नोएडा के सेक्टर-29 में अपने ही घर में खुद को 7 महीने से कैद रखने वाली बहनों की दास्तान ने सबके साथ-साथ मेरे भी रोंगटे खड़े कर दिए...अलग-अलग एंगल से मैंने ये खबर कई वेबसाइट्स पर देखी... कितनी भी कोशिश की कि ऐसी खबरों को खबरों के नजरिए से ही देखकर भूल जाऊं... लेकिन ऐसा हो नहीं पाया...
आखिर ऐसा क्यों हुआ... उनके माता-पिता की मौत के बाद अनुराधा (बड़ी बहन) ने अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल का जिम्मा लिया... ये अच्छी बात है कि आप अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और उसे निभाते भी हैं... लेकिन मेरा ये भी मानना है कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में इतना इन्वॉल्व नहीं होना चाहिए... कि खुद को ही इंसान भूल जाए... कोई भी चीज आपके खुद के ऊपर न हावी हो जाए...
अनुराधा सीए थी... उसने भाई-बहनों को पढ़ाया... लायक बनाया... लेकिन जब उसकी जिम्मेदारियां पूरी हो गईं... तो क्या उसे अपनी शादी के बारे में नहीं सोचना चाहिए था... सोनल (छोटी बहन) भी सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल थी... तो क्या उसे भी कोई लड़का नहीं मिल रहा था... भाई विपिन सबसे छोटा था... लेकिन दोनों बहनों ने उसकी शादी सबसे पहले 2007 में करा दी... भाई को भी ये सोचना चाहिए था... और बहनों को भी इस बारे में मनाना चाहिए था कि जितनी रेसपॉन्सिबिलिटी आपको निभानी थीं... आपने निभा लीं... अब पहले आप दोनों बहनों की शादी होनी चाहिए... लेकिन भाई ने भी इसके लिए दिल से कोशिश नहीं की होगी...
ये बहुत बड़ी सच्चाई है औरतों की... कि उनके लिए 30-35 के बाद घर बसाने के लिए जीवनसाथी मिलना अपने समाज में काफी कठिन होता है... कुदरत ने भी मर्द और औरत में, उसकी शारीरिक संरचना में फर्क किया है... जहां कोई लड़की 30 के बाद ढलने लगती है (मेडिकली प्रूव) वहीं लड़के 30 के बाद भी लड़कियों के मुकाबले यंग होते हैं... लड़कियां बड़ी भी जल्दी होती हैं... और लड़के देर से... इसलिए पहले के जमाने में लड़की और लड़के की शादी में दोनों की उम्र में थोड़ा अंतर रखा जाता था... 35से ऊपर की औरत आंटी होती है... जबकि लड़का भइया... लड़की की शादी 35 के ऊपर आश्चर्य या अफसोस का विषय होता है... जबकि लड़के के लिए ये चीज सामान्य मानी जाती है... लड़के के लिए लड़की किसी भी उम्र में मिल जाती है... विधुर हो तो मिल जाती है... तलाकशुदा हो तो मिल जाती है... लेकिन लड़कियों के लिए इन मामलों में काफी मुश्किल होती है... इस सच्चाई को समझना चाहिए...
अनुराधा और सोनल के साथ यही हुआ... माता-पिता की मृत्यु, कोई पुरुष दोस्त नहीं (जिसकी एक उम्र के बाद जरूरत होती है), भाई की शादी... और अलग रहने के लिए चले जाना... इन सबसे ये दोनों टूट गईं... उन्हें लगा कि अब उनाक क्या होगा... कौन सहारा होगा... किसके भरोसे जीएंगी... अच्छे पदों पर रहते हुए एक भावनात्मक असुरक्षा के घर कर जाने की वजह से और लगातार हादसों के कारण वे टूट गईं... और खुद को घर के अंदर बंद कर लिया...
