सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह का मैं बहुत ही शुक्रगुजार हूं। क्योंकि,मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के इस जमाने में उन्होंने ये जता दिया कि,खत की क्या अहमियत होती है। वर्ना लोग तो खत को ही भूल गए थे। मुझे अच्छी तरह याद है जब फोन और मोबाइल का जमाना नहीं था तो कैसे किसी प्रयोजन के वक्त मेरे स्वर्गीय दादा जी मुझसे चिट्ठी लिखने को कहते थे। चिट्टी की अहमियत उस वक्त खूब थी,लोग इसे पढ़कर ही खत में लिखे बातों से खबरदार हो जाते थे। वक्त बीता और खत की जगह इन संचार माध्यमों ने ले ली। खैर वक्त ने पुराने दौर की याद दिला दी। खासकर हमारे सेनाध्यक्ष ने। एक जमाना था जब कोई लड़का किसी लड़की को या कोई लड़की किसी लड़के को प्रेम पत्र भेजता था और वो जब अभिभावक के हाथ लग जाता था तो कितना बवाल होता था। भगवान कृष्ण जब मथुरा में थे, तब भी वे अपनी प्रेयसी गोपियों को प्रेम संदेश भेजते थे, जिसे पढ़कर गोपियां इतनी खो जाती थीं कि, उनसे आंसूओं से खत के अक्षर भी धुंधले पड़ जाते थे। उसके बाद शुरू हुआ हीर-रांझा जैसे प्रेमियों का दौर, जिन्होंने अपने प्रेम भरे खत से सभी प्रेमियों के लिए एक मिसाल कायम कर दी, लेकिन आज जो दौर है, उसमें खत का चलन खो सा गया है। इतने पर भी आज कुछ लोग ऐसे हैं, जो अब भी खत भेजने पर ही यकीन करते हैं और इसी को बेहतर माध्यम मानते हैं अपनी बात दूसरों तक कहने का। जनरल सिंह भी उन्हीं लोगों में से एक हैं। उन्होंने अपने अभिभावक को सेना की कमजोर स्थिति के बारे में खत लिखा मगर वो अभिभावक के हाथ लगने के बाद पड़ोसी(मीडिया) के हाथ लग गया। बस इसके बाद क्या कुछ हुआ दुनिया के सामने है। दरअसल वीके सिंह के लिखे खत की खता महज इतनी है कि,उन्होंने कागज के टुकड़े पर ऐसे शब्द लिख दिए जो लोगों को खबरदार करने के लिए काफी था। उम्मीद करता हूं कि,सिंह के रिटायरमेंट बाद आने वाले नये अधिकारी खत को खता नहीं खबरदार के तौर पर लेंगे। ताकि,देश की सैन्यशक्ति और बेहतर हो सके। अंत में एक बात और कहना चाहूंगा कि, खत की अहमियत को भूलिएगा नहीं। मुझे खत से बहुत सारी बातें याद आ गई । उम्मीद है आपको भी आएगी और आपको भी मेरी तरह कहना पड़ेगा....खत से याद आया।
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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