मायावी मायानगरी

मशहूर मॉडल विवेका बाबाजी ने शुक्रवार को बांद्रा स्थित अपने घर में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। 1993 में मिस मॉरीशस का ताज पहने के बाद विवेका ने मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया। फैशन जगत में नाम कमाने के साथ ही विवेका ने ऐड वर्ल्ड और बॉलीवुड में भी काम किया। लेकिन इस दर्दनाक हादसे ने फिर साबित कर दिया कि फैशन की दुनिया पर्दे पर कुछ और पर्दे के पीछे कुछ और है।
मुंबई के खार इलाके के अपार्टमेंट में रहने वाली विवेका बाबाजी की सूचना उसके पड़ोसियों ने पुलिस को दी। जिसके बाद उसके कमरे का दरवाजा तोड़ा गया तो भीतर विवेका की लाश पंखे पर झूल रही थी। प्रारंभिक जांच में मौत की यही तस्वीर नजर आ रही है कि विवेका अपनी जिंदगी से आजीज आ चुकी थी। मुंबई के पश्चिमी क्षेत्र के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अमिताभ गुप्ता के मुताबिक विवेका अपने बॉयफ्रेंड से संबंध टूटने की वजह से तनाव में थी। ये भी पता चला है कि विवेका ने फांसी लगाने से ठीक पहले अपनी मां से फोन पर बात की थी। विवेका की दोस्त एना सिंह ने ट्विटर पर लिखा है कि विवेका को मोहब्बत में धोखा मिला और इसी वजह से उसने मौत को गले लगा लिया। ग्लैमर और फैशन की दुनिया का एक बड़ा नाम... यूं खुद के अंधेरों में गुम हो जाएगा किसी ने सोचा नहीं था।
मौत और मिस्ट्री से मायानगरी का पुराना नाता रहा है। ग्लैमर की रोशनी इससे पहले भी कई जिंदगियों को अंधेरा कर चुकी है। महज 19 साल में बुलंदी को हासिल करने वाली दिव्या भारती की मौत आज भी सस्पेंश बनी हुई है। स्टारडम और बुलदिंयों को छूने वाली परवीन बॉबी का आखिरी वक्त काफी गुमनामी भरा रहा। परवीन की मौत भी संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई। फिल्म निर्माताओं और सिनेमा के छात्रों की प्रेरणा गुरुदत्त के जीवन की आखिरी रात भी नाटकीय दृश्य की ही तरह बीती थी। 10 अक्टूबर 1964 की हुई उनकी मौत इस चकाचौंध दुनिया के दूसरे पहलू को उजागर करती है। ग्लेमर्स अभिनेत्री सिल्क स्मिता,प्रिया राजवंश नफीसा जोसेफ, कुलजीत रंधावा, कुणाल सिंह जैसे कई नाम को रंगीन रोशनी की स्याह पराछाई लील चुकी है।
ग्लैमर की दुनिया की ये हकीकत महज बॉलीवुड तक नहीं सिमटी है। मौत और मिस्ट्री का ये राज दुनिया भर में फैला है। पॉप सिंगर माइकल जैक्सन हों या सुपर स्टार मर्लिन मुनरो, गायक एल्विस प्रेस्ले हों या बीटल के जॉन लैनन, इन सभी की मौतों पर पड़ा रहस्य का परदा आज भी पूरी तरह उठ नहीं पाया है।
ग्लैमर की दुनिया में नाम कमाने की ख्वाहिश लोगों को यहां तक खींच लाती है। लेकिन इस चकाचौंध दुनिया का दूसरा पहलू भी है।
ग्लैमर की इस दुनिया में नाम-गिरामी मॉडल से लेकर छोटे कलाकार तक हर कोई शोषण का शिकार है। कोमल और छरहरी काया का जादू बिखरने वाले मॉडल यहां आकर कई बार कुछ ऐसा कर जाते हैं, जो उनकी जिंदगी को भटकाव की राह पर ले जाता है। नेम और फेम की चाहत में लोग यहां जिस्म का सौदा करने से भी गुरेज नहीं करते। दौलत और शोहरत की खातिर कई बार ये बुलंदियों के फरेब का शिकार बन जाते हैं तो कई बार ग्लैमर का झूठ शोहरत की हकीकत पर भारी पड़ता है। और फिर यही ग्लैमर, स्टारडम और रौनक घुटन का सबब बन जाती है। ग्लैमर की दुनिया में मुस्कराते चेहरों के पीछे छुपी कड़वी हकीकत इनकी जिंदगी की एक अलग दास्तां बयां करती है।