जहां तक भाई और उसकी पत्नी का पक्ष देखें... तो भाई की पत्नी यानी भाभी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता... कोई भी लड़की जब शादी करती है... तो नई-नई शादी में पति का पूरा साथ चाहती हैं... उसके सपने होते हैं... और अगर मैंने अपने भाई के लिए कुछ किया है... तो हम भाई से उम्मीद कर सकते हैं... कि वो मुझे समझे... लेकिन दूसरे घर की बेटी... जिसने ये सब महसूस नहीं किया है... उससे हम इन सबको समझने की उम्मीद नहीं कर सकते... पर्सनली मेरा ये मानना है कि अनुराधा और सोनल चूंकि अकेली थीं... अपनी दुनिया उन्होंने भाई के आसपास ही बना रखी थी... शादी तो कर दी भाई की... लेकिन अचानक से किसी और लड़की का अधिकार भाई पर हो जाना... और उसके हर फैसले किसी और द्वारा लिया जाना... उन्हें जरूर खला होगा (सास-बहू के झगड़े और ईर्ष्या की सबसे बड़ी वजह)... इसके लिए आए दिन तनाव और मनमुटाव होते रहे... जहां तक भाई की बात है... शादी के बाद लड़का न तो पूरी तरह अपने घरवालों का पक्ष ले सकता है न बीवी का... और शादी के बाद पत्नी के प्रति उसकी जिम्मेदारियां नो डाउट ज्यादा होती हैं... क्योंकि पत्नी कंपलीटली उसपर डिपेंड होती है... इन्हीं सब वजह से विपिन अपनी पत्नी के साथ अलग हो गया... और अनुराधा और सोनल डिप्रेस हो गईं... वो हार गईं जिंदगी से... शायद परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते...
मेरी एक फ्रेंड है... जिसके ऊपर भी उसके परिवार की जिम्मेदारियां हैं... उसे एक लड़का प्यार करता था... और शादी करना चाहता था... लकिन वो निर्णय नहीं ले पा रही थी... अक्सर मुझसे पूछती थी कि कैसे अपने भाई-बहनों को छोड़कर शादी कर ले... लेकिन मेरा यही कहना था... कि तुम्हारे भाई-बहन 20 साल से बड़े हो चुके हैं... उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए... खासकर भाई को जो 22 साल का है... अब वे इतने छोटे नहीं कि खुद को संभाल न सकें... और कोई जरूरी नहीं कि शादी के बाद तुम उन्हें नहीं संभाल सकतीं... शादी के बाद भी मदद की जा सकती है... उनकी जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सकता है... जो लड़का तुमसे प्यार करता है... वो इन चीजों को जरूर समझेगा... वो तुम्हारा साथ जरूर देगा... तुम लड़के के सामने सबकुछ क्लीयर कर दो... और भगवान की कृपा से मेरी दोस्त आज एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रही है... और अपने परिवार की मदद भी कर रही है...
अनुराधा और सोनल को क्या मिला ये सब करके... बाकी सब लोग तो अच्छे ही रहे... इधर अच्छी खासी दोनों लड़कियों ने खुद को हड्डी का ढांचा बना लिया... दुनियाभर की बीमारियों का घर बन गया उनका शरीर... इससे फर्क किसे पड़ा... केवल उन दोनों को... बाकी दुनिया अफसोस जताएगी, खुद मैं कुछ दिनों या सालों बाद भूल जाऊं कि कौन अनुराधा या सोनाली... लेकिन दुनिया किसकी चली गई... उन दोनों की... इसलिए किसी के लिए खुद को खोने की जरूरत नहीं... प्यार ऐसा करें जो कन्सट्रक्ट कर दे... डिस्ट्रक्ट नहीं...
इसलिए खुद को रिश्तों के भंवर जाल में ज्यादा नहीं फंसाना चाहिए... खुद के लिए भी थोड़ा स्वार्थी होना चाहिए... (जिसमें दूसरों की जिंदगी न बर्बाद होती हो), खुश रहना चाहिए... और अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए... क्यों कि लोग तो केवल छीनने के लिए बैठे हैं... चाहे वो कोई भी हो... अपने बारे में खुद ही सोचना होगा... जो खुद अपनी खुशी के बारे में नहीं सोच सकता ... उसके बारे में दूसरा क्यों सोचेगा... इसलिए थोड़ा स्वार्थी हों... और खुश रहें... भाई-बहन से उम्मीद ज्यादा नहीं रखनी चाहिए... क्योंकि सबके अपने परिवार हैं... उन्हें उनके बारे में भी सोचना है... इसलिए अपना घर भी बसाएं...
