समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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खेल खत्म….खेल शुरू......पर क्या निकलेगा कोई नतीजा ?
प्रस्तुतकर्ता
बेनामी
on मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
खेल खत्म हो गए पर असली खेल तो अब चालू हुआ है.....जो खेल हुआ उसमे भले ही भारत की जय हुई हो....पर अब जो खेल चल रहा है उसमे अगर कोई हारेगा तो भारत..इस खेल में जितना सच सामने आएगा उतनी भारत की नाक पूरे विश्व के सामने कटेगी और ये खेल भी बहुत खतरनाक है इस खेल में अपनों को ही अपने देश से गद्दारी करने की सजा मिलेगी पर हारेगा हमारा देश ही...जी हां कॉमनवेल्थ खेल खत्म हो गया पर अब जांच शुरू हो गई है कि किसने कितना पैसा खाया..और यही है असली खेल के पीछे का खेल जहां हमेशा भारत हारता रहा है...हर बार की तरह इस बार भी खूब हल्ला हो रहा है....घोटाले को लेकर हाय तौबा मची हुई है पर इतिहास गवाह है इस देश का कि हम न तो भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाब रहे हैं और न भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने में...आज तक इस देश में जितने घोटाले हुए हैं उनमे से शायद ही किसी को सजा हुई है....पर हमे एक चीज में महारत हासिल है वो है जांच कमेटियां बनाने में....पहले घोटाला होता है देश के गरीबों का पैसा नेता और अधिकारी डकार जाते हैं और फिर बनती है जांच कमेटी... जिसका बार बार कार्यकाल बढ़ा दिया जाता है और 20 से 30 साल बीत जाते हैं न तो किसी को सजा होती और न ही कार्रवाई होती है....वोफोर्स कांड हो...ताबूत कांड हो...हवाला कांड हो या और न जाने कितने ही कांड इस देश में हो चुके हैं कभी इस देश में किसी नेता को सजा नहीं हुई..इस बार भी एक जांच कमेटी बना दी गई है......पता नहीं कितनी बार इसका कार्यकाल बढ़ेगा...सजा किसी होगी इसकी उम्मीद शायद ही देश के लोगों को हो...पर यहां एक बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि हम सिर्फ कागजी जांच पर ही क्यों भरोसा रखते है ? क्यों नहीं कुछ ऐसा हो की भ्रष्टाचार हो ही न पाए ऐसा कानून बने.. क्यों न कुछ ऐसा हो अगर कोई पैसा खा रहा है तो उसे समय रहते ही पकड़ लिया जाए...आखिर क्यों हमारा देश की जांच एजेंसी इस बात का इंतजार करती है कि पहले घोटाला हो जाए और जब हल्ला होगा तो जांच कर लेंगे...वैसे जो भी व्यक्ति जमीन से जुड़ा है वो बहुत अच्छे से जानता है कि इस भ्रष्टाचार की जड़े क्या हैं...आज हमारे देश के छोटे से गांव से ये भ्रष्टाचार चालू होता है और संसद में बैठे सांसदों तक पहुंचता है...गांव में एक जाति प्रमाण पत्र बनवाने मैने खुद बचपन में दौ सौ रुपए दिए हैं...और सुनिए एक बार कॉलेज चुनाव के दौरान हमारे गुट का दुसरे गुट से झगड़ा हो गया हमने शायद 3 या 4 हजार रुपए दिए थाने में बैठे अधिकारी को और किसी पर मामला दर्ज नहीं हुआ....मैं कॉलेज की पढ़ाई करने गंजबासौदा से भोपाल अप -डाउन करने लगा....कभी मैने ट्रेन में टिकट नहीं लिया..हमेशा बिना टिकट जाता था..और मेरे साथ ऐसा करते थे करीब 40 से 50 लड़के....महीने में शायद एक या दो बार हमे टिकट चैक करने वाला मिल जाता था हम सब 20-20 रुपए मिलाते थे और करीब 800 से हजार रुपए देते थे टीसी को और फिर क्या पूरे महीने तक हमे लायसेंस मिल जाता था बिना टिकट यात्रा करने का...भोपाल में कभी मैने ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवाया कभी ट्रैफिक पुलिस वाला मिल जाए तो बस 50 रुपए में हम बच जाते थे फिर चाहे बाइक में तीन बैठे हों या तीस....कुल मिलाकर 50 रुपए में मैं कानून खरीद लेता था और 50 रुपए लेने के बाद ये पुलिस वाला भी कई दिनों तक हमसे कुछ नहीं कहता था...खैर मैरे अनुभव और भी हैं पर सब बताना मुश्किल है....कहने का मतलब ये है कि भ्रष्टाचार देश के एक छोटे से गांव से पैर पसारना चालू करता है और फिर संसद में बैठे नेताओं तक पहुंचता है....और एक बात और जब एक नेता 25 लाख रुपए अपनी पार्टी को देकर विधायक का टिकट लाता है और तब वो पांच साल में पांच करोड़ कमाने की सोचता है..एक पुलिस का सिपाही बनने के लिए मेरे ही एक करीबी दोस्त ने साढ़े तीन लाख की रिश्वत दी है...आज अगर मैं उससे कहूं की रिश्वत क्यों लेते हो तो उसका एक ही जवाब होता है कि जो दिया वो वसूल तो करेंगे ही...... मीडिया में भी पेड न्यूज के नाम पर सिर्फ रिश्वत लेने का काम चल रहा है...हम आधे घंटे किसी नेता या मुख्यमंत्री की तारीफ दिखाते हैं बदले में कहने को तो विज्ञापन का पैसा मिलता है पर वो एक तरह की रिश्वत ही है अपने अंदर के पत्रकार को आधे घंटे तक मारके रखने की... कॉमनवेल्थ में हुए घोटाले में भले ही जांच कुछ कहे पर आज देश के कोने कोने में जो भ्रष्टाचार रुपी राक्षक फैला है जब तक हम उसे नहीं मारेगे तब तक कुछ नहीं होने वाला...खैर बचपन में मैने भी बहुत रिश्वत ली है पापा कहते थे परीक्षा में अच्छे नंबर लाओ तो चॉकलेट दिला देंगे......और सिर्फ एक चॉकलेट के लिए हम पढ़ाई करते थे......तो सबसे पहले मेरे और आपके अंदर बैठे रिश्वतखोर को मारो फिर पूछना कॉमनवेल्थ में घोटाला किसने किया ?
रोमल भावसार
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