फैशन की गर्दिश


मधुर भंडारकर की एक फिल्म आई थी...फैशन...शायद आपको इसकी कहानी याद होगी....इस फिल्म में फैशन जगत से संबंधित खामियों को बखूबी दर्शाया किया गया है....फिल्म में एक मॉडल के करियर की बुलंदियों से लेकर उसके जमीन पर आ गिरने तक की कहानी दिखाई गई है...एक सफल मॉडल के त्रासदी की कहानी...जिसने सबको झकझोर कर रख दिया....
वास्तव में फैशन जगत जितना चकाचौध भरा दिखता है उतना है नहीं...यहां दिखता कुछ और है और वास्तिवकता कुछ और होती है...चेहरे पर सुर्ख मुस्कान लिए मॉडल रैंप पर अदाओं का जलवा तो बिखेरती है...उन्हें देखकर आप कतई अंदाजा नहीं लगा सकते कि उनकी जिंदगी में भी कोई परेशानी होगी..लेकिन ये सच है...उनकी जिंदगी में भी उतार चढ़ाव आते हैं...उन्हें भी कई बार परेशानियों से गुजरना पड़ता है...यहां कुछ मॉडल सफलता की नई इबारत लिखती हैं तो कुछ गुमनामी के अंधेरे में खो जाती हैं...


ताजा मामला है भारत की मशहूर मॉडल विवेका बाबाजी का...चर्चित मॉडल विवेका बाबाजी ने मुंबई के पॉश इलाके बांद्रा में खुदकुशी कर ली। विवेका की लाश उनके घर में रस्सी से लटकी मिली। 37 साल की विवेका बाबाजी मॉरीशस की रहनेवाली थी और मुंबई के बांद्रा इलाके में पिछले 10 साल से रह रही थी।  लाश के पास एक डायरी, एक लैपटॉप और नींद की गोलियां मिली....वहीं विवेका के किचन में गैस का रिसाव हो रहा था...शुरुआती जांच में पुलिस को ये खुदकुशी का मामला लगा। विवेका की मौत की जांच के लिए तीन टीमें बनाई गई है। दो टीम मुंबई पुलिस की है जबकि क्राइम ब्रांच की भी एक टीम मामले की जांच में जुटी है। खैर ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि ये मामला खुदकुशी का है या फिर हत्या का....

लेकिन कुछ साल पहले आपको याद होगा एक सुपर मॉडल सड़क के किनारे नशे की हालत में मिली थी...उसे उसकी नशे की आदतों ने सड़क पर पहुंचा दिया....
 इसके कुछ साल बाद मशहूर मॉडल और एमटीवी वीजे नफीसा जोसेफ की आत्महत्या की खबर आई...उन्होनें गौतम खांडुजा के साथ विवाह किया था...मृत्यु से पहले वे काफी निजी परेशानियों का सामना कर रही थी....नफीसा फैशन जगत में ही नहीं टीवी जगत में भी जाना पहचाना नाम बनती जा रही थी..लेकिन इन सुपर मॉडलों की मौत ने फैशन की चकाचौंध का घिनौना चेहरा सामने ला दिया....

वहीं ब्रिटेन में भी ऐसे ही कुछ मामले सामने आए  हैं... प्रख्यात मॉडल हेले क्रुक को हैम्पशायर स्थित उनके अभिभावकों के घर में मृत पाया गया। क्रुक के पुरुष मित्र को 17 जून को मॉडल के बिस्तर पर उसका शव मिला। मौत की वजह अब तक पता नहीं लगाई जा सकी है। पूर्वोत्तर हैम्पशायर के जांच अधिकारी एंड्रयू ब्राडली उनकी मौत के कारणों की जांच कर रहे हैं। तेईस वर्षीय क्रुक लंदन स्टूडियो सेंटर से स्नातक थीं।

मियामी में भी मशहूर पत्रिका ‘प्लेबॉय’ की पूर्व मॉडल एवं एक अरबपति की विधवा एना निकोल स्मिथ की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी...39 वर्षीया स्मिथ फ्लोरिडा के एक होटल में ठहरी थीं। एक निजी नर्स ने अस्पताल से चिकित्सीय सहायता के लिए संपर्क किया और स्मिथ को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि अबतक उनकी मौत के कारण का पता नहीं चल सका है।

अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे मामले लगातार सामने क्यों आ रहे हैं... सुपर मॉडल बनने के लिए कुछ नहीं बहुत कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाली टॉप और बोल्ड मॉडलों को क्या हो जाता है कि वो खुद को इतना कमजोर महसूस करने लगती हैं...और ऐसे कदम उठा लेती हैं...?