आखिर ऐसा क्यों हुआ... उनके माता-पिता की मौत के बाद अनुराधा (बड़ी बहन) ने अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल का जिम्मा लिया... ये अच्छी बात है कि आप अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और उसे निभाते भी हैं... लेकिन मेरा ये भी मानना है कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में इतना इन्वॉल्व नहीं होना चाहिए... कि खुद को ही इंसान भूल जाए... कोई भी चीज आपके खुद के ऊपर न हावी हो जाए...
अनुराधा सीए थी... उसने भाई-बहनों को पढ़ाया... लायक बनाया... लेकिन जब उसकी जिम्मेदारियां पूरी हो गईं... तो क्या उसे अपनी शादी के बारे में नहीं सोचना चाहिए था... सोनल (छोटी बहन) भी सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल थी... तो क्या उसे भी कोई लड़का नहीं मिल रहा था... भाई विपिन सबसे छोटा था... लेकिन दोनों बहनों ने उसकी शादी सबसे पहले 2007 में करा दी... भाई को भी ये सोचना चाहिए था... और बहनों को भी इस बारे में मनाना चाहिए था कि जितनी रेसपॉन्सिबिलिटी आपको निभानी थीं... आपने निभा लीं... अब पहले आप दोनों बहनों की शादी होनी चाहिए... लेकिन भाई ने भी इसके लिए दिल से कोशिश नहीं की होगी...
ये बहुत बड़ी सच्चाई है औरतों की... कि उनके लिए 30-35 के बाद घर बसाने के लिए जीवनसाथी मिलना अपने समाज में काफी कठिन होता है... कुदरत ने भी मर्द और औरत में, उसकी शारीरिक संरचना में फर्क किया है... जहां कोई लड़की 30 के बाद ढलने लगती है (मेडिकली प्रूव) वहीं लड़के 30 के बाद भी लड़कियों के मुकाबले यंग होते हैं... लड़कियां बड़ी भी जल्दी होती हैं... और लड़के देर से... इसलिए पहले के जमाने में लड़की और लड़के की शादी में दोनों की उम्र में थोड़ा अंतर रखा जाता था... 35से ऊपर की औरत आंटी होती है... जबकि लड़का भइया... लड़की की शादी 35 के ऊपर आश्चर्य या अफसोस का विषय होता है... जबकि लड़के के लिए ये चीज सामान्य मानी जाती है... लड़के के लिए लड़की किसी भी उम्र में मिल जाती है... विधुर हो तो मिल जाती है... तलाकशुदा हो तो मिल जाती है... लेकिन लड़कियों के लिए इन मामलों में काफी मुश्किल होती है... इस सच्चाई को समझना चाहिए...
अनुराधा और सोनल के साथ यही हुआ... माता-पिता की मृत्यु, कोई पुरुष दोस्त नहीं (जिसकी एक उम्र के बाद जरूरत होती है), भाई की शादी... और अलग रहने के लिए चले जाना... इन सबसे ये दोनों टूट गईं... उन्हें लगा कि अब उनाक क्या होगा... कौन सहारा होगा... किसके भरोसे जीएंगी... अच्छे पदों पर रहते हुए एक भावनात्मक असुरक्षा के घर कर जाने की वजह से और लगातार हादसों के कारण वे टूट गईं... और खुद को घर के अंदर बंद कर लिया...
