भिखारियों का गांव



इसे विडंबना कह लीजिये या फिर हमारे सरकारों की लापरवाही कि, आज भी एक गांव ऐसा है।जहां विकास की रोशनी की बाट वहां की जनता जोह रही है। जहां के बच्चे स्कूल इसलिए नहीं जाते क्योंकि अगर वे स्कूल चले गए तो रात में भूखे सोना पड़ेगा,वहां के लोगों को आज भी प्यास बुझाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।वहां के लोगों को आज भी तम्बुओं में रात गुजारने पड़ते हैं।गांव की कहानी और बयां करें उससे पहले उसका नाम बता देते हैं। मध्य प्रदेश के कटनी की परेवागर गांव की ये दास्तां है। इस गांव में जितने भी परिवार हैं। सब भिखारी हैं,फकीर हैं,और कोई इनकी खबर लेने वाला नहीं है। गांव की अनार बाई के मुताबिक, चुनाव के वक़्त नेता इनसे हर समस्या से निजात दिलाने का वादा करते हैं। पर जीत जाने के बाद वादा भूल जाते हैं। लेकिन तमाम तरह की असुविधाओं के बावजूद यहां के लोग खुश रहते हैं। गांव में हर जाति के लोग रहते हैं,लेकिन उनके बीच मज़हब और अमीरी गरीबी का भेदभाव नहीं है। सबके घर में भीख मांगने के बाद ही चूल्हा जलता है। इनकी हालत सुन हम और आप भले ही दुखी हो,पर वहां के लोग हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। गांव में विकास की रोशनी नहीं पहुची तो विकास की बात करना बेमानी है। फिर भी गांव का महबूब अपने घर में हर सुविधा रखे है। मसलन टीवी,मोबाइल,सीडी। जब भी गांव वाले एक साथ बैठते हैं। मनोरंजन का दौर चल पड़ता है। हालांकि गांव की रंजीता कहती है कि,जो जिंदगी वो जी रही है। वैसी जिंदगी उसके बच्चे को नसीब न हो तो अच्छा,पर अफ़सोस की संसाधन के आभाव में गांव का हर बच्चा भीख मांगने को मजबूर है। सोनू ने  बताया कि, वो पढ़ाई करना चाहता है,लेकिन अगर वो स्कूल जायेगा तो फिर रात को उसे भूखे सोना पड़ेगा। यानी सब के सब हालात के आगे बेबस हैं। ज़रा याद कीजिये जब मुंबई की धरावी पर फिल्म स्लमडॉल मिलेनियर बनी थी। उस वक़्त हमारे नेताओं ने कैसे हल्ला मचाया था कि,फिल्म में भारत की गलत तस्वीर पेश की गई है,लेकिन इस गांव के बारे में क्या कहेंगे हमारे सफेदपोश।धरावी में रहने वालों को बिजली तो नसीब होती है,पर यहां के लोगों को तो आज भी लालटेन युग में जीना पड़ रहा है।एक तरफ तो हम विकसित देश होने का सपना संजो रहे हैं। वहीं  दूसरी ओर इस गांव की कहानी उन सपनों को मुंह चिढ़ा रही है। कोई बताएगा कि,विकसित हो जाने के पहले क्या परेवागर गांव की सूरत और सिरत बदल जाएगी?


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