तलाक : जिम्मेदार कौन?


पिछले दिनों अपने एक दोस्त की धर्मपत्नी से इन्टरनेट पर मुलाक़ात हुई जिसकी शादी मैंने और मेरे ही दोस्तों ने मिलकर आर्य समाज मंदिर में करवाई थी.बड़े आदर के साथ जब मैंने उन्हें नमस्कार कर पुछा की भाभी आप कैसी हैं तो अचानक उनकी जो उग्र प्रतिक्रिया थी वो मेरे समझ से परे थी..उनके शब्दों के बाण मुझे ऐसे लग रहे थे जैसे मैंने भाभी कह कर उनका अपमान कर दिया हो..मैं कमाती हूँ और किसी भी तरह की पाबन्दी सहन करना न मेरी मजबूरी है न ही आदत..आखिर कोई और मेरे जीवन पर नियंत्रण कैसे रख सकता है? मैं केवल घर बैठ कर बच्चे नहीं पैदा कर सकती.. इसलिए मैंने तलाक ले लिया है ताकि अपने ढंग से जीवन जी सकूँ..कितनी विडंबना वाली बात है की रीतू ने अपने पति को कोई का दर्जा दे दिया..और उसे ही अलगाव का जिम्मेदार भी मान लिया.... पहले पति-पत्नी शादी को जन्म जन्मांतर का रिश्ता मानते थे.एक दूसरे से अलग होने की बात वो सोच भी नहीं सकते थे..बदलती जीवन शैली और औरत की बढती महत्वकांक्षाओं के चलते जिंदगी में जटिलता आ गई है.. नतीजन भौतिकवादी संस्कृति के तहत यह रिश्ता अपनी अहमियत खोता जा रहा है और अदालतों में सम्बन्ध तोड़ने के मामले बढते जा रहे हैं..औरत अपनी सामाजिक मान्यताओं को नज़रअंदाज़ कर रही है.केवल पति ही शादी-शुदा जिंदगी में आने वाली कटुता, अलगाव या तलाक का जिम्मेदार होता है ये कहना आज के संदर्भ में सही नहीं बैठता..औरत न तो अब अबला रही है न असहाय या पति पर निर्भर..इसलिए तलाक के लिए पत्नी भी उतनी ही जिम्मेदार है जितना की पति..आज के आकड़ों पर नज़र डालें तो नज़र आएगा की आज पुरषों की अपेक्षा महिलाएं तलाक के लिए ज्यादा पहल करती है...और इनमें अधिकतर वो महिलाएं हैं जो युवा,आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर या आज़ादी पसंद हैं..ये औरतें परंपरा या परिवार के नियम कायदों को मानने के बजाय खुद की संतुष्टि और खुशी को ज्तादा महत्त्व देती हैं..अहम ने औरत के अंदर जन्म ले लिया है मैं कमाती हूँ ? मैं सक्षम हूँ तो घर का काम क्यूँ करूँ ? मैं भी थकी हारी ऑफिस से आती हूँ तो पति की चाय क्यूँ बनाऊं? आदि ऐसे कई सवाल हैं जो आज की कामकाजी महिला की ज़बान हरदम रहते हैं...आज का युगल तलाक को एक समाधान की तरह देखने लगा है.. अधिकतर मामलों में अब पहल औरत की तरफ से होने लगी है..बेहतर शिक्षा,अच्छा वेतन और कार्यक्षेत्र में अर्जित सम्मान ने औरत को पुरानी स्थितियों को नए परिप्रेक्ष्य में देखने को प्रेरित कर दिया है..यही वजह है की उसमें जहाँ सहनशीलता की कमी आयी है वहीँ वह किसी तरह का समझोता करने को भी तैयार नहीं है..आर्थिक स्वतंत्रा ने औरत को एक तरह से बागी और अहंकारी बना दिया है.. जिसकी वजह से रिश्ते अगर उसकी राह में आते हैं तो रिश्तों से खिलवाड़ करने में उसे देर नहीं लगती..औरत जिम्मेदार इसलिए भी है क्यूंकि बदलाव उसमे आया है, औरत में आई सहनशीलता की कमी परिवारों को ताड़ने में सबसे बड़ी वजह बन गयी है, वो तो स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बन गयी है, पुरुष तो अभी भी अपनी पुरानी मानसिकता के दायरे से बहार नहीं निकल सका है जिसकी वजह से मतभेद बढ़ रहे हैं...और इसके लिए पति ही जिम्मेदार है ये कहना कहाँ तक न्यायसंगत है?..देर से शादी करना और अपने करियर को प्राथमिकता देना, अपने जीवन से जुड़े फेसले खुद लेना,इन्टरनेट और पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव जैसी हर चीज़ ने औरत की शादीशुदा जिंदगी से जुडी अपेक्षाओं को बड़ा दिया है.. आर्थिक सुरक्षा से उपजे आत्मविश्वास में अहम इस हद तक शामिल हो गया है की औरतें शादीशुदा जिंदगी की मुश्किलों को सुलझाने की बजाये तलाक का रास्ता अपना रहीं हैं.तलाकशुदा औरत को लोग किस नज़र से देखेंगे, इस की भी उसे परवाह नहीं है, क्यूंकि उसे तो अपनी आज़ादी से प्यार है और इसलिए वो शादी जैसे अटूट रिश्ते को भी तोड़ने में पलभर तक नहीं लगाती..एक समय था जब शादी करना ही औरत की प्राथमिकता और सोशल स्टेटस होता था, पर आज स्थति बिलकुल विपरीत है ...पति अगर उसकी नहीं सुनता या उसके हिसाब से नहीं चलता तो वह उस से तलाक लेने की बात करते हुए न तो समाज को परवाह करती है न परिवार के सम्मान की ....

