जिस तरह से क्रिकेट के खिलाडी़ के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मेरा मानना है कि,ठीक उसी तरह सियासत में भी कुछ असंभव नहीं है। क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी जिस तरह से कभी शतक लगा के वाहवाही लूट लेते हैं और कभी शून्य पर आउट होकर फजीहत करवा लेते हैं। उसी तरीके से अपने चरित्र की दुहाई देने वाले कुछेक सियासतदां ऐसा कर देते हैं जिससे वो तो परेशान होते ही हैं। साथ ही साथ सियासी गलियारों में भी भूचाल ला देते हैं। ताजा मामला राजस्थान से जुड़ा है। जहां पर भंवरी के भंवरजाल वाली सीडी ने इस कदर तूफान ला दिया कि,प्रदेश के साथ-साथ देश की सियासत भी हिल गई। जोधपुर की महत्वाकांक्षी नर्स भंवरी और गहलोत सरकार में मंत्री रहे महिपाल मदेरणा की सीडी जबतक लॉकर के अंदर थी। सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन ज्योंहि सीडी बाहर निकली। ऐसा बवाल मचा कि,मदेरणा की कांग्रेस से विदाई हो गई और राजस्थान सरकार को प्राश्यचित के रुप में पुनर्गठन का फैसला लेना पड़ा। इस सियासी हायतौबा से हम सबों को बहुत कुछ सबक लेना चाहिए। औरत हो या मर्द। उसे उतना ही महत्वाकांक्षी होना चाहिए। जितने में उसकी और समाज की सेहत खराब न हो। जोधपुर की नर्स भंवरी कुछ साल पहले तक एक साधारण महिला थी। लेकिन दुनिया की चकाचौंध में कम पढ़ी लिखी भंवरी ने उसे शॉर्टकट से पाने की चाहत पाल ली। अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने अपने जिस्म को जरिया बनाया और सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते पहुंच गई सियासत के भंवरजाल में। जहां पर उसने और उपर तक के सफर को तय करने के लिए मदेरणा को अपना हमसफर बना लिया। इस खतरनाक सफर में एक को अपना सपना पूरा करना था तो दूसरे को जिस्म का इस्तेमाल करने की बुरी लत थी। कह सकते हैं कि,दोनों ने पाया कि,वो एक दूसरे का ख्वाब पूरा कर सकते हैं। भंवरी ने मदेरणा को भंवरा बनाया। भंवरा बनकर मदेरणा ने रस का भरपूर आनंद भी लिया।लेकिन कहते हैं न कि,भंवरे की आदत होती है हर फूल पर बैठने की। कुछ ऐसा ही हुआ मदेरणा के साथ भी। उसने भंवरी से दूरी बनाने की सोची। लेकिन महत्वाकांक्षी भंवरी उसके इरादे को भांप गई। उसने एक बार फिर से जिस्म के जाल में अपने भंवरे को फांसा और अपनी और उसकी रंगीन कहानी को कैद कर लिया एक सीडी में। जिसे वो तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती थी। पर शायद उसे सियासत की ताकत का अंदाजा नहीं था। भंवरी के लिए वही सीडी मौत का भंवरजाल बन गई। इस पूरी घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि,सियासत और हुस्न जब एक गाड़ी पर सवार हो तो एक्सीडेंट होने से कोई रोक नहीं सकता।
समय
कुछ अपनी...
इस ब्लॉग के ज़रिए हम तमाम पत्रकारों ने मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश की है, जो एक सोच... एक विचारधारा... एक नज़रिए का बिंब है। एक ऐसा मंच, जहां ना केवल आवाज़ मुखर होगी, बल्कि कइयों की आवाज़ भी बनेंगे हम। हम ना केवल मुद्दे तलाशेंगे, बल्कि उनकी तह तक जाकर समाधान भी खोजेंगे। आज हर कोई मशगूल है, अपनी बात कहने में... ख़ुद की चर्चा करने में। हम अपनी तो कहेंगे, आपकी भी सुनेंगे... साथ मिलकर।
यहां एक समन्वित कोशिश की गई है, सवालों को उठाने की... मुद्दों की पड़ताल करने की। इस कोशिश में साथ है तमाम पत्रकार साथी... उम्मीद है यहां होने वाला हर विमर्श बेहद ईमानदार, जवाबदेह और तथ्यपरक होगा। हम लगातार सोचते हैं, लगातार लिखते हैं और लगातार कहते हैं... सोचिए, अगर ये सब मिलकर हो तो कितना बेहतर होगा। बिल्कुल यही सोच है, 'सवाल आपका है' के सृजन के पीछे। सुबह से शाम तक हम जाने कितने चेहरों को पढ़ते हैं, कितनी तस्वीरों को गढ़ते हैं, कितने लोगों से रूबरू होते हैं ? लगता है याद नहीं आ रहा ? याद कीजिए, मुद्दों की पड़ताल कीजिए... इसलिए जुटे हैं हम यहां। आख़िर, सवाल आपका है।।
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भंवरी का भंवरा
प्रस्तुतकर्ता
राज किशोर झा
on बुधवार, 16 नवंबर 2011
लेबल:
भंवरी,
मदेरणा,
राज किशोर झा
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