आज महान गायक मोहम्मद रफी साहब की जंयती है। रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924 को हुआ था। साल 1940 से इस फनकार ने गायिकी की दुनिया में कदम रखा और 1980 तक करीब 26 हजार गीतों को अपनी आवाज दी। आज पूरा देश इस महान फनकार को याद कर रहा है। रफी साहब ने बॉलीवुड में हर तरह के गाने गाए। मदमस्त आवाज वाले इस फनकार को दुनिया मोहम्मद रफी और शहंशाह ए तरन्नुम  के नाम से जानती है। साल 1960 में रफी साहब को बेमिसाल गायिकी के लिए पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला। इसके बाद 1961 में दूसरा और फिल्म दोस्ती के लिए 1965 में तीसरा फिल्म फेयर अवार्ड मिला। फिर 1966 में फिल्म सूरज के लिए चौथा और 1968 में फिल्म ब्रह्मचारी के लिए पांचवा फिल्म फेयर अवार्ड मिला। ये महान कलाकार आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं। पर इनकी आवाज हमेशा हमारे बीच गूंजती रहेगी। शायद इसीलिए हम कहते हैं न फनकार तुझसा तेरे बाद आया,मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया। 

चैंपियन 'ईयर' 2011


मैं हूं साल 2011.....मैं वो साल हूं जो घड़ी की सुइयों के चंद सफर के साथ ही इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए समा जाउंगा.....लेकिन जाने से पहले मैं आपको अपने एक साल की पूरी दास्तां सुनाना चाहता हूं.....वो दास्तां जो मेरे साथ तो हमेशा ही रहेगी....लेकिन जिसे आप भी अपने जहन में हमेशा के लिए बसा लेंगे.....तो दोस्तों शुरू करता हूं मैं अपना सफर....ठीक एक साल पहले, जब साल 2010 जाने वाला था और मैं दस्तक देने वाला था....तो मैं काफी खुश हुआ....क्योंकि मेरा सफर जब शुरू हुआ, तो टीम इंडिया दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर थी....टीम इंडिया के लिए प्रोटीज दौरा कभी भी आसान नहीं रहा.....लेकिन इस बार की बात कुछ और ही थी....टीम इंडिया, प्रोटीजों की जमीं पर ऐसे खेली....जिसे देखकर हर कोई दंग रह गया....हालांकि एक बार फिर उसके हाथ जीत नहीं आई....लेकिन उसने मेजबानों को भी जीत से महरुम कर दिया.....और टीम इंडिया के इस शानदार प्रदर्शन के साथ ही टेस्ट सीरीज ड्रॉ हो गई....टीम इंडिया के इस प्रदर्शन को देख मेरा चेहरा भी खुशी से दमक उठा....लेकिन टेस्ट सीरीज के साथ ही टीम इंडिया के सामने दूसरी चुनौती तैयार थी.....और वो चुनौती थी प्रोटीजों के साथ वनडे सीरीज की....और टीम इंडिया के लिए वनडे सीरीज का सफर हार के साथ शुरू हुआ....टीम की हार को देखकर मैं थोड़ा सा घबरा गया....लेकिन भारतीय टीम ने दूसरे और तीसरे वनडे को जीत मेरे चेहरे की चमक लौटा दी....मैं इस बात को सोचकर खुश हो रहा था, कि वनडे सीरीज की जीत का सेहरा टीम इंडिया के सर बंधने वाला था.....लेकिन टीम इंडिया ने चौथा और पांचवां वनडे हारकर मेरा सपना तोड़ दिया....लेकिन टीम ने प्रोटीज दौर पर जैसा खेल दिखाया, उससे मुझे टीम इंडिया का आने वाले कल का सुनहरा दिखाई देने लगा....क्योंकि इस दौरे के बाद जैसे टीम इंडिया अपनी जमीं पर पहुंची....शुरू हो गया क्रिकेट का सबसे बड़ा कुंभ....जी हां वो महाकुंभ जिसे आप सभी क्रिकेट वर्ल्ड कप के नाम से जानते हैं.....और इस महाकुंभ की शुरुआत हुई भारत और बांग्लादेश के मैच के साथ....अपने पहले ही लीग मुकाबले में टीम इंडिया ने बांग्लादेशी टीम को चारों खाने चित करते हुए....इस महाकुंभ में शानदार आगाज किया.....टीम इंडिया के आगाज को देख इसमें शामिल होने वाली सभी टीमें घबरा गईं....वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के सामने दूसरी चुनौती थी फिरंगी टीम की....और इन दोनों टीमों के बीच क्रिकेट का ऐसा रोमांचक मैच हुआ....कि मैदान पर बैठे हर दर्शक की सांसे थम गई और मैच टाई हो गया....मैं टीम इंडिया से थोड़ा सा नाराज हो गया, क्योंकि उसने हाथ में आया मौका गवां दिया....एक बार फिर मैं अपनी रफ्तार से आगे बढ़ा....और टीम इंडिया को लेकर पहुंच गया लीग मुकाबलों के आखिरी पड़ाव पर.....जहां उसका आखिरी लीग मैच में मुकाबला हुआ वेस्टइंडीज से.....और एक बार फिर टीम इंडिया ने अपने पराक्रम से कैरेबियाई टीम के होश उड़ा दिए....और इस शानदार जीत के साथ उसने वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइलन में अपनी बर्थ बुक कर ली.....टीम इंडिया के क्वार्टर फाइनल में जाने से मैं काफी खुश था....और उससे ज्यादा खुशी इस बात से हो रही थी....कि क्वार्टर फाइनल में टीम इंडिया का मुकाबला ऑस्ट्रेलिया से होगा....उस ऑस्ट्रेलिया से जिससे टीम इंडिया को वर्ल्ड कप में अपने पिछले कई पुराने हिसाब चुकता करने थे....और फिर आया वो मंजर जब ये दोनों टीमें आमने-सामने आईं....और टीम इंडिया ने कंगारुओं से अपने सारे पुराने हिसाब चुकता करते हुए, उसकी वर्ल्ड कप से विदाई कर सेमीफाइनल में जगह बना ली....टीम इंडिया की इस जीत से मेरे चेहरा खुशी से दमक उठा....क्योंकि सेमीफाइनल में उसका मुकाबला पाकिस्तान से होने वाला था....वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल मुकाबले में जब भारत-पाकिस्तान की टीमें एक-दूसरे को चुनौती देने के लिए उतरी....तो दोनों टीमों के लिए ये मुकाबला ही वर्ल्ड कप का फाइनल हो गया....इस हाईवोल्टेज मुकाबले में टीम इंडिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 260 रनो का स्कोर बनाया....पाकिस्तान ने टीम इंडिया को पटखनी देने के लिए दमदार शुरुआत की....लेकिन जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ा, पाकिस्तान ने अपने घुटने टेकना शुरू कर दिया....और टीम इंडिया, पाकिस्तान को पटखनी देकर 28 साल बाद अपने सपने को साकार करने के और करीब पहुंच गई....टीम इंडिया के लिए ये पहला मौका था जब वो अपनी जमीं पर क्रिकेट के कुंभ के फाइनल मुकाबले में डुबकी लगाने को पहुंची थी....श्रीलंका के साथ होने वाले इस महामुकाबले के लिए मुंबई का वानखेड़े स्टेडियम के साथ सैकड़ों खेलप्रमी टीम इंडिया को चैंपियन बनाने के लिए पूरी तरह तैयार थे....और मैं उस पल को सोचकर रोमांचित हो रहा था, जो मैं पहले ही देख चुका था....इस महामुकाबले में श्रीलंकाई टीम ने महेला जयवर्द्धने के शतक के साथ टीम इंडिया को 275 रनों की चुनौती दी....और इस लक्ष्य का पीछा करत हुए टीम इंडिया जैसे ही सहवाग और सचिन आउट हुए....टीम इंडिया का 28 साल बाद चैंपियन बनने का सपना फिर से धुंधला होने लगा....लेकिन चैंपियन बनने का ये मौका इस बार हाथ से निकल जाता.....तो दोबारा न जाने कब मिलता....और टीम के धुंधले होते इस सपने को मैदान पर फिर से संजोने का काम किया गौतम गंभीर और विराट कोहली की जोड़ी ने....