बेशर्मों की जमात..


झारग्राम की वो खौफनाक त्रासदी...चारों तरफ लाशों का ढेर...रोते बिलखते लोग...कभी ना थमने वाले आंसू...दर्द और मौत के उस भयानक मंजर के बारे मे सोच कर ही सिहरन उठ जाती है...लेकिन देश के नेताओं की संवेदनाएं शायद मर चुकी है...शायद मैं गलत हूं...संवेदनाएं हैं...लेकिन सिर्फ कुर्सी के लिए..वोट के लिए..आम लोगों के लिए नही, उनकी तकलीफो के लिए नही...तभी तो रेलमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को इस हादसे के पीछे साज़िश की बू रही है...साजिश...वाह मैडम...तरस आता है आपकी इस घटिया सोच पर...तीन दिन हो गए हादसे को और चकनाचूर हो चुकी बोगियों में से शवों के निकाले जाने का सिलसिला अब भी जारी है...वो मंजर देखकर किसी जल्लाद की भी संवेदनाएं जाग जाए..लेकिन आपको इन लाशों पर राजनीति करते हुए जरा भी शर्म नही आई...ममता का कहना है कि आज यानि रविवार को पश्चिम बंगाल में निकाय चुनाव होने हैं और इसी चुनाव में उनकी पार्टी को नुकसान पहुचाने के लिए ये विपक्ष ने साज़िश रची है...बेशर्मी की हद होती है...हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेना तो दूर इन्हें दो कौड़ी के इलेक्शन की चिंता ज्यादा है...और अगर ये वारदात एक साज़िश है भी तो इस गंदी राजनीति का शिकार तो मासूम जनता ही बन रही है जो इन गैरतमंद, भ्रष्ट और दगाबाज नेताओं को वोट देती है...साज़िश तो जनता के साथ हुई है जिन्हे वोट के लिए झूठे वादों के मोहपाश में फंसाया गया...और हां इन बेशर्मों की जमात में लालू भला कैसे पीछे रह सकते हैं...मामला जब रेल से जुड़ा है तो इन्हें तो बोलना ही था...मन में रेल मंत्रालय की कुर्सी जाने की टीस जो थी...सो लालू बहुत कुछ बोले...इस बार उन्होने नक्सलियों को आतंकवादी बताया...ये वही लालू हैं जो दंतेवाड़ा बस हमले के बाद नक्सलियों की पैरवी कर रहे थे...और आम लोगों की गलतियां गिना रहे थे...लालू जी संवेदनहीन हो चुके अपने नेता मन को जकझोरो और उसमें सालों से सो रहे इंसान को जगाओ और देखने की कोशिश करो उस बूढ़ी मां के अविरल बहते आंसूओं को जिसने इस उम्र में अपनी बेटी जो उस घर का एकमात्र सहारा थी उसे खो दिया, उसकी बेटी शांति कश्यप नर्स थी, बीमार लोगों की सेवा करना ही उसका धर्म का था...उसका क्या कसूर था ?...शहीद दिनेश साहू की शादी 2 महीने पहले ही हुई थी...उसकी सुहागिन के हाथों की मेहंदी का रंग अभी गया भी नही था...कि उसकी मांग का सिंदूर उजड़ गया, उस सुहागन का क्या कसूर था ?..उस बच्ची का क्या कसूर है जिसके लिए खिलौने लाने वाला कोई नही बचा, उसके सिर पर दुलार से हाथ फेरने वाला कोई नही बचा...वोट, नोट और कुर्सी की जद्दोजहद से उपर उठकर मानवीय संवेदनाओं को समझो..इनके दर्द को महसूस करो...इनके लिए कुछ कर ना सको तो कम से कम इनके जख्मों पर नमक तो ना छिड़को...

