ये ख़बर पूरी चली...


अगर आपने इस ब्लॉग ‘सवाल आपका है’ की वो प्रस्तावना पढ़ी हो, जो बायीं ओर लिखी है तो शायद आप मेरी बातों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। ज़िक्र है मुद्दों का, समस्याओं का, उनके समाधान का और सरोकार का। चूंकि ‘सवाल आपका है’ गठबंधन है पत्रकारों का, संदर्भ है जटिल समस्याओं को शिथिल करने की मुहिम... लिहाज़ा गंतव्य की ओर उठे एक ठोस क़दम का ज़िक्र करने जा रहा हूं।

                           दो राय नहीं, ख़बरों को बेचने की आपाधापी और टीआरपी की होड़ में हम लोग ना चाहते हुए भी शामिल हैं। बलात्कार का दंश झेल चुकी लड़की के मुंह से वो बात कहलवाना जो एक्सक्लूसिव हो, हमें भी सुकून देने लगा है। अपने शहीद पिता को मुखाग्नि देने जा रहे मासूम बेटे का करुण रुदन अपसाउंड कर पहले दिखाना हमें आत्मिक शांति देता है। लेकिन जाने क्यूं इस दफ़े ज़िंदगी के आठ दशक पार कर चुके वो बूढ़े मां-बाप हम पत्थर दिलों को भी पिघला गए। नहीं मालूम उनके तीन कमाऊ बेटे और अपने-अपने घरों में जीवन बसर कर रहीं उनकी दोनों बेटियों ने भला उन्हें इस हाल में कैसे छोड़ दिया ?

पता चला कि आज स्टूडियों में दो ऐसे गेस्ट लाइव हैं, जिनके पांच बच्चे (ज़िक्र ऊपर है) हैं। बावजूद इसके उम्र के इस पड़ाव में वो अपना दर्द लेकर भटक रहे हैं। ख़बर चली, उनके बच्चों की ख़ूब ख़ैर ली गई... प्रशासन, सरकार को उनकी ज़िम्मेदारियों का एहसास कराया गया, सामाजिक दायित्वों का भी ख़ूब ढिंढोरा पीटा हमनें। लेकिन इस बार हम अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं मुकरे, ख़बर चलते ही उन्हें पहचानने से इंकार भी नहीं किया हमनें। हमें पता चला कि ये बुज़ुर्ग दंपत्ति दस-दस रुपए को मोहताज है। सबसे पहले सभी साथियों ने दिली ख़्वाहिश से एक बड़ी रक़म जमा की, जो उन्हें दी गई। बात यहीं भर ख़त्म नहीं हो जाती। पता चला कि वे इस वक़्त राजधानी में एक टैंट लगाकर रह रहे हैं, जो किसी भी वक़्त नगर निगम के बुलडोज़र का शिकार हो सकता है। इसके बाद हमारी टीम ने एक निजी वृद्धाश्रम में बात की... जहां वे आज शिफ्ट हो रहे हैं। कुल मिलाकर बहुत दिनों बाद कोई ख़बर पूरी चली।।

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