लेकिन जैसे ही विराट कोहली का विकेट गिरा, लंकाई टीम फिर से फ्रंट फुट पर आ गई.....ऐसे में कप्तान धोनी मैदान पर आए, और उन्होंने मैदान पर खेली चमत्कारी पारी.....एक ऐसी पारी जो इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज हो गई....और धोनी के बल्ले से जैसे ही चमत्कारी छक्का निकला....मैं कुछ देर के लिए वहीं थम गया....क्योंकि टीम इंडिया के जश्न को जो नजारा मैं मैदान पर देख रहा था, वो पूरे 28 सालों के बाद आया था.....टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप की ट्रॉफी के साथ जमकर जश्न मनाया.....और उसके इस जश्न में में भी शरीक हो गया....अब मैं खुद पर इस बात से इतरा रहा था, कि मैं ही वो साल 2011 हूं....जिसमें टीम इंडिया दूसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बनीं....टीम इंडिया अब वर्ल्ड चैंपियन बन चुकी थी....उसने क्रिकेट बिरादरी में अपनी ताकत साबित कर दी थी....और अपनी इसी ताकत का प्रदर्शन करने टीम इंडिया ने कैरेबियाई जमीं पर जून के महीने में कदम रखा....और उसने मेजबान वेस्टइंडीज के साथ सबसे पहले 5 वनडे मैचों की सीरीज खेली....और 5 मैचों की सीरीज के पहले 3 मैच जीतकर सीरीज अपने नाम कर ली....लेकिन अगले दोनों मुकाबलों में टीम इंडिया को हार का सामना करना पड़ा....इसके बाद टीम इंडिया को मेजबानों से टेस्ट सीरीज में दो-दो हाथ करने थे....और टीम इंडिया ने सीरीज 1-0 के अंतर से जीत, टेस्ट सीरीज भी अपने नाम कर ली....क्रिकेट वर्ल्ड कप और फिर वेस्टइंडीज का दौरा करने के बाद टीम इंडिया पूरी तरह थक चुकी थी....लेकिन उसकी चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई थी....क्योंकि उसके सामने अब सबसे बड़ी चुनौती, यानि इंग्लैंड का दौरा था.....मैं टीम इंडिया के इस दौरे को लेकर छोड़ा घबरा गया....क्योंकि थके हारे खिलाड़ियों के देख मुझे खिलाड़ियों में आत्मविश्वास की कमी साफ दिखाई दे रही थी और हुआ भी कुछ ऐसा ही....टीम इंडिया का इंग्लैंड दौरा जुलाई महीने में लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान से ऐतिहासक दो हजारवें टेस्ट की चुनौती के साथ शुरू हुआ....और पहले ही टेस्ट में टीम इंडिया के नसीब में शर्मनाक हार तो आई ही....इस टेस्ट से टीम के खिलाड़ियों का चोटिल होना भी शुरू हो गया....टेस्ट के ताज पर राज करने वाली टीम इंडिया का इंग्लैंड दौरा जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था....उसकी टेस्ट बादशाहत पर बट्टा लगता जा रहा था....टीम इंडिया को लॉर्ड्स के बाद नॉटिंघम, बर्मिंघम और ओवल में भी हार का सामना करना पड़ा....जो टीम इंग्लैंड दौरे से पहले टेस्ट की बादशाह थी....वो अब टेस्ट रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गई....टीम इंडिया की ये हालत मुझसे देखी नहीं गई.....लेकिन मैं भी मजबूर था, शायद मुझे टीम इंडिया की अभी और हार देखना थीं....क्योंकि टेस्ट के बाद जब वनडे सीरीज का संग्राम शुरू हुआ....तो टेस्ट मैचों के हार की तरह वनडे में भी उसकी हार का सफर जारी रहा....इंग्लैंड ने उसे 5 वनडे मैचों की सीरीज में 3-0 से मात दे दी....वहीं एक मैच टाई और एक का परिणाम नहीं निकल सका....इतना ही नहीं एकमात्र टी-20 मुकाबले में भी मेजबानों ने टीम इंडिया के नसीब में हार लिख दी....वर्ल्ड चैंपियनों की इस हालत को देख मेरी आंखें भी नम हो गईं....टीम इंडिया इंग्लैंड दौरे से सबकुछ लुटाकर घर वापस लौट आई.....टीम की इस हार पर कई सवाल खड़े हो गए....जिसका जवाब किसी के पास नहीं था.....किसी ने इसे टीम इंडिया का लचर प्रदर्शन कहा....तो किसी ने कहा कि, धोनी की किस्मत उनसे रूठ गई....टीम इंडिया सवालों के समंदर में चौतरफा घिर चुकी थी....और अब उसे इंतजार था इंग्लैंड के भारतीय दौरे का.....क्योंकि वो इंग्लैंड को अपनी जमीं पर हराकर ही, आलोचकों के मुंह पर ताला लगा सकती थी....और फिर आया वो दिन, जब फिरंगी टीम अपने लाव-लश्कर के साथ भारतीय जमीं पर अक्टूबर महीने में कदम रखा....इधर टीम इंडिया को इंग्लैंड दौरे पर मिली हार का जख्म अब नासूर बन चुका था....ऐसे में ये जख्म को सिर्फ इंग्लैंड की हार से ही भर सकता था....और इस जख्म को भरने के लिए टीम इंडिया ने फिरंगियों के खिलाफ अपना मिशन लगान शुरू किया....और लगान के मिशन की शुरुआत हुई हैदराबाद वनडे के साथ.....अपने पहले ही मैच में टीम इंडिया ने फिरंगियों को बुरी तरह पीट दिया....अंग्रेजों की हार को देख मेरा मुरझाया चेहरा फिर से खिल उठा....साथ ही टीम इंडिया के खिलाड़ियों का खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से लौट आया....और टीम इंडिया ने इंग्लैंड को उसी के अंदाज में हराते हुए दिल्ली, मोहाली, मुंबई और कोलकाता वनडे से सूपड़ा साफ कर दिया....इंग्लिश टीम जहां अपनी हार से हैरान थी....तो माही के मतवाले फिर से मस्त हो चुके थे....हालांकि इंग्लैंड ने टी-20 मैच में भारत को हराकर अपनी लाज बचा ली....टीम इंडिया एक बार फिर से विनिंग ट्रैक पर लौट चुकी थी....टीम की इस धमाकेदार जीत को देख मैं खुशी के समंदर में डुबकी मारने लगा....इसी बीच यानि नवंबर में वेस्टइंडीज ने 5 वनडे मैचों की सीरीज के लिए भारतीय जमीं पर कदम रखा....वेस्टइंडीज के खिलाफ धोनी ने बोर्ड से आराम मांग लिया....और टीम इंडिया की कमान वीरेंद्र सहवाग को सौंप दी गई.....विंडीज ने भारतीय दौरे पर अपना पहला मुकाबला कटक के बाराबती स्टेडियम पर खेला....और इस रोमांचक मुकाबले में टीम इंडिया ने 1 विकेट से जीत दर्ज कर ली....टीम इंडिया ने विशाखापट्टनम वनडे में भी मेहमानों को मात दे दी.....लेकिन तीसरे वनडे में उसने टीम इंडिया को हाराकर सीरीज में पहली जीत दर्ज की....इसके बाद दोनों टीमें पहुंची इंदौर के होलकर स्टेडियम....और यहां पर जो हुआ किसी चमत्कार से कम न था....क्योंकि टीम इंडिया के कप्तान वीरेंद्र सहवाग ने 219 रनों की पारी खेल नया इतिहास रच दिया....वनडे क्रिकेट में ये वो पारी थी, जिसने भारतीय क्रिकेट की डिक्सनरी में एक नया अध्याय जोड़ दिया....और मुझे टीम इंडिया ने जाने से पहले एक नई सौगात दे दी....अब टीम इंडिया का दिसंबर से ऑस्ट्रेलियाई दौरा शुरू हुआ....लेकिन इस दौरे का परिणाम आखिर साल 2012 में आना है.....इसलिए टीम इंडिया के इस दौरे की अधूरी दास्तान साल 2012 सुनाएगा.....अच्छा दोस्तों अब मेरे जाने के वक्त हो गया....समय का पहिया यूं तो मुझे कभी वापस नहीं ला सकेगा....लेकिन आप जब भी क्रिकेट की डिक्सनरी में साल 2011 को देखेंगे....तो मुझे हमेशा अपने सामने पाएंगे।