दरअसल सुपर मॉडल बनने की चाह में ये मॉडल अपना घर परिवार, शहर, दोस्त और प्यार सब छोड़ देती है... और जब उन्हें ठोकर लगती है तो वो पाती है कि उसके हाथ में कुछ नहीं बचा है...जिंदगी से समझौता करने के बाद लड़कियां अपने सुपर मॉडल बनने का सपना पूरा करने में इतनी बिजी हो जाती है कि उन्हें अपनी असली दुनिया नजर ही नहीं आती और ऊपर जाने की धुन में वो नीचे गिरती चली जाती है... इनमें से गिनी चुनी मॉडलें ही बुलंदियों पर कुछ समय के लिए टिक पाती हैं...या बॉलीवुड में हाथ आजमाती हैं...लेकिन इनमें से ज्यादातर लड़कियों को वापस लौटना पड़ता है....ये दुनिया कभी किसी की नहीं हुई...यहां चमकनेवाला सितारा  कम समय के लिए ही बुलंदियों पर टिक पाता है....और जब वो औंधे मुह गिरता है तो उसे जिंदगी की हकीकत नजर आती है....आई ऍम बेस्ट के भ्रम मैं रहने वाली सुपर मॉडल  चंद लम्हों में जमीन पर आ जाती है...फैशन की दुनिया का घिनोना चेहरा तब सामने आता है जब एक मॉडल खुद को असहाय महसूस करने लगती हैं..चकाचौध की दुनिया से वो सीधे आंधकारमय जीवन की ओर मुखातिब हो जाती है...

यहीं से शुरू होती है उसकी त्रासदी की कहानी...अब वो खुद को असुरक्षित मसहूस करने लगती हैं....उनसे कम उम्र की मॉडल उसकी जगह लेने लगती है....इस जगत में लड़कियों का करियर काफी कम समय के लिए  ठहरता है...लेकिन इस बात को वो अपने जेहन में नहीं उतार पातीं....घर परिवार से अलग दुनिया...शादी में इसलिए देरी क्योंकि इस फील्ड को शादी के बाद करियर का पड़व समझा जाता है....ऐसे में एक सफल मॉडल भला क्या करे....शादी का समय निकलता चला जाता है...परिवार से भी ज्यादा लगाव नहीं रह जाता....ऐसे में उनका इकलौता करियर भी उन्हें टिमटिमाता नजर आता है....जो धीरे-धीरे उन्हें खोखला करती चली जाती है...चेहरे पर हमेशा खुशियों का मुखौटा ओढ़नेवाली मॉडल खुद को असहाय महसूस करने लगती हैं...उसकी  हर रोज शान से जीने की अपनी आदत उसपर भारी पड़ने लगती है... और गुमनामी का डर उसे सताने लगता है..इस वक्त वो उम्र के ऐसे पड़ाव पर आ जाती हैं...जब उनके लिए शादी का वक्त निकलता नजर आता है ...और करियर बदलने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं रह जाता..

वाह रे कानून...


पिछले दिनों नेट पर एक खबर पढ़ी तो मन कह उठा वाह रे कानून...सबसे पहले आपको खबर बता दूं, इटली में 27 वर्षीय हंगरियन प्लेबॉय मॉडल ब्रिगिटा बुल्गारी ने एक क्लब में एक शॉ के दौरान 15 साल से कम उम्र के बच्चों को अपने ब्रेस्ट छूने दे दिए...मामले की शिकायत हो गई और इटली की कोर्ट ने शो का वीडियो देखने के बाद ब्रिगिटा को हिरासत में भेजने के आदेश दे दिए...अब वो रिमांड पर जेल में है..और अगर आरोप सही पाए गए तो ब्रिगिटा को 12 साल की सजा हो सकती है...जी हां 12 साल की सजा....
पिछले दिनों हमारे देश में भी एक एतिहासिक फैसला आया....15,274 मौत(सरकारी आंकड़ा) के जिम्मेदार आरोपियों की सजा 2 साल और वो भी 25 साल बाद...उसमें भी त्रासदी के सबसे बड़े गुनहगार का जिक्र तक नही...फैसले के बाद पीड़ितों में ग़ुस्सा है...और ग़ुस्सा लाज़मी भी है...इस बीच 1984 का एक वीडियो भी आ गया...ये वीडियो ब्रिगिटा के शॉ के वीडियो से ज्यादा शर्मनाक है... उधर सियासत में बयानों की बाढ़ आ गई है..केंद्र राज्य पर तो राज्य केंद्र पर आरोप मढ़ रहा है...मंत्री, नेता सब बोल रहे हैं...कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पर केस को कमजोर करने का आरोप लगा दिया...तो जज साहब ने सीबीआई पर ठीकरा फोड़ दिया...एक ही पार्टी के नेता अपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं...इस बीच अचानक नए-नए लोग टीवी चैनल्स पर रोज़-रोज़ अवतार ले रहे हैं...कभी विमान के पायलट, कभी यात्री तो कभी पोस्टमॉर्टम करने वाले अधिकारी...सभी बोल रहे हैं पूरी इमानदारी से पूरी निष्ठा से 'हमें तो बस आदेश मिला था'...ये अब तक कहां थे नही मालूम...ये अब क्यों अवतरित हुए हैं ये भी नहीं पता...लेकिन इस हादसे पर आए फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं...लेकिन जिसे बोलना हैं वो शांत हैं, जिसे जवाब देना है वो ख़ामोश है...ये ख़ामोशी भोपाल पर हुए विश्वासघात पर गहराते ग़ुस्से को और भड़का रहा है...कहीं ये गुस्सा आंदोलन बन जाए..और आंदोलन ज़रूरी भी है।