पीएम ने कह कर भी कुछ नहीं कहा


गठबंधन धर्म को निभाते हुए यूपीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा किए। बड़े जश्न की तैयारी थी। तमाम व्यवस्थाएं भी हो गई थी। लेकिन मैंगलोर में हुए विमान हादसे ने रंग में भंग कर डाला।  और जश्न मातम में बदल गया।खैर छोड़िए....  अब आते है मुद्दे की बात पर.......
    UPA PART-2 का एक साल पूरे होने पर मनमोहन मीडिया से मुखातिब हुए, राष्ट्रीय पत्रकार सम्मेलन के जरिए। देश के तथाकथित नामी-गिरामी  प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादक  दिल्ली के विज्ञान भवन में जमा हुए। और मनमोहन के सामने तीर से निकले गोली की तरह प्रश्नों का  पत्रकारों ने बौछार करना शुरू किया। आज के इस लाइव मीडिया के दौर में तमाम टेलीविजन चैनल इस प्रेस  कॉन्फ्रेंस को दिखा रहे थे। और अपने चिर-परिचित अंदाज में मनमोहन सिंह  रूआंसे अंदाज में   पत्रकारों के सवालों का जवाब देते नजर आएं।
 सवाल भी पत्रकार बंधु वहीं रटा- रटाया तोते की जुमलाबाजी की तरह  पूछ रहे थे। पहला सवाल जो  एक निजी अंग्रेजी न्यूज चैनल के बंधु ने पूछा.....MR. Manmohan singh whats, your stratigey  to curb the Naxal threat?
   मनमोहन को देश की जनता भले ही राजनीतिज्ञ कम अर्थशास्त्री के रूप में  देखता हों, लेकिन 6 साल से पीएम की कुर्सी संभालकर राजनीति के भी वो माहिर खिलाड़ी बन गए है। बस क्या था। तुरंत मनमोहन ने जवाब देना शुरू किया...... गृहमंत्रालय इस मामले में नक्सल प्रभावित राज्य सरकारों के साथ मिलकर  समस्यां  से निपटने के काम में जुटी है। वहीं नक्सली इलाके में एक बार  प्रधानमंत्री चिदंबरम का डॉयलॉग दुहाराते नजर आएं .... विकास से ही समस्यां का समाधान हो सकता है। वहीं दूसरा सवाल महंगाई जिससे आप हम सब लोग वाकिफ  है। महंगाई को लेकर जनता त्रस्त है। महंगाई के सवाल पर सरकार संसद में भी घिरती रही है। मनमोहन ने दिसंबर तक महंगाई को कम होने का भरोसा देश की जनता  को दिलाया। वहीं एक और सवाल आतंक से जुड़ा अफजल गुरू को फांसी को लेकर था,जिसपर पीएम ने कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए अपना पल्ला झा़ड़ा। लेकिन सबसे मह्तवूर्ण रहा आप रिटायर कब हो रहे है। मनमोहन ने कहा  कांग्रेस पार्टी और हम चाहते है कि युवा नेतृत्व को मौका मिलें..... और राहुल में पीएम  बनने के  सारे काबिलियत है। लेकिन अगले ही पल पासा बतलते हुए उन्होंने कहा कि हमारे कंधे पर जो काम सौंपे गए है। वो अभी अधूरे है,जब तक वो पूरा नहीं होता है,तब तक रिटायरमेंट का सवाल ही नहीं उठता। कुल मिलाकर पूरे प्रेस वार्ता में मनमोहन ने कह कर भी कुछ भी नया नहीं कहा ,जिसे जनता जानना और समझना चाहती है।

गुरुजी का क्या होगा!

