खेल खत्म….खेल शुरू......पर क्या निकलेगा कोई नतीजा ?


खेल खत्म हो गए पर असली खेल तो अब चालू हुआ है.....जो खेल हुआ उसमे भले ही भारत की जय हुई हो....पर अब जो खेल चल रहा है उसमे अगर कोई हारेगा तो भारत..इस खेल में जितना सच सामने आएगा उतनी भारत की नाक पूरे विश्व के सामने कटेगी और ये खेल भी बहुत खतरनाक है इस खेल में अपनों को ही अपने देश से गद्दारी करने की सजा मिलेगी पर हारेगा हमारा देश ही...जी हां कॉमनवेल्थ खेल खत्म हो गया पर अब जांच शुरू हो गई है कि किसने कितना पैसा खाया..और यही है असली खेल के पीछे का खेल जहां हमेशा भारत हारता रहा है...हर बार की तरह इस बार भी खूब हल्ला हो रहा है....घोटाले को लेकर हाय तौबा मची हुई है पर इतिहास गवाह है इस देश का कि हम न तो भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाब रहे हैं और न भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने में...आज तक इस देश में जितने घोटाले हुए हैं उनमे से शायद ही किसी को सजा हुई है....पर हमे एक चीज में महारत हासिल है वो है जांच कमेटियां बनाने में....पहले घोटाला होता है देश के गरीबों का पैसा नेता और अधिकारी डकार जाते हैं और फिर बनती है जांच कमेटी... जिसका बार बार कार्यकाल बढ़ा दिया जाता है और 20 से 30 साल बीत जाते हैं न तो किसी को सजा होती और न ही कार्रवाई होती है....वोफोर्स कांड हो...ताबूत कांड हो...हवाला कांड हो या और न जाने कितने ही कांड इस देश में हो चुके हैं कभी इस देश में किसी नेता को सजा नहीं हुई..इस बार भी एक जांच कमेटी बना दी गई है......पता नहीं कितनी बार इसका कार्यकाल बढ़ेगा...सजा किसी होगी इसकी उम्मीद शायद ही देश के लोगों को हो...पर यहां एक बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि हम सिर्फ कागजी जांच पर ही क्यों भरोसा रखते है ? क्यों नहीं कुछ ऐसा हो की भ्रष्टाचार हो ही न पाए ऐसा कानून बने.. क्यों न कुछ ऐसा हो अगर कोई पैसा खा रहा है तो उसे समय रहते ही पकड़ लिया जाए...आखिर क्यों हमारा देश की जांच एजेंसी इस बात का इंतजार करती है कि पहले घोटाला हो जाए और जब हल्ला होगा तो जांच कर लेंगे...वैसे जो भी व्यक्ति जमीन से जुड़ा है वो बहुत अच्छे से जानता है कि इस भ्रष्टाचार की जड़े क्या हैं...आज हमारे देश के छोटे से गांव से ये भ्रष्टाचार चालू होता है और संसद में बैठे सांसदों तक पहुंचता है...गांव में एक जाति प्रमाण पत्र बनवाने मैने खुद बचपन में दौ सौ रुपए दिए हैं...