देश के कानून व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की दरकार है...और ये भी तय है कि परिवर्तन भ्रष्ट और संवेदनहीन हो चुके इन नेताओं के बूते नहीं हो पाएगा...यानि यहां तो सब ऐसे ही चलते रहेगा... और हम ब्रिगिटा जैसी खबरों को पढ़कर अपने देश के कानून पर अफसोस करते रहेंगें...अफसोस

क्या होगा चौथा स्तंभ न हो तो?

जरा सोचिए किसी दिन आप नींद से जागे और सामने अखबार न हो...
टीवी पर मनोरंजक कार्यक्रम तो दिखाए जा रहे हों... लेकिन उनमें न्यूज चैनल नदारद हो...
एक दिन तो चलो जैसे-तैसे गुजर जाएगा..लेकिन अगर ये सिलसिला लगातार जारी रहे तो...!
क्या कभी सोचा है...मीडिया की भूमिका खत्म हो जाए तो क्या होगा?
क्या आप बिना अखबार पढ़े या समाचार सुने अपनी जिंदगी ठीक वैसे ही गुजार सकते हैं जैसे अब तक गुजारते आए हैं....?
क्या आप मानते हैं आपकी जिंदगी में मीडिया की कोई भूमिका नहीं है?



लोगों का मानना है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ दूषित हो गया है...
मीडियावाले उल्टी-सीधी खबरें छापते हैं...या गॉसिप्स औऱ ह्यूमर ज्यादा फैलाते हैं...
उनका कहना है कि ''आज पत्रकार रात की पार्टियों में विश्‍वास करता है। उसे जब तक टुकड़े डालो तब तक ही चुप रहता है। नहीं तो वो आपकी ऐसी की तेसी करने पर तुल जाता है।  आज का मीडिया दुम हिलऊ बनता जा रहा है''
लेकिन जनाब क्या सचमुच ऐसा है...क्या मीडियाकर्मी इतने होशियार है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए अरबों की जनता को एक पल में बेवकूफ बना जाते हैं....और क्या अरबों जनता इतनी ज्यादा बेवकूफ है कि हर रोज छले जाने के बाद भी इसे देखना और पढ़ना पसंद करती है...क्योंकि अगर जनता इसे नहीं देखती है तो चैनलों की TRP कहां से आती है...या न्यूजपेपरों का सर्कूलेशन कैसे हो जाता है..लाखों पेपर छपते हैं और हाथों हाथ बिक जाते हैं....
जरा गौर से सोचिए  देश का चौथा स्तंभ यानी मीडिया न हो तो क्या होगा...
कल्पना कीजिए  एक कुर्सी के चार खंभों  में से एक खंभा निकाल दिए  जाए तो...
उसी तरह देश  के चार स्तंभों में से यदि एक को भी निकाल दिया गया तो देश की स्थिति लड़खड़ा  सकती है...है ना....अब आप मीडिया की अहमियत का अंदाजा तो ब-खूबी लगा ही सकते हैं... देश की स्थिति मजबूत बनाने के लिए हर क्षेत्र में कार्य  करनेवालों का अलग अलग  योगदान है...और मीडिया अपना काम  बखूबी निभा रही है
क्या मीडिया के बिना आप अपने जीवन की कल्पना कर सकते हैं...क्या आपको देश  दुनिया की सारी जानकारी हू-ब-हू वैसे ही मिल पाएगी...जैसा मीडिया के माध्यम से आसानी से आपको मिल जाती है...क्या आप उन सारी बातों पर आंखें मूद कर भरोसा  कर पाएंगे....औऱ क्या सबको एक जैसी जानकारी मिल जाएगी....ये शायद संभव नहीं है...
आज आप रिमोट  का एक बटन दबाते हैं और पल भर में देश दुनिया की सारी बातें विस्तार से आपको मिल जाती है...अखबार  के पन्ने पलट लेते हैं  तो आपको आपके पसंद की सारी खबरें  उस कोरे कागज पर नजर आती  है...चाहे वो राजनीतिक हों, सामाजिक  हों, आर्थिक हों, बिजनस की बातें हों या फिर खेल  से जुड़ी कोई खबर....क्या आपने सोचा है इन सारी जानकारियों को इकट्ठा करने में हर-रोज  और दिन-रात सैंकड़ों लोग  किस कदर लगे रहते हैं....कैसे आपके सामने ये सारे मसाले  परोसे जाते हैं...
कई बार जब मैं  कहीं बाहर होती हूं और लोगों  को पता चलता है कि मैं मीडिया में हूं तो उनकी शिकायत होती है कि हर चैनल पर दिनभर  एक ही खबर दिखाई जाती हैं...एक ही खबर दिनभर खिंचती चली  जाती है...सच कहूं तो ऐसा अमूमन  होता नहीं है...हमारी कोशिश  रहती है कि किसी खबर को हम ज्यादा देर तक ना खींचे...अक्सर  जिस खबर को हम ज्यादा देर  तक खींचते हैं उसके पीछे कहीं न कहीं हमारी मंशा होती है खबर को अंजाम तक पहुंचाना...खबर  पर लगातार हम अपडेट देते हैं...मान  लीजिए हम सुबह से एक खबर  दिखा रहे हैं कि कोई बच्चा  बोरबेल में गिर गया...अब...जब तक वो बच्चा उससे निकल नहीं जाता तब तक तो उसे दिखाना हमारी मजबूरी है...ताकि प्रशासन  जल्द से जल्द हरकत में आए और बच्चा सुरक्षित बाहर निकल सके...मैं मानती हूं कि इस खबर को लगातार हम दिखाते हैं... लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इनके साथ हम अन्य खबरें  नहीं दिखाते...या उस खबर में  कोई अपडेट नहीं होता...सभी  चैनल इस खबर पर इसलिए बने  रहते हैं ताकि वो उस समय  अपने अन्य प्रतिद्वंद्वी  चैनल से आगे निकलने की होड़ में शामिल होते हैं...