आखिरकार पिछले 28 दिनों से चल झारखंड का हाई वोल्टेड ड्रामा खत्म हो गया ...और भाजपा ने अपने सहयोगी गुरुजी को तलाक दिया है...अरे भाई समर्थन वापसी को तलाक तो कह ही सकते हैं...तलाक के पहले भी तो इसीतरह के झगड़े...फिर प्यार और मान मनौव्वल होता है...सौदेबादी भी होती है...लेकिन गुरुजी को न तो मानमनौव्वल पसंद आया...न ही उन्होंने भाजपा के साथ सौदेबाजी ही...करें भी क्यो उन्हें तो सिर्फ गद्दी की फिक्र है...और भाजपा समर्थन तो दे रही थी...गद्दी नहीं...अब गद्दी का सुख तो हमारे गुरुजी से छोड़े नहीं छोड़ता...फिर फिक्र किसे है...अल्पमत में आ गई सरकार तो क्या....झारखंड में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा...और दोबारा से चुनाव कराए जाएंगे....और शायद गुरुजी को ज़िद इस नए नवेले राज्य को एक बार फिर चुनाव में झोंक भी दे...लेकिन चुनाव न तो चुनाव दूसरी पार्टियां चाहती है...न ही जनता जनार्दन...लेकिन भईया अपने गुरुजी को इनसब से कोई वास्ता नहीं...उन्हें तो सत्ता चाहिए... मुख्यमंत्री का ताज...अपने सिर या अपने बेटे के सिर...इसके लिए फिर जनता के करोड़ों रुपए बर्बाद है...समय बर्बाद हो तो हो...स्वार्थ की राजनीति खेलने वाले सोरेन के विचार तो इनसब से परे है...लेकिन गुरुजी आप क्या सोचते हैं...जब पिछली बार जनता ने नहीं दिया तो इसबार बहुमत दे देगी...जनता को बार-बार चुनाव में ढकलने और आम आदमी वित्तीय बोझ डालने के साथ-साथ विकास में पीछे ढकलने की एवज में आपको जनता झारखंड की सत्ता का ताज शायद ही पहनाए...चुनाव के बाद नए सिरे से सियासी गठजोड़ होगा...और फिर सत्ता के मैदान में आपकी मोहरें सही चल पाएगी...या फिर आप विपक्ष में बैठने का तथाकथित सुख हासिल करेंगे कहना मुश्किल है...अब क्या हुआ पक्ष में न सही...विपक्ष में सही...खैर गुरुजी इससे तो अच्छा होता कि...आप भाजपा का समर्थन ले लेते...सरकार भी रह जाती रोटेशन सिस्टम के आधार पर छह महीने बाद सत्ता भी मिल जाती...लेकिन छह महीने भी गद्दी छोड़ने का गम आप झेल नहीं पाए... तलाक आपको ज्यादा भाया...इन दांवपेंचों के बीच में जरा ये तो सोचिए...अगले चुनाव में जनता ने आपको अपने तरह से जवाब दे दिया तो...आपका क्या होगा...वैसे भी जनता तो जनार्दन है...जिसे चाहे इन कर दे...और जिसे चाहे आउट...और लगता है मेरी तरह झारखंड की जनता के मन में भी जरुर सवाल उमड़ घुमड़ रहे होंगे...गुरुजी का क्या होगा!