अमन का आगाज़


बहुत हो चुकी खूनी जंग

अब अमन का आगाज करें।

खत्म करें दुश्मनी का सिलसिला

एक नए रिश्ते की बुनियाद रखें।

मिटा दें हर गिले-शिकवे को

अब हर कदम एक साथ चलें।

हम पड़ोसी है इक-दूजे के

फिर क्यों आपस में नाराज रहें।

मिटा के दिलों की सभी दूरियां

क्रिकेट से नई शुरुआत करें।

अपनी खुशी पर भी दें ध्यान

नोएडा के सेक्टर-29 में अपने ही घर में खुद को 7 महीने से कैद रखने वाली बहनों की दास्तान ने सबके साथ-साथ मेरे भी रोंगटे खड़े कर दिए...अलग-अलग एंगल से मैंने ये खबर कई वेबसाइट्स पर देखी... कितनी भी कोशिश की कि ऐसी खबरों को खबरों के नजरिए से ही देखकर भूल जाऊं... लेकिन ऐसा हो नहीं पाया...

आखिर ऐसा क्यों हुआ... उनके माता-पिता की मौत के बाद अनुराधा (बड़ी बहन) ने अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल का जिम्मा लिया... ये अच्छी बात है कि आप अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं और उसे निभाते भी हैं... लेकिन मेरा ये भी मानना है कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में इतना इन्वॉल्व नहीं होना चाहिए... कि खुद को ही इंसान भूल जाए... कोई भी चीज आपके खुद के ऊपर न हावी हो जाए...
अनुराधा सीए थी... उसने भाई-बहनों को पढ़ाया... लायक बनाया... लेकिन जब उसकी जिम्मेदारियां पूरी हो गईं... तो क्या उसे अपनी शादी के बारे में नहीं सोचना चाहिए था... सोनल (छोटी बहन) भी सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल थी... तो क्या उसे भी कोई लड़का नहीं मिल रहा था... भाई विपिन सबसे छोटा था... लेकिन दोनों बहनों ने उसकी शादी सबसे पहले 2007 में करा दी... भाई को भी ये सोचना चाहिए था... और बहनों को भी इस बारे में मनाना चाहिए था कि जितनी रेसपॉन्सिबिलिटी आपको निभानी थीं... आपने निभा लीं... अब पहले आप दोनों बहनों की शादी होनी चाहिए... लेकिन भाई ने भी इसके लिए दिल से कोशिश नहीं की होगी...
ये बहुत बड़ी सच्चाई है औरतों की... कि उनके लिए 30-35 के बाद घर बसाने के लिए जीवनसाथी मिलना अपने समाज में काफी कठिन होता है... कुदरत ने भी मर्द और औरत में, उसकी शारीरिक संरचना में फर्क किया है... जहां कोई लड़की 30 के बाद ढलने लगती है (मेडिकली प्रूव) वहीं लड़के 30 के बाद भी लड़कियों के मुकाबले यंग होते हैं... लड़कियां बड़ी भी जल्दी होती हैं... और लड़के देर से... इसलिए पहले के जमाने में लड़की और लड़के की शादी में दोनों की उम्र में थोड़ा अंतर रखा जाता था... 35से ऊपर की औरत आंटी होती है... जबकि लड़का भइया... लड़की की शादी 35 के ऊपर आश्चर्य या अफसोस का विषय होता है... जबकि लड़के के लिए ये चीज सामान्य मानी जाती है... लड़के के लिए लड़की किसी भी उम्र में मिल जाती है... विधुर हो तो मिल जाती है... तलाकशुदा हो तो मिल जाती है... लेकिन लड़कियों के लिए इन मामलों में काफी मुश्किल होती है... इस सच्चाई को समझना चाहिए...
अनुराधा और सोनल के साथ यही हुआ... माता-पिता की मृत्यु, कोई पुरुष दोस्त नहीं (जिसकी एक उम्र के बाद जरूरत होती है), भाई की शादी... और अलग रहने के लिए चले जाना... इन सबसे ये दोनों टूट गईं... उन्हें लगा कि अब उनाक क्या होगा... कौन सहारा होगा... किसके भरोसे जीएंगी... अच्छे पदों पर रहते हुए एक भावनात्मक असुरक्षा के घर कर जाने की वजह से और लगातार हादसों के कारण वे टूट गईं... और खुद को घर के अंदर बंद कर लिया...