अभी कुछ दिनों  पहले मैं एक ब्लॉग देख  रही थी...मुझे एक महाशय के ब्लॉग पर मीडिया की आलोचना से भरा एक पोस्ट मिला...उन्होंने अपनी भड़ास मीडिया पर जमकर निकाली थी....मीडियाकर्मियों की भी उन्होंने जमकर खिंचाई की थी....और उनके पोस्ट पर टिप्पणी  करनेवालों की भी कमी नहीं थी....हालांकि मैं मीडिया में 4 साल से हूं...और चार  साल का अनुभव हमारी फील्ड  में काफी मायने रखता है....मैंने  मीडिया को गहराई से देखा है ...सच कहूं....तो मीडिया के प्रति  लोगों की धारणाओं को देखकर  बुरा लगता है....बिना जाने समझे किसी एक धारणा पर चलना उचित नहीं है...लोगों ने मीडिया के लिए ये धारणा बना ली है...कि मीडिया में गलत-सही कुछ भी दिखाया जाता है या प्रचारित किया जाता है....जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता....लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है...हम वही दिखाते हैं जो सचमुच घटित होता है...हमारे पास उसके साक्षात प्रमाण होते हैं...हम हवा में बातें नहीं करते....हम उसे visual के जरिए दर्शकों के सामने डंके की चौट पर रखते हैं...ताकि लोगों को यकीन हो....सब कहते हैं...जो दिखता है वो बिकता है...लेकिन मैं कहती हूं.....जो बिकता है वहीं यहां दिखता है....बिकने का मतलब है जो लोग देखना पसंद करते हैं...हम उसी को रोचक तरीके से आपके सामने पेश करते हैं....खबरें जो हम दिखाते है क्या आप खुले तौर पर उन्हें चुनौती दे सकते हैं...खबरों को प्रसारित होने से पहले उसे कई दौर से गुजरना पड़ता है...इसे पहले SCRIPT के रूप में लिखा जाता है...उससे संबंधित सारी जानकारी इकट्टा की जाती है...उसकी शुद्धता को परखा जाता है...न्यूज डेस्क पर बैठे कई वरिष्ठ पत्रकारों की नजर से गुजरने के बाद उसे आपके समक्ष पेश किया जाता हैं...ऐसे में गलतियों की संभावना बेहद कम होती है...
हमरी कोशिश  रहती हैं कि हम उस खबर से संबिधित सारी जानकारी जल्दी  से जल्दी आपके सामने रखें....अब गलतियां मानवीय प्रवृत्ति  का हिस्सा है...छोटी-मोटी गलती किसी से भी हो सकती है...इसका ये मतलब नहीं कि हमेशा हम गलतियों  को ही वरीयता देते हैं...हां  मैं मानती हूं कि कुछ  चैनलों ने ये फंडा अपना लिया है कि वो अजीबो-गरीब खबरों  को ज्यादा तबज्जों देते हैं...खैर  मैं किसी एक खास चैनल का नाम उजागर किए बिना कहती हूं कि सारे चैनल एक ही फंडे पर नहीं चलता...सभी मीडिया हाउसों का अलग-अलग फंडा होता है...इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें TRP से कोई लेना-देना नहीं होता... लोग कहते हैं मीडिया में खबरें बनती नहीं है बल्कि बनाई जाती हैं...ऐसा सोचना सरासर गलत है....हम वहीं दिखाते हैं जिन्हें सचमुच उस वक्त दिखाया जाना जरूरी होता है...खबरों की महत्ता के हिसाब से हम उसे प्रसारित करते हैं...लेकिन अब मार्केट में बने रहना है तो हम उन चीजों को नजर अंदाज कर नहीं चल सकते...दूसरे मीडिया हाउस से आगे बढ़ने की होड़ में हमें कई बार ऐसा करना पड़ता है...


