पंडा से पंडों तक का सफर

                                
  • बचपन से ही पंडा शब्द से वास्ता पड़ता रहा है। खासकर जब भी परिजनों के साथ गंगास्नान या फिर किसी धार्मिक स्थल पर जाता था। वक्त के साथ बड़ा होता गया और ज्ञान के समंदर में गोते लगाने पर पता चला कि,पंडा यानी पंडित मतलब होता है एक विद्वान, एक अध्यापक, विशेषकर जो संस्कृत और हिंदू विधि, धर्म, संगीत या दर्शनशास्त्र में दक्ष हो। अपने मूल अर्थ में 'पण्डित' शब्द से लगभग हमेशा हिंदू, ब्राह्मण से लिया जाता है जिसने वेदों का एक मुख्य भाग उनके उच्चारण और गायन के लय-ताल सहित स्मरण कर लिया हो,लेकिन ये भ्रांति एक दिन उस वक्त टूट गया जब दफ्तर में बैठे एक सहयोगी ने कहा कि,छत्तीसगढ़ में पंडा का एक और मतलब होता है। मैंने बड़े ही चाउ से पूछा क्या होता है। तब उन्होंने बताया कि,कुछ लोग जो यूपी और बिहार से यहां पर रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं,उनमें से कुछ लोग यहां की शराब दुकानों में नौकरी कर लेते हैं और दुकान का संचालक उन्हें पंडा की नौकरी दे देता है। इसका मुख्य काम होता है शराब की दुकानों की रखवाली करना। कह सकते हैं अंगुर की बेटी का अंगरक्षक। उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ। वीकली ऑफ के दिन निकल पड़ा तफ्तीश करने। रायपुर शहर के कई वाइन शॉप पर मैं पहुंचा तपती दोपहरिया में। दुकान में मौजूद कई पंडों से मेरी मुलाकात हुई। कई पंडे तो अपने गृह जिले मधुबनी के ही मिल गए। बातचीत के दौरान उनलोगों को मैंने बताया कि,क्या वो पंडा शब्द के मूल अर्थ से वाकिफ हैं। ज्यादातर ने कहा हां। यकीन मानिए उन्होंने बिलकुल वही बातें कहीं जो मैं जानता था पर इन सबके बीच उनलोगों ने कहा,साहब पेट का सवाल है। हमें तो पैसों से मतलब है। चाहे कोई मुझे पंडा या अंगरक्षक कहे। घंटों तक बात करके मैं वहां से चल पड़ा। मन में कई सवाल उठे पर ये सोच कर दिल को थाम लिया कि,जिस तरीके से तीन कोस चलने के बाद बोली बदल जाती है उसी तरह पैसों के खातिर पंडा शब्द के मायने भी बदल दिए गए हैं। पंडा शब्द की इस दुर्गति को देख मुंह से यही निकला शब्द बड़ा न उसके मायने,भैय्या सबसे बड़ा रुपया








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