और सुनिए एक बार कॉलेज चुनाव के दौरान हमारे गुट का दुसरे गुट से झगड़ा हो गया हमने शायद 3 या 4 हजार रुपए दिए थाने में बैठे अधिकारी को और किसी पर मामला दर्ज नहीं हुआ....मैं कॉलेज की पढ़ाई करने गंजबासौदा से भोपाल अप -डाउन करने लगा....कभी मैने ट्रेन में टिकट नहीं लिया..हमेशा बिना टिकट जाता था..और मेरे साथ ऐसा करते थे करीब 40 से 50 लड़के....महीने में शायद एक या दो बार हमे टिकट चैक करने वाला मिल जाता था हम सब 20-20 रुपए मिलाते थे और करीब 800 से हजार रुपए देते थे टीसी को और फिर क्या पूरे महीने तक हमे लायसेंस मिल जाता था बिना टिकट यात्रा करने का...भोपाल में कभी मैने ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवाया कभी ट्रैफिक पुलिस वाला मिल जाए तो बस 50 रुपए में हम बच जाते थे फिर चाहे बाइक में तीन बैठे हों या तीस....कुल मिलाकर 50 रुपए में मैं कानून खरीद लेता था और 50 रुपए लेने के बाद ये पुलिस वाला भी कई दिनों तक हमसे कुछ नहीं कहता था...खैर मैरे अनुभव और भी हैं पर सब बताना मुश्किल है....कहने का मतलब ये है कि भ्रष्टाचार देश के एक छोटे से गांव से पैर पसारना चालू करता है और फिर संसद में बैठे नेताओं तक पहुंचता है....और एक बात और जब एक नेता 25 लाख रुपए अपनी पार्टी को देकर विधायक का टिकट लाता है और तब वो पांच साल में पांच करोड़ कमाने की सोचता है..एक पुलिस का सिपाही बनने के लिए मेरे ही एक करीबी दोस्त ने साढ़े तीन लाख की रिश्वत दी है...आज अगर मैं उससे कहूं की रिश्वत क्यों लेते हो तो उसका एक ही जवाब होता है कि जो दिया वो वसूल तो करेंगे ही...... मीडिया में भी पेड न्यूज के नाम पर सिर्फ रिश्वत लेने का काम चल रहा है...हम आधे घंटे किसी नेता या मुख्यमंत्री की तारीफ दिखाते हैं बदले में कहने को तो विज्ञापन का पैसा मिलता है पर वो एक तरह की रिश्वत ही है अपने अंदर के पत्रकार को आधे घंटे तक मारके रखने की... कॉमनवेल्थ में हुए घोटाले में भले ही जांच कुछ कहे पर आज देश के कोने कोने में जो भ्रष्टाचार रुपी राक्षक फैला है जब तक हम उसे नहीं मारेगे तब तक कुछ नहीं होने वाला...खैर बचपन में मैने भी बहुत रिश्वत ली है पापा कहते थे परीक्षा में अच्छे नंबर लाओ तो चॉकलेट दिला देंगे......और सिर्फ एक चॉकलेट के लिए हम पढ़ाई करते थे......तो सबसे पहले मेरे और आपके अंदर बैठे रिश्वतखोर को मारो फिर पूछना कॉमनवेल्थ में घोटाला किसने किया ?