उधार की जिंदगी


13 दिसंबर 2001 का दिन हम कभी भूल नहीं सकते,क्योंकि ये वो काली तारीख है,जब पांच आतंकियों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया और AK- 47 की गोलियों से हमारे सीने पर ऐसा जख्म दिया,जो आज तक ताजा है। हमले में हमने अपने 9 वीर सपूतों को खो दिया। शहीदों ने पांचों आतंकियों को मौत के घाट तो उतारा ही साथ ही साथ संसद भवन में उस वक्त मौजूद करीब दौ सौ से ज्यादा सांसदों को बचाया। पुलिस की तत्परता के चलते एक साल के भीतर ही हमले में शामिल एक मास्टर माइंड अफजल गुरू पकड़ा गया,लेकिन अफसोस की शहीदों ने जान की बाजी लगाकर जिन सांसदों को बचाया,वही सांसदों की जमात वोट बैंक के जाल में अफजल की फांसी को ऐसे उलझाया कि, फंदे की फाइल दिल्ली सरकार,गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन की गलियों में भटक रहा है। ये तो थी हमले की कहानी,अब आते हैं असल मुद्दे पर,13 दिसंबर को टीवी खोला तो देखा कि,हमारे ज्यादातर सांसद संसद भवन परिसर में हमले में शहीद जाबांजों को श्रद्धांजलि दे रहे थे। पर श्रद्धांजलि देते वक्त मैंने देखा कि,सभी सांसद प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाने का ढोंग कर रहे थे। उनके आव-भाव से नहीं लगा कि,उनके दिल में शहीदों के लिए कोई इज्जत है। एकाध सांसदों को छोड़ सभी सफेदपोश हंसकर पुष्प अर्पित कर रहे थे। उस दृश्य को देख मैं काफी गुस्से में आ गया। मुझे अफसोस हो रहा था कि,क्यों उन 9 घरों के चिरागों ने अपनी जान गंवाकर इन सफेदपोशों को बचाया। उन्होंने अपने फर्ज का निर्वहन तो अपनी अंतिम सांस तक किया,लेकिन हमारे नुमाइंदे तो उनकी शहादत को सलाम करने के लिए अपना फर्ज तक भूल गए। दुख होता है जब संसद हमले का जिक्र होता है। फक्र होता है वीर सपूतों की शहादत पर,लेकिन शर्म से उस वक्त पानी-पानी हो जाता हूं जब सफेदपोशों की बेहया वाली हरकतों को देखता हूं। आंखों में पानी भर आता है,जब टीवी चैनलों पर शहीदों की मां,विधवा और बच्चों की व्यथा सुनता हूं। 13 दिसंबर को एक टीवी चैनल पर एक शहीद की विधवा बता रही थी कि, सरकार की ओर से उन्हें पेट्रोल पंप देने का ऐलान किया गया। जब वो अपना हक लेने पहुंची तो उनसे रिश्वत मांगी गई। इन हालातों को देख सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि,वाकई सिस्टम इतना बेइमान और बेशर्म हो गया है। राहुल गांधी कहते हैं उन्हें यूपी की बदहाली देख गुस्सा आता है। लाल कृष्ण आडवाणी को पश्चिम मॉडल से नफरत है। ऐसे में इन दोनों को सांसदों का आचरण और अफजल गुरू को जेल में देख गुस्सा क्यों नहीं आता है,अगर इन मुद्दों पर इनका खून खौलता तो निश्चित तौर पर मैं कह सकता हूं कि,इनलोगों को गुस्सा वहीं आता है जहां वोट बैंक का मामला होता है। हमारे नुमाइंदे ये क्यों भूल जाते हैं कि,जिस जिंदगी को वो जी रहे हैं,वो उन शहीदों की देन है। कहा जाए तो वो सभी उधार की जिंदगी जी रहे हैं।

भंवरी का भंवरा



जिस तरह से क्रिकेट के खिलाडी़ के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मेरा मानना है कि,ठीक उसी तरह सियासत में भी कुछ असंभव नहीं है। क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी जिस तरह से कभी शतक लगा के वाहवाही लूट लेते हैं और कभी शून्य पर आउट होकर फजीहत करवा लेते हैं। उसी तरीके से अपने चरित्र की दुहाई देने वाले कुछेक सियासतदां ऐसा कर देते हैं जिससे वो तो परेशान होते ही हैं। साथ ही साथ सियासी गलियारों में भी भूचाल ला देते हैं। ताजा मामला राजस्थान से जुड़ा है। जहां पर भंवरी के भंवरजाल वाली सीडी ने इस कदर तूफान ला दिया कि,प्रदेश के साथ-साथ देश की सियासत भी हिल गई। जोधपुर की महत्वाकांक्षी नर्स भंवरी और गहलोत सरकार में मंत्री रहे महिपाल मदेरणा की सीडी जबतक लॉकर के अंदर थी। सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन ज्योंहि सीडी बाहर निकली। ऐसा बवाल मचा कि,मदेरणा की कांग्रेस से विदाई हो गई और राजस्थान सरकार को प्राश्यचित के रुप में पुनर्गठन का फैसला लेना पड़ा। इस सियासी हायतौबा से हम सबों को बहुत कुछ सबक लेना चाहिए। औरत हो या मर्द। उसे उतना ही महत्वाकांक्षी होना चाहिए। जितने में उसकी और समाज की सेहत खराब न हो। जोधपुर की नर्स भंवरी कुछ साल पहले तक एक साधारण महिला थी। लेकिन दुनिया की चकाचौंध में  कम पढ़ी लिखी भंवरी ने उसे शॉर्टकट से पाने की चाहत पाल ली। अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने अपने जिस्म को जरिया बनाया  और सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते पहुंच गई सियासत के भंवरजाल में। जहां पर उसने और उपर तक के सफर को तय करने के लिए मदेरणा को अपना हमसफर बना लिया। इस खतरनाक सफर में एक को अपना सपना पूरा करना था तो दूसरे को जिस्म का इस्तेमाल करने की बुरी लत थी। कह सकते हैं कि,दोनों ने पाया कि,वो एक दूसरे का ख्वाब पूरा कर सकते हैं। भंवरी ने मदेरणा को भंवरा बनाया। भंवरा बनकर मदेरणा ने रस का भरपूर आनंद भी लिया।लेकिन कहते हैं न कि,भंवरे की आदत होती है हर फूल पर बैठने की। कुछ ऐसा ही हुआ मदेरणा के साथ भी। उसने भंवरी से दूरी बनाने की सोची। लेकिन महत्वाकांक्षी भंवरी उसके इरादे को भांप गई। उसने एक बार फिर से जिस्म के जाल में अपने भंवरे को फांसा और अपनी और उसकी रंगीन कहानी को कैद कर लिया एक सीडी में। जिसे वो तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती थी। पर शायद उसे सियासत की ताकत का अंदाजा नहीं था। भंवरी के लिए वही सीडी मौत का भंवरजाल बन गई। इस पूरी घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि,सियासत और हुस्न जब एक गाड़ी पर सवार हो तो एक्सीडेंट होने से कोई रोक नहीं सकता।

दो दिए ज्यादा जलाएं

आओ दो दिए ज्यादा जलाएं

रोशनी के रंग भरे

जो रोशन कर दे जिंदगी

उम्मीदों की बाती संग

जो मिटा दे मन का अंधियारा

हम मनाए पर्व कुछ ऐसे

कि जीवन सबके रोशन हों

मन में उमड़े उमंग के छंद

और मधुर राग हो प्रेम संग

नित बहे राग बनकर

रोशनी का ये संगीत

रगों में बहता रहे

प्रकाश का मधुर गीत

बसा रहे मन में

हम सभी के

जीवन भर

रोशनी का आनंद संगीत

बूंदें....बारिश की...

सूखे मन पर जब पड़ती हैं...बूंदे
अच्छी लगती हैं...
जब छम-छम बजती हैं बूंदें....
अच्छी लगती हैं...

जब हाथेलियों पर सजती हैं बूंदें
अच्छी लगती हैं...
जब सूने आंगन को भरती हैं बूंदें...
अच्छी लगती हैं...
जब कुदरत का श्रृंगार करें...
हर डाली को हार करें...
अच्छी लगती हैं...
लेकिन...
जब बाधा बन वार करें...
भंवर बन शिकार करें...
जीवन को रोके...
आगे बढ़ने से टोके...
नहीं भाती हैं...
आंस जाती हैं...
रास नहीं आती हैं...
बारिश की बूंदे....

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया...फेर...?

छत्तीसगढ़ी बोली ल राजभाषा के दरजा मिले तीन बछर ले जादा के समय बीते जात हे, फेर इहां के रहइया मन छत्तीसगढ़ी बोले म समाथें। लोगन के मन म ये धारना बइठ गे हे के छत्तीसगढ़ी बोले ले वो गवइहां हो जाही। अऊ कुछ अइसनहे समझ हे इहां के लोगन के। छत्तीसगढ़ी बोली बोले वाला के संग म गलत बेवहार करे जाथे। फेर एक बात मे ह आप मन के आगु म रखत हवं। ये बात म थोड़कुन गौर करिहव, तीन बछर पहिली मे ह देस के एक अइसे राज्य म गए अऊ तीन बछर ऊहां रहेव जौन राज्य के निरमान भाषा के आधार म सबले आगु होए रहिस मोर कहे के मतलब हे आंध्रप्रदेस जिंहा तेलगू बोले जाथे अऊ इहां के रहवइया मन ल न तो कोनो तरह के सरम आए न ही कोनो तरत के झिझक। इहां त  हिन्दी अऊ अंग्रेजी बोले वाला मन ल छोटे नजर ले देखे जाथे। ये ह देस के एक्केच राज्य नो हए जिंहा ये तरीका के हालत हे। बंगाल, असम, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओड़ीसा अऊ कई अऊ राज्य हे जिहां के लोगन मन उहां के बोली या भाखा ल बोले म नइ सरमावय। फेर छत्तीसगढ़िया काहे सरमाथे छत्तीसगढ़ी बोले म ये ह सोचे के बिसय हे। ये बोली ह आम जन भाखा कब बनही, ये घलो सोचे के बिसय हे। सरकार ल घलो सोचना पड़ही। राजभाषा भर के दरजा देहे ले सरकार के काम ह खतम नइ हो जावए। सरकार ल एकर प्रचार-प्रसार बर पूरा जोर लगाना पड़ही। मंच ले भाषन देत "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया" कहे ले काम नइ बनय। छत्तीसगढ़ी ल जन-जन के भाषा बनाए बर पूरा जोर लगाए ल पड़ही।  संग म इहां के लोगन ल सरम अऊ झिझक घलो ल छोड़े ल पड़ही। तब जाके छत्तीसगढ़ी ह आम जन के भाषा बन पाही। नइ तो राज ठाकरे जइसे कोनो छत्तीसढ़िया ल रुप धरे ल पड़ही जेकर ले छत्तीसगढ़ के कल्यान होही। मे ये जानत हंव के सरकार ह छत्तीसगढ़ी बोली ल बढ़ावा दे बर छत्तीसगढ़ी के किस्सा कहिना ल पाठ्य पुस्तक म जोड़े हे। संग म रेलवे इस्टेसन घलो म अब छत्तीसगढ़ी ले एनाउंस होय ल सुरू कर दे हे। अऊ त अऊ इहां के कुछ राजनीतिक पार्टी के दबाव म मोबाइल कंपनी मन घलो छत्तीसगढ़ी म गोठियाय ल धर ले हें। फेर येमा कई गलती घलो हे। जौन ल सुधारे बर मिल जुलके काम करे ल पड़ही।  हम सब ल जुर मिल के ये बोली ल जन जन के बोली बनाए बर काम करे ल पड़ही। मोर हर छत्तीसगढ़िया ले निवेदन हे के वो छत्तीसगढ़ी बोली के प्रचार प्रसार म जोर दे। जय छत्तीसगढ़, जय-जय छत्तीसगढ़

