मैं एक पत्रकार हूं....किसी बड़े बैनर पर काम कर रहा हूं पर आज कल मैं एक बात सुनने का आदी हो गया हूं.... मेरी मां हर दूसरे दिन मुझे फोन करके पूछती हैं कि बेटे कैसे हो ? ठीक तो हो न? , तुम्हे तो कुछ नहीं हुआ ?....मेरा परिवार पहले कभी इतना नहीं डरा था....मैं दिल्ली में था तो हफ्ते में एक-दो बार घर पर बात होती थी...घर वाले पूछते थे 'मैं कैसा हूं' पर 'मुझे कुछ हुआ तो नहीं' ये आजकल ही पूछना चालू किया हैं मैंने डेढ़ साल हैदराबाद में बिताए पर कभी मेरा परिवार इतना डरा नहीं था.. जितना आज है......भोपाल में रहा मैं पर कभी ये सुनने को नहीं मिला कि 'मुझे कुछ हुआ तो नहीं'....पर यहां बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि आखिरी आज मेरा परिवार इतना डरा क्यों हैं....जब मैंने इस सवाल का जवाब अपने परिवार से जानना चाह तो उन्होने कहा 'बेटा तुम पिछले दो साल से छत्तीसगढ़ में रहते हो इस लिए डर लगता है'..... छत्तीसगढ़ अब नक्सलियों का गढ़ बन चुका आए दिन टीवी चैनल पर नक्सली हमले की खबर ब्रेक होती हो और मेरे जैसे न जाने कितने लोगों के परिवारों की सांसें थम जाती हैं....फिर फोन आता है और मेरे जैसे लोग जो छत्तीसगढ़ में नौकरी कर रहे हैं उनसे पूछा जाता है कि मुझे कुछ हुआ तो नहीं....मेरी मां की कपकपाती हुई आवाज में.. मानो कि बस दो पल के बाद उनके आंसू निकल जाएंगे बोलती हैं कि कौन हैं ये नक्सली और क्यों ये रोज खून बहाने पर उतारू हैं...रोज मेरे पापा सवाल करते हैं कि क्या हो रहा है छत्तीसगढ़ में....ये सब बाते मैं इस लिए बता रहा हूं क्यों कि जब भी मेरी मां कपकपाती हुई आवाज में पूछती है कि 'मैं ठीक हूं की नहीं' मुझे उन जवानों के परिवार की याद आ जाती है जो नक्सलियों के हाथों इस जमीन पर शहीद हो गए....पिछले तीन महीनों में सवा सौ से ज्यादा जवान नक्सलियों के हाथों इस छत्तीसगढ़ की जमीन पर शहीद हो चुके हैं....इन शहीद जवानों की मां शायद मेरी मां जैसी खुशनसीब नहीं थी जो फोन पर ये सुन सके कि आपके बेटे को कुछ नहीं हुई...... न जाने कितनी माताओं ने अपने बेटे खो दिए...कितनी बहनों ने अपने भाई.....अनगिनत बच्चे अनाथ हो गए....कितनी महिलाओं की मांग का सिंदूर मिट गया पर किसी को फर्क नहीं पड़ा....केंद्र और राज्य सराकार की गलत नीतियां निगल गई इन जवानों की जिंदगी और न तो रमन सिंह को कोई फर्क पड़ा और न हीं प्रधानमंत्री और चिदंबरम...सब अपनी मस्ती में मस्त हैं... हालत ये है छत्तीसगढ़ में कि एक हमले में शहीद हुए जवानों के परिवार वालों के आंसू सूख भी नहीं पाते और नक्सली एक महीने के अंदर ही दूसरा हमला कर देते हैं....दिल्ली में एयर कंडीशनल कमरों बैठकर में नक्सलियों के खिलाफ रणनीति बनाई जाती है.....लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि घोर नक्सली इलाकों में crpf और पुलिस में कोई तालमेल नहीं है.... छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री ननकी राम कंवर कहते हैं कि नक्सलियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल होना चाहिए.....तो रमन सिंह इसके उलटा बयान देते हैं.....इन सब से हटके यहां के dgp विश्वरंजन तो ये तक कह देते हैं कि हम crpf को चलना थोड़ी सिखाएंगे....मुझे खरोच भी आ जाए तो मेरी मां रोने लगती है.....पर छत्तीसगढ़ की जमीन पर न जाने कितने जवानों के सीने छल्ली हो गए पर उनके परिवार का सोचने इन निकंमी सरकारों के पास समय नहीं है... छत्तीसगढ़ में जवानों को एक ऐसे रास्ते पर झोंक दिया गया है जिसका अंत सिर्फ मौत है.. नक्सली हमले के तीन दिन बाद सुषमा स्वाराज रायपुर आती है और रमन सिंह के साथ पूरे भाजपा कार्यकर्ता महंगाई के खिलाफ केंद्र को खूब गालियां बकते हैं...क्या इन नेताओं को थोड़ी भी शर्म नहीं आती ...जिस प्रदेश की जमी पर तीन दिन पहले नक्सलियों ने खून की होली खेली थी वहां ये नेता वोट बैंक के खातिर प्रदर्शन करते हैं.... भाजपा तो छोड़िए कांग्रेस भी दो कदम आगे है.. देश की सेवा करने वाले जवान लगातरा कुर्बान होते जा रहे हैं और सोनिया-मनमोहन समेत पूरी केंद्र सरकार ये बताने में व्यस्त है कि तेल के दाम बढ़ाना बहुत जरूरी था...अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए जा रहे है...पूरी केंद्र सरकार भी सिर्फ वोट बैंक के लिए काम कर रही हैं....हो सकता है कल फिर इन अंधी-बहरी सरकारों की छाती पर नक्सली फिर कोई हमला कर दें...हो सकता है फिर मेरी मां का फोन आए और मुझसे पूछे कि मैं ठीक हूं या नहीं...मैं अपनी मां से यही कहूंगा कि मां मैं ठीक हूं पर न जाने कितनी माताओं के बेटे रोज यहां मर रहे हैं....न जाते कितनी औरतें रोज विधवा हो रही हैं....मां मैं ठीक हूं पर उदास हूं ..क्यों कि ये हत्या भले ही नक्सली कर रहे हों पर इसके लिए जिम्मेदार केंद्र और राज्य सराकर हैं....मां मैं ठीक हूं पर ये सब देखकर बहुत दुखी हूं... मां तू खुशनसीब हैं कि तेरा बेटा छत्तीसगढ़ की राजधानी में काम करता है उससे कुछ नहीं होगा....पर हर मां तेरे जैसी खुशनसीब नहीं है....
रोमल भावसार
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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