
राज किशोर झा
on शुक्रवार, 7 सितंबर 2012
लेबल:
इस्तीफा,
मनमोहन सिंह,
राजनीति,
व्यंग्य,
सुषमा स्वराज
/
Comments: (0)
(वैधानिक चेतवानी-ये
एक व्यंग्य लेख है और इसमें इस्तीफा की मांग करने वाला किरदार भाजपा नेता सुषमा
स्वराज का है, इस्तीफा नहीं देने की मांग पर अड़े शख्स का किरदार पीएम मनमोहन सिंह
का है और देवीस्वरुपा मैडम का किरदार सोनिया गांधी का है)
---------------------------------------------------
मुझे इस्तीफा
चाहिए,नहीं मैं इस्तीफा नहीं दूंगा। देखो मुझे इस्तीफा से कम मंजूर नहीं है,तो तुम
भी कान खोलकर सुन लो,इस्तीफा को कोई तुम्हारे खेत की मूली नहीं है,जो तुमने मांगा
और मैंने उखाड़ कर दे दिया। देखो इस्तीफा भले ही जनता की खेत की मूली हो,पर मुझे
चाहिए। आखिर मुझे भी जनता को जवाब देना है। इस्तीफा शब्द की दीवानी,तुम ये क्यों
नहीं समझती कि,मुझे भी तो मैडम दस जनपथ का ख्याल रखना है। तुम ही बताओ क्या मैडम
ने मुझे इस्तीफा देने के लिए चुना था, उन्हें मुझ पर भरोसा है और मैं उनके भरोसे
को अपना दामन दागदार कर करके भी कामय रखने की कसम ले चुका हूं। मैं तुम्हें भी उस
मातास्वरुपा मैडम का वास्ता देकर कहता हूं, “ये दौलत भी ले लो,ये
शोहरत भी ले लो,पर मुझसे न मांगो ये वजीरेआजम की कुर्सी”। अरे तुम कितने बेशर्म हो,कोई तुम्हें अंडर
अचीवर कहता है,कोई तुम्हें तुम्हरी मैडम का कठपुतली और कोई तुम्हारी साख पर ही
बट्टा लगा रहा है। फिर भी तुम खामोश हो। देखो तुम भी तो कम नहीं,मेरी खामोशी को
मेरी कमजोरी समझ रही हो। तुम्हें मैं कैसे समझाऊ,अगर मेरी मेरी जुबान खुली तो मेरे
कई साथियों के नकाब तो उतरेंगे ही तुम्हारे भी लगुआ-भगुवाओं की उतर जाएगी। अच्छा
तो तुम इस्तीफा नहीं दोगे। कहा न नहीं दूंगा। तुम एक बात बताओ,तुम भी जानती हो की
इस हमाम में सभी नंगे हैं तो तुम इस्तीफा मांगने पर क्यों टिकी हो,चलो इस्तीफा
छोड़ो चर्चा कर लो। इससे तुम्हारे और मेरे भोले-भाले जनता को भी ये विश्वास हो
जाएगा कि, चलो अब तो कुछ हल निकलेगा और इधर,इसी बहाने तुम्हारी भी जय-जय,हमारी भी
जय-जय। अरे तेरी जय-जय की तो ऐसी-तैसी करू मैं। मैं समझ रही हूं कि,तुम्हारा इशारा
हमारी पार्टी के कुछ राज्यों के मुखिया पर है। देखो मुझे 2014 में तुम्हारी गद्दी
पर काबिज होना है और इसके लिए अगर एकाध राजनीतिक बलि भी देनी पड़ी तो मैं देने को
तैयार हूं। छी छी कितनी बुरी नियत है तुम्हारी। देखो मैं तुमसे उम्र में बड़ा हूं
और इस देश का वजीरेआजम होने के नाते नहीं बल्कि अनुभवों के आधार पर तुम्हें फ्री
में एक सलाह दे रहा हूं। नहीं अगर देना है तो इस्तीफा दो। बड़ी नासमझ हो। तुम और
तुम्हारी पार्टी इसी वजह से सत्ता में नहीं आ पा रही। बाबा अटल के बीमार होने के
बाद तुम सब बेलगाम हो गए हो। देखो ध्यान भटकाने की कोशिश मत करो। कोयले की कालिख
से बचने के लिए तुमने पहले ही प्रमोशन में आरक्षण बिल का सहारा ले लिया है। कितने
गिर गए हो तुम। कोयले की कालिख से मैं तो पूरी तरह काला हो चुका हूं और रही बात
गिरने की,तो मैं साल दो हजार चार के बाद खुद से खड़ा ही कहां हुआ हूं। वो तो अपनी
देवीस्वरुपा मैडम हैं। जिनके सहारे मैं टिका हुआ हूं। खैर तुम इन बातों में मत
उलझो,मैं तुम्हें मुफ्त में एक नसीहत दे रहा हूं। तुम प्रधान की कुर्सी पर बैठने
का ख्वाब मत पालो और तुम भी इस बात को जानती हो कि,तुम्हारी पार्टी में इस कुर्सी
पर बैठने के लिए कितने निजाम ललायित हैं। जानती हो इस कुर्सी की हालत कैसी है। हां
चलो जल्दी बताओ कैसी? तुमने गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट वन की प्रोमो देखी थी। अगर नहीं
तो मैं बताता हूं। फिल्म के प्रोमो में मनोज वाजपेयी यानी सरदार खान कहता है कि,
वो रामाधीर सिंह यानी तिग्मांशु धुलिया की कह के लेंगे लेकिन फिल्म के अंदर सरदार
खान का बेटा रामाधीर सिंह की कह के लेता है। यानी प्रोमो में जो दिखाई पड़ता है,वो
फिल्म में नहीं है। एक लाइन में कहूं तो स्प्राइट का वो विज्ञापन तुम्हें याद है “दिखावे पर मत जाओ अपनी अक्ल लगाओ”। इसीलिए कुर्सी का ख्वाब छोड़ दो,बड़ी फजीहत है।
मुझे उपदेश मत दो। जबतक इस्तीफा नहीं दोगे मैं लोकतंत्र के मंदिर में हंगामा करती
रहूंगी। ठीक है तुम हंगामा अब सड़क पर जाकर करो क्योंकि तुम्हारे इस्तीफे और
शोर-शराबे में सत्र की समय सीमा खत्म हो चुकी है। अगले आदेश तक। मिलते हैं एक
ब्रेक के बाद...क्योंकि इस बार तो लोकतंत्र के इस मंदिर के सत्र को तुम्हारे
इस्तीफे की मांग ने भच्च कर दिया।
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