लंबे वक्त के बाद देखी एक अच्छी फिल्म


भविष्य संवारने की जद्दोजहद या फिर बीते कल की परछांई से बोझल जिंदगी जीने वाले युवाओं को..तीन किरदारों के ज़रिए खुल कर जीने का अंदाज़ सिखाती ये फिल्म युवाओं को बेहद भाएगी क्योंकिं अंदाज़-ए-बयां काफी रोमांचक और नयापन लिए है..फिल्म देखते वक्त बस एक बात खटकती है कि आम इंसान के, एक मिडिल क्लास व्यक्ति के डर आसमान से कूदने,समुद्र की गहराई नापने या बुल-फाइट से कुछ अलग होते हैं...उसके मन की गहराईयों में छिपे छोटे-छोटे से डर मसलन,ऐसा करूंगा तो किसी को बुरा तो ना लग जाएगा, असफल हुआ तो क्या होगा,ऐसा किया तो ज़माना क्या सोचेगा...वगैरह-वगैरह ये तुच्छ से लगने वाले भय भी जीने का अंदाज़ बिसरा देने के लिए काफी होते हैं...ऐसे भय को पर्दे पर उतारने के लिए..जिन तीन इच्छाओं..डर...या ज़रियों को चुना गया है..वो पर्दे पर तो रोमांचक और नयनाभिराम लगते हैं..लेकिन साथ ही डायरेक्टर की कमर्शियल सिनेमा को हिट या प्लॉप करने की मजबूरी भी नज़र आते हैं...और इसीलिए ये फिल्म केवल युवाओं के मानस को छूती..उन्हीं की बात पहुंचाती नज़र आती है...वरिष्ठों से दूरियां बनाती लगती है...जबकि ये सच तो हर उम्र..हर वर्ग और हर किसी के लिए है कि..ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा...कल किसने देखा..सो जो आज है उसे जी लो...खुल के जिओ...हर पल को जीओ..दिल की सुनो...

क्या वाकई हम बदल रहे हैं...?


जाने कितनी बार..जाने किस-किस से और ना जाने कितने ही तरीकों से...कहा होगा हमने..कि हम बदल रहे हैं...समाज बदल रहा है...सोच बदल रही है...बर्ताव बदल रहा है...पर ना जाने क्यूं मुझे लगता है कि...अक्सर ऐसा बोलते वक्त हम शायद ये लिखना..बताना..या जताना भूल जाते हैं कि जिस बदलाव या परिवर्तन की बात आप और हम कर रहे हैं वो केवल और केवल ज़मीन पर फैलते कॉन्क्रीट के जंगल या तन पर बदलते कपड़ों के बारे में है...दरअसल,मन से तो हम वैसे ही हैं...बल्कि सच तो ये है कि हम बदलना ही नहीं चाहते...नहीं बदलता चाहते हमारी सदियों पुरानी सोच को...नहीं बढ़ाना चाहते अपनी कल्पनाशीलता का दायरा...नहीं चाहते कि कोई भी तब्दीली हो..हमारी अपनी छोटी सी सोची-समझी-सिमटी दुनिया में...बल्कि हम तो परिवर्तन को भी अपनी छोटी सी सोच के मुताबिक ही परिभाषित करते हैं...गर ऐसा ना होता आप...मैं...हम सब पड़ोसी के घऱ में क्रांन्तीकारी के पैदा होने का इंतज़ार ना करते...गर ऐसा ना होता तो आज भी रवायतों की आड़ में चाहे-अनचाहे...कुरीतियों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ना बढ़ाते...गर ऐसा ना होता तो आज भी...दिखावे के लिए जीवन भर की पूंजी ना लगाते...पहली बार में आप तपाक से कह सकते हैं कि मैं तो ऐसा नहीं हूं...क्योंकि ये झूठ बोलने की आदत तो हमे बचपन से ही है...क्या कहा नहीं है....एकत बार फिर सोचिए...बस एक बार तो सोचिए...

धमाके में जिंदगी

फिर धमाका हुआ,अफरा-तफरी मची
लोगों की भीड़ जुटी,हल्ला मचा
सारे टीवी स्क्रिन ब्रेकिंग प्वाइंट से भर गए
लोग देखने,सुनने के लिए बेताब होगए
थोड़ी देर में घटना स्थल की तस्वीरें आगईं
और सभी की जुबान पर हाय..हाय के शब्द तैर गए पर संवेदना कितनी थी ये तो पता नहीं ?
क्योंकि लोग एक पल ठहर कर चल पड़े आगे  ..जैसे ट्रेन के छूटते ही प्लेटफार्म छूट जाता है..एक दिन पहले ट्रेन हादसे में जाने गईं ...मलबा हटा नहीं और दूसरी जगह धमाके में ढ़ेर हो गए लोग।
हिन्दी फिल्मों की तरह ही सब खत्म होने के बाद पहुंची पुलिस
कुछ नेताओं नें घटना स्थल का दौरा करके जिम्मेदारी निभाई
और सुरक्षा पर कसीदे भी कढ़े...
और पुलिस जांच में जुटी कह कर हादसे की कहानी समाप्त...
ये है हिंदुस्तान जिसे फिरंगियों से छुड़ाने के लिए
लोगों नें अपनी जाने दी..वो जिंदा होते तो जरूर शर्माते...
अब तो देश को लूटने और बरबाद करने वालों की फौज तैयार है
इसीलिए संवेदना भी किराए की हो गई है
हर दिन हादसे होते हैं, लोग मरते हैं,
कभी नक्सलवादी, कभी आतंकवादी
कभी भ्रस्टाचार के खिलाफ अनशन में तो,
कभी लापरवाही की भेंट चढ़ रहे हैं लोग..
होना कुछ नहीं है,वही ढाक के तीन पात
लोग खुद आदि हो चुके हैं जंगलराज के
उन्हें मालूम है ये भारत है यहां
ना न्याय मिलना है ना सजा,
क्योंकि गरीब लोग ही मरते हैं
जब तक कसाब जैसे लोग देश में पलेंगें
तो उनके जन्मदिन में धमाके के केक कटेंगे ही
न्याय तो तब मिलेगा जब कोई
कोई कद्दावर आहत होगा ...
उसकी भी गारंटी नहीं है...
सजा मिलेगी या जेल में पलेगा ?

' हिन्दुस्तान'


राहुल गांधी की फिसल गई है ज़बान
क्या यही है मेरा खौफज़दा हिन्दुस्तान
नहीं रुकेंगे देस पर ये आतंकी हमले
कांग्रेस के महासचिव का आया है बयान ।

मुंबई ब्लास्ट ने फिर हरे कर दिए हैं ज़्ख्म
कैसे कोई करे आतंकियों की पहचान
कैसे कोई रोके हर दिन होते इन हमलों को
हर शख्स को हमले दे रहें है गहरे निशान ।

अब तो खत्म हो ये खूनी होली
हर नागरिक का है यही अरमान
मज़हब के आड़ में हो रहे हैं झगड़े
कैसे पहुंचाया जाए सौहार्द का पैगाम.....

ये कैसा प्यार ?