मीडिया को आपकी निजी जिंदगी से कोई सरोकार नहीं है लेकिन आपकी जिन्दगी  में कुछ अलग हो रहा है तो उसे जनता के सामने सच उजागर करने का पूरा अधिकार है....इस प्रक्रिया  में भले ही आपके लिए उसकी भूमिका गलत हो सकती है... लेकिन  दुनिया की नजर में वो गलत  नहीं है...उस स्थिति में उसे  पूरा हक है जिंदगी के हर पहलू पर ताकझांक करने का.... क्योंकि  वो किसी एक व्यक्ति विशेष  के लिए काम नहीं करता...ऐसे  में मीडिया आपके लिए मददगार भी साबित हो सकती है और खतरनाक भी...हमारा काम है दबे कुचलों की आवाज बुलंद करना... उसे  उसका हक दिलाना....और देश दुनिया में घटित सभी तथ्यों को हू-ब-हू  उजागर  करना...


मैं ये बिल्कुल  नहीं कहती कि मीडिया पाक-साफ  है...मीडिया में भी गंदगी  भरी है...जब कोई फिल्म बनती है तो उसमें सारे मसाले  भरे जाते हैं...उसी तरह  मीडिया में भी वो सारी चीजें  मौजूद हैं...यहां भी वो सारे स्केन्डल्स मौजूद हैं....लेकिन  हर जगह एक जैसी बात नहीं होती...शरीर पर धूल लग जाए  तो उसे फिर से साफ कर आप खड़े हो जाते हैं...इसका मतलब ये कदापि नहीं कि आप हमेशा  धूल-धु-सरित ही रहते हैं...मीडिया में काम करनेवालों के लिए ये जरूरी है कि आप किस  हद तक खुद को सुरक्षित रख पाते हैं...आपको उसूलों की यहां भी कद्र की जाती है...आपकी क्षमता को यहां भी परखा जाता है...और उसको तबज्जो दी जाती है


सबसे पहले तो मैं ये बता दूं कि....मैं ये ब्लॉग  इसलिए नहीं लिख रही कि मुझे मीडिया को पाक-साफ बताने  के लिए कोई सफाई देनी है...ना ही मेरा मक्सद मीडिया का बखान करना है...या इसका बीच बचाव करना है...देश का ये चौथा स्तंभ आज भी हिला नहीं हैं...अब भी वो बेहद मजबूत है...उसे किसी की सहानुभूति की जरूर नहीं है...वो अपना काम बखूबी करना जानता है... 
हां...जो जैसा सोचते हैं..वो बिल्कुल अपने तरीके से सोचने के लिए स्वतंत्र हैं...मैं अपने ब्लॉग के जरिए सिर्फ इतना बताना चाहती हूं कि किसी एक मान्यता को आंखें मूद कर भरोसा करने से पहले उसे अपने तरीके से जांच परख लें...फिर उसपर यकीन की मुहर लगाए...कभी मौका मिले तो किसी मीडिया हाउस में जाकर देखें कि वहां काम कैसे होता है....उन्हें आप तक किसी खबर को पहुंचाने से पहले कितनी मेहनत करनी पड़ती हैं...और मीडियाकर्मी अपनी मेहनत के लिए आपसे प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं लेता... उन्हें उनकी मेहनत के लिए कंपनी भरपूर पैसे देती है...अगर कोई मीडियाकर्मी आपके साथ ऐसा कुछ करता है तो आप उसके खिलाफ जरूर आवाज उठाए...ऐसी हरकत निचले ओहदे पर काम करनेवाले लोग ही कर सकते हैं
लेकिन किसी एक की गलती के लिए आप सबको ना कोसें...मेरे ख़्याल से सबके लिए एक जैसी धारणा बनाना  गलत है..क्या आपकी धारणा  दीपक चौरसिया, पुण्य प्रसून वाजपेई, प्रभू चावला, रजत  शर्मा, मृणाल पांडे, बरखा दत्त, अल्का सक्सेना, नीलम शर्मा जैसे दिग्गजों के लिए  भी ऐसी ही है...शायद नहीं....उन्होंने भी ये बुलंदी काफी घर्षण के बाद पाई है...तो इस क्षेत्र  में आनेवाले नए चेहरों को थेड़ा वक्त तो चाहिए  खुद को स्थापित करने के लिए...कोई भी एक बार में  इन दिग्गजों की सूची में शामिल  नहीं हो सकता ना..