कुत्ते के दर्द को समझो

पिछले हफ्ते मैं अल्पप्रवास के लिए अपने घर गया हुआ था.. काफी दिनों बाद मेरी मुलाकात मेरे कुत्ते से हुई....इस कुत्ते को पिछले 8 सालों से हमने पाल रखा है...बहुत दिनों बाद मुझे देखकर मेरा प्यारा कुत्ता तेज-तेज भौंकने लगा....जनाब कुत्ते के भौंकने के भी दो अर्थ होते हैं एक या तो वो आपको कोई चेतावनी दे रहा है या आपको सलामी दे रहा है...इसी दुविधा में मैंने मेरे कुत्ते से पूछा कि भाई मामला क्या  है...मेरा कुत्ता मुझसे नाराज था बोला हम कुत्ते हैं वफादार हैं पर शुरू से ही हमारी कोम का मजाक उड़ाया जाता रहा है... पहले धर्मैद फिल्मों में कहते थे 'कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊगा' और अब गडकरी मेरी तुलना लालू और मुलायम से कर रहे हैं.....मुझे भी लगा मेरा कुत्ता सही कह रहा है क्यों कि समय के साथ कहावतों को भी बदल देना चाहिए...पहले दुश्मन से कहा जाता था कि 'तू कुत्ते की मौत मरेगा' या 'तुझे कुत्ते की मौत मार डालूगा' पर आज कौन कुत्तों की मौत मरना नहीं चाहगा....कुत्ते ठाठ से एयर कंडीशनर में बैठते हैं मालिक के  साथ गाड़ी में धूमते हैं....दिल्ली में शीला दीक्षित ने ये तक कह दिया कि कुत्तों पर अन्याय हुआ को खैर नहीं..कुत्तों के लिए होस्टल बने हैं .....मालिक की रजाई में कुत्तों की रात बीताते है...पांच सितारा होटलों में कुत्ते खाना खाते हैं....और अगर आपने ज्यादा परेशान किया कुत्तों को तो मेनका गांधी तुरंत आप पर डंडा कर देगी...तो ऐसे समय में गडकरी का किसी नेता से कुत्तों की तुलना करना मुझे तो गलत लगता है...कुत्ता भौंकता है या तो सलामी देने या चेतावनी देने ..पर काटते नहीं और हां जनाब अगर किसी कुत्ते ने आप को काट भी लिया तो चिंता की बात नहीं क्यों की आजकल इनकी कोम को रेबीज के इंजेक्शन लगे होते हैं इसलिए आपको कुछ नहीं होगा....अब आप ही बताईए कौन कुत्ते की मौत मरना नहीं चाहेगा..... ये तो कुछ नहीं आजकल कुत्तों के रिश्वत दिए बिना कई नेता...अभिनेता और मंत्रियों ने आप नहीं मिल सकते....आज कल के नेता ..अभिनेता और मंत्रियों के घर जब आप किसी काम से जाएंगे तो आपका मुकाबला सबसे पहले दरवाजे पर बंधे कुत्ते से होगा और मजाल है कि बिना बिस्कुट खिलाए ये आपको अंदर जाने दें...तो आज किसी कि तुलना गधे को करो...सांप से करो और ज्यादा की गंदी तुलना करनी हो तो इन भ्रष्ट नेताओं से करो... पर कुत्तों से मत करो...क्यों की आज कुत्ता होना किस्मत की बात है...तो ये पूरी कहानी है मेरे कुत्ते की जिसे इस बात का दर्द है कि उसकी तुलना नेताओं से क्यों की गई और सही भी है ये कुत्ते कि कही न कही वो इन नेताओं से ज्यादा ईमानदार है