कुछ बातों पर यकीन करना चाहूं तो भी नहीं कर पाती...कुछ लोगों के बदलाव को देखूं तो भी यकीन नहीं
होता...सोचती हूं क्या वाकई दुनिया बदल गई...क्या रिश्तों के मायने अब नया रूप अख्तियार कर चुके हैं
...अब तक बॉलीवुड और टीवी सीरियल में इस तरह की स्टोरी देखकर लगता था कि क्या ऐसा दुनिया में होता
होगा...फिर सोचा ग्लैमरस लाइफ के लिए ये बात मायने नहीं रखती लोग कपड़ों की तरह रिश्ते बदलते है...और टीवी सीरियल में तो लोगों के मनोरंजन या टीआरपी के चक्कर में काल्पनिक तौर पर बनाया जाता होगा ...पर अब तो अपने आस-पास के लोगों को देखकर लगता है कि वाकई फिल्म वालों को भी स्टोरी हमारे बीच के लोग ही देतें हैं...आज 'प्यार' शब्द पर ही बात कर लें क्योंकि सारे रिश्ते और शब्दों पर बात करें तो उलझ सी जायेंगी...'प्यार' ये शब्द सुनते ही मन एक सुंदर सी भावना के आसपास घूमने लगता है...जिसमें त्याग, समर्पण, ईमानदारी जैसे भावों का समावेश हुआ करता था...प्यार का नाम सुनते ही याद आते थे वो कुछ लोग जो जाति-धर्म,ऊंच-नीच,अमीरी-गरीबी से परे एक दूसरे की परवाह के लिए अपनी जान तक दे चुके हैं...शायद सब जानते हैं हीर-रांझा,शीरी-फरहाद,लैला-मजनू को...पर आज के प्रेमी शायद इनकों बेवकूफ कहें तो चौंकियेगा मत...क्योंकि अब तो लोग प्यार को जीत-हार और जिंदगी के लिए सुख बटोरने का माध्यम बना
चुके हैं,हीर ना मिली तो क्या दुनिया में हीर की कमी है ,रांझा न मिला तो क्या.. अरे उससे अच्छा रांझा भी आस-पास ही मिल जाएगा...रही बात कसमे-वादे की जो साथ निभाने के लिए हर प्रेमी एक दूसरे से करते हैं..साथ में सारी हदे फिर वो चाहे मन की हो या तन की पार करने के बाद भी उसे सामान्य करार देकर आगे निकल पड़ते हैं... जैसे वो किसी नाटक के संवाद से ज्यादा कुछ भी नहीं था..जो एक नाटक खत्म होने के साथ ही खत्म हो जाता है....और जिंदगी में नए प्रेमी-प्रेमिका के बदलते ही बदल जाता हैं...इतना तो फिर भी ठीक है साहब पर आज तो एक साथ कई लोगों से प्यार निभाते देखा जाता है और फिर जो बेहतर मिलता है अपनी जरूरतों के हिसाब से उसे बड़े नाटकीय अंदाज में जीवन साथी भी चुन लिय़ा जाता है...तमाम पाकिजगी और आंखों में शर्मों हया की दुहाई के साथ...और ना तो प्रेमी को फर्क पड़ता है धोखा देने का ना ही प्रेमिका को फर्क पड़ता नए के साथ हो लेने का...क्या कहिएगा इसे बॉलीबुड की फिल्मी स्टोरी..जी नहीं ये हकीकत है आज के समय की.. जिसकी झलक अब छोटे-बड़े शहरों में आसानी से देखी जा सकती है...आज के समय में रिश्तों की गरिमा,गंभीरता,ईमानदारी,संघर्ष की बात करिए तो जो युवा आपके पास होंगे वो जरूर आपको पुराने जमाने का कह कर आपको आउटडेटेड कहने से नहीं चूकेंगे...और आपको खुद शर्म आएगी अपनी सादगी और ईमानदारी पर....और मुश्किल तो यही है कि सुख की परिभाषा भी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती देख पाएंगे आप..मेरी सोच में तो ये प्यार नहीं.. आप क्या सोचते हैं ? इस बारे में.....ये बदलाव कहां ले जाएगा दुनिया को....रिश्तों कों...या अब यही पहचान होगी रिश्तों की जिससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा...झूठ ,फरेब,चापलूसी.धोखा,जीत हार का गणित,भ्रस्ट आचरण,छल-कपट ही शायद इस युग की पहचान मानी जायेगी..क्योंकि हर युग की अपनी विशेषता होती है ,लोगों के जीवन मूल्य,नैतिक मूल्य होते हैं..तो यही समझें कि वाकई कलयुग नें अपना असर
दिखाना शुरू कर दिया है....

परदेस की अच्छी बातों से लें सबक

IMF यानि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख डॉमिनिक स्ट्रॉस होटल की महिला कर्मचारी से छेड़छाड़ के मामले में जेल के अंदर हो गए... साथ ही साथ अपना पद भी गंवाना पड़ा... स्ट्रॉस 2012 में फ्रांस के राष्ट्रपति पद के दावेदार भी हैं... अति उच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर इतनी त्वरित कार्रवाई देखकर बहुत अच्छा लगा... और वहां की कानून-व्यवस्था और उसे लागू करने के जज्बे के प्रति मन में काफी सम्मान की भावना आई...
लेकिन ये सब देखकर एकबारगी अपने देश की सुस्त और लचर न्याय प्रणाली की तरफ ध्यान खुद ही खिंच गया और एक आक्रोश और गुस्से ने मन में जगह ले ली... वहां तो केवल छेड़छाड़ का आरोप था... फिर भी इतनी तत्परता दिखाई गई... उच्च पद पर आसीन उस व्यक्ति के कितने कॉन्टैक्ट्स होंगे उसका सहज अंदाजा आप लगा सकते हैं.... फिर भी जेल की हवा खानी पड़ रही है... लेकिन हमारे यहां आए दिन बलात्कार की खबरें देखने-सुनने को मिलती हैं... कहीं बाप ने बलात्कार किया... कहीं चाचा ने, कहीं पड़ोसी ने, कहीं भाई ने, कहीं जीजा ने, कहीं दोस्त ने... फिर भी सजा मिलना तो दूर अपराधी पकड़े तक नहीं जाते... गलती से पकड़ भी लिए जाएं तो भ्रष्ट पुलिस व्यवस्था में उनका बचकर निकलना बहुत आसान होता है... हाई प्रोफाइल मामला तो दूर की बात है... यहां तो छुटभैये अपराधियों की भी इतनी पहुंच होती है... कि पुलिस पहले तो मामला दर्ज नहीं करती... और दबाव में जबरन मामला दर्ज करना भी पड़ गया तो कार्रवाई अत्यंत धीमी होती है... इससे भी आगे कार्रवाई हो और न्यायालय में मामला पहुंचे तो फैसला आते-आते 14-15 साल तो बीत ही जाते हैं... उस पर भी अगर फैसला आ भी गया तो आप हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगा सकते हैं... प्रियदर्शिनी मट्टू जैसे ऐसे कई केस ऐसे ही हैं... ये तो रेप की बात हुई... छेड़छाड़ तो यहां बहुत छोटी और आम बात मानी जाती है... उसे करना तो लड़के अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं... हां लड़कियों को ये समझाइश जरूर दी जाती है... कि कपड़े ऐसे पहनो... तो ऐसे मत चलो... तो ऐसे मत बोलो... etc..
ये तो रही रेप और छेड़छाड़ की बात... लेकिन हत्या, अपहरण जैसे अपराध करने वाले अपराधी भी अपने देश में खुलेआम घूमते हैं... वो भी शान से... यहां तक कि जनप्रतिनिधि तक बन जाते हैं...
हमारा देश स्त्रियों की पूजा करने का दंभ भरता है... और कहता है कि यहां जो विकृति आई है वो पश्चिमी सभ्यता की देन है... लेकिन सच तो ये है कि यहां कुछ परसेंट घरों को छोड़ दें तो कहीं भी स्त्री का सम्मान नहीं है... लोग जिस दिन दुर्गा पूजा करते हैं... उस दिन भी बीवी को गलियाते हैं... मारते-पीटते हैं... यहां तक कि दिल दुःखाने वाली बातें सुनाते हैं... एक तरफ तो पूजा का आयोजन करते हैं... दूसरी तरफ अश्लील बातें करते हैं किसी लड़की के बारे में... जिस बहू-बेटी को लक्ष्मी का रूप माना जाता है... उसे कष्ट पहुंचाने में परिवार वाले कोई कोरकसर नहीं छोड़ते... इतनी इज्जत करते हैं महिलाओं कि आज हर मां-बाप को ये सोचना पड़ रहा है कि बेटी को कहां-कहां दरिंदों से बचाते चलें... और सबसे बड़ी बात तो ये कि दरिंदा कहीं परिवार में ही न हो...
सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि कोल्हापुर में जिस मंदिर में मां लक्ष्मी की पूजा की जाती रही है बरसों से वहीं महिलाओं का प्रवेश कुछ दिनों पहले तक वर्जित था... क्या औरतों को मां के मंदिर में जाने से रोककर उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती थी?
ये सब कोई आज पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से हुआ हो... ऐसा बिल्कुल नहीं है... शुरू से ही हमारे देश में भ्रष्टाचार की और औरतों के प्रति अन्याय की कमी नहीं रही है... कहा जाता था कि स्त्रियों को वेद मत सुनने दो... अगर सुन ले तो उसके कान में पिघला शीशा डाल दो... जबकि सभी भगवान और देवता खुद ही देवियों की पूजा करते हैं, उनकी इज्जत करते हैं, और उन्हें दुःख नहीं पहुंचाते... फिर भी भगवान की कहानी पढ़कर भी बेवकूफ लोगों को समझ में नहीं आता... कि बिना स्त्री कृपा के जीवन में तरक्की नहीं की जा सकती... एक तरफ तो देवियों को पूजा करो... दूसरी तरफ स्त्री रुपी देवी को दुत्कारो.. पहले भी औरतें उठा ली जाती थीं... परदे में दुराचार होता था...बाल विवाह होते थे... सती प्रथा थी.. मारना-पीटना था... चाहे बेइज्जत करना था... चाहे दहेज प्रथा थी... या औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन के तौर पर बिहेव करने की थी... और तुलसीदास ने तो यहां तक कह दिया कि औरत तारण की अधिकारी है... जिस स्त्री के गर्भ में 9 महीने रहे... उसे भी नहीं छोड़ा...उसकी ममता को और सबसे बड़ी बात तो कि अपने वजूद को ही गाली दी... अब उस समय तो ग्लोबलाइजेशन था नहीं कि इंटरनेट के माध्यम से तुलसीदास जी ये बात पश्चिमी देशों से सीख लिए हों...
कुल मिलाकर हमारे देश में स्त्रियों के प्रति अत्याचार कोई नई बात नहीं... सबसे अफसोस की बात तो ये है कि औरतों को दबाकर रखना आज भी गौरव का विषय समझा जाता है... लेकिन उससे भी ज्यादा अफसोस तो इस बात पर है कि औरत स्वयं ही इन सबके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है... उस पर से न उसके साथ समाज है, न परिवार और न कानून या न्याय प्रणाली...

