तंग गलियों से बड़ी इमारतों तक ?

 








मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के छोटे से शहर गंजबासौदा की तंग गलियों से महानगरों की बड़ी-बड़ी इमारतों तक....ये मेरी जिंदगी का एक ऐसा सफर है जिसमें मुझे सब कुछ मिला...महीने के अंत में एक मोटी सैलेरी...किसी अच्छे न्यूज चैनल में अच्छी नौकरी..पत्रकार हूं तो पीठ पीछे सब गाली देते हैं पर समाने सम्मान देने में कोई कसर नहीं छोड़ते..एक छोटे से कस्बे के किसी मोहल्ले में एक कच्चा मकान...जहां आगंन के चूल्हे में 70
लोगों के संयुक्त परिवार का खाना बनता था....चूल्हे के धुंए की खुशबू से ही मानों भूख लग जाती थी..घर के दरवाजे में हमेशा धोती कुर्ते में दादाजी बैठे होते थे...एक मोटा सा चश्मा और हाथ में जाप करने के लिए माला...घर से निकलों तो मोहल्ले के सब लोगों को राम-राम करना होता था...दादाजी को अखबार की भूख थी..अगर एक दिन अखबार न मिले तो उनका खाना ही नहीं पचता था....और मेरी दादी भी कम नहीं थी..जैसे ही खाना बने मुझे बुला लेती थी..और फिर गरमा गरम रोटी..उस पर घर में ही बना देसी घी लगाया जाता था..साथ में चावल और पापड़ भी...आज मैं चकाचौंद में हूं...भई पत्रकार हूं दुनिया भर का ठेका जो ले रखा है....आज मेरे दादाजी और दादी दोनों इस दुनिया में नहीं है...न ही वो चूल्हा है जो घर के आंगन में रखा होता था..क्यों की संयुक्त परिवार बट गया है...सारे चाचा अलग हो गए....तंग गलियों में जो कच्चे मकान थे वो पक्के हो गए...आज मैं पत्रकार बन गया हूं.....वो भी न्यूज चैनल का...चूकि छत्तीसगढ़ में तो रोज दिन की शुरूआत नक्सली हमले के साथ होती है....कर भी क्या सकते हैं रमन सिंह से चिंदबरम तक सब सिर्फ बयान बाजी में व्यस्त हैं और हर महीने जवान शहीद हो रहे हैं औऱते विधवा औऱ बच्चे अनाथ....खैर हम trp के लिए काम करते हैं हमे क्या मतलब किसी से..जब हमला होगा तो बड़ी ब्रेकिंग चला देंगे...नहीं तो कुत्ते- बिल्ली...शाहिनी आहूजा और मॉडल विवेका बाबाजी की खबरे तो हैं ही साथ में आज कल तो ऑक्टोपस बाबा भी खूब trp दे रहे हैं...अगर ये भी नहीं मिली तो घंटो सानिया मिर्जा और धोनी की खबर पर लाइव करेंगे..खैर दुनिया बदल गई लोग बदल गए...छूट गई वो तंग गलियां...दादा-दादी भी नहीं रहे पर वो हमेशा मुझे भगवत गीता सुनाते थे...जब अर्जुन अपने चचेरे भाईयों के खिलाफ हथियार उठाने से हिचकिचा रहे थे तो भगवान श्री कृष्णा ने कहा था...हे अर्जुन तेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं अगर तू लड़ते हुए मर गया तो शहीद कहलाएगा औऱ अगर जीत गया तो तुझे राजपाठ मिलेगा....तो डर मत और वार कर आज यहीं हाल कुछ न्यूज चैनलों का भी है....ताज पर या छत्तीसगढ़ में हमला हो गया तो खबर मिलेगी ही नहीं तो विवेका क्यों मरी सवाल तो करना ही है..खैर बात तंग गलियों से शुरू हुई थी बात...आज गलिया भले तंग नहीं हैं खुला माहौल है बड़ी बिल्डिंग है.......बड़े लोग है..बहुत सम्मान  है...दादा- दादी भी नहीं है चूल्हे की जगह गैस की रोटी है..राम-राम की जगह गुडमॉर्निंग है....और साथ में एक तनाव..एक तंगी जो हमेशा खुद से सवाल करती है..क्या यही पत्रकारिता है ?


और क्या यहीं है 21वीं सदी के भारत की जिंदगी ?






रोमल भावसार









1 टिप्पणियाँ:

मेरा भारत कहाँ....... ने कहा…

भाई रोमेल इतना तो साफ़ हो गया है कि.... आप पत्रकार है...और किसी बहुत बड़े बैनर के तले एक मोटी कमाई करने वाले एक महान लेखक है..... आपकी हरएक लेख मैं ऐसे पढ़ता हूं मानो आज तक मैं स्कूल गया ही नहीं.... ऐसे ही लिखते रहें, और अपने अनुजों को सबक देते रहें...

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