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भोपाल तब भी रोया..भोपाल अब भी रो रहा है



आज कल हर खबरिया चैनल भोपाल गैस कांड की परते खोलने में लगा हुआ है....25 साल बाद ही सही चलो एक-एक करके इन सबकी नींद तो खुली...अब एक-एक रहस्य से पर्दा उठ रहा...हम भी एक खबरिया चैनल में काम करते हैं तो हम भी लगे हुए बाल की खाल पटाने में...लेकिन पूरे मामले को आज की निगाहों से भी देखें को कई सवाल खड़े होते हैं...7 जून को जब भोपाल गैस कांड मामले में अदालत फैसला सुनाया उसके बाद के एक-एक घटनाक्रम को गौर से देखिए....सबसे पहले 8 जून को मीडिया के सामने आए सीबीआई के तत्कालीन अधिकारी बी लाल....जिनने खुलासा किया कि उन्हे विदेश मंत्रालय ने एंडरसन के खिलाफ कार्रवाई न करने के निर्देश दिए थे...यहां जरा गौर करिए...1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और विदेश मंत्रालय उन्होने अपने पास रख रखा था....तो क्या ये माना जाए कि राजीव गांधी की  तरफ से कार्रवाई न करने के निर्देश दिए गए थे....अब न तो राजीव गांधी जिंदा है और न ही 1984 की सरकार में गृह मंत्री रहे नरसिम्हा राव जो इस सवाल का जवाब दें....सीबीआई अधिकारी बी लाल के बाद मीडिया के सामने आए 1984 में कलेक्टर रहे मोती सिंह....मोती सिंह के मुताबिक उन्हे मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने एंडरसन को सुरक्षित एयरपोर्ट तक पहुंचाने के निर्देश दिए थे...इधर एक फोन कॉल की बात भी बार बार बीच में आ रही है..ऐसा कहा जा रहा है कि अर्जुन सिंह के पास एक फोन आया था जिसके बाद उन्होने एंडरसन को सरकारी विमान से भोपाल से दिल्ली पहुंचाने के आदेश दिए थे...यहां भी एक सवाल पैदा होता है.....कि आखिर वो फोन कॉल किसका था जिसको अर्जुन सिंह मना नहीं कर पाए....जहां तक मेरे पत्रकारिता के अनुभव की बात तो एक मुख्यमंत्री तब ही इतना बेबस हो सकता है जब या तो उसकी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष उसे फोन करे या फिर देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति...यहां भी एक चीज गौर करने वाली है....7 दिसंबर 1984 को देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे और कांग्रेस के अध्यक्ष भी.....तो क्या यहां भी वही संकेत मिल रहे हैं कि फोन राजीव गांधी की तरफ से किया गया था....1984 में ही इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी....यानी अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की गई..कुछ ही दिनों बाद राजीव गांधी की ताजपोशी कर दी और 2-3 दिसंबर के बीच की दरमियानी रात में भोपाल में ये गैस कांड हो गया...यानी जब ये गैस कांड हुआ तब एक प्रधानमंत्री के साथ-साथ एक राजनेता के रुप में राजीव गांधी को सिर्फ एक महीने का अनुभव था...मां की हत्या के बाद सीधे भारतीय राजनीति में आए राजीव गांधी क्या इस कम अनुभव के कारण निर्णय नहीं ले पाए...खैर यहां भी सवाल वही है....कि क्या फोन कॉल राजीव जी ने कराया था......खैर सवाल का जवाब सिर्फ राजीव गांधी ही दे सकते हैं जो अब इस दुनिया में नहीं है.....पर या तो एंडरसन या फिर अर्जुन सिंह ही बता सकते हैं कि दिल्ली में बैठा वो कौन सा शख्स था जिसने हजारों लोगों के हत्ये को vip तरीके से भोपाल ने निकाल दिया...इधर पूरे कहानी में एक किरदार और है...वो हैं उस विमान के पायलट अली जो एंडरसन को भोपाल से दिल्ली छोड़कर आए थे....अली की माने तो एविएशन डायरेक्टर ने उन्हे निर्देश दिया था कि वो प्रदेश सरकार के विमान से एंडरसन को दिल्ली ले जाए....यहां भी वही सवाल ऐसा कौन व्यक्ति है जिसके आगे एविएशन डायरेक्टर को भी झुकना पड़ा...खैर वो फोन किसी का भी हो लेकिन इन सब बातों ने पूरे हिंदुस्तान को सोचने पर मजबूर कर दिया...भोपाल 25 साल पहले तब रोया जब उसके साथ कुदरत ये वो किया जिससे झीलों की नगरी में लाशें बिछ गई.....और यही भोपाल आज फिर रो रहा है क्यों कि उसके साथ गद्दारी कि उन लोगों ने जिन पर शायद उन्हे सबसे ज्यादा भरोसा था....आज cbi अधिकारी बी लाल,, तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह, पायलट अली सब एक-एक सामने आ गए...पर बड़ा सवाल कहां थे ये सब पिछले 25 साल से जब भोपाल पल-पल दर्द को सह रहा था...कहां थे ये लोग जब धारा 304(a) के तहत भोपाल गैस कांड के केस को दर्ज कर दिया गया....खैर उस फोन कॉल को किसी ने किया हो राजीव गांधी ने या फिर किसी औऱ पर भोपाल की झीलों में जितना पानी है उससे ज्यादा भोपाल के लोग रो चुके हैं...अब सजा किसी को मिले या न मिले भोपाल को इंसाफ मिलने की उम्मीद बहुत कम है