तलाक : जिम्मेदार कौन?


पिछले दिनों अपने एक दोस्त की धर्मपत्नी से इन्टरनेट पर मुलाक़ात हुई जिसकी शादी मैंने और मेरे ही दोस्तों ने मिलकर आर्य समाज मंदिर में करवाई थी.बड़े आदर के साथ जब मैंने उन्हें नमस्कार कर पुछा की भाभी आप कैसी हैं तो अचानक उनकी जो उग्र प्रतिक्रिया थी वो मेरे समझ से परे थी..उनके शब्दों के बाण मुझे ऐसे लग रहे थे जैसे मैंने भाभी कह कर उनका अपमान कर दिया हो..मैं कमाती हूँ और किसी भी तरह की पाबन्दी सहन करना न मेरी मजबूरी है न ही आदत..आखिर कोई और मेरे जीवन पर नियंत्रण कैसे रख सकता है? मैं केवल घर बैठ कर बच्चे नहीं पैदा कर सकती.. इसलिए मैंने तलाक ले लिया है ताकि अपने ढंग से जीवन जी सकूँ..कितनी विडंबना वाली बात है की रीतू ने अपने पति को कोई का दर्जा दे दिया..और उसे ही अलगाव का जिम्मेदार भी मान लिया.... पहले पति-पत्नी शादी को जन्म जन्मांतर का रिश्ता मानते थे.एक दूसरे से अलग होने की बात वो सोच भी नहीं सकते थे..बदलती जीवन शैली और औरत की बढती महत्वकांक्षाओं के चलते जिंदगी में जटिलता आ गई है.. नतीजन भौतिकवादी संस्कृति के तहत यह रिश्ता अपनी अहमियत खोता जा रहा है और अदालतों में सम्बन्ध तोड़ने के मामले बढते जा रहे हैं..औरत अपनी सामाजिक मान्यताओं को नज़रअंदाज़ कर रही है.केवल पति ही शादी-शुदा जिंदगी में आने वाली कटुता, अलगाव या तलाक का जिम्मेदार होता है ये कहना आज के संदर्भ में सही नहीं बैठता..औरत न तो अब अबला रही है न असहाय या पति पर निर्भर..इसलिए तलाक के लिए पत्नी भी उतनी ही जिम्मेदार है जितना की पति..आज के आकड़ों पर नज़र डालें तो नज़र आएगा की आज पुरषों की अपेक्षा महिलाएं तलाक के लिए ज्यादा पहल करती है...और इनमें अधिकतर वो महिलाएं हैं जो युवा,आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर या आज़ादी पसंद हैं..ये औरतें परंपरा या परिवार के नियम कायदों को मानने के बजाय खुद की संतुष्टि और खुशी को ज्तादा महत्त्व देती हैं..अहम ने औरत के अंदर जन्म ले लिया है मैं कमाती हूँ ? मैं सक्षम हूँ तो घर का काम क्यूँ करूँ ? मैं भी थकी हारी ऑफिस से आती हूँ तो पति की चाय क्यूँ बनाऊं? आदि ऐसे कई सवाल हैं जो आज की कामकाजी महिला की ज़बान हरदम रहते हैं...आज का युगल तलाक को एक समाधान की तरह देखने लगा है.. अधिकतर मामलों में अब पहल औरत की तरफ से होने लगी है..बेहतर शिक्षा,अच्छा वेतन और कार्यक्षेत्र में अर्जित सम्मान ने औरत को पुरानी स्थितियों को नए परिप्रेक्ष्य में देखने को प्रेरित कर दिया है..यही वजह है की उसमें जहाँ सहनशीलता की कमी आयी है वहीँ वह किसी तरह का समझोता करने को भी तैयार नहीं है..आर्थिक स्वतंत्रा ने औरत को एक तरह से बागी और अहंकारी बना दिया है.. जिसकी वजह से रिश्ते अगर उसकी राह में आते हैं तो रिश्तों से खिलवाड़ करने में उसे देर नहीं लगती..औरत जिम्मेदार इसलिए भी है क्यूंकि बदलाव उसमे आया है, औरत में आई सहनशीलता की कमी परिवारों को ताड़ने में सबसे बड़ी वजह बन गयी है, वो तो स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बन गयी है, पुरुष तो अभी भी अपनी पुरानी मानसिकता के दायरे से बहार नहीं निकल सका है जिसकी वजह से मतभेद बढ़ रहे हैं...और इसके लिए पति ही जिम्मेदार है ये कहना कहाँ तक न्यायसंगत है?..देर से शादी करना और अपने करियर को प्राथमिकता देना, अपने जीवन से जुड़े फेसले खुद लेना,इन्टरनेट और पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव जैसी हर चीज़ ने औरत की शादीशुदा जिंदगी से जुडी अपेक्षाओं को बड़ा दिया है.. आर्थिक सुरक्षा से उपजे आत्मविश्वास में अहम इस हद तक शामिल हो गया है की औरतें शादीशुदा जिंदगी की मुश्किलों को सुलझाने की बजाये तलाक का रास्ता अपना रहीं हैं.तलाकशुदा औरत को लोग किस नज़र से देखेंगे, इस की भी उसे परवाह नहीं है, क्यूंकि उसे तो अपनी आज़ादी से प्यार है और इसलिए वो शादी जैसे अटूट रिश्ते को भी तोड़ने में पलभर तक नहीं लगाती..एक समय था जब शादी करना ही औरत की प्राथमिकता और सोशल स्टेटस होता था, पर आज स्थति बिलकुल विपरीत है ...पति अगर उसकी नहीं सुनता या उसके हिसाब से नहीं चलता तो वह उस से तलाक लेने की बात करते हुए न तो समाज को परवाह करती है न परिवार के सम्मान की ....

अमन का आगाज़


बहुत हो चुकी खूनी जंग

अब अमन का आगाज करें।

खत्म करें दुश्मनी का सिलसिला

एक नए रिश्ते की बुनियाद रखें।

मिटा दें हर गिले-शिकवे को

अब हर कदम एक साथ चलें।

हम पड़ोसी है इक-दूजे के

फिर क्यों आपस में नाराज रहें।

मिटा के दिलों की सभी दूरियां

क्रिकेट से नई शुरुआत करें।

अपनी खुशी पर भी दें ध्यान

नोएडा के सेक्टर-29 में अपने ही घर में खुद को 7 महीने से कैद रखने वाली बहनों की दास्तान ने सबके साथ-साथ मेरे भी रोंगटे खड़े कर दिए...अलग-अलग एंगल से मैंने ये खबर कई वेबसाइट्स पर देखी... कितनी भी कोशिश की कि ऐसी खबरों को खबरों के नजरिए से ही देखकर भूल जाऊं... लेकिन ऐसा हो नहीं पाया...