रोमल भावसार

देश के अंदर बैठे रावण कब जलेंगे ?

चलो सब ठीक हो गया.......हां भाई गलत क्या है सब ठीक हो गया.......खूब हल्ला हुआ.......... खूब शोरशराबा हुआ......... पर शुक्र है कि सब कुछ निपट गया........जी हां यही कुछ शब्द हर उस मुद्दे पर हैं जो पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में थे.......... हम तो दिल में संतोष करके बैठे थे कि भगवान की दया से सब कुछ ठीक हो गया..... पर हमे क्या पता था कि 'फिल्म अभी बाकी है'... पिछले दिनों अयोध्या और कॉमनवेल्थ खूब सूर्खियों में थे...अयोध्या पर फैसला आने के पहले तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे........देश की शांति की चिंता भी नेताओं को होने लगी थी.......ये बात अलग है कि पहली बार नेताओं को देश में शांति बनाए रखने की चिंता हुई.... अगर यही सदबुद्धि भगवान ने इन्हे पहले दे दी होती तो 1984 में बेकसूर सिखों की हत्या नहीं होती.....1992 में पूरा देश दंगों की आग में नहीं जलता.....और न ही गुजरात में बहती खून की नदियां...... पर चलों देर आए दुरस्त आए.....खैर कोर्ट का फैसला भी आ गया और पूरे देश के लोगों में जिस तरह शांति थी उससे ये भी पता चल गया की आग कहीं भी लगे उसकी चिंगारी नेताओं के भाषण से ही निकलती हैं.....खैर बात दूसरे मुद्दे की........ कॉमनवेल्थ शुरू होने के पहले खूब हल्ला हुआ....जामा मस्जिद के पास बस में हुई फायरिंग के बाद तो हाय तौबा मच गई...मीडिया ने भी खूब हल्ला मचाया......तैयारियों को लेकर खूब सवाल खड़े किए गए....बात भ्रष्टाचार की भी आई पर आखिरकार सब कुछ सही तरीके से हो गया.....भारत भी 101 मेडल जीतकर दूसरे नंबर पर आ गया....पर मैं आज ये सब बाते क्यों लिख रहा हूं...दरअसल जब हम ये सोचते हैं कि सब सही हो गया असल में बात वहीं से चालू होती है....अयोध्या पर एक बार फिर बयानबाजी चालू हो गई मुस्लिम पर्सनल लॉ और इमाम बुखारी जो कल तक कोर्ट के फैसले को मानने की बात कर रहे थे अब एक बार फिर फालतू की बयानबाजी पर उतर आए हैं.. कुछ यहीं हाल खुद को हिंदुओं का ठेकेदार समझने वाले भगवा संगठनों का है......इधर कॉमनवेल्थ भी निपट गया पर अब उन लोगों पर शिकंजा कसना चालू हो गया जिन्होने खेल के आड़ में खूब पैसा खाया...आज इस सब बातों को लिखने का क्या मतलब है...दरअसल नवरात्रि खत्म हो गई और दशहरा आ गया....फिर रावण का पुतला जलेगा....फिर बात होगी कि बुराई पर अच्छाई के प्रतीक की...पर देश के अंदर बैठे इन रावणों का हम क्या करें ?... हिंदू और मुस्लिम के नाम पर बार बार देश को जलाने बारे एक बार फिर भौकने लगे हैं.... फिर कोशिश हो रही है चिंगारी लगाने की....फिर ये लोग देश से बढ़कर मंदिर और मस्जिद को समझने लगे हैं...फिर 1992 जैसे शब्द सुनाई देने लेगें...कोई मेरी मस्जिद बोल रहा तो कोई मेरा मंदिर... कहीं ऐसा न हो कि हम रावण को जलाने में व्यस्त रहे और ये लोग देश को जला दें....कॉमनवेल्थ में देश का पैसा खाने वाले रावण अभी जिंदा हैं.......देश को खोखला करने वाले कट्टरपंथी लोग भी अभी जिंदा है......नक्सलियों का आतंक सातवें आसमान पर है.....और हम बुराई का अंत करने फिर जलाने जा रहे हैं एक रावण के पुतले को.....आज इस दौर में लोगों को समझना चाहिए कि अगर किसी ने सबसे ज्यादा इस देश को बर्बाद किया है तो वो नेता है ....'नेता' जो सिर्फ अपना हित देखता है.....जरुरत ये भी कि आज सबसे पहले अपने अंदर के रावण को जलाएं और उसके बाद हमारे परिवार में बैठे रावण को मारे....फिर मोहल्ले में...ऑफिस में.....कॉलेज में जो राणव है उनको मारे और देश में राम राज्य तब ही आ सकता है जब रावण हर दिल में मर जाए...नवरात्रि खत्म हो गई..माता की मूर्तियों की विदाई का समय आ गया पर लोगों के दिल में जो मेल भरा होता है...जो स्वार्थ भरा होता हो वो न तो गणेश जी साथ विदा होता है न दुर्गा जी के साथ....दिल में जो पाप है जिस दिन उसका विर्सजन हो जाए उस दिन सब सुधर जाएगा....नहीं तो दिल को बहलाने के लिए हमेशा की तरह यही कहेंगे 'चलो शुक्र है सब ठीक से निपट गया'




रोमल भावसार