रोमल भावासार

चिदंबरम के नाम चिट्ठी

चिदंबरम के नाम चिट्ठी

आदरणीय गृह मंत्री जी,
नमस्कार....मत्री जी बहुत दिनों से आपको चिट्ठी लिखने का सोच रहा था पर लगा क्या मालूम आप को इस आम आदमी की बातों पर घ्यान देने के समय है कि नहीं..महोदय मैं एक आम आदमी हूं..वो आम आदमी जिसपर कभी सुखे की मार पड़ती है तो कभी बारिश की..वो आदमी जो महंगाई की वजह से कई बार भूखा सोता है..मैं उन आम आदमियों में से हूं जो कभी आतंकियों की गोलियां खाता है तो कभी नक्सलियों के हाथों मरता हूं....आदरणीय चिदंबरम जी आज छत्तीसगढ़ के बीजापुर में शहीद लोगों को रायपुर के माना में श्रृदांजलि दी गई थी....अचानक मेरी निगाह वहां बनी एक इमारत पर गई जिसे शहीद इमारत का नाम दिया गया है....ये वही इमारत है जिसमें एक महीने पहले दंतेवाड़ा में शहीद हुए जवानों के नाम लिखे थे..और साथ में नीचे खाली छोड़ी गई थी कुछ जगह....आज आठ जाबाजों को खोने के बाद ये जगह कुछ कम हो जाएगी.....पर क्या कभी ऐसा हो पाएगा कि शहीद इमारत के आगे कोई जगह खाली न छोड़ी जाए और हमे यकीन हो कि अब किसी जवान की मौत नक्सली हमले में नहीं होगी...आदरणीय मंत्री जी पिछली बार आप जब यहां शहीदों को श्रृदांजलि देने आए थे तो आपने बहुत बड़ी बड़ी बाते की थी..एक महीने बाद फिर नक्सलियों ने आपको बता दिया है कि आपका हर तंत्र बेकार है औऱ यही ढीलापर बेकसूर जवानों की मौत का जिम्मेदार है...आज ही रायपुर के तिलदा में शहीद जवान टेकराम वर्मा का शव पहुंचा है मैंने शहीद की मां..बीबी और परिवार को फूट फूट कर रोते देखा है....इस परिवार का एक एक आंसू मुझे सोचने पर मजबूर कर रहा था कि क्या देश के नेताओं कि चमड़ी इतनी सख्त हो गई है कि अब उन्हे अपनी राजनीति के आगे कुछ भी दिखाई नहीं देता...आप हो या विपक्ष में बैठी भाजपा..या मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह....ममता बनर्जी हो या वाम दाल आप सब राजनीति में व्यस्त है..नक्सलवाद पर औऱ ग्रीन हंट पर जमकर बयानबाजी चल रही पर जवानों की मौत का सिलसिला जारी है..आज एक और देखने वाली बात थी कि छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह आठ जवानों को श्रृदांजलि देने नहीं पहुंचे......शायद व्यस्त होंगे नक्सलवाद पर दिग्गी राजा की चिट्ठी का जवाब देने........आदरणीय गृह मंत्री जी आप से सिर्फ एक ही सवाल करना चाहता हूं जब पूरी दाल ही काली हो तो हम जैसा आम आदमी क्या करे.....कब तक रोज सुबह उठकर हम जैसा आम आदमी न्यूज पेपर में ये देखते रहेंगे कि फिर एक हमला हुआ औऱ हमने अपने कुछ जवानों के खो दिया...आज तो आपने भी छत्तीसगढ़ में अलर्ट जारी करके बोल दिया कि औऱ हमले हो सकते हैं...कब क्या कभी आप इसी तरह डंके चोट बोल सकते हैं कि अब कोई हमला नहीं होगा....आखिर कब तक रोज लाशों के ढेर देखेगा इस देश का आम आमदी...शर्म की बात तो ये है कि सारे पार्टियों के नेता बस संसद में हंगामा करते हैं....राजनीति करने सरकार के पास भी समय है और विपक्ष के पास भी पर कहां चूक हुई और हो रही है कोई जानने नहीं चाहता..खैर आज के लिए बस इतना ही..एक औऱ नक्सली हमले का इंतजार करते हैं मंत्रीजी फिर आपको दोबारा खत लिखूगा..खैर तब तक आपका अलर्ट जारी रहेगा


एक आम आदमी

मौत को दावत!