जहां तक भाई और उसकी पत्नी का पक्ष देखें... तो भाई की पत्नी यानी भाभी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता... कोई भी लड़की जब शादी करती है... तो नई-नई शादी में पति का पूरा साथ चाहती हैं... उसके सपने होते हैं... और अगर मैंने अपने भाई के लिए कुछ किया है... तो हम भाई से उम्मीद कर सकते हैं... कि वो मुझे समझे... लेकिन दूसरे घर की बेटी... जिसने ये सब महसूस नहीं किया है... उससे हम इन सबको समझने की उम्मीद नहीं कर सकते... पर्सनली मेरा ये मानना है कि अनुराधा और सोनल चूंकि अकेली थीं... अपनी दुनिया उन्होंने भाई के आसपास ही बना रखी थी... शादी तो कर दी भाई की... लेकिन अचानक से किसी और लड़की का अधिकार भाई पर हो जाना... और उसके हर फैसले किसी और द्वारा लिया जाना... उन्हें जरूर खला होगा (सास-बहू के झगड़े और ईर्ष्या की सबसे बड़ी वजह)... इसके लिए आए दिन तनाव और मनमुटाव होते रहे... जहां तक भाई की बात है... शादी के बाद लड़का न तो पूरी तरह अपने घरवालों का पक्ष ले सकता है न बीवी का... और शादी के बाद पत्नी के प्रति उसकी जिम्मेदारियां नो डाउट ज्यादा होती हैं... क्योंकि पत्नी कंपलीटली उसपर डिपेंड होती है... इन्हीं सब वजह से विपिन अपनी पत्नी के साथ अलग हो गया... और अनुराधा और सोनल डिप्रेस हो गईं... वो हार गईं जिंदगी से... शायद परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते...
मेरी एक फ्रेंड है... जिसके ऊपर भी उसके परिवार की जिम्मेदारियां हैं... उसे एक लड़का प्यार करता था... और शादी करना चाहता था... लकिन वो निर्णय नहीं ले पा रही थी... अक्सर मुझसे पूछती थी कि कैसे अपने भाई-बहनों को छोड़कर शादी कर ले... लेकिन मेरा यही कहना था... कि तुम्हारे भाई-बहन 20 साल से बड़े हो चुके हैं... उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए... खासकर भाई को जो 22 साल का है... अब वे इतने छोटे नहीं कि खुद को संभाल न सकें... और कोई जरूरी नहीं कि शादी के बाद तुम उन्हें नहीं संभाल सकतीं... शादी के बाद भी मदद की जा सकती है... उनकी जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सकता है... जो लड़का तुमसे प्यार करता है... वो इन चीजों को जरूर समझेगा... वो तुम्हारा साथ जरूर देगा... तुम लड़के के सामने सबकुछ क्लीयर कर दो... और भगवान की कृपा से मेरी दोस्त आज एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रही है... और अपने परिवार की मदद भी कर रही है...
अनुराधा और सोनल को क्या मिला ये सब करके... बाकी सब लोग तो अच्छे ही रहे... इधर अच्छी खासी दोनों लड़कियों ने खुद को हड्डी का ढांचा बना लिया... दुनियाभर की बीमारियों का घर बन गया उनका शरीर... इससे फर्क किसे पड़ा... केवल उन दोनों को... बाकी दुनिया अफसोस जताएगी, खुद मैं कुछ दिनों या सालों बाद भूल जाऊं कि कौन अनुराधा या सोनाली... लेकिन दुनिया किसकी चली गई... उन दोनों की... इसलिए किसी के लिए खुद को खोने की जरूरत नहीं... प्यार ऐसा करें जो कन्सट्रक्ट कर दे... डिस्ट्रक्ट नहीं...  
इसलिए खुद को रिश्तों के भंवर जाल में ज्यादा नहीं फंसाना चाहिए... खुद के लिए भी थोड़ा स्वार्थी होना चाहिए... (जिसमें दूसरों की जिंदगी न बर्बाद होती हो), खुश रहना चाहिए... और अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए... क्यों कि लोग तो केवल छीनने के लिए बैठे हैं... चाहे वो कोई भी हो... अपने बारे में खुद ही सोचना होगा... जो खुद अपनी खुशी के बारे में नहीं सोच सकता ... उसके बारे में दूसरा क्यों सोचेगा... इसलिए थोड़ा स्वार्थी हों... और खुश रहें... भाई-बहन से उम्मीद ज्यादा नहीं रखनी चाहिए... क्योंकि सबके अपने परिवार हैं... उन्हें उनके बारे में भी सोचना है... इसलिए अपना घर भी बसाएं...