आखिर ऐसा क्यों हुआ... उनके माता-पिता की मौत के बाद अनुराधा (बड़ी बहन) ने अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल का जिम्मा लिया... ये अच्छी बात है कि आप अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और उसे निभाते भी हैं... लेकिन मेरा ये भी मानना है कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में इतना इन्वॉल्व नहीं होना चाहिए... कि खुद को ही इंसान भूल जाए... कोई भी चीज आपके खुद के ऊपर न हावी हो जाए...
अनुराधा सीए थी... उसने भाई-बहनों को पढ़ाया... लायक बनाया... लेकिन जब उसकी जिम्मेदारियां पूरी हो गईं... तो क्या उसे अपनी शादी के बारे में नहीं सोचना चाहिए था... सोनल (छोटी बहन) भी सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल थी... तो क्या उसे भी कोई लड़का नहीं मिल रहा था... भाई विपिन सबसे छोटा था... लेकिन दोनों बहनों ने उसकी शादी सबसे पहले 2007 में करा दी... भाई को भी ये सोचना चाहिए था... और बहनों को भी इस बारे में मनाना चाहिए था कि जितनी रेसपॉन्सिबिलिटी आपको निभानी थीं... आपने निभा लीं... अब पहले आप दोनों बहनों की शादी होनी चाहिए... लेकिन भाई ने भी इसके लिए दिल से कोशिश नहीं की होगी...
ये बहुत बड़ी सच्चाई है औरतों की... कि उनके लिए 30-35 के बाद घर बसाने के लिए जीवनसाथी मिलना अपने समाज में काफी कठिन होता है... कुदरत ने भी मर्द और औरत में, उसकी शारीरिक संरचना में फर्क किया है... जहां कोई लड़की 30 के बाद ढलने लगती है (मेडिकली प्रूव) वहीं लड़के 30 के बाद भी लड़कियों के मुकाबले यंग होते हैं... लड़कियां बड़ी भी जल्दी होती हैं... और लड़के देर से... इसलिए पहले के जमाने में लड़की और लड़के की शादी में दोनों की उम्र में थोड़ा अंतर रखा जाता था... 35से ऊपर की औरत आंटी होती है... जबकि लड़का भइया... लड़की की शादी 35 के ऊपर आश्चर्य या अफसोस का विषय होता है... जबकि लड़के के लिए ये चीज सामान्य मानी जाती है... लड़के के लिए लड़की किसी भी उम्र में मिल जाती है... विधुर हो तो मिल जाती है... तलाकशुदा हो तो मिल जाती है... लेकिन लड़कियों के लिए इन मामलों में काफी मुश्किल होती है... इस सच्चाई को समझना चाहिए...
अनुराधा और सोनल के साथ यही हुआ... माता-पिता की मृत्यु, कोई पुरुष दोस्त नहीं (जिसकी एक उम्र के बाद जरूरत होती है), भाई की शादी... और अलग रहने के लिए चले जाना... इन सबसे ये दोनों टूट गईं... उन्हें लगा कि अब उनाक क्या होगा... कौन सहारा होगा... किसके भरोसे जीएंगी... अच्छे पदों पर रहते हुए एक भावनात्मक असुरक्षा के घर कर जाने की वजह से और लगातार हादसों के कारण वे टूट गईं... और खुद को घर के अंदर बंद कर लिया...
जहां तक भाई और उसकी पत्नी का पक्ष देखें... तो भाई की पत्नी यानी भाभी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता... कोई भी लड़की जब शादी करती है... तो नई-नई शादी में पति का पूरा साथ चाहती हैं... उसके सपने होते हैं... और अगर मैंने अपने भाई के लिए कुछ किया है... तो हम भाई से उम्मीद कर सकते हैं... कि वो मुझे समझे... लेकिन दूसरे घर की बेटी... जिसने ये सब महसूस नहीं किया है... उससे हम इन सबको समझने की उम्मीद नहीं कर सकते... पर्सनली मेरा ये मानना है कि अनुराधा और सोनल चूंकि अकेली थीं... अपनी दुनिया उन्होंने भाई के आसपास ही बना रखी थी... शादी तो कर दी भाई की... लेकिन अचानक से किसी और लड़की का अधिकार भाई पर हो जाना... और उसके हर फैसले किसी और द्वारा लिया जाना... उन्हें जरूर खला होगा (सास-बहू के झगड़े और ईर्ष्या की सबसे बड़ी वजह)... इसके लिए आए दिन तनाव और मनमुटाव होते रहे... जहां तक भाई की बात है... शादी के बाद लड़का न तो पूरी तरह अपने घरवालों का पक्ष ले सकता है न बीवी का... और शादी के बाद पत्नी के प्रति उसकी जिम्मेदारियां नो डाउट ज्यादा होती हैं... क्योंकि पत्नी कंपलीटली उसपर डिपेंड होती है... इन्हीं सब वजह से विपिन अपनी पत्नी के साथ अलग हो गया... और अनुराधा और सोनल डिप्रेस हो गईं... वो हार गईं जिंदगी से... शायद परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते...
मेरी एक फ्रेंड है... जिसके ऊपर भी उसके परिवार की जिम्मेदारियां हैं... उसे एक लड़का प्यार करता था... और शादी करना चाहता था... लकिन वो निर्णय नहीं ले पा रही थी... अक्सर मुझसे पूछती थी कि कैसे अपने भाई-बहनों को छोड़कर शादी कर ले... लेकिन मेरा यही कहना था... कि तुम्हारे भाई-बहन 20 साल से बड़े हो चुके हैं... उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए... खासकर भाई को जो 22 साल का है... अब वे इतने छोटे नहीं कि खुद को संभाल न सकें... और कोई जरूरी नहीं कि शादी के बाद तुम उन्हें नहीं संभाल सकतीं... शादी के बाद भी मदद की जा सकती है... उनकी जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सकता है... जो लड़का तुमसे प्यार करता है... वो इन चीजों को जरूर समझेगा... वो तुम्हारा साथ जरूर देगा... तुम लड़के के सामने सबकुछ क्लीयर कर दो... और भगवान की कृपा से मेरी दोस्त आज एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रही है... और अपने परिवार की मदद भी कर रही है...
अनुराधा और सोनल को क्या मिला ये सब करके... बाकी सब लोग तो अच्छे ही रहे... इधर अच्छी खासी दोनों लड़कियों ने खुद को हड्डी का ढांचा बना लिया... दुनियाभर की बीमारियों का घर बन गया उनका शरीर... इससे फर्क किसे पड़ा... केवल उन दोनों को... बाकी दुनिया अफसोस जताएगी, खुद मैं कुछ दिनों या सालों बाद भूल जाऊं कि कौन अनुराधा या सोनाली... लेकिन दुनिया किसकी चली गई... उन दोनों की... इसलिए किसी के लिए खुद को खोने की जरूरत नहीं... प्यार ऐसा करें जो कन्सट्रक्ट कर दे... डिस्ट्रक्ट नहीं...  
इसलिए खुद को रिश्तों के भंवर जाल में ज्यादा नहीं फंसाना चाहिए... खुद के लिए भी थोड़ा स्वार्थी होना चाहिए... (जिसमें दूसरों की जिंदगी न बर्बाद होती हो), खुश रहना चाहिए... और अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए... क्यों कि लोग तो केवल छीनने के लिए बैठे हैं... चाहे वो कोई भी हो... अपने बारे में खुद ही सोचना होगा... जो खुद अपनी खुशी के बारे में नहीं सोच सकता ... उसके बारे में दूसरा क्यों सोचेगा... इसलिए थोड़ा स्वार्थी हों... और खुश रहें... भाई-बहन से उम्मीद ज्यादा नहीं रखनी चाहिए... क्योंकि सबके अपने परिवार हैं... उन्हें उनके बारे में भी सोचना है... इसलिए अपना घर भी बसाएं...

Tonight when the Giants will Sleep-Dreams of Sir Sachin and Ponting


www.fifthangle.com 

A mouth watering game, India Vs. Australia, in a world cup quarter finals, and what a win for India. As I sat glued to the television for the last 7 overs, one thought that went through my mind was not about the story of nail biting finish but by the story of how different will be the dreams of two giants when, after the whole drama and noise will start to fade away and they retire in their respective beds, silently.

The viewers, across India, today will have a real nice dream, as they witnessed India perform to its best. May it be the fielding, Bowling or Batting, India outperformed Aussies in every department of the game, but this post is not about the analysis of the game, but something more interesting, something which will happen tonight, when two of the most talented people in the world of cricket, will retire in their respective beds and the thoughts that will occupy their mind.

Our forefathers have said, ” Even the softest bed cannot give a pleasant sleep to a non hardworker, and even the bed of steel can give a pleasant sleep to a hard worker”.
But what will happen today is something far greater than this, something exact opposite to the saying, as one of the most hard worker and great performer of the match- with a century in his belt-will retire tonight on the softest bed, but will not be able to sleep.

Yes, today after every one will retire in their bed, one man Mr.Ricky Ponting, will hear a cacophony in the silence of night. One of the most talented of the players cricket has ever produced, Mr. Ponting, who have been involved significantly in everything of Australia, right from putting a thought to all the strategies, and motivating the team, and performing to his best – 104 runs and top scorer of the match-will hear silent noises, noises so harsh and powerful that it can wash away years of his hardwork and dedication.

As the stadium will turn lonely, and the big lights will dim, he will sit alone, silently, and the thoughts will play like a flashback about how his years of hard work and dedication towards Australia, and Australian cricket team, will be crushed, analyzed, and will be mocked tomorrow, in every newspaper, television, including the small groups of people, who will give their expert opinions on why he (Ponting) got what he deserved.

As he will prepare himself to go through the pain and pressure for next long months to come, which will seem not to pass away and will seem never ending, there will be one another man, another giant of cricket,who will also witnessed this whole catastrophe over Australia.

