13 दिसंबर 2001 का दिन हम कभी भूल नहीं सकते,क्योंकि ये वो काली तारीख है,जब पांच आतंकियों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया और AK- 47 की गोलियों से हमारे सीने पर ऐसा जख्म दिया,जो आज तक ताजा है। हमले में हमने अपने 9 वीर सपूतों को खो दिया। शहीदों ने पांचों आतंकियों को मौत के घाट तो उतारा ही साथ ही साथ संसद भवन में उस वक्त मौजूद करीब दौ सौ से ज्यादा सांसदों को बचाया। पुलिस की तत्परता के चलते एक साल के भीतर ही हमले में शामिल एक मास्टर माइंड अफजल गुरू पकड़ा गया,लेकिन अफसोस की शहीदों ने जान की बाजी लगाकर जिन सांसदों को बचाया,वही सांसदों की जमात वोट बैंक के जाल में अफजल की फांसी को ऐसे उलझाया कि, फंदे की फाइल दिल्ली सरकार,गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन की गलियों में भटक रहा है। ये तो थी हमले की कहानी,अब आते हैं असल मुद्दे पर,13 दिसंबर को टीवी खोला तो देखा कि,हमारे ज्यादातर सांसद संसद भवन परिसर में हमले में शहीद जाबांजों को श्रद्धांजलि दे रहे थे। पर श्रद्धांजलि देते वक्त मैंने देखा कि,सभी सांसद प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने का ढोंग कर रहे थे। उनके आव-भाव से नहीं लगा कि,उनके दिल में शहीदों के लिए कोई इज्जत है। एकाध सांसदों को छोड़ सभी सफेदपोश हंसकर पुष्प अर्पित कर रहे थे। उस दृश्य को देख मैं काफी गुस्से में आ गया। मुझे अफसोस हो रहा था कि,क्यों उन 9 घरों के चिरागों ने अपनी जान गंवाकर इन सफेदपोशों को बचाया। उन्होंने अपने फर्ज का निर्वहन तो अपनी अंतिम सांस तक किया,लेकिन हमारे नुमाइंदे तो उनकी शहादत को सलाम करने के लिए अपना फर्ज तक भूल गए। दुख होता है जब संसद हमले का जिक्र होता है। फक्र होता है वीर सपूतों की शहादत पर,लेकिन शर्म से उस वक्त पानी-पानी हो जाता हूं जब सफेदपोशों की बेहया वाली हरकतों को देखता हूं। आंखों में पानी भर आता है,जब टीवी चैनलों पर शहीदों की मां,विधवा और बच्चों की व्यथा सुनता हूं। 13 दिसंबर को एक टीवी चैनल पर एक शहीद की विधवा बता रही थी कि, सरकार की ओर से उन्हें पेट्रोल पंप देने का ऐलान किया गया। जब वो अपना हक लेने पहुंची तो उनसे रिश्वत मांगी गई। इन हालातों को देख सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि,वाकई सिस्टम इतना बेइमान और बेशर्म हो गया है। राहुल गांधी कहते हैं उन्हें यूपी की बदहाली देख गुस्सा आता है। लाल कृष्ण आडवाणी को पश्चिम मॉडल से नफरत है। ऐसे में इन दोनों को सांसदों का आचरण और अफजल गुरू को जेल में देख गुस्सा क्यों नहीं आता है,अगर इन मुद्दों पर इनका खून खौलता तो निश्चित तौर पर मैं कह सकता हूं कि,इनलोगों को गुस्सा वहीं आता है जहां वोट बैंक का मामला होता है। हमारे नुमाइंदे ये क्यों भूल जाते हैं कि,जिस जिंदगी को वो जी रहे हैं,वो उन शहीदों की देन है। कहा जाए तो वो सभी उधार की जिंदगी जी रहे हैं।
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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उधार की जिंदगी
13 दिसंबर 2001 का दिन हम कभी भूल नहीं सकते,क्योंकि ये वो काली तारीख है,जब पांच आतंकियों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया और AK- 47 की गोलियों से हमारे सीने पर ऐसा जख्म दिया,जो आज तक ताजा है। हमले में हमने अपने 9 वीर सपूतों को खो दिया। शहीदों ने पांचों आतंकियों को मौत के घाट तो उतारा ही साथ ही साथ संसद भवन में उस वक्त मौजूद करीब दौ सौ से ज्यादा सांसदों को बचाया। पुलिस की तत्परता के चलते एक साल के भीतर ही हमले में शामिल एक मास्टर माइंड अफजल गुरू पकड़ा गया,लेकिन अफसोस की शहीदों ने जान की बाजी लगाकर जिन सांसदों को बचाया,वही सांसदों की जमात वोट बैंक के जाल में अफजल की फांसी को ऐसे उलझाया कि, फंदे की फाइल दिल्ली सरकार,गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन की गलियों में भटक रहा है। ये तो थी हमले की कहानी,अब आते हैं असल मुद्दे पर,13 दिसंबर को टीवी खोला तो देखा कि,हमारे ज्यादातर सांसद संसद भवन परिसर में हमले में शहीद जाबांजों को श्रद्धांजलि दे रहे थे। पर श्रद्धांजलि देते वक्त मैंने देखा कि,सभी सांसद प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने का ढोंग कर रहे थे। उनके आव-भाव से नहीं लगा कि,उनके दिल में शहीदों के लिए कोई इज्जत है। एकाध सांसदों को छोड़ सभी सफेदपोश हंसकर पुष्प अर्पित कर रहे थे। उस दृश्य को देख मैं काफी गुस्से में आ गया। मुझे अफसोस हो रहा था कि,क्यों उन 9 घरों के चिरागों ने अपनी जान गंवाकर इन सफेदपोशों को बचाया। उन्होंने अपने फर्ज का निर्वहन तो अपनी अंतिम सांस तक किया,लेकिन हमारे नुमाइंदे तो उनकी शहादत को सलाम करने के लिए अपना फर्ज तक भूल गए। दुख होता है जब संसद हमले का जिक्र होता है। फक्र होता है वीर सपूतों की शहादत पर,लेकिन शर्म से उस वक्त पानी-पानी हो जाता हूं जब सफेदपोशों की बेहया वाली हरकतों को देखता हूं। आंखों में पानी भर आता है,जब टीवी चैनलों पर शहीदों की मां,विधवा और बच्चों की व्यथा सुनता हूं। 13 दिसंबर को एक टीवी चैनल पर एक शहीद की विधवा बता रही थी कि, सरकार की ओर से उन्हें पेट्रोल पंप देने का ऐलान किया गया। जब वो अपना हक लेने पहुंची तो उनसे रिश्वत मांगी गई। इन हालातों को देख सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि,वाकई सिस्टम इतना बेइमान और बेशर्म हो गया है। राहुल गांधी कहते हैं उन्हें यूपी की बदहाली देख गुस्सा आता है। लाल कृष्ण आडवाणी को पश्चिम मॉडल से नफरत है। ऐसे में इन दोनों को सांसदों का आचरण और अफजल गुरू को जेल में देख गुस्सा क्यों नहीं आता है,अगर इन मुद्दों पर इनका खून खौलता तो निश्चित तौर पर मैं कह सकता हूं कि,इनलोगों को गुस्सा वहीं आता है जहां वोट बैंक का मामला होता है। हमारे नुमाइंदे ये क्यों भूल जाते हैं कि,जिस जिंदगी को वो जी रहे हैं,वो उन शहीदों की देन है। कहा जाए तो वो सभी उधार की जिंदगी जी रहे हैं।
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