रोमल भावसार

अब कानून में देर भी है और अंधेर भी !

2 और 3 दिसंबर 1984 की वो मध्य रात जिसने पल भर में हजारों लोगों की जिंदगी छीन ली....गैस रिसाव के कारण देखते ही देखते लाशों में तब्दील हो गई थी झीलों की नगरी भोपाल......पूरे भोपाल के अस्पतालों में जितने बिस्तर थे उससे 10 गुना ज्यादा लाशें सड़कों पर पड़ी थी....हर तरफ चीख पुकार सुनाई दे रही थे.....हर मोहल्ल.....हर गली रो रही थी..........लाशों के ढेर के कारण सड़के जाम हो गई थी....अंधेरी रात में एक बाद एक मौत जिंदगी से जीतती जा रही थी...हर चेहरा मानो ये कह रहा हो कि बस कुछ पल की जिंदगी बाकी है और फिर यमराज उसे ले जाने आ रहे हैं.....एक-एक करके लोग मरते रहे....सरकारी आकड़ा बताता है कि इस रात 35 हजार लोगों ने जान गवाई पर हकीकत ये कि कई शव इतने गल गए थे उन्हे वही दफना दिया गया.....आज 25 साल बाद गैसकाड़ मामले का फैसला आ गया..भोपाल की CJM अदालत ने दोषियों को 2-2 साल की सजा सुनाई है.....अब इसको क्या कहे...न्यायपालिका पर हम उंगली उठा नहीं सकते औऱ न ही उठाना चाहते  हैं ....पर एक सवाल जरूर खड़ा करना चाहेंगे कि अखिर देर से हुए फैसले औऱ कम सजा के पीछे कारण क्या है......दरअसल जब नींव ही गलत रख दी गई हो तो इमारत को गलत खड़ी होगी ही....25 साल पहले हुए इस हादसे  की जांच CBI को सौंपी गई.....सबसे पहला सवाल तो ये कि CBI ने आखिर किस आधार पर इस मामले को 304 (A) में दर्ज किया....304 (A) मतलब गैर इरादन हत्या....इर धारा में दो साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान ही नहीं है.....304 (A) में सजा का ऐलान भले ही 25 दिन के बाद हो या 25 साल के इसमे 2 साल से ज्यादा की सजा नहीं दी जा सकती......आखिर वो क्या कारण रहे होंगे की CBI ने 35 हजार लोगों की मौत को गैर इरादन हत्या का मामला माना....अब इस मामले को लापरवाही के कारण हत्या के रुप में भी दर्ज किया जाता तो सजा पांच से सात साल की हो सकती थी...अदालत ने जो फैसला आज सुनाया वो उस केस डायरी और चार्जशीट के आधार पर सुनाया  जिसे CBI ने कोर्ट में पेश किया.....पर क्या  इस देश की सबसे बड़ी औऱ निकंमी जांच एजेंसी CBI  जो आरुषि हत्या कांड समेत कई मामलों को अब तक नहीं सुलझा पाई से सवाल नहीं किया जाना चाहिए...कि 304(A)  के तहत मामला बनाने के पीछे कोई और कारण था या रानीतिक मजबूरी.....और फिर बार बार केस की सुनवाई में देरी...आज भोपाल में 35 हजार लोगों के हत्यारों को 2 साल की  सजा सुना दी गई.....कह सकते हैं कि 25 साल बाद गैस पीड़ितों को इंसाफ मिल गया.....पर उनको इस फैसले से कितना सुकून मिलेगा कह पाना मुश्किल है

रोमल भावासार