नक्सल प्रभावित जिलों के वाशिदें खौफ में जी रहे हैं तो बगैर संसाधनों के जवान वैसे इलाकों में बेमौत मरने को मजबूर हैं। नक्सली कभी भी कहीं भी कायराना हरकत को अंजाम देते हैं और हमारे खुफिया तंत्र को नेताओं के इशारों पर उनके प्रतिद्वंदियों की बखिया उधेड़ने से फुर्सत नहीं है। शनिवार को बिहार के तीन जिलों में नक्सलियों ने हमला किया तो छत्तीसगढ़ के बीजापुर में धमाका कर 8 जवानों की जान ले ली। इस वारदात में दो आम नागरिक भी घायल हुए हैं।
नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में बारूदी सुरंग विस्फोट कर सीआरपीएफ के वाहन के परखच्चे उड़ दिए, इस घटना में 8 जवान शहीद हो गए और दो आम नागरिक भी घायल हुए हैं। सीआरपीएफ के 168वीं बटालियन के जवान बंकर वाहन में सवार होकर बासागुड़ा आवापल्ली से बीजापुर जिला मुख्यालय रवाना हुए थे और पेद्दाकोडेपाल गांव के पास पहुंचने पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर दिया। बताया जा रहा है कि इसके बाद नक्सलियों ने घायल जवानों पर फायरिंग भी की। उधर, बिहार के सीतामढ़ी में पुलिस कैंप पर हमला कर पुलिस जीप में आग लगा दी और पुलिसकर्मियों को बंधक बनाकर उत्पात मचाया। वैशाली में भी उन्होंने एक ट्रक फूंक कर दहशत फैलाने की कोशिश की। इसके अलावा कटिहार के पास केन बम के विस्फोट से रेलवे ट्रैक उड़ा दिया। इस घटना से करीब 6 मिनट पहले पहले नार्थ इस्ट एक्सप्रेस गुजरी थी, जिसमें बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और पथ निर्माण मंत्री प्रेम कुमार थे। यूं कह लें कि शायद नक्सलियों का निशाना वही थे और किसी चूक की वजह से वो बाल बाल बच गए।
जिन इलाकों में पग-पग पर मौत बिछी हो, हर जंगल नक्सलियों की मौजूदगी की वजह से किसी दोजख से कम नहीं हो, वैसे इलाकों में बिना पर्याप्त सुविधा और संसाधनों के अभाव में केवल हौसले से नहीं लड़ा जा सकता। जवानों को इन इलाकों में अत्याधुनिक हथियारों, इलाके की हर भौगोलिक जानकारी और खुफिया तंत्र की सूचनाओं के बगैर भेजना मौत को दावत देने से कम नहीं है। एसी चैंबर में बैठकर योजनाएं बनाने वाले जाने ये कम समझेंगें और तब तक शायद हम इसी तरह शहीदों की संख्या गिनते रहेंगे।
http://www.seedheebaat.blogspot.com/

मां होती है एक सी......


परिंदों की अठखेलियां
बंदनवार बनाता उनका कलरव
सिंदूरी शाम में लौटता झुंड
दिवसावसान में घर की तड़प
और घरौंदे में इंतजार करता कोई
जो मुझे ज़िंदगी से भर जाता है
एक मूक पंछी
जो मौन में रिश्तों को जीता है
मैने देखा है वो रिश्ता है 'मां'
दर्द की सिहरन में मरहम है मां,
जेठ की दुपहरी में घनी छांव है मां,
अस्तित्व की तलाश में पहचान है मां,
मुझसे अलग पर मेरी सांसे हैं मां,
बच्चों को नहीं उम्मीदों को जन्म देती हैंमां,
हर मज़हब हर धर्म में एक सी होती मां,
मां बन के मैनें जाना तुम क्या हो 'मां'
मैं खुशनसीब हूं बहुत अच्छी है मेरी 'मां'

वाक़ई गुरुजी ऐसे ही देया गया था !


कट मोशन में एक छोटी सी ग़लती क्या हो गई गुरुजी के कुर्सी पर आ गई।
हालाकी अब ऐसा लग रहा है कि गुरुजी ने गलती की लेकिन ग़लती की स्वीकरोक्ती जिस निर्दोष भाव से किया उसमें कोई गलती नहीं थी। मीडिया वाले पूछ रहे थे कि कैसे हो गया तब गुरुजी ने कहा था "ऐसे ही देया गया है" दरअसल झारखंड में सत्ता समीकरण जब बन रहा था उस समय ही सभी राजनीतिक पंडित से लेकर सिद्धांतों के बल पर राजनीति करने वाले बचे खुचे नेता ये देख कर दंग थे कि कल तक कोयला चोरी में आरोपी, हत्या मामले में दोषी सोरेन को भाजपा जैसी पार्टी कैसे समर्थन दे रही है। लेकिन गडकरी जी को तोहफा देने के नाम पर और झारखंड को स्थाई सरकार देने के लिए दागी का साथ ही सही भाजपा से भी
ऐसे ही देया गया था
। आखिरकार अब भाजपा में भी जद्दोदहद जारी है और कौन बनेगा मुख्यमंत्री का दौर भी। देखें क्या होता है............