जहां तक भाई और उसकी पत्नी का पक्ष देखें... तो भाई की पत्नी यानी भाभी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता... कोई भी लड़की जब शादी करती है... तो नई-नई शादी में पति का पूरा साथ चाहती हैं... उसके सपने होते हैं... और अगर मैंने अपने भाई के लिए कुछ किया है... तो हम भाई से उम्मीद कर सकते हैं... कि वो मुझे समझे... लेकिन दूसरे घर की बेटी... जिसने ये सब महसूस नहीं किया है... उससे हम इन सबको समझने की उम्मीद नहीं कर सकते... पर्सनली मेरा ये मानना है कि अनुराधा और सोनल चूंकि अकेली थीं... अपनी दुनिया उन्होंने भाई के आसपास ही बना रखी थी... शादी तो कर दी भाई की... लेकिन अचानक से किसी और लड़की का अधिकार भाई पर हो जाना... और उसके हर फैसले किसी और द्वारा लिया जाना... उन्हें जरूर खला होगा (सास-बहू के झगड़े और ईर्ष्या की सबसे बड़ी वजह)... इसके लिए आए दिन तनाव और मनमुटाव होते रहे... जहां तक भाई की बात है... शादी के बाद लड़का न तो पूरी तरह अपने घरवालों का पक्ष ले सकता है न बीवी का... और शादी के बाद पत्नी के प्रति उसकी जिम्मेदारियां नो डाउट ज्यादा होती हैं... क्योंकि पत्नी कंपलीटली उसपर डिपेंड होती है... इन्हीं सब वजह से विपिन अपनी पत्नी के साथ अलग हो गया... और अनुराधा और सोनल डिप्रेस हो गईं... वो हार गईं जिंदगी से... शायद परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते...
मेरी एक फ्रेंड है... जिसके ऊपर भी उसके परिवार की जिम्मेदारियां हैं... उसे एक लड़का प्यार करता था... और शादी करना चाहता था... लकिन वो निर्णय नहीं ले पा रही थी... अक्सर मुझसे पूछती थी कि कैसे अपने भाई-बहनों को छोड़कर शादी कर ले... लेकिन मेरा यही कहना था... कि तुम्हारे भाई-बहन 20 साल से बड़े हो चुके हैं... उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए... खासकर भाई को जो 22 साल का है... अब वे इतने छोटे नहीं कि खुद को संभाल न सकें... और कोई जरूरी नहीं कि शादी के बाद तुम उन्हें नहीं संभाल सकतीं... शादी के बाद भी मदद की जा सकती है... उनकी जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सकता है... जो लड़का तुमसे प्यार करता है... वो इन चीजों को जरूर समझेगा... वो तुम्हारा साथ जरूर देगा... तुम लड़के के सामने सबकुछ क्लीयर कर दो... और भगवान की कृपा से मेरी दोस्त आज एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रही है... और अपने परिवार की मदद भी कर रही है...
अनुराधा और सोनल को क्या मिला ये सब करके... बाकी सब लोग तो अच्छे ही रहे... इधर अच्छी खासी दोनों लड़कियों ने खुद को हड्डी का ढांचा बना लिया... दुनियाभर की बीमारियों का घर बन गया उनका शरीर... इससे फर्क किसे पड़ा... केवल उन दोनों को... बाकी दुनिया अफसोस जताएगी, खुद मैं कुछ दिनों या सालों बाद भूल जाऊं कि कौन अनुराधा या सोनाली... लेकिन दुनिया किसकी चली गई... उन दोनों की... इसलिए किसी के लिए खुद को खोने की जरूरत नहीं... प्यार ऐसा करें जो कन्सट्रक्ट कर दे... डिस्ट्रक्ट नहीं...
इसलिए खुद को रिश्तों के भंवर जाल में ज्यादा नहीं फंसाना चाहिए... खुद के लिए भी थोड़ा स्वार्थी होना चाहिए... (जिसमें दूसरों की जिंदगी न बर्बाद होती हो), खुश रहना चाहिए... और अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए... क्यों कि लोग तो केवल छीनने के लिए बैठे हैं... चाहे वो कोई भी हो... अपने बारे में खुद ही सोचना होगा... जो खुद अपनी खुशी के बारे में नहीं सोच सकता ... उसके बारे में दूसरा क्यों सोचेगा... इसलिए थोड़ा स्वार्थी हों... और खुश रहें... भाई-बहन से उम्मीद ज्यादा नहीं रखनी चाहिए... क्योंकि सबके अपने परिवार हैं... उन्हें उनके बारे में भी सोचना है... इसलिए अपना घर भी बसाएं...
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