Tonight when the whole world will go silent and this great man, will retire in his bed imagine for a minute what thoughts will go through his mind. He has not made the best strategies ( he is not the captain so is a part of the strategy ), neither he has given his best performance ( only 53 runs), but today when this institution of Cricket, Sir. Sachin Tendulkar will retire on his bed, he will sleep peacefully.

He will sleep peacefully, because the way Sir Sachin defines and judges his performance is far far different from the way ,Mr. Ponting defines it.
Mr. Ponting, defines victory when he performs best, when his team beats the other team, first mentally-by talking shamelessly and senseless in media-and then on ground, and utilizing all the tricks (eyeing the batsman, bowling body line balls, using right or wrong methods) of the trade to just win.

On the other hand, Sir. Sachin defines victory, totally in contrast to what Ponting does. He defines Victory when every member of the team, performs to the best of their ability, try to live the moment, and instead of focusing themselves towards making the outcome most important, work endlessly to live the moment to the fullest and perform their best.

The best example is from today which Raina shared during his after match interview. Raina recalled that before he was about to go to bat, Sachin came to him, and gave him a “hi5″, and just said, “go out their and this is your time, just excel these moments.”

As Raina was asked, how he managed such a positive and calm attitude when he came to bat, his lines were, ” I wanted to live upto the moment for Sachin”. and this answers lot of things to a aware mind.

Today when Sachin will retire in his bed, his mind will not be occupied with the ground, the noise, the dreams of fellow men, the wrong umpire decisions & neither about the victory of India, nor about the way they made Australia loose.

He will not analyze what will happen tomorrow, nor what will happen if they loose the match from pakistan, he will not analyze what if they gave 20 more runs to Aussies, or what if they took two more wickets of Australia.

Sir. Sachin will only think about the nice sleep his body deserves after a rigorous cricket match, as he understands the importance of winning the moments, and not letting the emotions take over.

And that's why, I always say,
” Talent can win Matches, but it takes a Team to win Championship”.

Ponting is a school which specializes in managing and finding exceptional talent, while Sir. Sachin, is an university which specializes in ensuring best performance from every individuals, thus building Team.
Good Night Sir. Sachin, and thanks for being our God, because until God is not great, we mortals will remain small.


Abhinna S Khare

कुछ दिल से....

जिंदगी में कई बार परिस्थितियां आपको मजबूर करती हैं फैसले लेने को...और ये फैसले आपको कई चीजें सिखाते हैं और यही वो समय होता है जब आपको पता चलता है कि कौन आपका है और कौन पराया...कई दिनों से मैं ये महसूस कर रहा हूं  कि जिंदगी में आप हमेशा किसी के अच्छे बनकर नहीं रह सकते...जो कल आपके लिए अच्छा था वो आज बुरा हो सकता है और जो आज मेरा गुणगान कर रहे हैं वो कल मेरे विरोधी हो सकते है...समय के साथ रिश्ते बदल जाते हैं.....लोग बदल जाते है और कई बार ये जाने बिना की किन परिस्थितियों में कुछ फैसले लिए गए लोगों की सोच भी बदल जाती है...खैर मेरी जिंदगी में  आलोचकों की संख्या हमेशा से ज्यादा रही है  और इन्ही लोगों ने मुझे हिम्मत देकर आगे बढ़ाया है...बात चल रही थी फैसले कि तो  कई बार आपको पता होता है कि कुछ फैसले आपके कई करीबी लोगों  को पसंद नहीं आएंगे इनमे वो लोग भी शामिल हो सकते हैं जिन्हे आपने गुरू माना और बहुत कुछ सीखा...पर  अगर परिस्थितियां ऐसी हो की आप इस चीज की भी परवाह नहीं करेंगे की  दर्जनों लोगों को आपके इस कदम से बुरा लगेगा तो  मुझे लगता है कि फिर फैसला ले लेने  चाहिए...फिर चाहे आपके पीठ पीछे आपकी कितनी भी बुराई क्यों न हो...वैसे भी जिंदगी में मैंने फैसले लेते समय ये नहीं सोचा की मैं सही कर रहा हूं या गलत...मैंने हमेशा अपने फैसले लिए है औऱ ये साबित करके दिखाया है कि मेरा फैसला सही था......चाहे ये फैसले खबरों को लेकर हो या निजी जिंदगी में.....ट्रेन में सफर करते हूं जब आपको कुछ लोग मिल जाते हैं तो 5-10 घंटे की मुलाकात में ही आप उनको दरवाजे तक छोड़ते हैं....परीक्षा के हॉल में तीन घंटे बगल में बैठा हुआ छात्र भी आपका दोस्त बन जाता है...तो क्या ये संभव हो सकता है ढ़ाई साल आप जिन लोगों के बीच  रहो उनको बिना बताए और बिना मिले चले जाओ..शायद 'नहीं'..पर अगर परिस्थिता इजाजत नहीं देती  तो शायद 'हां' भी....खैर बदले जमाने में बदले हुए लोगों के बीच मैं नहीं बदला हूं.... आज भी वही जुनून है.... आज भी वहीं जोश है क्या हुआ कि अगर वो लोग साथ में नहीं है पर उनके साथ बिता और उनसे सीखे हर लम्हे मेरे साथ है....वक्त बहुत बड़ा होता है सबको हकिकत का सामना करा  देता है...'वक्त'  आएगा और लोग समझ जाएंगे कि  कई बार ये 'वक्त' ही आपको मजबूर  करता है 'वक्त' के  साथ  बदल जाने को

रोमल भावसार

तुझे सलाम...


सृजन , शक्ति, सौंदर्य, लज्जा, भरोसा, इन शब्दों के साथ नारी का सहज और अटूट जुड़ाव है। हालांकि एक शब्द और भी है, जिसे उनके साथ अमूमन जोड़ा जाता है। ये शब्द है अबला.....जो उसे सहानुभूति के योग्य बना देता है। लेकिन मौजूदा दौर में नारी असहज नहीं... और ना ही बेचारगी जाहिर करती है। ऐसे में नारी को अबला ठहराना उसे मानसिक रूप से कमजोर करने की साजिश सरीखा है। नारी शक्ति को सलाम करने के मौके इंटरनेशनल वूमेन डे पर रू-ब-रू होते हैं... अपने क्षेत्र में प्रथम महिला होने का गौरव हासिल करने वाली भारतीय महिलाओं से---

भारतीय महिलाएं
प्रथम महिला राष्ट्रपति- प्रतिभा सिंह पाटिल
प्रथम महिला प्रधानमंत्री- इंदिरा गांधी
प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष- मीरा कुमार
प्रथम महिला राज्यपाल- सरोजनी नायडू
प्रथम महिला मुख्यमंत्री- सुचेता कृपलानी
प्रथम महिला केंद्रीय मंत्री- अमृत कौर
प्रथम महिला विधायक- डॉ एस मुथुलक्ष्मी रेड्डी
प्रथम महिला राज्यसभा स्पीकर- सन्नोदेवी
प्रथम महिला जिसे दिल्ली का तख्त मिला- रजिया बेगम
प्रथम महिला जिसे नोबेल पुरस्कार- मदर टेरेसा
प्रथम महिला अशोक चक्र से सम्मानित- कमलेश कुमारी
प्रथम महिला लेनिन पुरस्कार विजेता- अरुणा आसिफ अली
प्रथम महिला सुप्रीम कोर्ट जज- मीरा साहिब फातिमा बीबी
प्रथम महिला हाईकोर्ट जज- लीला सेठ
प्रथम महिला एडवोकेट- डी सोराब जी
प्रथम महिला राजदूत- विजयलक्ष्मी पंडित
प्रथम महिला आईपीएस- किरण बेदी
प्रथम महिला आईएएस- अन्ना जार्ज
प्रथम महिला पायलट(वायु सेना)- हरिता कौर देयोल
प्रथम महिला पायलट(सामान्य)- प्रेमा माथुर
प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री- कल्पना चावला
प्रथम महिला सर्जन- डॉ प्रेमा मुखर्जी
प्रथम महिला (नौका से पूरे विश्व का चक्कर लगाने वाली)- उज्ज्वला पाटिल
प्रथम महिला स्वर्ण पदक विजेता( एशियाई खेल)- कमलजीत संधू
प्रथम महिला ओलंपिक में मेडल विजेता- कर्णम मल्लेश्वरी
प्रथम महिला विश्व एथलेटिक्स में मेडल विजेता- अंजू बॉबी जॉर्ज
प्रथम महिला जो हिमालय पर चढ़ी- बछेंद्री पाल
प्रथम महिला इंग्लिश चैनल पार करने वाली- आरती साहा
प्रथम महिला उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाली- प्रीति सेनगुप्ता
प्रथम महिला अंटार्कटिका पहुंचने वाली- मेहर मूसा
प्रथम महिला भारतीय ध्वज लहराने वाली- मैडम भीकाजी कामा
प्रथम महिला एक्ट्रेस- देविका रानी
प्रथम महिला मिस अर्थ- निकोल फारिया